
भास्कर भगरे, 53 वर्ष एनसीपी (शरद पवार), डिंडोरी (एसटी), महाराष्ट्र
सबल और निर्बल की इस लड़ाई में विरासत के साथ राजनीति में उतरीं केंद्रीय राज्यमंत्री के सामने एक साधारण स्कूल शिक्षक थे, जिन्होंने पिंपलगांव बसवंत में बच्चों को इतिहास और मराठी की बारीकियां समझाने और जागरूक बनाने में 33 साल गुजार दिए. इसके बाद भगरे 'गुरुजी' ने डॉक्टर भारती पवार को भी कुछ सबक सिखाए. 1999 में एनसीपी में शुरुआत से ही जुड़े इस आदिवासी नेता का दायरा पंचायत समिति और जिला परिषद से आगे नहीं बढ़ा था. लेकिन चुनाव अभियान के लिए ग्रामीणों से धन जुटाते समय भारी उत्सुकता दिखी, तो जाहिर हो गया था कि प्याज किसानों में गुस्से की धीमी चिंगारी सुलग रही है.
रकीबुल हुसैन, 59 वर्ष, कांग्रेस, धुबरी, असम
पांच बार के सामगुरी विधायक को कभी भी चुनावी ताकत की कमी महसूस नहीं हुई, ज्यादा लड़ाका उपनाम उन पर सटीक बैठता है, जिसका उन्होंने इस्तेमाल बंद कर दिया है. 2011 में नगांव से कांग्रेस के इस दिग्गज ने विधानसभा चुनाव के अखाड़े में पूर्व मुख्यमंत्री प्रफुल्ल कुमार महंत तक को चित कर दिया था. इस बार उन्होंने लोकसभा में अब तक के सबसे ज्यादा अंतर: 10,12,476 वोटों से जीत का इतिहास बनाया है. महारथी ने इस बार अरबपति इत्र कारोबारी और एआइयूडीएफ के मुखिया बदरुद्दीन अजमल को हरा दिया, जो धुबरी में 2009 के बाद से कभी नहीं हारे. किसी ने भी हुसैन के जीतने की कल्पना नहीं की थी: बांग्लाभाषी बहुल प्रवासी क्षेत्र में असमी बोलने वाले हुसैन 85 फीसद मुसलमानों की इस सीट के लिए स्थानीय नहीं हैं. स्थानीय मुसलमानों स्वयंभू रहनुमा अजमल के खिलाफ उनको जो समर्थन मिला, वह मुख्यधारा में आने का भी संकेत देता है. अब वे एक और दिग्गज को निशाना बना रहे हैं. उनकी मांग है कि छह समुदायों को आदिवासी दर्जा दिया जाए. इससे असम आदिवासी बहुल राज्य बन जाएगा और उनके पूर्व सहयोगी हिमंत विस्वा सरमा मुख्यमंत्री पद के अयोग्य हो जाएंगे.

गुरमीत सिंह मीत हेयर, 35 वर्ष, आप, संगरूर, पंजाब
राजनीति में कोई पारिवारिक पृष्ठभूमि न होने के बावजूद 'मीत' मुख्यमंत्री भगवंत मान के करीबी लोगों में हैं, जिन्हें पांच मंत्रालयों का जिम्मा सौंपा गया. इतना ही नहीं, वे उन पांच मंत्रियों में अकेले थे जो चुनाव लड़े और जीते. उन्होंने संगरूर फिर से आप के लिए छीन लिया, जहां से मान दो बार जीते लेकिन 2022 के उप-चुनाव में कट्टरपंथ के प्रतीक सिमरनजीत सिंह मान की जीत ने पंजाब की राजनीति में बदलाव की आहट दे दी. उपखंड अधिकारी का यह बेटा इंडिया अगेंस्ट करप्शन से जुड़ा और आप का संस्थापक सदस्य बना. वे सत्ता में आम आदमी की भागीदारी के पार्टी के वादे की मिसाल हैं.
