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लोकतंत्र की नब्ज जाचेंगे पहली बार संसद पहुंचे ये डॉक्टर

लोकसभा में दाखिल हुए कई सदस्य ऐसे हैं जिन्हें चिकित्सा सेवा की विविध विधाओं में महारत हासिल है—कोई कार्डियोलॉजी, सर्जरी या फिर मनोचिकित्सा से जुड़ा तो कोई आयुर्वेद और होम्योपैथी का विशेषज्ञ. विधायी कार्यों में इनका अनुभव खासा कारगर साबित होने वाला

सी.एन. मंजूनाथ,  66 वर्ष भाजपा, बंगलौर ग्रामीण, कर्नाटक
सी.एन. मंजूनाथ, 66 वर्ष भाजपा, बंगलौर ग्रामीण, कर्नाटक
अपडेटेड 26 जुलाई , 2024

पहली-पहली बार-डॉक्टर

सी.एन. मंजूनाथ,  66 वर्ष, भाजपा, बंगलौर ग्रामीण, कर्नाटक

जब डॉ. मंजूनाथ ने राजनीति की राह चुनी तो उनका चुनावी सफर सफल होना तय ही था. जाने-माने हृदय रोग विशेषज्ञ और पद्मश्री से सम्मानित मंजूनाथ ने दो बार के सांसद डी.के. सुरेश को हराया, जो कर्नाटक के ताकतवर उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार के भाई हैं.

बैलून मिट्रल वाल्वुलोप्लास्टी में अपनी खास 'मंजूनाथ तकनीक' के लिए क्चयात इस मृदुभाषी डॉक्टर ने बतौर निदेशक अपने 18 वर्ष के कार्यकाल के दौरान श्री जयदेव इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियोवैस्कुलर साइंसेज ऐंड रिसर्च का कायापलट करके उसे एशिया के प्रमुख हृदय रोग संस्थानों में से एक बना दिया.

पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा के दामाद मंजूनाथ ने इसकी बेहतरीन मिसाल भी पेश की कि कैसे एक सरकारी हृदय रोग संस्थान भी कम खर्च पर विश्वस्तरीय चिकित्सा सेवाएं प्रदान कर सकता है. इससे कर्नाटक में स्वास्थ्य सेवा की पहुंच में बदलाव आया है.

संबित पात्रा,  50 वर्ष, भाजपा, पुरी, ओडिशा

संबित पात्रा,  50 वर्ष, भाजपा, पुरी, ओडिशा

पेशे से सर्जन संबित पात्रा कुछ समय के लिए दिल्ली के हिंदू राव अस्पताल में चिकित्सा अधिकारी रहे थे. हालांकि, भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता के तौर पर उनकी भूमिका ने उन्हें टीवी पर जाना-पहचाना चेहरा बना दिया, जो अक्सर अपनी हाजिर-जवाबी और आक्रामक टिप्पणी की वजह से सुर्खियों में रहते हैं.

2012 मंत दिल्ली नगर निगम चुनाव में भाजपा पार्षद के उम्मीदवार के तौर पर पहला चुनाव हारने से लेकर दूसरे प्रयास में ओडिशा के प्रतिष्ठित पुरी निर्वाचन क्षेत्र में जीत हासिल करने तक, पात्रा का सियासी सफर काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा है.

राज भूषण चौधरी, 47 वर्ष, भाजपा, मुजफ्फरपुर, बिहार

दरभंगा मेडिकल कॉलेज से एमडी की डिग्री हासिल करने के बाद चौधरी ने कुछ समय तक समस्तीपुर के रोसरा में मरीजों का इलाज किया. अति पिछड़े निषाद समुदाय के चौधरी की मुलाकात 2017 में मुकेश सहनी से हुई और एक साल बाद उनकी विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी) में शामिल हो गए.

हालांकि, वे 2019 का लोकसभा चुनाव उसके टिकट पर हार गए और 2022 में भाजपा में चले गए. उन्हें इस साल भाजपा ने उम्मीदवार बनाया था. चौधरी ने भगवा पार्टी के मौजूदा सांसद अजय निषाद को हराया. पार्टी ने अजय निषाद का टिकट काट दिया, जिसके वे बाद कांग्रेस में शामिल हो गए थे. चौधरी अब केंद्रीय जल शक्ति राज्यमंत्री हैं.

