- पवन के. वर्मा
कर्नाटक के जाने-माने लेखक यू.आर. अनंतमूर्ति (1932-2014) ने, जिन्हें जानने का मुझे महान सौभाग्य प्राप्त था, एक बार चुटकी लेते हुए मुझसे कहा था कि बैंगलोर का नाम बदलकर बेंगलूरू रखने- जिसका प्रस्ताव उन्होंने ही 2006 में रखा था- का पूरा विवाद मनोरंजक ढंग से बेमतलब था क्योंकि आम कन्नड़ लोगों के लिए बैंगलोर हमेशा बेंगलूरू ही रहा है. मुझे लगता है कि यह अकाट्य तर्क कलकत्ता का कोलकाता, मद्रास का चेन्नै और कॉउनपुर का कानपुर नाम रखने पर भी लागू होता है.
इन शहरों के पहले नाम अंग्रेजों ने दिए थे और स्थानीय लोग तो हमेशा नए नामों से ही उनका जिक्र करते थे. इतना ही इसका उलटा भी सही था. देशों ने भी अपने नाम बदले हैं. कुछेक उदाहरण दें, तो तुर्की ने 2021 में अपना नाम बदलकर तुर्किये जम्हूरुयेति यानी तुर्किये गणराज्य रख लिया. इसकी एक दिलचस्प वजह यह थी कि गूगल सर्च में तुर्की खोजने पर हमेशा पश्चिम में क्रिसमस पर और अमेरिका में थैंक्सगिविंग पर भी खाया जाने वाले एक पक्षी भी दिखाया जाता था! इससे पहले 1972 में ब्रिटिश औपनिवैशिक नाम सीलोन बदलकर श्रीलंका कर दिया गया; 1980 में रोडेशिया अंग्रेजों का दिया नाम खारिज करके जिम्बाबवे बन गया; और 1989 में बर्मा ने म्यांमार नाम अपनाकर अपने औपनिवेशिक बोझ को उतार फेंका.
मगर इंडिया नाम बदलकर भारत रखने की सरकार की कथित मंशा को लेकर उठे इस नए विवाद में मुख्य सवाल यह है- दूसरे को निकाल फेंककर हम आखिर क्या फिर से पाने का दावा कर रहे हैं? क्या इंडिया हमारे ब्रिटिश आकाओं का दिया नाम था? ऐतिहासिक प्रमाण तो कुछ और इशारा करते हैं. जानी-मानी इतिहासकार डॉ. उपिंदर सिंह अपनी बेहतरीन किताब ए हिस्ट्री ऑफ एंशिएंट ऐंड मिडीवल इंडिया- फ्रॉम स्टोन एज टू द 12क्रथ सेंचुरी में लिखती हैं कि 'इंडिया', 'हिंदू' और 'हिंदुस्तान' शब्दों की उत्पत्ति इंडस या सिंधु नदी से हुई है.
प्राचीन चीनी स्रोत 'शेन-तू' भूभाग का जिक्र करते हैं. ठेठ मैगस्थनीज से शुरू होकर, जो ईसा पूर्व चौथी सदी में चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में आया था, ग्रीक ग्रंथ समूचे उपमहाद्वीप का जिक्र 'इंडिया' के रूप में करते हैं. इतने ही पुराने फारसी शिलालेख अकमेनिद राजा डेरियस के अधीन एक देश के रूप में 'हिंदू' शब्द का प्रयोग करते हैं. और अरबों के लिए (आठवीं सदी के बाद) इंडस या सिंधु के पार रहने वाले अल-हिंद थे.
इसलिए ऐसा लगता है कि इंडिया नाम और उसके भिन्न-भिन्न रूप, जो सभी इंडस या सिंधु से निकले हैं, (और सिंधु वेदों से लिया गया संस्कृत शब्द है), सभी की उत्पत्ति ब्रिटिश हुकूमत से बहुत पहले हुई थी. अलबत्ता भारत नाम भी स्थापित और प्राचीन दोनों है, और निष्पक्ष इतिहासकार यह हकीकत स्वीकार करने को तैयार हैं. उपिंदर लिखती हैं, ''भारतवर्ष नाम की कई व्याख्याओं में से एक इसे भारत लोगों से जोड़ती है, जो दुष्यंत और शकुंतला (लगभग 3000 ईसा पूर्व) के पुत्र पौराणिक राजा भरत के वंशज हैं.
