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‘‘आइआइएम-सी में मैंने सीखा तनाव से कैसे निपटें और प्रतिभावान लोगों से कैसे प्रतिस्पर्धा करें’’

सीखने की मुक्त संस्कृति, पढ़ाई और मौज-मस्ती का संतुलन और कोलकाता की सांस्कृतिक विविधता आइआइएम-सी की ताजा स्मृतियां हैं.

मुरलीकृष्णन बी.
मुरलीकृष्णन बी.
अपडेटेड 14 नवंबर , 2022

मेहमान का पन्नाः मुरलीकृष्णन बी.

आइआइएम-कलकत्ता के जोका कैंपस में बिताए उन 18 महीनों को याद करें तो अब तक यह घिसा-पिटा मुहावरा जुबान से फिसल ही जाता है कि ''वे मेरी जिंदगी के बेहतरीन दिन थे.’’ मगर इस मामले में यह आज 25 साल बाद भी उतना ही सच है.

पढ़ाई-लिखाई के लिहाज से वैसे तो वहां बहुत कुछ सीखा, पर वहां बिताए अपने वक्त से जो दो चीजें मैं लेकर लौटा, वे हैं—तनाव और दबाव से कैसे निपटें और कुछ वाकई स्मार्ट, प्रतिभाशाली लोगों के साथ कैसे काम और प्रतिस्पर्धा करें, जो पेशेवर करियर में अंतत: मेरे साथी, मैनेजर और मातहत हुए.

झीलों और तालाबों से पटा खूबसूरत कैंपस, साझा संस्कृति की अपनी-अपनी भिन्न छटाओं से महकते छात्रावास, घंटों टेबल टेनिस, क्रिकेट और इंटरनेट से पहले के उस जमाने में टेटरिस खेलना, समय पर ग्रुप प्रोजेक्ट खत्म करने व अच्छे नंबर लाने का तनाव और प्लेसमेंट के दिनों में एक दूसरे की मदद करने का अपनापन, आइआइएम-कलकत्ता अपने पीछे कई तरह-तरह की भावनाएं छोड़ गया.

अर्थशास्त्र, व्यवहार विज्ञान और मार्केटिंग के उस कोर्स को मैं बहुत लगाव से याद करता हूं और अपनी प्रोफेसर लीना चटर्जी और स्वर्गीय अमिताव बोस को भी, जिन्होंने मुझे जिंदगी के बेशकीमती सबक सिखाए जो आज भी मेरे साथ हैं.

पढ़ाई की खुली संस्कृति, पढ़ाई और खेल में संतुलन साधना, गहरी और जिंदगी भर की दोस्तियां जो वहां बनीं और कलकत्ता तथा बंगाल की सांस्कृतिक समृद्धि में डूबना-उतरना, इनमें से हरेक अनुभव उजली यादें जगाता है, जिनके बारे में मुड़कर सोचने पर बहुत संतोष और आनंद महसूस होता है. ईमानदारी से कहूं तो अगर मैं घड़ी को पीछे मोड़ सकूं तो वही सब जस का तस चाहूंगा. धन्यवाद. आइआइएम-कलकत्ता.

(मुरलीकृष्णन बी. शिओमी इंडिया के प्रेसिडेंट हैं. वे आइआइएम-कलकत्ता से 1997 में पास होकर निकले)

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