प्रभा मल्लिकार्जुन, 48 वर्ष, कांग्रेस, दावणगेरे, कर्नाटक

बापूजी डेंटल कॉलेज में डेंटल सर्जन प्रभा का विवाह एक ऐसे परिवार में हुआ था, जो 66 साल से बापूजी एजुकेशनल एसोसिएशन चलाता है और दावणगेरे में जिसके 47 से ज्यादा स्कूल, कॉलेज और स्वास्थ्य केंद्र हैं. वे जल्द ही न केवल एसएस केयर ट्रस्ट के जरिये स्वास्थ्य जांच शिविर और कौशल विकास से जुड़े आयोजनों में हिस्सा लेने लगीं, बल्कि परिवार के राजनैतिक अभियानों में भी अग्रणी भूमिका में रहीं.

उनके ससुर, 93 वर्षीय शमनूर शिवशंकरप्पा दावणगेरे दक्षिण से कांग्रेस विधायक हैं, जबकि पति एस.एस. मल्लिकार्जुन दावणगेरे उत्तर का प्रतिनिधित्व करते हैं. ऐसे में प्रभा का खुद चुनावी मैदान में कदम रखना स्वाभाविक ही था. वे भाजपा की गायत्री सिद्धेश्वरा के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरीं और 26,000 वोटों से उन्हें हराने में सफल रहीं. प्रभा ने ऐसी सीट पर जीत हासिल की, जो उनकी पार्टी 1999 के बाद से नहीं जीत पाई थी.

राजेश मिश्र,  66 वर्ष, भाजपा, सीधी, मध्य प्रदेश

राजेश मिश्र,  66 वर्ष, भाजपा, सीधी, मध्य प्रदेश

इंदौर स्थित एमजीएम मेडिकल कॉलेज के पूर्व छात्र राजेश मिश्र ने सियासत के मैदान में सुर्खियां बटोरने के लिए बतौर दंत चिकित्सक अपनी सरकारी नौकरी छोड़ दी थी. 2008 में राजनीति में पहला कदम रखा लेकिन विधानसभा चुनाव में बसपा उम्मीदवार के तौर पर हार का सामना करना पड़ा.

लेकिन इससे उनके इरादे कमजोर नहीं पड़े और बाद में भाजपा में शामिल हो गए. सीधी में मिश्र के प्राइवेट नर्सिंग होम को उनका डॉक्टर बेटा चलाता है. उनकी दो बेटियां भी दंत चिकित्सक हैं, और पत्नी भी मेडिकल प्रैक्टिसनर हैं. पूरा परिवार ही स्वास्थ्य सेवा के लिए समर्पित है. 2022 में इस धारणा को गलत ठहराते हुए कि पढ़ना सिर्फ युवाओं के वश की बात है, उन्होंने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में एमए की डिग्री हासिल की.

शर्मिला सरकार, 45 वर्ष, टीएमसी, बर्धमान पूर्व (एससी), पश्चिम बंगाल

मनोचिकित्सक शर्मिला सरकार ने तो राजनीति के मैदान में उतरने के बारे में दूर-दूर तक कोई कल्पना नहीं की थी लेकिन मार्च में उनकी बड़ी बहन और टीएमसी कार्यकर्ता के एक फोन कॉल ने सब कुछ बदल दिया. उन्हें लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए कहा गया. कलकत्ता नेशनल मेडिकल कॉलेज ऐंड हॉस्पिटल की संकाय सदस्य रह चुकीं शर्मिला बताती हैं, ''शुरू में मैं झिझक रही थी. फिर सोचा कि चूंकि मेरा काम लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना है, इसलिए यह काम मुझे उनकी सांसद के तौर पर करना चाहिए.'' उनके पति कोलकाता के आर.जी. कार मेडिकल कॉलेज में त्वचाविज्ञान विभाग के प्रमुख हैं.