ईस्वी 300 के आसपास लिखे गए पुराणों में ब्रह्मांड विद्या भूगोल के साथ एकमेक हो जाती है. कहा जाता है कि भारतवर्ष नौ खंडों से मिलकर बना था, जिन्हें समुद्र एक दूसरे से अलग करते थे. लेकिन इसके पर्वतों, नदियों और स्थानों- जिनमें से कुछ को पहचाना जा सकता है- से पता चलता है कि ऐसे ग्रंथों के रचयिता उपमहाद्वीप के विभिन्न इलाकों से परिचित थे, और उसे ज्यादा बड़ी सांस्कृतिक समष्टि का अंग मानते थे.
भारत का जिक्र महाभारत (ईसा पूर्व 5वीं सदी के आसपास) में भी है, और अक्सर उद्धृत किया जाने वाला संस्कृत का एक श्लोक कहता है, ''उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्। वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र संतति:।। [समुद्रों के उत्तर में और बर्फीले पर्वतों के दक्षिण में जो देश (वर्षं) है, उसे भारतं, भारत के वंशज, कहते हैं].'
हमारे संविधान निर्माताओं ने इंडिया और भारत दोनों की ऐतिहासिक वैधता को समझते हुए विस्तार से बहस की कि कौन-सा अपनाया जाए, और अंतत: ऐसा समाधान निकाला जिसने दोनों को बनाए रखा. मूलत: अंग्रेजी में लिखे गए संविधान का अनुच्छेद 1 कहता है, ''इंडिया, दैट इज भारत, विल बी यूनियन ऑफ स्टेट्स.'' हिंदी संस्करण में यही दोहराया गया है, पर अनुवाद में भारत का उल्लेख पहले है- 'भारत, अर्थात इंडिया, राज्यों का संघ होगा.' क्या इसका अर्थ यह है कि अंग्रेजी में 'इंडिया' को प्रधानता दी गई और हिंदी में 'भारत' को?
सच कहूं तो मुझे इस पर शक है. भाषा निर्णायक कारक नहीं थी (क्योंकि हिंदी प्राथमिक रूप से केवल उत्तर भारत के कुछ हिस्सों की प्रधान भाषा है). सच्चाई यह मालूम देती है कि हमारे संस्थापक पिता (और माताएं) चाहते थे कि ब्रांड इंडिया (जिन्ना के विरोध के खिलाफ) हमारा हो, और उन्होंने किसी एक या दूसरे नाम के हिमायतियों के बीच सुलह के लिए समझौता किया. असल में, संविधान समग्रता में प्रबुद्ध समझौतों की उल्लेखनीय और सराहनीय कवायद है, ताकि फूट से बचा जा सके और देश की एकता को कायम रखा जा सके.
दिलचस्प बात यह है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा में मुलायम सिंह यादव की सरकार ने 2004 में जब इंडिया का नाम बदलकर भारत रखने का प्रस्ताव पारित किया, भाजपा ने विरोध में वॉक आउट किया था. क्या अब वह अपना रुख इसलिए पलट रही है क्योंकि विपक्ष के गठबंधन का नाम 'इंडिया' है? या यह इतिहास के दूसरे उतने ही वैध और स्वदेशी आख्यान को खत्म करने की कीमत पर फिर से अपना सांस्कृतिक अधिकार जताने का प्रतीक है. जो भी हो, अनंतमूर्ति का तर्क सही था- भारतीय जनसाधारण ने लंबे समय से भारत और इंडिया दोनों को ही, और संयोगवश हिंदुस्तान को भी, खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया है. इस मामले को फिर से क्यों छेड़ा जाए?
- पवन के. वर्मा लेखक, पूर्व राजनयिक और राज्यसभा के पूर्व सदस्य हैं.