Opinion

अर्थातः भविष्य का भविष्य
नए भारत को गर्व से कंधे पर लेकर चलने वाले मध्य वर्ग को सिकोड़ने से रोकना होगा.

अर्थातः कभी कमी न आई
भारत चिरंतन महंगाई वाला देश है. यहां महंगाई की आधी-अधूरी सरकारी दर भी हमेशा आर्थिक विकास दर या बहुसंख्य आबादी की आय बढ़ने से ज्यादा रहती है.

अर्थातः सब बिन सब अधूरा
दुनिया में तो मंदी है, मांग का कोई विस्फोट नहीं हुआ है फिर भी यह महंगाई कहां से आ रही?

अर्थातः कसौटियों की कसौटी
भारत का अल्पविकसित बॉन्ड बाजार इस सुधार का इंतजार लंबे वक्त से कर रहा था. फायदों की सूची छोटी नहीं है.

अर्थातः बुरा न मानो बैंक है
बैड बैंक मसीहा नहीं है. भारत के बैंकों के अधिकांश डूबे कर्ज वसूल होने की संभावना भी नहीं है. यह सरकारी बैंकों की सफाई की व्यवस्था है.

अर्थातः ये दाग़ दाग़ उजाला
मंदी आंकड़ों की समझ सिकोड़ देती है. सो, प्रतिशत ग्रोथ के बजाए उत्पादन की ठोस कीमत को पढ़ना चाहिए.

अर्थातः ना होता ये तो क्या होता...
यह चुनाव अच्छे और बुरे के बीच है ही नहीं, हमें तो कम और ज्यादा नुक्सान के बीच एक को चुनना है.

अर्थातः बाज़ी, बिसात और बेबसी
विनिवेश की खोखली सुर्खियों की हांक लग रही है, निजीकरण का टट्टू वहीं अड़ा है, बढ़ नहीं रहा.

अर्थातः मंदी की हवेलियां
रियल एस्टेट कारोबार मंदी के प्रेत की सबसे बड़ी ताकत है. यह संकट एक दूसरे संकट की मदद से ही दूर होगा.

अर्थातः आएगा आने वाला
बैंकों का निजीकरण हो न हो लेकिन भारत की बैंकिंग पूरी तरह बदल चुकी है

अर्थातः गए रोजगार बनाम नए रोजगार
कोविड के बाद करीब आधी नौकरियां ऑटोमेशन और तकनीक उठा-पटक का शिकार होंगी.

अर्थातः पाखंड के आर-पार
शायद पाखंड ही भारतीय राजनीति की सबसे मजबूत अदृश्य बहुदलीय शपथ है

अर्थातः पर्दा जो उठ गया तो...
एक तरफ लोगों की निजता है, दूसरी ओर निजता का व्यापार. दोनों में से क्या बचेगा?

अर्थातः तिनके को डूबते का सहारा
मंदी और महामारी के बीच ग्रामीण अर्थव्यवस्था के मजबूत बने रहने दावा कितना सच है?

अर्थातः कहीं ये 'वो’ तो नहीं!
क्रिप्टो के सही होने की गारंटी नहीं है लेकिन भविष्य में यह नाकाम होगी, ऐसा भी नहीं कहा जा सकता.

अर्थातः बचेगी बचत !
बचत को अब प्रोत्साहन और सुरक्षा चाहिए, नए जोखिम नहीं.

अर्थातः सुधार से संहार!
पिछले एक दशक का सबसे बड़ा सुधार बीमार कंपनियों को उबार रहा है या बैंकों का पैसा डूबा रहा है.

अर्थातः साबुत बचा न कोय
भारत में आम लोग ज्यादा टैक्स चुकाते हैं या कंपनियां? क्या आपको पता है कि बीते एक दशक में भारत के आम परिवारों पर कितना टैक्स बढ़ा है?

अर्थातः वैक्सीन के उपनिवेश
चीन ने बड़ी खामोशी से अपने वैक्सीन उपनिवेशवाद को पूरी दुनिया में फैला दिया है

अर्थातः ऐसे आती है गरीबी
सरकारें महंगाई बढ़ाकर बड़ी सफाई से हमारी बचत-खपत-संपत्ति घटाते हुए हमें गरीब बना देती हैं.