शिवाजी बंडप्पा कलगे,  55 वर्ष, कांग्रेस, लातूर (एससी), महाराष्ट्र

शिवाजी बंडप्पा कलगे,  55 वर्ष, कांग्रेस, लातूर (एससी), महाराष्ट्र

बताया जाता है कि नेत्र रोग विशेषज्ञ कलगे ने अपनी नजरें 2009 से ही लातूर लोकसभा क्षेत्र पर गड़ा रखी थीं, जब यह अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट थी. हालांकि, माला जंगम जाति से आने वाले लिंगायत कलगे तीन चुनाव बाद ही इस सीट के दावेदार के तौर पर उभर पाए और इसे भाजपा से छीनकर फिर कांग्रेस को यहां काबिज कराने में सफल रहे. पूर्व में ग्रैंड ओल्ड पार्टी ने इस निर्वाचन क्षेत्र में 11 बार जीत दर्ज की थी. कलगे की पत्नी सविता स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं.

कदीयम काव्या, 41 वर्ष, कांग्रेस, वारंगल (एससी), तेलंगाना

राजनीति तो इस पैथोलॉजिस्ट के खून में है. नवंबर 2023 में काव्या ने बीआरएस सरकार में उपमुख्यमंत्री रहे अपने पिता कदीयम श्रीहरि के चुनाव प्रचार के लिए सरकारी नौकरी छोड़ दी थी. जल्द ही पिता के पदचिह्नों पर चलते हुए वे सक्रिय राजनीति में आ गईं और मार्च में दोनों ने कांग्रेस का दामन थाम लिया. फिर काव्या को वारंगल सीट से मैदान में उतारा गया, जहां उनके पिता ने 2014 में जीत दर्ज की थी. 2007 में एमबीबीएस और 2013 में पैथोलॉजी में एमडी करने के बाद 2018 में एक सरकारी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का हिस्सा बनने से पहले कुछ समय वे एक निजी मेडिकल कॉलेज में भी तैनात रहीं. पति मोहम्मद नजीरुल्ला शेख एक निजी मेडिकल कॉलेज में फोरेंसिक मेडिसिन पढ़ाते हैं.

के. सुधाकर,  51 वर्ष, भाजपा, चिक्कबल्लापुर, कर्नाटक

पेशे से चिकित्सक सुधाकर 2019 में उस समय सुर्खियों में रहे जब कुछ विधायकों के एक समूह के साथ पाला बदलकर कांग्रेस से भाजपा में आए. इस दलबदल की बदौलत ही भगवा पार्टी को उस वर्ष कर्नाटक में सत्तासीन होने का मौका मिला. सुधाकर को पुरस्कार स्वरूप मंत्री पद से नवाजा गया. लेकिन 2023 में चिक्कबल्लापुर से विधानसभा चुनाव हार गए, जिस सीट पर वे 10 साल से काबिज थे. उनकी पत्नी दंत चिकित्सक हैं.

गुम्मा तनुजा रानी,  31 वर्ष, वाइएसआर कांग्रेस पार्टी, अराकू (एसटी), आंध्र प्रदेश

तनुजा रानी पडेरू स्थित अल्लूरी सीताराम राजू जिला चिकित्सा एवं स्वास्थ्य कार्यालय में बतौर चिकित्सा अधिकारी तैनात थीं, जब वाइएसआर कांग्रेस पार्टी ने उन्हें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित अराकू सीट से अपना उम्मीदवार बनाया. अराकू के पूर्व विधायक चेट्टी पालगुना की पुत्रवधू तनुजा रानी के पति विनय भी वाइएसआरसीपी के सक्रिय सदस्य हैं. पिता श्याम सुंदर, बीएसएनएल से सेवानिवृत्त होने के बाद गांव के सरपंच बने जबकि मां वरलक्ष्मी पडेरू में हेड नर्स के तौर पर काम करती हैं.

