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‘’एसपीजेआइएमआर ने मुझे विश्लेषणात्मक मस्तिष्क से लैस किया”

मुंबई स्थित एसपीजेएमआइआर उन गिने-चुने संस्थानों में से है जिसके शिक्षण-प्रशिक्षण में समाज के प्रति संवेदनशील बनने की अवधारणा को स्थाई बनाने पर लगातार ध्यान दिया जाता है.  

विक्रम संपत
विक्रम संपत
अपडेटेड 20 नवंबर , 2022

मेहमान का पन्नाः विक्रम संपत

मैं एसपी जैन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट ऐंड रिसर्च (एसपीजेआइएमआर) में अपने समय को बहुत कृतज्ञता के साथ देखता हूं. अगर मैं ब्रायन एडम्स के एक गीत की पंक्तियों के साथ बता सकूं, तो वे मेरे जीवन के कुछ सबसे अच्छे दिन थे. मैं बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी ऐंड साइंस (बिट्स), पिलानी से पांच साल का इंजीनि‌रिंग कोर्स पूरा करने के तुरंत बाद एसपीजेआइएमआर आया था और यह बिल्कुल नया अनुभव था. एक सबसे बड़ा फर्क और फायदा यह था कि कॉलेज मुंबई में था. 

कॉलेज में हमारे शामिल होने से पहले, हमें बहुत सारी प्री-कोर्स वर्क सामग्री दी जाती थी. जिस दिन हम पहुंचे, उसी दिन हमारा स्वागत एक परीक्षा से हुआ. यह बिल्कुल स्पष्ट था कि हमें यहां पहुंचने से पहले खुद को पूरी तरह से तैयार करके आना था. संभलने का समय नहीं था. जो लोग विज्ञान और इंजीनिरिंग पृष्ठभूमि से आए थे, उनके लिए प्री कोर्स सामग्री में अर्थशास्त्र जैसे विषय थे, जिसे हमने पहले कभी पढ़ा ही नहीं था.

आर्ट्स के छात्र गणित और सांख्यिकी जैसे विषयों से परिचित नहीं थे. छात्रों को स्वयं कोर्स मटेरियल का अध्ययन करना था और फिर परीक्षा के लिए उपस्थित होना था. हालांकि पहले ही दिन एक परीक्षा लेना उस समय कुछ जरूरत से ज्यादा ही बोझिल लग रहा था लेकिन इस अभ्यास के जरिए हमें इसके लिए मानसिक रूप से तैयार करने की कोशिश की गई थी कि एसपीजेआइएमआर में अगले दो वर्षों में हमसे बहुत कड़ी मेहनत की उम्मीद रखी जाने वाली है.

मुझे नहीं पता कि आज क्या स्थिति है, लेकिन मेरे समय में, एसपीजेआइएमआर एकमात्र संस्थान था जो विशेषज्ञता प्रदान करता था (आइआइएम केवल जनरल मैनेजमेंट कोर्स की पेशकश करता था). मैंने वित्त में विशेषज्ञता हासिल की है. मुंबई में होना एक फायदा था, क्योंकि यह भारत की आर्थिक राजधानी है. अधिकांश उद्योग जगत के दिग्गज अतिथि व्याख्याता के रूप में आए. हमारे कुछ कोर्स उन्होंने पूरे कराए थे. सीईओ लेक्चर सीरीज हुआ करती थी. आगे चलकर स्पेशलाइजेशन जैसी इन अवधारणाओं को अन्य बी-स्कूलों ने भी अपनाया.

अर्थशास्त्र
एसपीजेआइएमआर ने प्रबंधकीय और प्रशासनिक क्षमता का आकलन और विकास (एडीएमएपी) जैसे एक अन्य नए विचार की भी शुरुआत की. छात्रों को उन समूहों में विभाजित किया गया था जो-दाखिला, प्लेसमेंट, कॉलेज के बुनियादी ढांचे का विकास, छात्रावास समितियों का गठन, सांस्कृतिक समितियां आदि हर चीज की जिम्मेदारी संभालते थे. प्रत्येक समूह के फैकल्टी इंचार्ज (संकाय प्रभारी) होते थे.

एडीएमएपी ने हमें प्रबंधन, प्रशासन और संकट से निपटने का व्यावहारिक प्रशिक्षण प्राप्त करने में हमारी मदद की. उस पैमाने के संस्थान को चलाने की जिक्वमेदारी छात्रों पर थी. बेशक, मैं एक अधिक आसान जिम्मेदारी वाली समिति-सांस्कृतिक समिति-में था, जो कार्यक्रमों का संयोजन कार्य देखती थी. लेकिन ऐसे आसान से समझे जाने वाले काम में भी इतने संकट आ गए थे जिसका शुरू में हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते थे. हमें हर समय जैसे एक पांव पर खड़े रहना होता था और समाधान खोजना होता था.

