मिलिए 18वीं लोकसभा के अपने सबसे युवा सांसदों से

किसानों से लेकर पेशेवरों तक, राजघरानों से लेकर मनोरंजन करने वालों तक, धनी व्यापारियों से लेकर जमीनी स्तर के कामगारों तक, 18वीं लोकसभा में 542 सांसदों में से 280 पहली बार चुनकर आए हैं. इस बार की कवर स्टोरी में अपने सबसे युवा सांसदों के बारे में जानिए

18वीं लोकसभा में 542 सांसदों में से 280 पहली बार चुनकर आए हैं
18वीं लोकसभा में 542 सांसदों में से 280 पहली बार चुनकर आए हैं

पहली-पहली बार सबसे युवा

अठारहवीं लोकसभा के वे सात सितारे, जिनके लिए उम्र उनकी महत्वाकांक्षाओं में किसी तरह का रोड़ा न बन सकी

इकरा हसन, 29 वर्ष, समाजवादी पार्टी, कैराना, उत्तर प्रदेश

इकरा हसन आला दर्जे की शैक्षिक डिग्रियों के साथ ही सियासी खानदान से ताल्लुक रखती हैं. वे बिल्कुल वैसी ही युवा सांसद हैं, जिसकी आज के लोकतंत्र को जरूरत है. उनके दादा अख्तर हसन, वालिद मुनव्वर हसन और मां तबस्सुम सभी सांसद रह चुके हैं, और इस मुस्लिम गुज्जर खानदान के लिए कैराना एक तरह से गढ़ रहा है.

इकरा ने दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने और दिल्ली यूनिवर्सिटी से कानून की डिग्री हासिल करने के बाद, लंदन के स्कूल ऑफ ओरिएंटल ऐंड अफ्रीकन स्टडीज में अंतरराष्ट्रीय राजनीति और कानून की पढ़ाई की. उन्हें तब पहली सियासी कामयाबी मिली जब उन्होंने जेल में बंद अपने भाई नाहीद हसन के लिए प्रचार किया और उन्हें चुनाव जीतते हुए देखा.

इकरा हसन, 29 वर्ष, समाजवादी पार्टी, कैराना, उत्तर प्रदेश

उन्होंने इस बार मौजूदा सांसद और जाट नेता प्रदीप चौधरी के साथ ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की ध्रुवीकरण की राजनीति को हराकर खुद चुनाव जीता है. 2013 के हिंदू-मुस्लिम दंगों के बाद इसी ध्रुवीकरण से भाजपा को राजनैतिक लाभ मिला था. इकरा इस बात से उत्साहित हैं कि सभी समुदायों—सैनी, गुज्जर, जाट, राजपूत, दलितों—ने उन्हें वोट दिया, लिहाजा अब वे एक नया अध्याय शुरू करने की उम्मीद कर रही हैं.

वे 18वीं लोकसभा के लिए चुने गए 24 मुस्लिम सांसदों में से एक हैं. उन्होंने मीडिया से बातचीत में कहा, ''कैराना दिल्ली-एनसीआर के पास है, लेकिन हमारे यहां अब भी उद्योग, मेडिकल कॉलेज, पीएसयू नहीं हैं. मैं चाहती हूं कि ये जरूरी चीजें यहां हों.'' वे अपने निर्वाचन क्षेत्र की पैतृक व्यवस्था के बीच महिला सशक्तिकरण के लिए काम करना चाहती हैं. आखिरकार, 2013 में कैराना पर लगे दाग को मिटाने की कसरत शुरू हो गई है.

संजना जाटव, 26 वर्ष, कांग्रेस, भरतपुर (अनुसूचित जाति), राजस्थान

भरतपुर निर्वाचन क्षेत्र से जीतने के बाद उनका अचानक थिरकना लोकतंत्र के उत्सव का एक स्थाई प्रतीक बन गया है. कम उम्र की होने के बावजूद संजना ने अपनी जिंदगी में बहुत कुछ हासिल किया है. वे केवल 17 साल की थीं, तभी उनकी शादी पुलिस कॉन्स्टेबल कप्तान सिंह से हुई थी.

उनके ससुराल वालों ने उन्हें ग्रेजुएशन और उसके बाद कानून की डिग्री पूरी करने के लिए प्रोत्साहित किया. और फिर उनके शौहर के ताया, जो गांव के सरपंच हैं, ने उन्हें चुनाव लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया. वे चुनाव लड़ीं और 2021 में कठूमर गांव में जिला परिषद सदस्य बन गईं.

वे 2023 के विधानसभा चुनाव के मैदान में उतरीं लेकिन मायूसी हाथ लगी क्योंकि वे मात्र 400 वोटों से हार गईं. हालांकि, उस समय तक वे राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा और प्रियंका गांधी के 'लड़की हूं, लड़ सकती हूं' अभियान में शामिल होने की वजह से हाईकमान की नजर में आ चुकी थीं.

उन्होंने अपनी पार्टी की उम्मीदों पर खरा उतरते हुए भाजपा के दिग्गज राम स्वरूप कोहली को 51,983 वोटों से हराया. अब उनकी प्राथमिकता भरतपुर-धौलपुर के जाटों के लिए ओबीसी का दर्जा दिलाने की मांग को उठाना है, जिन्हें समुदाय की शाही जड़ों के कारण यह दर्जा नहीं दिया गया है.

प्रियंका सतीश जारकीहोली, 27 वर्ष कांग्रेस, चिक्कोडी, कर्नाटक

अठारहवीं लोकसभा में प्रियंका न केवल सबसे कम उम्र की सांसदों में से हैं, बल्कि वे अनारक्षित लोकसभा सीट से जीतने वाली पहली आदिवासी महिला भी हैं. विश्वेश्वरैया टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी से एमबीए की डिग्री हासिल कर चुकीं प्रियंका बेलगावी के प्रभावशाली जारकीहोली परिवार की वंशज हैं.

