अब वैसे तो कई भारतीय कलाकारों को ब्रिटिश प्रोडक्शंस में काम करने का मौका मिला है, लेकिन मुख्य भूमिका बिरलों को ही मिली है. भारतीय सिनेमाघरों में 6 अक्तूबर को अपनी धमक दिखाने जा रही विक्टोरिया ऐेंड अब्दुल में अली फजल ऑस्कर विजेता अभिनेत्री डेम जूडी डेंच के सामने भी कद में बड़े और राजसी लगते हैं. वे एक भारतीय क्लर्क अब्दुल करीम के किरदार में हैं, जिसे महारानी विक्टोरिया की सेवा में 1887 में लंदन भेजा गया था. उनसे प्रभावित महारानी ने उन्हें अपना उर्दू शिक्षक और भारत का सलाहकार बना लिया, जहां वे कभी नहीं गई थीं. हिंदी सिनेमा में एंट्री के आठ साल बाद भी अपनी जगह पुख्ता करने की जद्दोजहद में लगे फजल के लिए इस तरह की भूमिका से बढ़ा कद बेकार नहीं जाएगा. दिलचस्प है कि उन्हें इस रोल के लिए बुलाया नहीं गया था.
फिर भी जब उनके टैलेंट एजेंट दोस्त ने उन्हें इस प्रोजेक्ट की जानकारी दी तो उन्होंने कास्टिंग डायरेक्टर नंदिनी श्रीकांत को दो ऑडिशन क्लिप भेज दिए. जल्दी ही वे मुंबई के ताज लैंड्स ऐंड होटल में कई ऐक्टर्स के साथ अपनी लाइनें पढऩे का इंतजार कर रहे थे. इसके बाद लंदन में कई और टेस्ट देने के बाद वे मुंबई लौट आए और उसी रात उनके लीड रोल निभाने की पुष्टि कर दी गई. फजल बताते हैं, ''मेरे दिमाग में जैसे एक आवाज गूंज रही थी. हां! मैं सबको पीछे छोड़ दूंगा. यह इस बात का सबूत था कि प्रतिभा काम आती है.'' तो क्या हॉलीवुड में काम मिलना बॉलीवुड से आसान है? ''यही विडंबना है. बॉलीवुड में जगह बनानी मुश्किल है, जो कि मेरा अपना मैदान है.''
वेनिस फिल्म फेस्टिवल में प्रीमियर के बाद वेराइटी पत्रिका में समीक्षक ने लिखा कि फजल ने अब्दुल की भूमिका ''ऐसी मधुर आवाज और विनम्र मिठास के साथ निभाई है जो कि पहले कभी इस स्तर की नहीं देखी गई.'' हॉलीवुड रिपोर्टर ने लिखा कि अब्दुल के चरित्र में उतने आयाम नहीं हैं, पर ''फजल इसे अपने आकर्षक व्यक्तित्व और प्रभावशाली आंखों की वजह से खासी गंभीरता से पेश कर पाते हैं और डेंच को काफी पीछे छोड़ देते हैं.''
फजल कहते हैं कि वे अपने करियर में नए अध्याय की शुरुआत को लेकर बेहद उत्सुक हैं. निजी जिंदगी में भी 30 साल के इस ऐक्टर के वेनिस प्रीमियर में ऋचा चड्ढा के साथ अपने रिश्ते का इजहार करने के बाद पांव जमीन पर नहीं हैं. बॉलीवुड में 3 ईडियट्स (2009) में कैमियो से शुरू होकर हॉलीवुड में क्रयूरियस 7 (2005) जैसी फिल्म करने की उनकी यह यात्रा काफी लंबी रही है. पहली बार मुख्य भूमिका उन्हें सईद मिर्जा की एक फिल्म में मिली थी, जो कि रिलीज ही नहीं हो पाई. उनकी पहली बड़ी फिल्म आल्वेज कभी कभी भी क्रलॉप साबित हुई. मुख्यधारा में सफलता दिलाने वाली उनकी पहली उल्लेखनीय फिल्म फुकरे (2013) थी, जहां उनकी शांत भूमिका ने फिल्म के बाकी ज्यादा ऊर्जावान चरित्रों को पीछे छोड़ दिया. फजल वेब सीरीज की दौड़ में शामिल होने वाले शुरुआती ऐक्टर्स में से रहे. वाइ फिल्म्स की दिलचस्प वेब सीरीज बैंग बाजा बारात में फजल ने दूल्हा बनने की तैयारी कर रहे युवा की भूमिका निभाई. यह उनके करियर में मील का पत्थर साबित हुई.
दिल्ली में जन्मे फजल लखनऊ में पले-बढ़े और दून स्कूल, देहरादून तथा सेंट जैवियर्स, मुंबई से पढ़ाई की. बचपन का ज्यादातर समय मां और नाना-नानी के साथ गुजरा क्योंकि उनके अब्बू पश्चिम एशिया में रहते थे. वैसे ऐक्टिंग उनकी पहली पसंद नहीं थी. असल में वे पायलट बनना चाहते थे, लेकिन फजल का कहना है कि उनके मां-बाप इसके पक्ष में नहीं थे. इसलिए जब उन्होंने ऐक्टिंग को चुना तो उनके मां-बाप इससे असहमत नहीं हो पाए. इस तरह फजल ने खुद को अपने आदर्शों—दिलीप कुमार, राजेश खन्ना, गुरु दत्त और शाहरुख खान की तरह बनने के सपने में झोंक दिया. उन्होंने नाटकों से अपना करियर शुरू किया. उन्होंने डैमेजेज नाटक में निमरत कौर और क्रैब में अघ्र्य लाहिड़ी के साथ काम किया. तो अब जब उनकी अंतरराष्ट्रीय पहचान बन चुकी है, बॉलीवुड से उन्हें कुछ और मिलने की उम्मीद है? ''देखिए, मैं सिर्फ उम्मीद कर सकता हूं. शर्तें नहीं तय कर सकता. मैं आगे बढ़कर यह नहीं कह सकता कि सुनो, मैं यह चाहता हूं.''
फिलहाज फजल ने जूलियन बेलफ्रेंज एसोसिएट्स एजेंसी के साथ साइन किया है जिनके क्लाइंट जूड लॉ और डेंच भी हैं. फिलहाल उनके पास एक अंतरराष्ट्रीय प्रोजेक्ट है. उन्हें उम्मीद है कि बॉलीवुड में भी उन्हें प्रोजेक्ट मिलेंगे. ''पिछले तीन साल में हमारी फिल्म इंडस्ट्री काफी बदल गई है. जिसे हम पहले 'ऑफबीट सिनेमा' कहते थे, अब अच्छा सिनेमा माना जाने लगा है और यह आगे और बेहतर होगा.'' तो यह सुनिश्चित करने के लिए कि वे इस बदलाव का हिस्सा बनें, फजल कहीं और नहीं जाने वाले.