किशोरी लाल शर्मा, 63 वर्ष, कांग्रेस, अमेठी, उत्तर प्रदेश
लाडला बेटा अपने क्षेत्र नहीं लौटा. इसके बजाए मतदाताओं को दूसरा विकल्प मिला, जो गांधी परिवार से जुड़े सभी मामलों के लिए रायबरेली और अमेठी में सीधा-सरल संपर्क रहे हैं. इस चुनौती की उम्मीद से कहीं ज्यादा खिल्ली उड़ाई गई. आखिर में शर्मा, जिनकी दो बेटियों ने प्रचार में सब जगह बताया कि कैसे वे अपने पिता को अमेठी के लिए अपनी जिंदगी समर्पित करते देखते बड़ी हुई हैं, मोदी मंत्रिमंडल की मजबूत कड़ी स्मृति ईरानी का कद घटाने में सफल रहे, जो तब तक दावा करती रही थीं कि राहुल गांधी मैदान छोड़कर भाग गए हैं.
शफी परम्बिल, 41 वर्ष, कांग्रेस, वडकरा, केरल
राज्य युवक कांग्रेस के प्रमुख की आकर्षक मुस्कराहट और भाषण कला ने उनका फैन बेस तैयार किया. वे किसी दिग्गज को परास्त करने वाले मजबूत शख्स साबित हुए. पलक्कड़ से लगातार तीन बार के विधायक ने तीसरी जीत 2021 में हासिल की थी, जब उन्होंने 'भाजपा के वैकल्पिक मुख्यमंत्री' मेट्रो मैन ई. श्रीधरन को नाको चने चबवा दिए थे, जो जीत के प्रति इतने आश्वस्त थे कि उन्होंने शहर में अपना एक कार्यालय खोल लिया और घर किराए पर ले लिया था. इस बार वे एक सीढ़ी और चढ़े, केरल की चमत्कारिक कोविड योद्धा और कुछ लोगों की नजर में भावी मुख्यमंत्री के.के. शैलजा टीचर को जबरदस्त मुकाबले में हरा दिया.
लुंबा राम चौधरी, 59 वर्ष, भाजपा, जालौर-सिरोही, राजस्थान
एक तरफ 44 वर्षीय वैभव गहलोत थे जो राजनीति में कम उम्र में बड़ी उपलब्धि पाने के खास संकेत अभी तक नहीं दिखा पाए हैं. वे लोकसभा का एक चुनाव पहले ही हार चुके थे. लेकिन उनके पिता गहलोत मुख्यमंत्री कुर्सी गंवाने के बाद—सिर्फ जालौर को छोड़कर—2024 के चुनाव के बाकी परिदृश्य को बैकग्राउंड के शोर के रूप में देख रहे थे. लेकिन सिरोही पंचायत से शुरू करके भाजपा के जिला प्रमुख बने दसवीं पास किसान ने साबित किया कि उनकी पार्टी ने उनकी जीत की संभावना देखकर उनका सही चुनाव किया. वर्षों तक जमीन पर किए गए काम का उन्हें उस संसदीय क्षेत्र के रूप में फल मिला, जहां माउंट आबू के साये में नर्मदा नहर के पानी से जीरे के खेतों में सिंचाई होती है.

सुदामा प्रसाद, 63 वर्ष, भाकपा-माले, आरा, बिहार
सर्वहारा की दुआ जैसे सुनाई देने वाले सटीक नाम के इस शख्स को पहला वोट डाले जाने के पहले ही लगभग खारिज कर दिया गया था. उनके परिवार की मिठाई की छोटी-सी दुकान पर कोई जाना भी नहीं चाहता था: उन्होंने केद्रीय मंत्री और पूर्व गृह सचिव आर.के. सिंह का रथ रोक लिया. और आरा को 35 साल बाद पहले से ज्यादा वाममय कर दिया. वे 1990 में पहली बार चुनाव लड़े लेकिन एक साल पहले जो उनके कामरेडों ने किया उसे दोहराने में विफल रहे. उन्होंने दो बार कोशिश की, पहली 2015 में—भोजपुर में किसान आंदोलन के तुरंत बाद—और फिर 2020 में. अब आरा के सुदामाओं ने बदला चुका दिया.
