
"धोनी फिनिशेज इट ऑफ इन स्टाइल... इंडिया विन्स द वर्ल्ड कप...(धोनी ने अपने अंदाज में खत्म किया... भारत विश्व कप जीता).’’ रवि शास्त्री की गरजती हुई आवाज देश भर में टीवी स्क्रीन पर गूंज रही थी. भारत ने मुंबई में 2011 का विश्व कप जीत लिया था. बारह साल बाद 50 ओवरों का विश्व कप फिर भारत की धरती पर लौट आया है.
फर्क सिर्फ यह है कि उम्मीदें इस बार उस छक्के से कहीं ज्यादा ऊंची हैं जिसने उस रात मुंबई के आसमान को रोशन कर दिया था. लगातार चलने वाली मल्टी-मीडिया मशीन दौड़ते-हांफते उत्साह से पूछ रही है- आखिर वह कौन है जो धोनी के अंदाज में जोरदार फिनिशर की भूमिका अदा करके भारत को एक बार फिर शिखर पर ले जाएगा?
यह असीम महत्वाकांक्षा और खुमार उस पहली बार से कितना अलग है जब भारत 1975 के पहले विश्व कप में गया था? या दरअसल जब भारत ने 1983 में छिपे रुस्तम की तरह निर्णायक फतह हासिल की थी? ’75 का विश्व कप सबसे ज्यादा सुनील गावस्कर की 60 ओवर में 36 रनों की अजीबोगरीब पारी के लिए याद किया जाता है. भारत के महानतम टेस्ट ओपनर और रन-मशीन गावस्कर का वह अबूझ धीमी रफ्तार से रन बनाना याद दिलाता है कि भारतीय क्रिकेटरों को शुरुआती दिनों में छोटे फॉर्मेट का जरा अता-पता नहीं था.
1983 में आए जब किंवदंतियों में शुमार भारत के एक और क्रिकेटर कपिल देव ने सर्वविजेता वेस्ट इंडीज के सामने निहायत बेमेल मालूम देते उस पल को भारतीय खेलों के सबसे ज्यादा बार-बार देखे जाने वाले पल में बदल दिया (जिसे कबीर खान की ’83 ने हिंदी सिनेमा में हमेशा के लिए दर्ज कर दिया है). मैदान के भीतर और बाहर देव के जोशो-खरोश ने भारत के सीमित ओवरों के हुनर में गहरे आत्मविश्वास का संचार किया और जिसकी बदौलत भारतीय क्रिकेट के मुरीदों का एक बेजोड़ सपना साकार हो सका.
1983 की जीत के इस अप्रत्याशित स्वरूप की वजह से ही चारों तरफ माहौल में हर्षोल्लास छा गया. मगर खुशियों से झूमते देश को हमेशा यह एहसास भी था कि लॉर्ड्स में ’83 की जीत लीक से हटकर थी, एक पीढ़ी में एक बार आने वाला लम्हा, जिसे दोहराए जाने की संभावना नहीं थी. 2011 में धोनी की टीम की फतह के वक्त तक क्रिकेट के भौगोलिक शक्ति केंद्र का पश्चिम से हटकर पूरब आना तकरीबन पूरा हो चुका था. इससे कई उम्मीदें परवान चढ़ीं, बल्कि प्रार्थनाएं की जाने लगीं कि भारत घरेलू मैदान में कप जीतेगा.
फिर यह आखिरकार सचिन तेंदुलकर का आखिरी कप था जिन्हें भारत का सबसे प्रिय क्रिकेटर कहा जा सकता है. क्रिकेट भले टीम का खेल हो, पर भारतीय मुरीद तो अपनी सुपरस्टार शख्सियतों की ही पूजा करते हैं और क्रिकेट के भगवान यानी बालसुलभ चेहरे वाले उस विलक्षण प्रतिभावान किशोर से बड़ा देवता भला कौन था, जिसे देखते हुए हम सब बड़े हुए थे.
उन्माद भरे एक-स्वर से 'सचिन, सचिन' की नारा लगाती भीड़ दो दशक से ज्यादा वक्त क्रिकेट के राष्ट्रगान की तरह हो गई थी, जो वानखेड़े में उस जादुई रात अपनी पराकाष्ठा पर थी. 2011 की उस फतह का यादगार उद्धरण सचिन के जाहिरा वारिस विराट कोहली की जुबानी आया, जिन्होंने उस टीम के जज्बात का लब्बोलुबाब व्यक्त किया "उन्होंने (सचिन ने) 21 साल अपने कंधों पर देश (की उम्मीदों) का बोझ उठाया, यह वक्त था कि हम उन्हें अपने कंधों पर उठाएं."
सचिन बेशक उसके बाद रिटायर होकर भारत रत्न की प्रतिष्ठित कतार में शामिल हो गए. 2011 की फतह के एक और महान करिश्माई खिलाड़ी धोनी भारतीय क्रिकेट की उत्तर-दक्षिण फांक को हमेशा के लिए पाटकर अब भी चैन्नै सुपरकिंग्स के लोकनायक के तौर पर खेलते हैं. 2011 में धोनी का शांत और नियंत्रित स्वभाव श्रीलंका के खिलाफ फाइनल की उस जीत में बेहद अहम था.
