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पूर्व सियासी दिग्गजों की ये अगली पीढ़ी क्या बचा पाएगी संसद में अपनी राजनैतिक विरासत?

सियासी घरानों के ये वारिस अब अपनी विरासत को मजबूती से आगे बढ़ाने की जुगत में

मीसा भारती, 48 वर्ष, राजद, पाटलिपुत्र, बिहार
मीसा भारती, 48 वर्ष, राजद, पाटलिपुत्र, बिहार

पहली-पहली बार-वारिस

मीसा भारती, 48 वर्ष, राजद, पाटलिपुत्र, बिहार

लालू यादव की सबसे बड़ी संतान अपने तीसरे प्रयास में खुशकिस्मत रहीं. उनका नाम आपातकाल के दौरान लाए गए उस आंतरिक सुरक्षा अधिनियम (मीसा) के नाम पर रखा गया जिसके तहत लालू 1976 में उनके जन्म के वक्त जेल में थे. 2014 और 2019 में पाटलिपुत्र से हारने के बाद मीसा ने अंतत: भाजपा के राम कृपाल यादव को 85,174 वोटों से हराकर लोकसभा की यह सीट राजद की झोली में डाल दी. उनके पिता भी 2009 में ऐसा नहीं कर सके थे. लालू के बच्चों में मीसा पहली थीं जिन्होंने 2014 में राजनीति में कदम रखा, पर चुनावी कामयाबी न मिलने पर 2016 में वे राज्यसभा के रास्ते संसद गईं और राज्य तथा पार्टी को छोटे भाई तेजस्वी के हवाले कर दिया.

दुरै वाइको, 52 वर्ष, एमडीएमके, तिरुचिरापल्ली, तमिलनाडु

दुरै वाइको, 52 वर्ष, एमडीएमके, तिरुचिरापल्ली, तमिलनाडु

एएमडीएमके के संस्थापक वाइको के नरमदिल बेटे दुरै कोविड के दौरान डॉक्टरों-नर्सों को खुद ड्राइव करके पहुंचाते थे. 2021 में एमडीएमके के प्रिंसिपल सेक्रेटरी बनने के साथ राजनीति में उनकी औपचारिक शुरुआत हुई. वे पार्टी के 'लट्टू' सिंबल को फिर जिंदा करने को जूझते रहे हैं. उन्हें डीएमके के 'उगता सूरज' सिंबल पर चुनाव लड़ने कहा गया तो वे भावुक हो उठे. चुनाव आयोग ने अंतत: एमडीएमके को 'माचिस' सिंबल दिया. अब वे जीत गए हैं और 'लट्टू' की जंग जारी रहने की उम्मीद है.

बांसुरी स्वराज, 40 वर्ष, भाजपा, नई दिल्ली

अगर आपकी मां सुषमा स्वराज हों तो उनकी विरासत पर खरा उतरना आसान नहीं हो सकता. मगर इसकी तो पूरी संभावना है कि उनका जोशीला जज्बा आपको विरासत में मिला हो. सोने पे सुहागा यह कि आप तमाम किस्म की शैक्षिक योग्यताओं से सुसज्जित हों—वारविक यूनिवर्सिटी से अंग्रेजी साहित्य में बैचलर डिग्री, लंदन के बीपीपी लॉ कॉलेज से कानून की डिग्री, लंदन के ही इनर टेंपल से बैरिस्टरशिप, यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड के सेंट कैथरीन कॉलेज से मास्टर्स ऑफ स्टडीज की डिग्री. बांसुरी को सुप्रीम कोर्ट में हरियाणा की नुमाइंदगी करने के लिए नियुक्त किया गया था. पिछले साल दिल्ली भाजपा के कानून प्रकोष्ठ की सह-संयोजक के रूप में शुरुआत करने के बाद उन्हें जल्द ही राज्य इकाई का सचिव बना दिया गया, जहां वे अरविंद केजरीवाल की अगुआई वाली सरकार को नियमित रूप से आड़े हाथों लेती थीं. अब वे संसद में नई दिल्ली सीट की नुमाइंदगी करती हैं, जो उन्होंने आम आदमी पार्टी के सोमनाथ भारती को 78,000 वोटों से हराकर जीती है.