वाल्मीकि नायक अनुसूचित जनजाति समुदाय से ताल्लुक रखने वाला यह परिवार इस जिले में चीनी मिलों और अन्य व्यवसायों का मालिक है. राजनीति उनके लिए एक स्वाभाविक करियर है, क्योंकि उनके पिता, सतीश जारकीहोली कर्नाटक में सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में पीडब्ल्यूडी मंत्री हैं.

उनके दो चाचा—रमेश और बालचंद्र जारकीहोली—भाजपा विधायक हैं. प्रियंका भगवा-झुकाव वाले कित्तूर कर्नाटक क्षेत्र में भाजपा उम्मीदवार के खिलाफ जीतने वाली एकमात्र कांग्रेस उम्मीदवार थीं. उन्होंने निवर्तमान सांसद अन्नासाहेब जोल्ले को 90,834 वोटों के अंतर से हराया.

प्रियंका सतीश जारकीहोली, 27 वर्ष कांग्रेस, चिक्कोडी, कर्नाटक

पुष्पेंद्र सरोज, 25 वर्ष, समाजवादी पार्टी, कौशांबी (एससी), उत्तर प्रदेश

उनकी उम्र 4 जून को लोकसभा चुनाव नतीजे के दिन 25 साल तीन महीने और तीन दिन थी, जो चुनाव लड़ने की न्यूनतम आयु से महज तीन महीने तीन दिन ज्यादा थी. उन्हें 18वीं लोकसभा में सबसे कम उम्र के सांसद होने का गौरव हासिल है. अखिलेश की युवा ब्रिगेड का हिस्सा पुष्पेंद्र ने लंदन की क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी से अकाउंट्स और मैनेजमेंट में ग्रेजुएशन किया है. उन्होंने मौजूदा भाजपा सांसद विनोद कुमार सोनकर को एक लाख से ज्यादा वोटों से हराकर अपने पिता और वरिष्ठ सपा नेता इंद्रजीत सरोज को 2019 में मिली हार का बदला लिया है.

प्रिया सरोज, 25 वर्ष, समाजवादी पार्टी, मछलीशहर (अनुसूचित जाति), यूपी

दिल्ली यूनिवर्सिटी से कानून स्नातक प्रिया सुप्रीम कोर्ट में वकालत करके संतुष्ट थीं. लेकिन तभी समाजवादी पार्टी ने राज्य पर भाजपा की पकड़ को खत्म करने के लिए उन जैसी युवा प्रतिभाओं पर भरोसा जताया. प्रिया तीन बार सांसद रहे तूफानी सरोज की बेटी हैं. तूफानी ने दो बार सैदपुर और उस निर्वाचन क्षेत्र के खत्म होने के बाद एक बार मछली शहर का प्रतिनिधित्व किया था.

प्रिया ने 2022 के विधानसभा चुनाव में अपने पिता का प्रचार अभियान संभाला था. भाजपा के दिग्गज बी.पी. सरोज को हराने वाली प्रिया का कहना है कि वे अब महिला सशक्तिकरण और युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने की दिशा में काम करेंगी.

प्रिया सरोज, 25 वर्ष, समाजवादी पार्टी, मछलीशहर (अनुसूचित जाति), यूपी

शांभवी चौधरी, 26 वर्ष, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास), समस्तीपुर (एससी), बिहार

उनके दादा महावीर चौधरी नौ बार कांग्रेस के विधायक रहे. उनके पिता अशोक चौधरी नीतीश कुमार सरकार में जनता दल (यूनाइटेड) के मंत्री हैं. हालांकि, शांभवी ने चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के साथ जाने का फैसला किया, जिस पार्टी से उनके ससुर, पूर्व आईपीएस अधिकारी आचार्य किशोर कुणाल का करीबी रिश्ता है.

दिल्ली के एलएसआर कॉलेज से स्नातक, शांभवी ने दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में समाजशास्त्र का अध्ययन किया, और ''इंटरसेक्शनैलिटी ऑफ जेंडर ऐंड कास्ट इन बिहार पॉलिटिक्स'' (बिहार की राजनीति में लिंग और जाति के अंतर्संबंध) पर डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की. अपने राज्य को बेहतर बनाने के लिए वे सबसे पहले बुनियादी ढांचे और सड़कों की दशा सुधारना चाहती हैं.

सागर ईश्वर खंदरे, 26 वर्ष, कांग्रेस, बीदर, कर्नाटक

करीब सौ साल के भीमन्ना खंड्रे के पोते और फिलहाल राज्य के पर्यावरण मंत्री ईश्वर खंड्रे के बेटे, सागर मजबूत राजनैतिक जीन से लैस हैं. जब वरिष्ठ खंड्रे कोविड की वजह से अस्पताल में भर्ती थे, तब कानून और बीबीए के इस स्नातक ने अपने पिता के विधानसभा क्षेत्र भालकी में जोर-शोर से सामाजिक काम किया.

इस साल उनका मुकाबला भाजपा के भगवंत खुबा से था, जो पिछले 10 साल से बीदर लोकसभा सीट पर काबिज थे. खुबा ने दरअसल 2019 में बीदर से सागर के पिता को हराया था. सागर के लिए यह जीत बहुत ही संतोषजनक है. उन्होंने वह सीट जीती है जो उनके पिता अपनी पहली चुनावी यात्रा में जीत नहीं पाए थे.

सागर ईश्वर खंदरे, 26 वर्ष, कांग्रेस, बीदर, कर्नाटक

प्रशांत श्रीवास्तव, रोहित परिहार, अजय सुकुमारन और अमिताभ श्रीवास्तव

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