
कालीपद सरेन खेरवाल, 66 वर्ष, टीएमसी, झाड़ग्राम (एसटी), पश्चिम बंगाल
सेवानिवृत्त बैंक कर्मचारी और संताली नाटककार खेरवाल को दो बार साहित्य अकादमी पुरस्कार मिल चुका है. उन्हें पद्म श्री (2022) और पश्चिम बंगाल के बंग बिभूषण सम्मान (2024) से भी सम्मानित किया जा चुका है. वे राजनीति में ज्यादा सक्रिय नहीं थे, मगर 2019 से टीएमसी नेताओं के साथ उनके संबंध रहे हैं और झाड़ग्राम के लिए उन्हें चुनकर पार्टी ने सबको हैरान कर दिया था. वे रवींद्र भारती विश्वविद्यालय के छात्र रहे हैं और बंगाल, झारखंड तथा ओडिशा में लोकप्रिय थिएटर ग्रुप चलाते थे. पहली बार सांसद बने खेरवाल अब संसद में "अपने लोगों की मजबूत आवाज" बनना चाहते हैं.
नब चरण माझी, 63 वर्ष भाजपा, मयूरभंज (अनुसूचित जनजाति), ओडिशा
माना जाता है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के साथ उनकी निकटता की वजह से इस बार के विधायक को लोकसभा का टिकट मिला. दरअसल, जब मुर्मू रायरंगपुर में पार्षद थीं तब माझी ने उनके साथ काम किया था. पहले झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के सदस्य रहे माझी 2019 में भाजपा में शामिल हो गए और रायरंगपुर से ओडिशा विधानसभा के लिए चुने गए थे. 2024 लोकसभा चुनाव में उन्होंने बीजू जनता दल के पूर्व सांसद सुदाम मरांडी और झामुमो के संरक्षक शिबू सोरेन की बेटी अंजनी को हराकर मयूरभंज की आदिवासी सीट जीत ली.

जशुभाई राठवा, 54 वर्ष, भाजपा, छोटा उदयपुर (अनुसूचित जनजाति), गुजरात
कभी सरपंच रहे राठवा की कहानी एक आदिवासी नेता के धैर्यपूर्वक भाजपा की संगठनात्मक सीढ़ी चढ़ने की दिलचस्प दास्तान है. तकरीबन 4,00,000 वोटों के भारी अंतर से लोकसभा चुनाव जीतने से पहले उन्होंने भाजपा के छोटा उदयपुर जिला अध्यक्ष और पार्टी के एसटी मोर्चा के उपाध्यक्ष के रूप में काम किया था.
अमर सिंह तिस्सो, 56 वर्ष, भाजपा, दीफू (अनुसूचित जनजाति), असम
जनजातीय क्षेत्र के विकास और सुरक्षा के लिए संविधान की छठी अनुसूची के तहत गठित कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद के सदस्य तिस्सो ने 12वीं कक्षा तक पढ़ाई की है. उनकी पत्नी असम राज्य प्रशासनिक सेवा की अधिकारी हैं.
राजकुमार रोत, 32 वर्ष, बीएपी, बांसवाड़ा (अनुसूचित जनजाति), राजस्थान
पश्चिम भारत के बेचैन आदिवासी इलाके में एक युवा नेता उभरा है. भारतीय ट्राइबल पार्टी को छोड़कर रौत ने सितंबर 2023 में भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी) की स्थापना की और राजस्थान विधानसभा में तीन सीटें तो मध्य प्रदेश में एक सीट जीत ली. इस भील नेता ने खुद चौरासी से जीत दर्ज की, जो विधायक के रूप में उनकी दूसरी पारी थी. अब वे बांसवाड़ा से 2,47,000 वोटों के अंतर से जीतकर लोकसभा में दाखिल हो चुके हैं. कभी-कभार आदिवासी पोशाक पहनने वाले रौत के पास राजस्थान विश्वविद्यालय से बीएड की डिग्री है. वे मध्य भारत के आदिवासी इलाकों को मिलाकर अक्सर एक स्वतंत्र भील प्रदेश की मांग उठाते रहे हैं.

जोबा माझी, 60 वर्ष, झामुमो, सिंहभूम (अनुसूचित जनजाति), झारखंड
साल 1994 में दिग्गज आदिवासी नेता दिवंगत देवेंद्र मांझी की हत्या के बाद उनकी पत्नी जोबा ने सियासत में कदम रखा. मैट्रिक पास जोबा ने 1995 से पांच बार झारखंड विधानसभा में मनोहरपुर का प्रतिनिधित्व किया है. वे हेमंत सोरेन सरकार में मंत्री थीं. हालांकि जब इस साल फरवरी में चंपाई सोरेन ने कार्यभार संभाला तो उन्हें हटा दिया गया. मगर वे फिर मैदान में आ गईं और उन्होंने भाजपा में शामिल होने वाली तत्कालीन कांग्रेस सांसद गीता कोड़ा को हराया.
मुराली लाल मीणा, 65 वर्ष, कांग्रेस, दौसा (अनुसूचित जनजाति), राजस्थान
सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा कर चुके ये आदिवासी नेता चार बार विधायक रहे हैं—दो बार बसपा उम्मीदवार और उसके बाद कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर. उनकी पत्नी सविता साल 2019 में दौसा संसदीय सीट जीतने में नाकाम रही थीं, मगर उन्होंने भाजपा से यह सीट छीनकर उनकी हार का बदला ले लिया.
धवल लक्ष्मणभाई पटेल, 38 वर्ष, भाजपा, वलसाड (अनुसूचित जनजाति), गुजरात

कंप्यूटर इंजीनियरिंग में बीटेक और एमबीए करने वाले धवल अमेरिका, यूरोप और एशिया में आइबीएम, कैपजेमिनी और एक्सेंचर जैसी कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों में रहे हैं. वे 2021 में कॉर्पोरेट करियर छोड़कर भाजपा से जुड़ गए और उसके अनुसूचित जनजाति मोर्चा के राष्ट्रीय सोशल मीडिया प्रभारी बनाए गए. वे लोकप्रिय दक्षिणपंथी आवाज हैं और उन्होंने भारत के जनजातीय क्रांतिवीर नामक किताब लिखी है.
एस. सुपोंग-मेरेन जमीर, 61 वर्ष, कांग्रेस, नगालैंड
कानून के स्नातक राज्य कांग्रेस प्रमुख ने शानदार जीत हासिल की, जबकि कांग्रेस का नगालैंड की 60 सदस्यीय विधानसभा में एक भी विधायक नहीं है. खास बात यह है कि राज्य की इस इकलौती संसदीय सीट पर पार्टी को 25 साल बाद जीत मिली है.
— अर्कमय दत्ता मजूमदार