बांसुरी स्वराज, 40 वर्ष, भाजपा, नई दिल्ली

अल्फ्रेड कन्नगम एस. आर्थर 47 वर्ष, कांग्रेस, बाहरी मणिपुर (अनुसूचित जनजाति)

मणिपुर के पूर्व मंत्री ए.एस. आर्थर के बेटे अल्फ्रेड कन्नगम एस. आर्थर ने अपनी पेशेवर यात्रा अलग अंदाज में एक रॉक बैंड के गायक के रूप में शुरू की थी. साल 2012 में उन्होंने राजनीति में कदम रखा, हालांकि अपना पहला विधानसभा चुनाव वे मात्र 56 वोटों से हार गए थे. मणिपुर विधानसभा के सबसे मुखर विधायकों में से एक अल्फ्रेड ने साल 2017 और 2022 के बीच उखरुल की नुमाइंदगी करते हुए इस निर्वाचन क्षेत्र की सरकारी शैक्षणिक संस्थाओं और अस्पतालों के बुनियादी ढांचे और गुणवत्ता में सुधार लाने में अहम भूमिका अदा की. अब बाहरी मणिपुर के सांसद होने के नाते नगा जनजाति का यह युवा नेता राष्ट्रीय राजनीति में अपनी पहचान बनाने का इच्छुक है.

प्रणीति शिंदे, 43 वर्ष, कांग्रेस, सोलापुर (एससी), महाराष्ट्र

प्रणीति को एससी के लिए आरक्षित इस निर्वाचन क्षेत्र की जिम्मेदारी विरासत में अपने पिता और कांग्रेस के दिग्गज नेता सुशील कुमार शिंदे से हासिल हुई. सुशील शिंदे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री, केंद्रीय बिजली और गृह मंत्री तथा आंध्र प्रदेश के राज्यपाल रह चुके थे. एक बार 2014 में भाजपा के अल्पज्ञात उम्मीदवार शरद सोनवणे से और दूसरी बार 2019 में लिंगायत संत जयसिद्धेश्वर महास्वामी से दो बार चौंकाने वाली हार के बाद, सुशील शिंदे ने यह सीट इस बार प्रणीति को सौंप दी. प्रणीति ने आखिरकार भाजपा के राम सतपुते को हराकर पिता के अपमान का बदला ले लिया.

ईशा खान चौधरी, 53 वर्ष, कांग्रेस, मालदा दक्षिण, पश्चिम बंगाल

अगर आपके चाचा अत्यंत सम्मानित ए.बी.ए. गनी खान चौधरी और पिता पूर्व केंद्रीय मंत्री अबू हाशिम खान चौधरी हों, तो जाहिर है कि आपके कंधों पर विरासत का बहुत भारी बोझ होगा. लेकिन यॉर्क यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट ईशा खान चौधरी के साथ ऐसा नहीं है. दरअसल, वे खुद 2011 से 2016 तक बैष्णवनगर और साल 2016 से 2021 तक सुजापुर से विधायक रहे. पश्चिम बंगाल से कांग्रेस के इकलौते सांसद होने के नाते अपनी पार्टी की पकड़ को बनाए रखना उनकी जिम्मेदारी है.

अनिता शुभदर्शिनी, 51 वर्ष, भाजपा, अस्का, ओडिशा

डिग्री हो या विरासत, अनिता शुभदर्शिनी के पास सब है. इस वकील और शिक्षिका के पास राजनीति विज्ञान में एमए और कलिंग लॉ कॉलेज से एलएलबी की डिग्री है. वे दिग्गज नेता और पूर्व मंत्री राम कृष्ण पटनायक की बेटी हैं, जो बीजू और नवीन पटनायक दोनों के करीबी सहयोगी थे और 2014 में भाजपा में आ गए. अनिता ने भगवा टिकट पर जीत हासिल की. अस्का से वैसे यह उनका दूसरा प्रयास था.

अनिता शुभदर्शिनी, 51 वर्ष, भाजपा, अस्का, ओडिशा

आदित्य यादव,  36 वर्ष, सपा, बदायूं, उत्तर प्रदेश

उनके पिता शिवपाल यादव और चचेरे भाई अखिलेश के बीच भले सब कुछ ठीक न हो मगर आदित्य ने भाजपा के दुर्विजय शाक्य को हराकर यह सीट सपा के लिए फिर जीत ली. आदित्य लखनऊ के लॉ मार्टिनियर कॉलेज के पूर्व छात्र हैं और लखनऊ विश्वविद्यालय से बीबीए ग्रेजुएट हैं. उन्होंने टूरिज्म एडमिनिस्ट्रेशन में मास्टर्स डिग्री ली है और मैहर राजघराने से ताल्लुक रखने वाली राजलक्ष्मी से विवाह किया है. हालांकि पहले वे किसी राजनैतिक पद पर नहीं रहे मगर पिता के राजनैतिक अभियानों में हाथ बंटाते रहे हैं.

