
पहली-पहली बार-कट्टरपंथी
अमृतपाल सिंह संधू, 31 वर्ष, निर्दलीय, खडूर साहिब, पंजाब
वे मानो अचानक प्रकट हुए. ऐसा चेहरा जिसका कोई इतिहास नहीं था, जो जरनैल सिंह भिंडरावाले की तरह कपड़े पहनता, उसी मृत उग्रवादी की दुहाई देता और उसी की तरह बोलता. पंजाब, या कम से कम उन्हें जिनका पंथिक राजनीति से मोहभंग होने लगा था, को मानो बस इसी की जरूरत थी.
खालिस्तान की खुली वकालत, अपने भारतीय पासपोर्ट को महज 'यात्रा का दस्तावेज' कहना, गुरु ग्रंथ साहिब को ढाल बनाकर अजनाला के एक पुलिस थाने पर छापा मारना, पुलिस से बचने के लिए 20 दिनों तक भागे-भागे फिरना और फिर भिंडरांवाले के रोडे गांव में आत्मसमर्पण.
इसके बाद उन्होंने पंजाब में सबसे ज्यादा 1,97,120 वोटों से चुनाव जीता. एनएसए के तहत डिब्रूगढ़ में अमृतपाल की कैद एक साल के लिए बढ़ा दी गई है. संविधान में कोई आस्था न रखने वाले का संविधान के ही नाम पर शपथ लेना दिलचस्प है.
शेख अब्दुल 'इंजीनियर' रशीद, 59 वर्ष, निर्दलीय, बारामूला, जम्मू-कश्मीर

अब्दुल गनी लोन की 'आजादी-समर्थक' पीपल्स कॉन्फ्रेंस में पले-बढ़े 'इंजीनियर रशीद'-जिन्हें राज्य लोक निर्माण निगम में दशक भर काम करने की वजह से यह नाम मिला-की लोकप्रियता ने उन्हें राज्य के 2008 और 2014 के चुनाव जीतने में मदद की.
2019 के लोकसभा चुनाव में वे बारामुला में तीसरे स्थान पर रहे. उस अराजक अगस्त में रशीद का नाम राजनैतिक कैदियों की लंबी सूची में जुड़ गया. आतंकियों की वित्तीय सहायता के आरोपों के साथ वे जल्द तिहाड़ में पांच साल पूरे करेंगे. 2024 के चुनाव अभियान की कमान उनके बेटे अबरार ने संभाली और महज 27,000 रुपए लगाए, बाकी धन समुदाय से आया.
उनका नारा 'जेल का बदला वोट से' उमर अब्दुल्ला और सज्जाद लोन के उदारवादी आकर्षण से ज्यादा दमदार साबित हुआ. इस जीत ने नई दिल्ली के दावों और कश्मीर की हकीकत के बीच फासले को भी उजागर कर दिया.
सरबजीत सिंह खालसा, 47 वर्ष, निर्दलीय, फरीदकोट, पंजाब

अमृतपाल के विपरीत सरबजीत को उनकी पहचान और साख विरासत में मिली. इंदिरा गांधी के हत्यारे बेअंत सिंह के बेटे सरबजीत ने पहले भी तीन बार लोकसभा चुनाव लड़ा, पर अपने दादा सुच्चा सिंह (बठिंडा) और मां बिमल कौर (रोपड़) की 1989 की जीत दोहरा न सके.
मगर 2024 कृपालु साबित हुआ. जब अमृतपाल खडूर साहिब में अपनी जमीन तैयार कर रहे थे, अकाली भीतर से फट रहे थे, और आप गुटबाजी से तार-तार था. उत्साह से भरे सरबजीत अब मारे गए दूसरे सिख उग्रवादियों के परिजनों के साथ नए अकाली दल की बात कर रहे हैं.