- संजीव सान्याल
यह देश हजारों वर्षों से भारत या भारतवर्ष के रूप में जाना जाता रहा है. इस नाम के उद्गम की दो कहानियां हैं- एक पुरानी वैदिक कहानी और दूसरी बाद की पौराणिक/जैन धर्म से निकली कहानी. दिलचस्प यह है कि भारत और इंडिया नामों की उत्पत्तियां आपस में घनिष्टता से जुड़ी हैं.
आरंभिक कांस्य युग के ग्रंथ (5,000 से ज्यादा साल पुराने) ऋग्वेद में भारत (तृत्सु भी) नाम की एक जनजाति का उल्लेख है जो सरस्वती नदी के किनारों पर रहती थी, जो आधुनिक समय के हरियाणा में है. वे अपनी मातृभूमि को सप्त सिंधु या सात नदियों की भूमि कहते थे. इन सातों नदियों का संबंध केवल सरस्वती और उसकी उपनदियों से है, उन्हें पंजाब की नदियां समझने की भूल नहीं करनी चाहिए.
ऋग्वेद हमें बताता है कि इन भारत लोगों पर पश्चिम की 10 जनजातियों के गठबंधन ने आक्रमण कर दिया था. अपने सेनापति सुदास और ऋषि वशिष्ठ की अगुआई में भारत सेना सरस्वती को पार करके शत्रु से मुठभेड़ के लिए निकल गई. परुष्णी नदी (अब रावी) के किनारे दशराज्ञ या दस राजाओं के युद्ध में भारत लोगों ने गठबंधन को पराजित कर दिया; वर्णन किया गया है कि किस तरह भागते हुए सैनिक नदी में डूब गए. सुदास ने अब पूरब का रुख किया और यमुना नदी के किनारे भेड़ा नाम के एक और सेनापति को पराजित किया.
इस तरह भारत जनजाति ने भारत के पहले ज्ञात साम्राज्य की स्थापना की, और सुदास पहले 'चक्रवर्ती’ सम्राट बने. चक्रवर्ती का प्रतीक चक्र है और इसका मौर्य संस्करण आज हमारे राष्ट्रीय ध्वज में है. अलबत्ता, भारत लोगों का वास्तविक महत्व फतह से कम और उससे अधिक पता चलता है जो उन्होंने उसके बाद किया.
पराजित जनजातियों पर अपने देवी-देवताओं को थोपने के बजाए उन्होंने परास्त जनजातियों और अन्य पड़ोसी कुलों या कबीलों को एक साझा समुच्चय में अपने विचारों, अनुष्ठानों और देवी-देवताओं का योगदान देने के लिए आमंत्रित किया, जिन्हें वेदों के रूप में जाना जाता है. वैदिक ऋचाओं के कई रचयिता, जैसे भृगु कुल, युद्ध में पराजित पक्ष में थे!
ऋग्वेद की अंतिम ऋचा स्पष्ट रूप से एक 'अनुबंध' के बारे में बताती है जिसके माध्यम से सभी जनजातियों ने एक-दूसरे के देवी-देवताओं को स्वीकार किया- 'एकत्र हों, साथ बोलें-हमारे सभी मन एक मत हों, सभी प्राचीन देवता यज्ञ के चारों ओर अपना उचित स्थान ग्रहण करें, स्थान सबका है, सबकी है सभा, सार्वलौकिक हैं हमारे मन, अपने विचारों को एक होने दें.'
थोपने के विपरीत आत्मसात करने का विचार काफी आकर्षक रहा होगा, तभी इस ढांचे को पूरे उपमहाद्वीप में स्वीकार किया जाने लगा, क्योंकि ज्यादा से ज्यादा लोग देवी-देवताओं के उनके समुच्चय के साथ जुड़ते गए. इस तरह हम देख सकते हैं कि लौह युग आते-आते सात नदियों की भूमि का विस्तार करके वस्तुत: समूचे भारत को उसमें शामिल कर लिया गया था. इसकी झलक उस ऋचा में भी मिलती है, जो आज भी स्नान के अनुष्ठान में आम तौर पर जपी जाती है-
''ओ गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु, कावेरी!