सौमेंदु अधिकारी, 21 वर्ष, भाजपा, कांठी, पश्चिम बंगाल

पूर्व सांसद और विधायक शिशिर अधिकारी उनके पिता हैं, और नंदीग्राम से मौजूदा विधायक तथा नेता विपक्ष शुभेंदु अधिकारी उनके भाई हैं. यह परिवार सामूहिक रूप से वफादारियां बदलने के लिए जाना जाता है. कांग्रेसियों के रूप में राजनीति शुरू करने के बाद वे निष्ठा बदलकर टीएमसी में आ गए. फिर 2020 में जब शुभेंदु पाला बदलकर भाजपा में आए, तो उनके नक्शे-कदम पर भाइयों ने भी यही किया. 2009 से 2024 तक कांठी की नुमाइंदगी करने के बाद 82 वर्षीय शिशिर ने अपने सबसे छोटे बेटे को कमान सौंपने का फैसला किया.

सुधाकर सिंह, 48 वर्ष, राजद, बक्सर, बिहार

राजद के प्रदेश अध्यक्ष और लालू यादव के भरोसेमंद जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर ने अक्टूबर, 2022 में नीतीश सरकार के कृषि मंत्री के पद से इस्तीफा देकर राजनैतिक और नैतिक जीत हासिल की थी. तब रामगढ़ के इस विधायक ने कहा था कि इस महकमे में भ्रष्टाचार देखकर उन्हें "चोरों के सरदार" होने सरीखा महसूस होता था. इस चुनाव में उन्होंने अपने मुकुट में एक और मोरपंख जोड़ लिया जब उन्होंने मिथिलेश तिवारी को हराकर बक्सर पर कब्जा कर लिया. दरसअल, बक्सर को प्रधानमंत्री मोदी के निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी के नजदीक होने के कारण 'मिनी काशी' भी कहा जाता है, और वह 1996 से ही भाजपा का गढ़ बना हुआ था, बस एक बार 2009 को छोड़कर जब जगदानंद यहां से जीते थे.

सुखजिंदर रंधावा,  65 वर्ष, कांग्रेस, गुरदासपुर, पंजाब

सुखजिंदर रंधावा,  65 वर्ष, कांग्रेस, गुरदासपुर, पंजाब

उनके पिता संतोष सिंह कांग्रेस की राज्य इकाई के दो बार प्रमुख और कांग्रेस के पक्के वफादार रहे. यहां तक कि संतोष सिंह ने उस वक्त भी ऑपरेशन ब्लूस्टार का समर्थन किया जब कांग्रेस में उनके ज्यादातर साथी या तो पार्टी छोड़ रहे थे या फिर अपनी राय अपने मन में ही रखे हुए थे. उनके बेटे सुखजिंदर ने भी वैसा ही जज्बा दिखाया, चाहे 2016 में सतलुज-यमुना लिंक मामले में हरियाणा के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध करते हुए इस्तीफा देने वाले 42 विधायकों में शामिल होना हो या फिर 2021-22 के दौरान कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ बगावत करने वालों में शामिल होना हो. चार बार के विधायक, पूर्व उपमुख्यमंत्री, और अब पड़ोसी राजस्थान में पार्टी के मामलों की देखरेख कर रहे कांग्रेस के महासचिव सुखजिंदर ने भाजपा के दिनेश सिंह बब्बू को हराकर गुरदासपुर से संसद में पहली बार कदम रखा है.

