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भारत बनाम इंडिया

अब विवाद को तूल पकड़े कई दिन गुजर चुके हैं और इसका कोई ठोस साक्ष्य नजर नहीं आ रहा कि सरकार संविधान और उससे इतर भी तमाम जगहों से आधिकारिक तौर पर 'इंडिया’ नाम हटाने की किसी जल्दबाजी में है

इंडिया बनाम भारत
इंडिया बनाम भारत
अपडेटेड 24 सितंबर , 2023

नाम में क्या रखा है? लेकिन बात अगर हमारे तर्कशील गणतंत्र की हो तो आप समझ सकते हैं, ऐसा हंगामा खड़ा होगा कि पूछिए मत. हमारे देश के दो आधिकारिक नामों में से एक 'इंडिया’ को हटाने की तथाकथित साजिश पर जारी विवाद ने सोशल मीडिया (और मुख्यधारा के मीडिया) पर जन्म लिया. फिर तो मामले ने इस कदर तूल पकड़ा कि हर तरफ अटकलबाजियों, मजेदार मीक्वस और आरोप-प्रत्यारोपों की बाढ़ से गुजरते-गुजरते बात रंगीन-संगीन साजिशों तक जा पहुंची.

अधिकांश लोग इससे भी सहमत होंगे कि सारा मामला कहीं न कहीं विपक्षी गठबंधन के संक्षिप्त नाम से जुड़ा है, जिसकी घोषणा जुलाई में हुई थी. दरअसल, जिस तरह से विपक्ष ने अपनी ब्रांडिंग की, वह सत्ताधारी पार्टी को चुभने वाली थी. यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक की तरफ से कई हमले किए गए.

उन्होंने यह याद दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी कि ईस्ट इंडिया कंपनी और इंडियन मुजाहिदीन भी 'इंडिया’ का इस्तेमाल करते रहे हैं. हाल ही में आरएसएस प्रमुख का एक बयान आया था, जिसमें उन्होंने 'लोगों’ से आग्रह किया कि "देश के नाम के लिए 'इंडिया' की जगह 'भारत' शब्द का प्रयोग शुरू करें." चूंकि यह बयान सरकार की तरफ से सितंबर में पांच दिनों के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाने के ऐलान के कुछ ही समय बाद आया था, इसलिए दोनों खबरों को साथ जोड़कर कई तरह के निहितार्थ निकाले जाने लगे.

रही-सही कसर भाजपा प्रमुख जे.पी. नड्डा के एक ट्वीट ने पूरी कर दी. इसमें 9 सितंबर को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की तरफ से विदेशी राष्ट्राध्यक्षों के सम्मान में दिए जाने वाले औपचारिक रात्रिभोज के न्यौते की तस्वीर थी और मेजबान की जगह लिखा था प्रेसिडेंट ऑफ भारत. फिर क्या था! तमाम बेसिर-पैर की बातें टीवी पर बहस का मुद्दा बन गईं. तरह-तरह के मीम (यहां तक कि इस पत्रिका के नाम के भविष्य को लेकर) भी सोशल मीडिया पर तैरने लगे. तभी एक और आधिकारिक दस्तावेज जारी हुआ जिसमें नरेंद्र मोदी को 'प्राइम मिनिस्टर ऑफ भारत' बताया गया. फिर तो विपक्षी नेताओं के बयानों की झड़ी लग गई.

अब विवाद को तूल पकड़े कई दिन गुजर चुके हैं और इसका कोई ठोस साक्ष्य नजर नहीं आ रहा कि सरकार संविधान और उससे इतर भी तमाम जगहों से आधिकारिक तौर पर 'इंडिया’ नाम हटाने की किसी जल्दबाजी में है. लेकिन यह मानने की कुछ वजहें जरूर हैं कि सरकार की तरफ से आधिकारिक दस्तावेजों और आम बोलचाल- चाहे वह हिंदी हो, अंग्रेजी या कोई अन्य भाषा- में देश के संदर्भ में सिर्फ 'भारत’ के इस्तेमाल करने की आदत अपनाई जा सकती है.

क्या यह सारी आक्रामकता विपक्ष की तरफ से इंडिया शब्द चुने जाने के जवाब में अपनाई गई? या फिर अगले साल होने वाले आम चुनाव से पूर्व मूल मुद्दों से ध्यान भटकाने और नैरेटिव गढ़ने वाली राजनीति की ताजा मिसाल भर है? वैसे तो 'भारत बनाम इंडिया' की राजनीति एक लंबे समय से भाजपा कुनबे की थीम का हिस्सा रही है. हालांकि, ऐसा लगता है कि अब यह सरकार के साथ जुड़े अंग्रेजीदां बुद्धिजीवियों का नया शगल बन चुकी है.

विडंबना देखिए कि यही वह वर्ग है जो पिछले कुछ बरसों से एक प्राचीन धार्मिक बहुसंख्यक पंथ को प्रोत्साहित करने के लिए 'वैदिक’ और 'वैदिक सभ्यता’ को बढ़ावा देने में जुटा है. यह भी किसी विडंबना से कम नहीं कि कुछ इतिहासकारों ने औपनिवेशिक स्तर पर कल्पित हिंदू 'भारत’ में 'हिंदुस्तान’ को कहीं बिसरा दिए जाने पर हमला बोला है.

अब एक अटपटी उलझन सामने थी तो हमने भी विशुद्ध प्राचीन भारतीय लेकिन दुनियाभर में ख्यात हिंदुस्तान के लालबुझक्कड़ों वाले लोकप्रिय दृष्टांत का सहारा लेते हुए तुक्केबाजों की महफिल सजा ली. इसमें आंखों पर पट्टी बांधकर 'हाथी’ के बारे में अकादमिक, कानूनी, सांस्कृतिक, प्रशासनिक और राजनैतिक, हर स्तर की राय सामने रखी जा रही है. करना क्या है! ऐसे विचारों को पढ़ते-सुनते-गुनते रहिए. अपने देश को आप किसी भी नाम से स्वीकारें, पर इस सबसे आपका खासा ज्ञानवर्धन जरूर होने वाला है.

नाम पर बस नोकझोंक या कुछ और?

नाम में क्या रखा है?

सदाबहार इंडिया

भारतवर्ष का उदय

औचित्य का सवाल

दोनों नामों से पुकारिए न

इंडिया जो कहा जाता है किनारों पर

भारत, बर्बर ताकत का प्रतीक

'भारत' पर अब सर्वानुमति

ब्रांड न्यू इंडिया

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