तुम्हारे सारे जल मुझे शुद्ध करने के लिए साथ आएं!"
इसी तरह लगभग सभी पुराण स्पष्ट रूप से कहते हैं कि हिमालय से दक्षिण और महासागर से उत्तर की भूमि भारत के लोगों से आबाद है. यही नहीं, नदियों और पर्वतमालाओं और साथ ही पड़ोसी लोगों, जैसे किराता (तिब्बती-बर्मन), की विस्तृत सूची भी है.
पुराणों और जैन ग्रंथों (करीब 2,500 साल पुराने) में भारतवर्ष की एक और उद्गम कथा का उल्लेख है, जो वैदिक वर्णन से भिन्न है. उसके अनुसार, एक महान राजा नाभिराज थे, जिनका एक पुत्र ऋषभ था. कुछ समय शासन करने के बाद ऋषभ संन्यास (जैन परंपरा के मुताबिक, वही संस्थापक, पहले तीर्थंकर थे) अपना लेता है और सिंहासन अपने पुत्र भारत को सौंप देता है.
भारत आगे चलकर पूरे उपमहाद्वीप में अपनी विजय का डंका बजाता है और चक्रवर्ती बन जाता है. इस तरह यह देश भारत भूमि या भारतवर्ष के रूप में जाना जाने लगता है. इससे पुरानी वैदिक कहानी के साथ इसका संबंध स्पष्ट नहीं है, और अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत की विजय सुदास की विजय की सुदूर स्मृति रही हो सकती है. बाद की उस कथा के साथ भी इसका संबंध स्पष्ट नहीं है, जो दुष्यंत और शंकुतला के पुत्र सर्वविजयी सम्राट भारत के बारे में है.
उधर प्राचीन अवेस्ताई फारसियों ने हफ्त हिंदु शब्द का प्रयोग किया, जो सप्त सिंधु से निकला था और जिसमें ध्वन्यात्मक बदलाव की वजह से 'स’ अक्षर 'ह' हो गया था. लगता है, अवेस्ताइयों का वैदिक भारतीयों के साथ कुछ विवाद था, क्योंकि वेंदीदाद या विदेवदाद ग्रंथ में उल्लेख मिलता है कि हफ्त हिंदु पर दुर्दैवों या दुष्ट देवों ने अधिकार प्राप्त कर लिया था. गौर कीजिए कि हिंदू शब्द के पहले प्रयोग का उल्लेख एक भूभाग के नाम के अंग के रूप में मिलता है, न कि यह सिंधु नदी से निकला है, जैसा कि आम तौर पर माना जाता है.
पश्चिम एशिया 'हिंदू’ का प्रयोग करता रहा, लेकिन पश्चिम की ओर आगे बढ़ते हुए यह शब्द विकसित होकर 'इंडिया’ बन गया. इस तरह 'इंडिया’ शब्द प्राचीन विदेशियों की जुबान से लगातार गलत उच्चारण का नतीजा है. इसके विपरीत 'भारत’ शब्द दक्षिणपूर्व एशिया का सफर करता रहा, जहां यह इंडोनेशियाई और मलेशियाई बहासा में 'बारत’ के रूप में जीवित है, जिसका अर्थ है पश्चिम!
देखा जा सकता है कि इस देश को हजारों वर्षों से इस भूभाग में मौलिक रूप से भारत कहा जाता रहा है, और यह नाम भारतीय भाषाओं में साझा तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. हालांकि इंडिया का प्रयोग भी बहुत पुराना है. कई दूसरे देशों ने स्वयं अपने और बाहरी नामों को अपनाया है-जर्मनी और ड्यूशलैंड, जापान और निप्पन. यही कारण है कि भारतीय संविधान इन शब्दों से शुरू होता है, 'इंडिया, अर्थात् भारत...'
- संजीव सान्याल लेखक और अर्थशास्त्री हैं जो इन दिनों सदस्य के रूप में प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद से जुड़े हैं.