वरुण चौधरी, 44 वर्ष, कांग्रेस, अंबाला (एससी), हरियाणा

पूर्व केंद्रीय मंत्री रतनलाल कटारिया की विधवा और भाजपा उम्मीदवार बंतो कटारिया को चुनौती देने के लिए भूपिंदर सिंह हुड्डा ने चार बार के विधायक और पूर्व मंत्री फूलचंद मुलाना के बेटे वरुण को चुना. हुड्डा इस सीट से कुमारी शैलजा को बदलने में सफल रहे, और इसे जीतने के लिए उन्होंने यहां की ग्रामीण आबादी के बीच मुलाना परिवार के असर पर दांव लगाया. पेशे से वकील वरुण ने 2019 के विधानसभा चुनाव में मुलाना सीट जीती और इस भूमिका में सर्वश्रेष्ठ विधायक का अवार्ड भी जीता. अब वे हुड्डा के भरोसे पर भी खरे उतरे हैं.

उज्ज्वल रमण सिंह, 51 वर्ष, कांग्रेस,  इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश

समाजवादी पार्टी (सपा) के दिग्गज नेता रेवती रमण सिंह के बेटे उज्ज्वल ने भी राजनीति का ककहरा मुलायम सिंह यादव की पार्टी में ही सीखा. यहां तक कि वे राज्य में उनकी सरकार में पर्यावरण मंत्री रहे. इस दौरान आगरा, लखनऊ और कानपुर में सीएनजी की शुरुआत की. वे बीज विकास निगम के अध्यक्ष भी थे. पर लोकसभा चुनाव के महज डेढ़ महीने पहले वे कांग्रेस में आ गए, और 1984 में अमिताभ बच्चन के हाथों हेमवती नंदन बहुगुणा की हार के 40 साल बाद यह सीट जीत ली. प्रयाग के राजा का चौतरफा स्वागत हुआ.

अनूप धोत्रे, 40 वर्ष, भाजपा, अकोला, महाराष्ट्र

सोशल इंजीनियरिंग का अकोला पैटर्न गढ़ने के बावजूद—जिसके जरिए हाशिए के विभिन्न समूहों के लोगों को बारी-बारी से प्रतिनिधित्व दिया जाता था—बाबासाहब आंबेडकर के पोते प्रकाश आंबेडकर केवल दो मौकों पर इसका सियासी लाभ उठा सके. एक बार 1998 में उन्होंने कांग्रेस की यह सीट जीती और दूसरी बार 1999 में कांग्रेस के साथ गठबंधन में जीत दर्ज की. उस सिलसिले को अनूप के पिता संजय ने तोड़ा, जिन्होंने सबसे पहले 2004 में यह सीट छीनी और इस पर अपना मजबूत शिकंजा बनाए रखा. खराब सेहत ने इस बार उन्हें अपने बेटे अनूप को यहां से उम्मीदवार बनाने के लिए मजबूर कर दिया. अनूप ने भी निराश नहीं किया और वंचित बहुजन अघाड़ी के आंबेडकर और कांग्रेस के डॉ. अभय पाटील को हरा पारिवारिक विरासत बरकरार रखी.

अनूप धोत्रे, 40 वर्ष, भाजपा, अकोला, महाराष्ट्र

अरुण भारती, 48 वर्ष, लोजपा (रामविलास) जमुई (एससी), बिहार

चिराग पासवान की बहन निशा के पति अरुण भारती को जमुई में उस वक्त उतारा गया जब 2014 और 2019 में इस एससी आरक्षित सीट की नुमाइंदगी करने वाले चिराग हाजीपुर चले गए. ग्लासगो की यूनिवर्सिटी ऑफ स्ट्रैथक्लाइड से फाइनेंस की डिग्री लेकर आए अरुण चाचा पशुपति पारस के खिलाफ जंग में चिराग के साथ थे. फिर जमुई सीट खाली होने पर वे स्वाभाविक पसंद बन गए.

जीएम हरीश बालयोगी, 33 वर्ष, टीडीपी, अमलापुरम (एससी), आंध्र प्रदेश

दरअसल, लोकसभा के पहले दलित और सबसे युवा स्पीकर जी.एम.सी. बालयोगी की साल 2002 में हेलिकॉप्टर दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. अब उनके बेटे हरीश अपने पिता का सपना पूरा करना चाहते हैं, यानी रेल मंत्रालय से 57 किमी लंबे कोटिपल्ली-नरसापुरम रेल मार्ग का काम चालू करवाना. पिता की मृत्यु के बाद उनकी मां उपचुनाव में लोकसभा की इस सीट पर आसीन हुई थीं. हरीश ने भी 2019 में यहां से चुनाव लड़ा मगर हार गए. अब जब इस एमबीए ग्रेजुएट ने वाइएसआरसीपी के आर. वरप्रसाद राव को 3,00,000 वोटों से हराकर यह सीट जीत ली है, उनका इरादा सुरक्षित पेयजल उपलब्ध करवाने पर जोर देने का है, जो उनके एक-चौथाई वोटरों को नसीब नहीं होता.

