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गंदी बात नहीं

अभी हाल तक वर्जना रहे नपुंसकता, समलैंगिकता, मासिक धर्म और लिव-इन रिलेशनशिप अब मुख्य धारा के सिनेमा का विषय बने. संवेदनशील निर्माता-निर्देशकों-लेखकों की इसमें बड़ी भूमिका

नए जमाने का कंटेंटः अब ये गंदी बात नहीं
नए जमाने का कंटेंटः अब ये गंदी बात नहीं
अपडेटेड 9 अगस्त , 2019

शुभ मंगल सावधान फिल्म के एक दृश्य में शादी के ठीक पहले मुदित (आयुष्मान खुराना) और सुगंधा (भूमि पेडणेकर) एक कमरे में बंद हो जाते हैं. बाहर लड़का-लड़की पक्ष के सारे लोग कुछ 'होने-न होने' पर शर्त लगाते हैं. थोड़ी देर बाद बाहर आने पर मुदित कहता है, ''हो गया'' जबकि सुगंधा कहती है, ''नहीं हुआ''. फिर मुदित सुगंधा से कहता है कि ''हां हां हो गया''. सुगंधा भी मुस्कराती है और सारे लोग झूम उठते हैं. इसी तरह से लुकाछिपी फिल्म के एक दृश्य में गुड्डू (कार्तिक आर्यन) और रश्मि (कृति सैनन) लिव-इन रिलेशनशिप के लिए किराए के एक घर में ठहरते हैं तो रात में रश्मि के बेड पर आने से पहले गुड्डू तकिए के नीचे कई फ्लेवर के कंडोम देखकर खुशी से झूम उठता है.

दोनों दृश्यों में बात सेक्स की होने के बावजूद लेखक-निर्देशक ने इसे इतने गुदगुदाने वाले अंदाज में रचा है कि सिनेमाहाल में दर्शक असहज महसूस करने की बजाए हंसते हैं. दोनों फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर खूब कमाई की. वैसे भारतीय समाज में लिव-इन को मान्यता नहीं है और नपुंसकता पर खुलकर बात करने की तो बात ही छोड़ दें. फिल्मकारों ने ऐसे एडल्ट कंटेंट को भी युक्ति के साथ बाकायदा पारिवारिक दर्शकों के बीच परोसा. लुका छिपी के निर्माता दिनेश विजन इसे एडल्ट या बोल्ड कंटेंट की बजाए ''नए जमाने का कंटेंट'' कहते हैं. ''ये सारी चीजें पहले से हो रही थीं पर हम फिल्म में डालने से डर रहे थे. अभी हिम्मत दिखाई तो बिजनेस में भी कामयाबी मिल रही है.'' शुभ मंगल सावधान के पटकथा लेखक हितेश केवल्या इसे दूसरे ढंग से पकड़ते हैं, ''दर्शकों को एडल्ट कंटेंट के प्रति सहज  बनाया जा रहा है.

अब ये गंदी बात नहीं रही. हम यौन संबंधी बातों को इस तरह से पेश करते हैं जिससे मां-बाप को भी लगता है कि बच्चे उनके साथ कुछ गलत चीज नहीं देख रहे.'' इसी हफ्ते रिलीज सेक्स आधारित कॉमेडी फिल्म खानदानी शफाखाना की निर्देशक शिल्पी दासगुप्ता भी ऐसे कंटेंट की वकालत में कहती हैं, ''इंटरनेट के जमाने में सब कुछ खुला हुआ है. अब सेक्स पर कम्युनिकेशन गैप नहीं होना चाहिए. सिनेमा के माध्यम से भी प्रगति की लहर आ रही है. आखिर सिनेमा समाज का दर्पण है.''

एडल्ट कंटेंट वाली हिंदी फिल्में पहले भी बनती थीं और उसके दर्शक भी वयस्क हुआ करते थे. पर अब उस मजमून को पेश करने का तरीका बदल गया है. ऐसी फिल्में अब पारिवारिक दर्शकों को खींचकर लाने में कामयाब हो रही हैं और बनाने वालों को कमाई का नया बाजार मिल गया है. कल तक ऐसी कहानी में जो विषय या मुद्दे होते थे, उसे बोल्ड या सेक्स के नाम पर बेचा जाता था. अब वे गुदगुदाते हास्य की शक्ल में आ रहे हैं, जिनमें संवाद भी आम बोलचाल वाले होते हैं. यह बच्चों के लिए भी गंदी बात नहीं होती. सेंसर बोर्ड से यू या यूए सर्टिफिकेट मिल जाता है. संवेदनशील पटकथा लेखकों का इसमें बड़ा रोल है. शिल्पी के शब्दों में, ''गौतम मेहरा ने खानदानी शफाखाना की स्क्रिप्ट जिस तरह से लिखी है उस पर सोनाक्षी सिन्हा जैसी हीरोइन ने न सिर्फ विश्वास जताया बल्कि वे सेक्स पर बात भी करती हैं.''