अब विश्व कप की कामयाबियों की हैटट्रिक हासिल करने का भार उन काबिल उत्तराधिकारियों पर आ गया है जिन्होंने 2011 में सम्मान स्वरूप सचिन को अपने कंधों पर उठाकर मैदान का चक्कर लगाया था. 'किंग' कोहली शारीरिक दमखम और कभी हार न मानने वाले रवैये को अलग ही स्तर पर ले जाकर और भारतीय क्रिकेट की नई इबारतें गढ़कर क्रिकेट की किंवदंती बन चुके हैं.
उन्होंने अपने को उस जगह स्थापित कर लिया है जहां उन्हे वनडे क्रिकेट का सदाबहार महानतम कहा जा सकता है. आंकड़ों के लिहाज से वे वेस्ट इंडीज के मास्टर बल्लेबाज विव रिचर्ड्स से भी आगे हैं. कोहली के सामने क्रिकेट के रिकॉर्ड की किताबों को नए सिरे से लिखने- 50 ओवर के फॉर्मेट में दो विश्व कप जीतने वाला पहले भारतीय क्रिकेटर बनने- का मौका है.
टीम में कोहली की मौजूदगी याद दिलाती है कि अंतरराष्ट्रीय खेल बैटन रिले है जिसमें एक पीढ़ी अगली को राह दिखाती और तैयार करती है- नए सितारे उभर रहे हैं, पर पुराना क्रम अभी विराम नहीं ले रहा. कप्तान रोहित शर्मा ने 2007 में पदार्पण किया था, पर 16 साल बाद भी वे टीम के सबसे धमाकेदार शॉट लगाने वाले बल्लेबाज हैं. कोहली और शर्मा की साझेदारी क्रिकेट के शुद्धतावादियों के लिए शास्त्रीय जुगलबंदी है, पर खुद खेल ही अब बिल्कुल अलग लय-ताल पर खेला जाता है.

क्रिकेट अब थका-मांदा खेल नहीं रह गया है, जो आहिस्ता-आहिस्ता खुलते नाटक के हिस्से के तौर पर वक्त के गुजरने के एहसास से परे खेला जाता हो. पांच दिन का टेस्ट क्रिकेट वजूद के संकट से गुजर रहा है. यही वजह है कि इंग्लैंड के हालिया खुले मिजाज और सकारात्मक रवैये (जिसे उनके कीवी कोच ब्रेंडन मैकुलम के नाम पर 'बैजबॉल’ कहा जाता है) ने इतने सारे दिल जीते हैं. यहां तक कि 50 ओवर के खेल की प्रासंगिकता की भी चीर-फाड़ की जा रही है- मिडिल ओवरों में गेंद को एक या दो रनों के लिए जूझते बल्लेबाजों को वाकई अब और भला कौन देखना चाहता है?
सफेद गेंद का क्रिकेट अब ऐसा खेल हो गया है जिसे पहचान पाना मुश्किल है. यह सुपरसोनिक रफ्तार से खेला जाता है जिसमें अनगढ़ ताकत, शारीरिक दमखम और निर्भीक ढंग से नई चीजें ईजाद करने की क्षमता को अहम खूबियों की तरह संजोया जाता है. दुनिया भर में टी20 लीग के बीच अब टी10 टूर्नामेंट और हर टीम को सौ गेंद खेलने सरीखे मुकाबले होने लगे हैं, जो भारी शोर-शराबे से भरे रॉक कंसर्ट से मिलते-जुलते माहौल में भारी भीड़ खींच रहे हैं. कॉर्पोरेट कंपनियों के सहारे के साथ आए अकल्पनीय धन को कतई न भूलें. पिछले साल के आईपीएल की सनसनी बने रिंकू सिंह अपनी फ्रेंचाइज के लिए खेलते हुए एक सीजन में उससे कहीं ज्यादा कमाते हैं जितना कपिल देव ने भारत के लिए खेलते हुए पूरे करियर में नहीं कमाया होगा.
बेहतरीन क्रिकेटर अपनी प्रतिभा को अब आम तौर पर इस सुनहरे युग के हिसाब से ढाल रहे हैं. भारतीय क्रिकेट से ऐसे अव्वल दर्जे के खिलाड़ी निकलकर आ रहे हैं जो अपने पूर्ववर्तियों के मुकाबले गेंद को ज्यादा जोर से और ज्यादा दूर मारते हैं (हालांकि उनके हाथों में बेहतर बल्ले भी हैं) और ऐसे हुनरमंद गेंदबाज भी, जिन्होंने खासकर बेहद अहम डेथ ओवरों में ज्यादा किस्म-किस्म की गेंदें फेंकने में महारत हासिल की है.