डॉ. हेमंत सावरा, 47 वर्ष, भाजपा, पालघर (एसटी), महाराष्ट्र

पांच बार के विधायक और पूर्व आदिवासी विकास मंत्री विष्णु सावरा के बेटे हेमंत ने पिता के बीमार पड़ने पर 2019 का विधानसभा चुनाव विक्रमगढ़ से लड़ा पर हार गए. उन्होंने लोगों से मेलजोल बनाए रखा और आदिवासी आरक्षित सीट से भाजपा उम्मीदवार बनाए गए. शिवसेना (यूबीटी) की भारती कामदी को जिले के दहाणू और तलासरी सरीखे क्षेत्रों में प्रभाव रखने वाली सीपीपीएम का समर्थन मिल गया था, फिर भी हेमंत यह सीट जीतने में सफल रहे.

आनंद कुमार गोंड, 49 वर्ष, भाजपा, बहराइच (एससी), उत्तर प्रदेश

आनंद ने पिता अक्षयबर लाल गोंड की कमान संभाली, जो उनसे पहले बहराइच से सांसद थे. पीएचडी, एमबीए और कई कारोबारों के मालिक आनंद ने निराश नहीं किया और इस सीट पर जीत की हैट-ट्रिक बनाने में भाजपा की मदद की.

जियाउर रहमान बर्क, 36 वर्ष, सपा, संभल, उत्तर प्रदेश

 

फरवरी में परलोक सिधारे संभल के पूर्व सांसद शफीकुर रहमान बर्क के पोते जियाउर रहमान की राजनैतिक शिक्षा-दीक्षा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्रसंघ से शुरू हुई. 2017 का विधानसभा चुनाव उन्होंने एआईएमआईएम के टिकट पर लड़ा लेकिन जीत 2022 में कुंदरकी से सपा के टिकट पर मिली. मुखर राजनेता जिया ने एएमयू में सनातन धर्म पढ़ाने के सुझाव के जवाब में बीएचयू में इस्लामिक अध्ययन पढ़ाना शुरू करने की वकालत की. उन्होंने भाजपा के परमेश्वर लाल सैनी को 1,70,000 से ज्यादा वोटों से हराया.

तनुज पुनिया, 39 वर्ष कांग्रेस,  बाराबंकी (एससी), उत्तर प्रदेश

उनके पिता पी.एल. पुनिया कांग्रेस के दलित चेहरों में से थे और 2009 में इस सीट की नुमाइंदगी की थी. आइआइटी रुड़की से इंजीनियर और यूपी कांग्रेस समिति के महासचिव तथा प्रवक्ता तनुज कई चुनावी मुकाबलों में उतरे—2017 और 2022 के विधानसभा चुनावों में और 2019 के लोकसभा चुनाव में—पर हारे. कांग्रेस ने उन्हें फिर उतारा. इस बार उन्होंने भाजपा प्रत्याशी राजरानी रावत को 2,00,000 से भी ज्यादा वोटों से हरा दिया.

अमर काले, 50 वर्ष, एनसीपी (एसपी),  वर्धा, महाराष्ट्र

कांग्रेस को यह मजबूत गढ़ एनसीपी (शरदचंद्र पवार) को सौंपना पड़ा था. मगर जब उम्मीदवार उतारने की बारी आई तो एनसीपी (एसपी) को पुराने कांग्रेसी—पूर्व विधायक अमर काले—की शरण में जाना पड़ा. चार बार के पूर्व विधायक शरदराव काले के बेटे अमर पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख के भांजे भी हैं. इस बार किसानों और ग्रामीण युवाओं में सत्ता-विरोधी भावना और अपने कुनबी समुदाय की मदद से उन्होंने दो बार के भाजपा सांसद रामदास तडस को हराया.