सिनेमा में नपुंसकता, लिव इन रिलेशनशिप, मासिक धर्म, गुप्त रोग या समलैंगिकता अब वर्जना नहीं रहे. स्कूलों में संभव न हो सकी यौन शिक्षा अब सिनेमा के जरिए आज की युवा पीढ़ी को मिल रही है. ऐसी फिल्मों के लिए निर्माता जोखिम भी उठा रहे हैं. विजन कामसूत्र, हिंदी मीडियम, स्त्री, लुकाछिपी जैसी फिल्में बना चुके हैं. शुजीत सरकार ने विकी डोनर जैसी क्लासिक फिल्म बनाई. अक्षय कुमार ने भी टॉयलेट और पैडमैन जैसी फिल्मों के जरिए जागरूकता पैदा करने की कोशिश की.'' हितेश स्पष्ट करते हैं कि हमें यूथ को बताना पड़ेगा, वे सही और गलत में अंतर करना सीखें. और लेखकों के लिए यह व्यक्तिगत जिम्मेदारी की तरह है. ''हम लाखों-करोड़ों दर्शकों के मन-मस्तिष्क को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं. यह औजार हमारे लिए जिंदा हैंड ग्रेनेड की तरह हैं. बहुत ही जिम्मेदारी के साथ हमको हैंडल करना होता है. एडल्ट कंटेंट के साथ कॉमेडी लिखना आसान नहीं.''

स्पर्म डोनर जैसे विषय को लेकर बनी विकी डोनर की सफलता ने ऐसे बोल्ड विषयों पर फिल्मों का दौर शुरू कर दिया. संवेदनशील फिल्मकारों ने अपने आस-पास से विषय उठाकर सिने प्रेमियों के सामने परोसा तो उन्हें पारिवारिक दर्शक मिल गए. कभी गुप्त ज्ञान और कामसूत्र जैसी फिल्मों को यौन शिक्षा के नाम पर पेश किया गया था लेकिन दर्शकों के लिए वे पारिवारिक फिल्में नहीं बन सकीं. आज सिनेमा में गुप्त ज्ञान की बातों को न सिर्फ सहजता से बताया जा रहा है बल्कि आम दर्शक भी इन पर परिवार के बीच चर्चा करने से हिचकिचाते नहीं. एडल्ट कंटेंट को आज की युवा पीढ़ी जिंदगी का हिस्सा मानने लगी है और पैडमैन देखकर पैड के हाइजिन को समझने लगी है.

शुभ मंगल सावधान में नपुंसकता पर जोर दिया गया तो लुकाछिपी में लिव इन रिलेशनशिप और बधाई हो में जवान बच्चों के होते हुए भी एक अधेड़ स्त्री गर्भवती होकर शर्मसार नहीं हुई. एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा में लेस्बियन की प्राकृतिक प्रेम कहानी है. कहानी-2 में बाल यौन शोषण पर फोकस किया गया जो घर-घर की कहानी है और ज्यादातर यह सच चार दीवारी से बाहर नहीं आ पाता. इस तरह की फिल्मों के लेखकों की पारखी नजरें समाज के उन हिस्सों पर हैं जिसे पहले पारिवारिक नजरिए से नहीं देखा जाता था.

उसमें सेक्स ही दिखता था. और उसका फिल्मांकन भी उसी तरह से होता था जिससे विषय के तौर पर वह एडल्ट होता था और अश्लील भी. लेकिन आज के दौर की ऐसी फिल्मों को अब दर्शक भरपूर मनोरंजन के लिए देखते हैं और उसके कंटेंट पर दिल खोलकर बात भी करते हैं. हंसी मजाक में ही सही, ऐसे कंटेंट से हमारे दर्शक जागरूक भी बन रहे हैं. माना जा सकता है कि सिनेमा भी अपना सामाजिक दायित्व पूरा कर रहा है.

इधर ऐसी फिल्मों के बिजनेस ने फिल्मकारों का हौसला बुलंद किया है. इन फिल्मों के बजट के मुकाबले कमाई कई गुना ज्यादा होती है. शुभ मंगल सावधान के फिल्मकार आनंद एल राय अब शुभ मंगल ज्यादा सावधान बना रहे हैं. यह धारा 377 पर आधारित है. आनंद के दिमाग में यह विषय उस वक्त आया जब केंद्र सरकार ने समलैंगिक संबंधों को कानूनी जामा पहनाया. हमारे समाज में बांझपन एक बड़ी समस्या है. इस विषय पर बन रही गुड न्यूज में अक्षय कुमार और करीना कपूर हैं. यह फिल्म आइवीएफ तकनीक पर बात करती है. ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली बिल की समस्या पर बत्ती गुल मीटर चालू बनाने वाले श्रीनारायण सिंह अब सरोगेट मदर पर फिल्म के लिए काम कर रहे हैं. शुभ मंगल ज्यादा सावधान के पटकथा लेखक हितेश ही हैं. इसके विषय के साथ न्याय कर सकें, इसलिए पहली बार इसका निर्देशन भी वे ही कर रहे हैं.

वे कहते हैं, ''यह फिल्म बहुत जरूरी है. आर्टिकल 377 हटाने का काम सही दिशा में उठाया हुआ कदम है. अच्छी बात यह है कि आम जनता में इस विषय को अब रखा जा सकता है. अब इस पर बातें हो सकती हैं. हम भी कोशिश कर रहे हैं कि सहजता के साथ बात कह दें और हमारी बात आम जनता तक मनोरंजक ढंग से पहुंच जाए. इन सब चीजों को लेकर एक सकारात्मकता रहनी चाहिए.''

इस तरह की फिल्मों के अभिनेताओं की सोच भी सकारात्मक रहती है. शुभ मंगल ज्यादा सावधान में समलैंगिक की भूमिका करने वाले आयुष्मान खुराना इस बिरादरी के पक्ष में बात करते हैं. खानदानी शफाखाना के बादशाह भी कहते हैं कि सेक्स पर खुलकर बात होनी चाहिए. लुकाछिपी की ऐक्ट्रेस कृति सैनन का मानना है, ''कोई फिल्म अलग बात कर रही है, कोई मुद्दा डिस्कस कर रही है, कंटेंट में अलग है तो ऐसी फिल्म में काम करना अच्छा लगता है.''

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