गायत्री ईसर कुमार
एकता और स्थिरता. ब्रिटेन के नव नियुक्त प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने ऐलान किया कि यही दोनों उनके सबसे पहले और सबसे अव्वल लक्ष्य होंगे. कंजर्वेटिव पार्टी का नेता होने के नाते सुनक ने पार्टी में एकता कायम रखने की प्रतिज्ञा ली. 2024 के चुनावों में वे पार्टी की अगुआई जो करने वाले हैं.
ब्रिटेन के चार इलाकों की एकता कायम रखना प्रधानमंत्री की मुख्य प्राथमिकता होगी, खासकर जब लेबर पार्टी के जल्द चुनाव करवाने के आह्वान की गूंज स्कॉटलैंड और उत्तरी आयरलैंड में प्रमुखता से सुनाई देने लगी है. तमाम मुद्दों पर बुरी तरह बंटे ब्रिटेन के लोगों में एकता कायम करना भी उनकी जाहिर आकांक्षा है.
यह भी पहले से तय है कि प्रधानमंत्री के नाते सुनक घरेलू मामलों को सबसे ज्यादा प्राथमिकता देंगे. उनमें सबसे प्रमुख है अर्थव्यवस्था, जो कम वृद्धि, तेज दौड़ती महंगाई, आसमान छूती कीमतों, श्रमबल की कमी, बढ़ते कर्ज, जीवनयापन के खर्च के संकट से ग्रस्त और घरेलू ऊर्जा की लागत को रोकने या कम से कम नियंत्रित करने की जरूरत है.
हालांकि लोग मितव्ययी उपायों के एक और दौर को लेकर आशंकित है, सुनक ने उन्हें 'दयालु’ नजरिया अपनाने का भरोसा दिलाया है. जब कोविड संकट शिखर पर था, बतौर वित्त मंत्री सुनक ने कमजोर लोगों की सहायता के लिए फर्लो यानी अवकाश तथा कई योजनाओं का पिटारा खोला, जिसका काफी स्वागत किया गया. उम्मीद की जा सकती है कि प्रधानमंत्री के तौर पर वे पद संभालते ही काम शुरू करेंगे, पर पक्के इरादे के साथ तमाम चुनौतियों का मुकाबला करते हुए लोगों को भी साथ लेकर चलेंगे.
उनके पदग्रहण का ब्रिटेन के विदेश संबंधों और खासकर भारत के लिए क्या मतलब है? विदेश नीति के बारे में सुनक को अपने विचार अभी सामने रखने हैं. उनकी सोच की दिशा कई तरीकों से पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन से तय हुई, जिन्होंने ब्रिटिश सरकार से मार्च 2021 में सुरक्षा, प्रतिरक्षा, विकास और विदेश नीति की दशकों में एक बार होने वाली एकीकृत समीक्षा करवाई थी.
वह रिपोर्ट राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति के लिए 2025 तक के लक्ष्य तय करती है और एक वैश्विक ब्रिटेन की परिकल्पना करती है जो विश्व के मंच पर अग्रणी भूमिका निभाएगा और स्वास्थ्य देखभाल, रक्षा व सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन और टिकाऊ विकास सरीखे प्रमुख मुद्दों से मुखातिब होगा. प्रधानमंत्री के तौर पर सुनक को मजबूत नेतृत्व देना होगा और विदेश नीति को नया बल देना होगा, जो यूक्रेन के हालात के कारण पिछले आठ महीनों से भटक गई है.
इन मामलों में भारत और ब्रिटेन लंबे वक्त से पार्टनर रहे हैं. ब्रिटेन में भारतीय मूल का प्रधानमंत्री बनना भारतीय आप्रवासियों के लिए ऐतिहासिक क्षण है. इसकी अहमियत दुनिया के नेताओं की नजरों से भी नहीं चूकी. अलबत्ता, जैसा कि एक टिप्पणीकार ने कहा कि प्रधानमंत्री सुनक इस पद पर इसलिए पहुंचे क्योंकि् अपनी पार्टी में उन्हें जबरदस्त सम्मान हासिल है.
जहां तक भारत के साथ रिश्तों की बात है, अच्छा तो यही होगा कि सुनक के 'एकता और स्थिरता‘ के मार्गदर्शक सिद्धांतों में 'निरंतरता’ भी जोड़ी जाए. खासकर भारत और ब्रिटिश सरकार की तरफ से 2030 के विस्तृत रोडमैप में संयुक्त रूप से पहचाने गए उद्देश्यों पर काम करते हुए.
मई 2021 में तैयार हुआ यह रोडमैप 10 साल की पहली प्रतिबद्धता था जो ब्रिटिश सरकार ने किसी भी विदेशी सरकार के साथ कायम की. इस दस्तावेज में समाहित पहल और सहयोग अंतरिक्ष और विज्ञान, उन्नत टेक्नोलॉजी और शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य देखभाल, व्यापार, रक्षा और सुरक्षा, संस्कृति, टिकाऊ विकास, जलवायु परिवर्तन और उससे आगे तक फैले हैं.