विशाल पाटील, 43 वर्ष, निर्दलीय,  सांगली, महाराष्ट्र

वे कांग्रेस के दिग्गज नेता वसंतदादा पाटील के पोते हैं. सांगली कांग्रेस का गढ़ रहा था, जब तक कि पूर्व कांग्रेसी संजयकाका पाटील ने इस सिलसिले को तोड़ नहीं दिया. 2019 में उन्होंने विशाल को ही हराया था. विशाल उस हार का बदला लेने को उत्सुक थे. बात बस यह थी कि कांग्रेस ने यह सीट शिवसेना (यूबीटी) को दे दी. नाराज-परेशान विशाल ने निर्दलीय लड़ना तय किया और जीते. बाद में उन्होंने कांग्रेस को समर्थन देने का फैसला किया.

राजाभाऊ वाजे,  59 वर्ष, शिवसेना (यूबीटी), नासिक, महाराष्ट्र

नासिक जिले के सिन्नर का वाजे परिवार एक किस्म का राजनैतिक राजवंश है. उनके मां-बाप दोनों इस सीट से विधायक रहे थे. राजाभाऊ भी 2014 में सिन्नर से शिवसेना के विधायक चुने गए. पार्टी में विभाजन के बावजूद वाजे ठाकरे परिवार के प्रति वफादार रहे. उन्हें लोकसभा चुनाव में शिवसेना के सांसद हेमंत गोडसे के खिलाफ उम्मीदवारी मिली और वे जीते.

चंदन चौहान, 35 वर्ष, आरएलडी, बिजनौर, उत्तर प्रदेश

उनके दादा चौधरी नारायण सिंह उत्तर प्रदेश के पहले उपमुख्यमंत्री थे और पिता संजय सिंह ने लोकसभा में बिजनौर की नुमाइंदगी की. चंदन खुद मीरापुर सीट से आरएलडी के विधायक रहे हैं. इस पट्टी के गुर्जरों में परिवार की मजबूत पकड़ की बदौलत चंदन स्थानीय जाट नेता और बसपा के उम्मीदवार चौधरी विजेंद्र सिंह और इंडिया गुट की तरफ से मैदान में उतारे गए ओबीसी नेता दीपक सिंह के खिलाफ तिकोने मुकाबले में विजयी होकर निकले.

चंदन चौहान, 35 वर्ष, आरएलडी, बिजनौर, उत्तर प्रदेश

सुनील बोस, 42 वर्ष, कांग्रेस, चामराजनगर (अनुसूचित जाति), कर्नाटक 

राज्य के समाज कल्याण मंत्री एच.सी. महादेवप्पा के सुपुत्र सुनील समाज सेवा, कृषि और बिजनेस को अपना पेशा बताते हैं. अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित चामराजनगर सीट पर लड़ाई को लेकर खासी जिज्ञासा थी क्योंकि इसका एक हिस्सा पड़ोस के मैसूरू जिले में पड़ता है जो कि मुख्यमंत्री सिद्धरामैया का अपना इलाका है. इसी वजह से यह एक तरह से सीएम के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई वाली सीट बन गई थी.

करण भूषण सिंह, 33 वर्ष, भाजपा, कैसरगंज, उत्तर प्रदेश

लगता है पिता के पापों का असर बेटे करण पर नहीं पड़ा. उन्होंने उस सीट से जीत हासिल की जहां से उनके पिता और छह बार के सांसद बृजभूषण शरण सिंह को टिकट देने से इनकार कर दिया गया था. वजह थी भारत की शीर्ष महिला पहलवानों की तरफ से कुश्ती महासंघ के इस पूर्व अध्यक्ष के खिलाफ लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोप. करण ने सपा के भगतराम को डेढ़ लाख वोटों से हराया.

अभिमन्यु सेठी, 33 वर्ष भाजपा, भद्रक (अनुसूचित जाति), ओडिशा

बिजनेसमैन सेठी ने 2019 के आम के आम चुनावों में भी अपनी किस्मत आजमाई थी पर नाकाम रहे थे. इस बार उन्होंने निवर्तमान सांसद, बीजेडी की मंजुलता मंडल को मात दे दी. अभिमन्यु पूर्व बीजेडी नेता अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे अर्जुन चरण सेठी के बेटे हैं. तब भाजपा-बीजेडी सहयोगी दल थे. सेठी पिता-पुत्र ने 2019 में भाजपा का दामन थामा था.

अभिषेक जी. दस्तीदार, धवल एस. कुलकर्णी, अर्कमय दत्ता मजूमदार और अजय सुकुमारन

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