शुभमन गिल को पिछली गेंद पर शानदार ऑन ड्राइव के लिए झुकने के बाद तेज गेंदबाज को जोरदार प्रहार से छक्के के लिए सीमा पार भेजते देखना या जसप्रीत बुमराह को तेज बाउंसर फेंकने के तुरंत बाद छकाती धीमी गेंद फेंकते देखना असाधारण हुनर वाले खिलाड़ियों की प्रतिभा का जश्न मनाना है. कुलदीप यादव के रूप में संभावित गेम-चेंजर को न भूलें- पुरानी शैली की फिरकी का यह जादूगर क्रिकेट की सबसे मुश्किल कलाओं में से एक- लेफ्ट-आर्म रिस्ट स्पिन यानी बाएं हाथ की कलाई से गेंद को फिरकी देने में महारत हासिल कर रहा है.
अहम बात यह कि यह खेल पहले किसी भी वक्त से ज्यादा 'लोकतांत्रिक' और आकांक्षी हो गया है. विश्व कप में देश की नुमाइंदगी करने वाले खिलाड़ी हैरतअंगेज ढंग से विविध पृष्ठभूमियों से आए हैं. ऑटोरिक्शा चालक के बेटे मोहम्मद सिराज का हैदराबाद की सड़कों पर टेनिस बॉल क्रिकेट खेलने से अब नई गेंद से डर पैदा करने वाला गेंदबाज बनना भारतीय क्रिकेट के दिल में पल रहा शानदार सपना है.
वैसे ही जैसे उनके सीनियर तेज गेंदबाज मोहम्मद शमी हैं, जिन्होंने अपना शुरुआती क्रिकेट उत्तर प्रदेश के दूर-दराज के गांव में खेला था. जब टीमें कतार में होंगी, कॉमर्स ग्रेजुएट के. एल. राहुल की बगल में कक्षा नौ में पढ़ाई छोड़ देने वाले हार्दिक पांड्या खड़े होंगे. और क्यों नहीं, क्रिकेट के मैदान में एकमात्र योग्यता वंश नहीं, काबिलियत जो है. धनाढ्य भारतीय क्रिकेट बोर्ड को भले ही राजनैतिक रसूखदारों से जुड़े वीआईपी का गैर-जवाबदेह गुट चला रहा हो, पर यह खेल 'समान अवसर' देने वाले समाज का सुखद आईना बन गया है.
तो क्या यह असरदार ढंग से एकजुट 'नए भारत' की टीम 2023 का विश्व कप जीतेगी? निश्चित रूप से जीत सकती है. मगर वैश्विक टूर्नामेंट जीतना बहुत बारीक अंतर का मामला हो सकता है. पिछले विश्व कप के सम्मोहक फाइनल को याद कीजिए, जो एक अजीब-से बाउंडरी काउंट-बैक नियम के आधार पर जीता गया.
इंग्लैंड और न्यूजीलैंड दोनों का स्कोर बराबर था, पर सुपरओवर के बाद इंग्लैंड इसलिए जीत गया क्योंकि उसने ज्यादा चौके-छक्के मारे. खेल पहले के किसी भी वक्त के मुकाबले ज्यादा प्रतिस्पर्धी भी है. इस विश्व कप में नीदरलैंड के संभावित अपवाद को छोड़कर हरेक टीम टूर्नामेंट के हर गेम में इस भरोसे के साथ उतरेगी कि वह जीत सकती है. ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और पाकिस्तान सरीखी टीमें मैच जिताऊ खिलाड़ियों से भरी पड़ी हैं, जबकि दिलेर अफगानिस्तान भी खैबर दर्रे से कूच करते हुए आकर अचानक एक-दो उलटफेर कर सकता है.
अच्छी खबर यह है- पिछले तीन विश्व कप मेजबान देशों ने जीते हैं. अगर रोहित शर्मा और उनके जांबाज जबरदस्त उम्मीदों का दबाव संभाल सके, तो कोई वजह नहीं कि हम इस बार अहमदाबाद के नरेंद्र मोदी स्टेडियम में 19 नवंबर को फाइनल के दिन जीत की रोशनी से जगमगाती रात नहीं देख सकते. चंद्रयान की चमक और जी20 के शिखर सम्मेलन की गूंज के बाद प्रधानमंत्री के नामधारी स्टेडियम में विश्व कप की जीत आम चुनाव से पहले भाजपा के 'राइजिंग इंडिया' के नगाड़े को और ऊंचा स्वर दे सकती है. क्रिकेट का कार्निवाल आपका इंतजार कर रहा है. इस तमाशे का आनंद लीजिए.
हम फिर बनेंगे विश्व विजेता?
https://www.indiatodayhindi.com/magazine/cover-story/story/20231011-will-our-boys-win-icc-cricket-world-cup-2023-687862-2023-10-04
क्रिकेट वर्ल्ड कप में भारत को बढ़त
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लेखक टीवी टुडे के कंसल्टिंग एडिटर और डेमोक्रेसी इलेवन: द ग्रेट इंडियन क्रिकेट स्टोरी के लेखक हैं.