चांसलर के तौर पर सुनक और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सितंबर 2021 में एक संयुक्त बयान में आर्थिक, व्यापार और वित्तीय क्षेत्रों में दोतरफा सहयोग को नई गति देने के लिए विस्तृत और भविष्यदर्शी रणनीति का खाका पेश किया था. सुनक ने भारत-ब्रिटेन व्यापार को, जो 2021-22 में 17.2 अरब डॉलर था, 2030 तक दोगुना करने और मुक्त व्यापार समझौते को जल्द संपन्न करने के लक्ष्य का भी समर्थन किया था.
पहली बार ब्रिटेन में कार्यरत भारतीय कामगारों के सामाजिक सुरक्षा भुगतान की विसंगति (जिसमें उन्हें अपने योगदान का कोई फायदा नहीं मिलता) मंत्रियों के एजेंडे में लाई गई थी, उसी तरह जैसे एफटीए ग्रिड लाया गया था. एफटीए पर बातचीत काफी संतोषजनक स्तर तक आगे बढ़ी है. दीवाली की अंतिम समय सीमा गुजर चुकी है, पर दोनों तरफ दिलचस्पी में कमी या प्रतिबद्धता के कमजोर होने की झलक नहीं है. प्रस्तावित एफटीए में कुछ चुनौतियों भरे अध्याय बाकी हैं, जिन्हें सुलझाने की जरूरत है. यह जितना जल्दी हो, उतना बेहतर रहेगा.
एक और अहम करार लागू करने की जरूरत है और वह है माइग्रेशन और मोबिलिटी पार्टनरशिप समझौता (एमएमपीए), जिस पर भारत और ब्रिटेन ने मई 2021 में दस्तखत किए थे. यह भारत और ब्रिटेन के रिश्तों को वर्षों से प्रभावित करते आए संवेदनशील जुड़वा मुद्दों पर संतुलित नजरिया अपनाता है.
उनमें एक मुद्दा व्यापार को बढ़ावा देना और साथ ही शिक्षा तथा सेवाओं में ज्यादा घनिष्ठ सहयोग बढ़ाने के लिए दोनों देशों के बीच नागरिकों को जायज आवाजाही की सहूलत देना है. दूसरा ब्रिटेन में अवैध रूप से या वीजा की अवधि से ज्यादा वक्त रहते पाए गए भारतीय नागरिकों की 'वापसी’ के मामले में सहयोग है. इसके अमल में पहला कदम ही गड़बड़ रहा—एमएमपीए को लागू करने के तौर-तरीके निकालने के लिए संयुक्त कार्य समूह की स्थापना.
इस बीच ब्रिटेन का गृह विभाग भारतीयों को तुरत-फुरत वापस भेजने पर जोर देता जान पड़ता है. लिज ट्रस के मातहत गृह मंत्री सुएला ब्रेवरमैन ने भारतीय नागरिकों के बारे में कहा कि ''तय वक्त से ज्यादा रुकने वाले प्रवासियों में सबसे बड़ा धड़ा भारतीय हैं.’’
उनके इस बयान से एमएमपीए की कामयाबी और एफटीए को अंतिम रूप देने के लिए काम कर रहे लोग सांसत में पड़ गए थे, जिसमें भारत और ब्रिटेन के बीच छात्रों, पेशेवरों, सेवा प्रदाताओं, कामगारों और दूसरों की सुचारू आवाजाही केंद्रीय थीम है. सुनक ने ब्रेवरमैन को फिर गृह मंत्री नियुक्त किया है और देखना होगा कि वे इस संवेदनशील मुद्दे से कैसे निबटती हैं.
वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने ठीक ही कहा कि इंतजार करना और एफटीए के बारे में नई सरकार का नजरिया देखना सबसे अच्छा होगा. यहां भी उम्मीद की जा सकती है कि सुनक 'मुश्किल’ अध्यायों को व्यावहारिक ढंग से संभालते हुए इसे तेजी से फिर शुरू करने का संकेत जल्द देंगे.
इसमें कोई शक नहीं कि सुनक प्रधानमंत्री पद का दायित्व प्रतिबद्धता, जवाबदेही और युवा जुनून के साथ संभालेंगे. वे और उनकी पत्नी, आकर्षक ढंग से विनम्र और सरल अक्षता मूर्ति (उन्होंने बगैर किसी झमेले और प्रोटोकॉल के भारतीय उच्चायोग आकर और पब्लिक ट्रांसपोर्ट से लौटकर हमें हैरान कर दिया था) अपनी भारतीय विरासत पर गर्व करते हैं. भारत भी प्रधानमंत्री ऋषि सुनक पर गर्व करता है और उन्हें हर कामयाबी के लिए शुभकामना देता है. यकीनन उनकी कामयाबी नया अध्याय खोलेगी.
(लेखक सेवानिवृत्त आइएफएस अफसर हैं और ब्रिटेन में भारत की उच्चायुक्त चुकी हैं).