पहले वर्ष में, हमने एक सप्ताह का एक गीता शिविर भी किया था. हमें एक प्रसिद्ध स्वामीजी द्वारा संचालित वडोदरा के एक आश्रम में ले जाया गया, जिसने हमें गीता की शिक्षाओं में बहुत गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान की. यह प्रबंधन छात्रों और लीडर्स के लिए एक अद्भुत उपयोगी साधन है. वडोदरा के बाहरी इलाके में एक ग्रामीण परिवेश में रहना और खुले आसमान के नीचे स्वामीजी के प्रवचनों को सुनना, यह कुछ ऐसा अनुभव था जिसे अमूमन किसी बी-स्कूल के छात्र के लिए सोचे जाने की संभावना नहीं होती.

उस गीता शिविर से मैंने जो ध्यान के गुर सीखे थे, उसने आगे चलकर मुझे उन तथाकथित बुद्धिजीवियों के अनुचित सार्वजनिक आक्षेपों का सामना करते हुए अपना संयम बनाए रखने में बड़ी मदद की, क्योंकि एक इतिहासकार के रूप में अपने अवतार में, मैं उनके आख्यानों के अनुरूप नहीं था. और एडीएमएपी प्रशिक्षण मुझे हर संकट के बीच मजबूती से खड़े होने में मदद करता है.

पहले वर्ष के अंत में, हमें डेवलपमेंट ऑफ कॉर्पोरेट सिटीजनशिप (डीओसीसी) नामक एक अनूठी अवधारणा से परिचित कराया गया. सामाजिक जरूरतों को समझने, अव्यस्थित वातावरण में कार्य किस प्रकार होता है और एनजीओ को इसके काम की संरचना में मदद करने के लिए अपनी पढ़ाई के दौरान सीखे गए कुछ प्रबंधन कौशल के साथ मदद के लिए, हम सभी को एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) में दो महीने की इंटर्नशिप के लिए भेजा गया.

मैं बेंगलुरू स्थित जनाग्रह सेंटर फॉर सिटिजनशिप एंड डेमोक्रेसी से जुड़ा था, जिसे 2001 में स्वाति रामनाथन और रमेश रामनाथन ने शुरू किया था. स्कूलों में उनके द्वारा कराए जाने वाले नागरिक प्रशिक्षण के लिए बहुत सारी पाठ्यक्रम सामग्री तैयार करने में उनकी मदद करके मुझे बहुत अच्छा लगा. इसने मुझे एक परिपक्व व्यक्ति के रूप में ढलने में मेरी काफी मदद की. 

पहले वर्ष में, हमें प्रबंधन की सभी शाखाओं से अवगत कराया गया और दूसरे वर्ष में हमने अपने मेजर (प्रमुख विषय) में विशेषज्ञता हासिल की. हमें एक माइनर सब्जेक्ट भी लेना था, और मैंने सूचना प्रबंधन को चुना. पाठ्यक्रम दो महीने की इंटर्नशिप के साथ समाप्त हुआ. मैंने जीई कैपिटल में अपनी इंटर्नशिप की और वहीं नौकरी भी ले ली.

बिट्स पिलानी और एसपीजेआइ- एमआर में प्रशिक्षण ने मुझे एक विश्लेषणात्मक मस्तिष्क वाला सशक्त पेशेवर बनाया, जो मुझे चीजों को गहराई से देखने में मदद करता है, खासकर इतिहास जैसे क्षेत्र में जिसे मैंने अंतत: चुना. लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि एसपीजेआइएमआर ने मुझे सामाजिक रूप से जिम्मेदार इंसान बनाया.

अपने विद्यार्थियों को समाज के प्रति संवेदनशील बनाने की अवधारणा को अपने शिक्षण का स्थाई हिस्सा बनाने के लिए बहुत कम संस्थान ही समय और ऊर्जा लगाते हैं. एसपीजेआइएमआर ऐसा करता है, और उन युवा मस्तिष्कों पर एक अमिट सकारात्मक छाप बनती है जो जागरूक नागरिक बनने की ओर अग्रसर होते हैं.

(संपत इतिहासकार हैं और उन्होंने आठ पुस्तकें लिखी हैं. ब्रेवहार्ट्स ऑफ भारत: विगनेट्स फ्रॉम इंडियन हिस्ट्री उनकी नवीनतम पुस्तक है. उन्होंने 2005 में एसपीजेआइएमआर से अपनी पढ़ाई पूरी की थी.)

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