रानी श्री कुमार, 41 वर्ष, डीएमके, तेनकाशी (एससी), तमिलनाडु

रानी श्री कुमार, 41 वर्ष, डीएमके, तेनकाशी (एससी), तमिलनाडु

शंकरनकोविल गवर्नमेंट हॉस्पिटल में एनेस्थीसिया विशेषज्ञ रानी कथित तौर पर 2002 से ही डीएमके सदस्य होने के बावजूद सक्रिय राजनीति से दूर रहीं. पार्टी ने उन्हें अचानक ही निवर्तमान सांसद धनुष एम. कुमार के खिलाफ चुनाव में उतार दिया. राजनीति में रानी की पकड़ मजबूत है, पति जी. श्रीकुमार सरकारी ठेकेदार हैं और पिता शिवकुमार सेवानिवृत्त क्लर्क हैं और काफी समय से पार्टी से जुड़े हुए हैं. पहले डीएमके फिर अन्नाद्रमुक की टिकट पर जीतकर दो बार विधायकर रहे पी. दुरैराज भी उनके करीबी रिश्तेदार हैं.

राजीव भारद्वाज, 61 वर्ष, भाजपा, कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश

हिमाचल प्रदेश में शायद कुछ ही लोगों को भान रहा होगा कि दंत चिकित्सक भारद्वाज को भाजपा का टिकट मिल जाएगा. वे न केवल पार्टी उम्मीदवार बने बल्कि कांग्रेस के दिग्गज नेता आनंद शर्मा को 2,50,000 से अधिक मतों से हराकर शानदार जीत हासिल करने में भी सफल रहे. धर्मशाला के डिपो मार्केट क्षेत्र में रहने वाले भारद्वाज लोगों के बीच 'डिपो वाले डॉक्टर साहब' के नाम से मशहूर हैं. पोंग डैम के बनने के दौरान विस्थापित परिवारों के कल्याण के लिए काम की वजह से वे चर्चा में रहे. भारद्वाज खुद भी इस पीड़ा को झेल चुके हैं. देहरा तहसील में उनका पैतृक गांव मंगवाल डैम के पानी में डूब गया था.

विनोद कुमार बिंद, 50 वर्ष, भाजपा, भदोही, उत्तर प्रदेश

ऑपरेशन थिएटर से राजनैतिक मंच पर पहुंचने में सफलता हासिल करने के लिए ऑर्थोपेडिक सर्जन ने खासी मशक्कत की. 2022 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी ने उन्हें ज्ञानपुर से मैदान में उतारने का फैसला किया. हालांकि, दो दिनों के भीतर ही पार्टी ने इरादा बदल दिया. चंदौली में एक अस्पताल चलाने वाले बिंद इससे नाराज होकर निषाद पार्टी में शामिल हो गए और मझवां सीट से जीत हासिल की. 2024 में भाजपा ने तत्कालीन सांसद रमेश चंद की जगह उन्हें चुना और बिंद ने निराश नहीं किया.

शोभा बच्छाव, 64 वर्ष, कांग्रेस, धुले, महाराष्ट्र

उन्नीस सौ बानबे में पेठ रोड-पंचवटी से नासिक निकाय चुनावों के लिए एक महिला उम्मीदवार तलाश रही कांग्रेस ने बच्छाव को चुना. वे क्षेत्र में मेडिकल प्रैक्टिस करने वाली पहली महिला थीं, जिन्होंने 1983 में एलसीईएच डिग्री (जो अब बंद हो चुकी है) हासिल की थी. बच्छाव ने मुख्यत: झुग्गी वालों के समर्थन के बलबूते जीत हासिल की, जो उनसे इलाज कराते थे. वे नासिक की पहली महिला मेयर बनीं और 2002 तक इस जिम्मेदारी को निभाया. मराठा समुदाय से आने वाली बच्छव ने 2004 में एक अन्य मराठा डॉक्टर और वरिष्ठ भाजपा नेता दौलतराव अहेर को विधानसभा चुनाव में हराया और मंत्री बनीं. करीब एक दशक तक सक्रिय राजनीति से दूर रहीं बच्छाव ने धुले लोकसभा उम्मीदवार के तौर पर वापसी की. 25 वर्षों तक नासिक जिला केंद्रीय सहकारी बैंक की निदेशक भी रहीं. बच्छाव अपने पति के साथ 30 बेड वाला नर्सिग होम चलाती हैं और समय-समय पर अपने मरीजों को देखने का समय निकालती रहती हैं.