रामभुआल निषाद, 64 वर्ष, सपा, सुल्तानपुर, यूपी
एक लंबे सस्पेंस के बाद बेटे वरुण का टिकट कटने के बावजूद मेनका गांधी की उम्मीदवारी पर कोई आंच नहीं आई. लेकिन आठ बार की सांसद को 1991 के बाद से पहली बार हार का सामना करना पड़ा. उन पर भारी पड़ा प्रत्याशी आखिर है कौन? गोरखपुर के हिस्ट्रीशीटर, दो बार के विधायक और पूर्व मंत्री रहे रामभुआल के पास भाजपा और बसपा दोनों में रहने और पूर्वांचल की हिंसक राजनीति का अनुभव है.

रूप कुमारी चौधरी, 47 वर्ष, भाजपा, महासमुंद, छत्तीसगढ़
पूर्व विधायक और संसदीय सचिव रह चुकीं रूप कुमारी अघरिया पटेल समुदाय से हैं और राज्य के पूर्व गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू के खिलाफ मैदान में पूरी तरह खरी उतरीं. यही नहीं, उन्होंने ऐसी सीट पर सफलता हासिल की, जहां साहू मतदाताओं की खासी तादाद है.
जयंत बासुमतारी, 48 वर्ष, यूनाइटेड पीपल्स पार्टी लिबरल, कोकराझार (एसटी), असम
वर्ष 2015 में दो पुराने दलों के साथ आने से यूपीपीएल अस्तित्व में आई, और उसके साथ ही बोडो राजनीति के मैदान में प्रतिस्पर्धा भी बढ़ने लगी. बासुमतारी इसी उभार का एक चेहरा हैं, जिन्होंने 2021 के विधानसभा चुनाव में बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट के दिग्गज चंदन ब्रह्मा को हराया. और, अब बीपीएफ के ही दूसरे नंबर के नेता काम्पा बोरगोयारी को हराकर लोकसभा पहुंचे.
रिचर्ड वनलल-हमंगइहा, 46 वर्ष, जोराम पीपल्स मूवमेंट, मिजोरम (एसटी)
मिजोरम में सत्तारूढ़ पार्टी जेपीएम ने 2017 में अपने गठन के बाद से पहली बार राज्य की एकमात्र लोकसभा सीट पर कब्जा जमाया है. हालांकि, हाल में राज्य में इसकी बढ़त को देखते हुए यह नतीजा तर्कसंगत ही नजर आता है. लेकिन इस कॉमर्स ग्रेजुएट ने 42 फीसद वोट हासिल करने के साथ जिस तरह से राज्यसभा सांसद और मिजो नेशनल फ्रंट के दिग्गज के. वनललवेना को हराया, वह काबिले तारीफ है.
कालीचरण मुंडा, 62 वर्ष, कांग्रेस, खूंटी, झारखंड
यह मुंडा बनाम मुंडा की लड़ाई थी, जिसमें शानदार जीत हासिल करने वाले ने 24 साल के बाद सक्रिय राजनीति में वापसी कर साबित कर दिया कि उसमें दमखम बाकी है. कालीचरण मुंडा साल 1992 से 2000 के बीच दो बार विधायक रहे लेकिन झारखंड नवंबर 2000 में अलग राज्य बना. फिर, उन्होंने अर्जुन मुंडा को हराया है, जो नए राज्य में मुख्यमंत्री की कुर्सी पाने वाले दूसरे नेता थे और तीन कार्यकाल में 70 महीने उस पद पर रहे, दो बार केंद्रीय मंत्री भी रहे.
उत्कर्ष वर्मा 'मधुर', 38 वर्ष, सपा, खीरी, यूपी

भाजपा ने किसानों की नाराजगी के बावजूद केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी का टिकट नहीं काटा. इसीलिए लोगों को इस युवा कुर्मी नेता को प्रतिनिधि चुनना ज्यादा मुफीद लगा. लखीमपुर खीरी के मूल निवासी मधुर 25 वर्ष की उम्र में ही विधायक का चुनाव जीतकर अपनी प्रतिभा का परिचय दे चुके हैं.
— जीमॉन जैकब और धवल एस. कुलकर्णी