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‘‘आइआइएम-सी की शिक्षा पद्धतियों से भारत की कोविड नीति बनाने में मदद मिली’’

देश की कोविड नीति दूसरे देशों से ‘सकारात्मक ढंग से अलग’ थी. मौजूदा आर्थिक स्थिति से जाहिर होता है कि वह कामयाब थी.

कामयाबी का दरवाजा : आइआइए-बी के पूर्व छात्रों ने बिजनेस और दूसरे क्षेत्रों में सफलता के झंडे गाड़े हैं
कामयाबी का दरवाजा : आइआइए-बी के पूर्व छात्रों ने बिजनेस और दूसरे क्षेत्रों में सफलता के झंडे गाड़े हैं
अपडेटेड 14 नवंबर , 2022

मेहमान का पन्नाः कृष्णमूर्ति सुबह्मण्यम

मेरी दिलचस्पी तीन आइआइएम में थी. उनमें से आइआइएम-कलकत्ता मैंने इसलिए चुना क्योंकि यह विचार के विश्लेषणात्मक ढांचे पर बहुत जोर देता था. दूसरे आइआइएम उदाहरणों या मामलों की शैक्षणिक पद्धति पर बहुत ज्यादा भरोसा करते हैं और इस तरह विश्लेषणात्मक ढांचे पर कम जोर देते हैं. इसके विपरीत आइआइएम-सी की शैक्षणिक पद्धति शिक्षा के विश्लेषणात्मक ढांचे पर जोर देती है और फिर उन्हें व्यावहारिक परिदृश्यों पर लागू करती है जिनमें उदाहरण लिए जाते हैं.

अगर एमबीए प्रोग्राम के दौरान सामने आने वाली स्थितियों से हटकर सोचना हो तो इस किस्म की शिक्षा बेहद अहम है. मसलन, दुनिया में कहीं भी किसी भी नीति निर्माता को यह नहीं सिखाया गया होगा कि कोविड-19 सरीखे झटके से कैसे निपटें, क्योंकि जब वह अध्ययन कर रहा या रही थी तब ऐसी एक आपदा एक सदी से ज्यादा वक्त पहले—स्पेनिश फ्लू के रूप में—घटी थी.

कोविड के दौरान भारत की आर्थिक नीति की अवधारणा बनाते हुए मैंने पाया कि विश्लेषणात्मक ढांचे और फर्स्ट प्रिंसिपल सोच-विचार के प्रयोग की शैक्षणिक पद्धति, जो मैंने अपनी मातृ संस्था से आत्मसात की थी, बहुत उपयोगी थी. मैंने देखा कि महामारी से आपूर्ति-पक्ष और मांग-पक्ष दोनों का एक साथ ऐसा झटका लगा जो किसी भी दूसरे संकट की तरह नहीं है और तभी मैं कोविड पर भारत की प्रतिक्रिया की अवधारणा फर्स्ट प्रिंसिपल सोच-विचार से बनाने का न केवल आत्मविश्वास बल्कि अपने यकीन पर चलने की हिम्मत जुटा पाया. 

मुझे लगता है कि दूसरे देशों के नीति निर्माताओं ने प्राथमिक रूप से शायद कोविड के मांग पक्ष के झटके पर ध्यान दिया और इसलिए इससे उत्पन्न आपूर्ति पक्ष के झटके को अनदेखा कर दिया, क्योंकि वे केस स्टडी में निहित सिद्धांतों की मानसिक जकड़न में बंधे थे, जो अक्सर फर्स्ट प्रिंसिपल्स के सोच-विचार को सीमित कर देती है और इसके बजाय पहले से तय समाधानों को बढ़ावा देती है जो जबरन फिट करने की तरफ ले जा सकते हैं.

अपनी शिक्षा पद्धतियों में विश्वास से ही वह आत्मविश्वास और अपने यकीन पर चलने की हिम्मत पैदा होती है जिससे आप बाकी दुनिया से ''सकारात्मक ढंग से अलग’’ हो सकें, जो कोविड पर भारत की आर्थिक नीति थी. दूसरी तमाम बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले भारत की खासी ऊंची आर्थिक वृद्धि और कम मुद्रास्फीति में दिखाई देने वाले सूक्ष्म आर्थिक नतीजे कोविड पर भारत की आर्थिक नीति की दूरदर्शिता की गवाही देते हैं. इस हितकर आर्थिक प्रतिक्रिया की तरफ ले जाने वाले सोच-विचार को गढ़ने में आइआइएम-सी ने अहम भूमिका अदा की.

(के. सुब्रमण्यम भारत सरकार के पूर्व आर्थिक सलाहकार हैं. वे आइआइएम-सी से पास होकर 1999 में निकले और अपने बैच के गोल्ड मेडलिस्ट रहे )

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