प्रशांत पडोले, 45 वर्ष, कांग्रेस, भंडारा-गोंदिया, महाराष्ट्र

प्रशांत पडोले, 45 वर्ष, कांग्रेस, भंडारा-गोंदिया, महाराष्ट्र

जब कांग्रेस ने कोई खास पहचान न रखने वाले पडोले को उम्मीदवार बनाया तो उन्हें महाराष्ट्र में पार्टी प्रमुख नाना पटोले के प्रतिनिधि के तौर पर देखा गया. पटोले ने 2014 में यह सीट जीती थी लेकिन इस बार उन्होंने मैदान में न उतरने का फैसला किया. हालांकि, यूक्रेन में डॉक्टरी की पढ़ाई करने वाले पडोले ने साबित कर दिया कि वे अपने दम पर चुनाव लड़ सकते हैं. प्रभावशाली सहकारी नेता यादवराव पडोले के पुत्र प्रशांत पडोले को 2005 में स्थानीय सहकारी दुग्ध महासंघ का निदेशक चुना गया था. 2014 में शिवसेना प्रत्याशी के तौर पर सकोली विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा था लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. उनकी पत्नी भी डॉक्टर हैं.

हेमांग जोशी, 33 वर्ष, भाजपा, वडोदरा, गुजरात

जोशी कई क्षेत्रों में सिद्धहस्त हैं. फिजियोथेरेपी में स्नातक डिग्री के बाद उन्होंने मानव संसाधन प्रबंधन में मास्टर डिग्री ली. कवि और लेखक भी हैं. भाजपा की डॉक्टर सेल और युवा मोर्चा के शहर संयोजक रहे जोशी को सियासी करियर में उस समय बड़ी सफलता हाथ लगी, जब उन्हें वडोदरा से उम्मीदवार बनाया गया. यह एक ऐसी सीट है, जहां से 2014 में पीएम मोदी ने चुनाव लड़ा था. उन्होंने न केवल चुनाव जीता बल्कि मोदी के 5,70,000 वोटों के जीत के अंतर को 5,82,000 वोटों की बढ़त के साथ पीछे छोड़ दिया.

बायरेड्डी शबरी, 40 वर्ष, टीडीपी, नांद्याल, आंध्र प्रदेश

कुरनूल में अपने गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट पति के साथ क्लिनिक चलाने वाली रेडियोलॉजिस्ट शबरी टीडीपी की एकमात्र महिला सांसद हैं. वे टीडीपी के पूर्व मंत्री बायरेड्डी राजशेखर की बेटी हैं, जिन्होंने रायलसीमा परिरक्षक समिति की स्थापना की थी. आंध्र प्रदेश के विभाजन का विरोध करने वाली इस समिति ने तेलंगाना को राज्य का दर्जा दिए जाने पर अलग रायलसीमा क्षेत्र की मांग की थी. उनके दादा बायरेड्डी शेषसयाना रेड्डी तीन बार विधायक रहे थे.

कल्याणराव काले,  61 वर्ष, कांग्रेस, जालना, महाराष्ट्र

होम्योपैथी विशेषज्ञ काले के अपने चुनावी प्रतिद्वंद्वी रावसाहेब दानवे से पारिवारिक संबंध रहे हैं. दानवे प्रमुख भाजपा नेता के साथ पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं. 2009 में काले ने दानवे को कड़ी टक्कर दी थी. हालांकि, इस बार वे अनमने ढंग से ही चुनाव मैदान में उतरे. लेकिन किस्मत ने काले का साथ दिया और उन्होंने 100,000 से अधिक वोटों से जीत हासिल की. सियासी सफर में वे विधानसभा में दो अलग-अलग सीटों औरंगाबाद पूर्व और फुलंबरी का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं.

अजय सुकुमारन, अर्कमय दत्ता मजूमदार, अमिताभ श्रीवास्तव, राहुल नरोन्हा, धवल एस. कुलकर्णी, अमरनाथ के. मेनन, प्रशांत श्रीवास्तव, अनिलेश एस. महाजन और जुमाना शाह

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