बात 2007 के आखिर की है. कैफे कॉफी डे के संस्थापक और चेयरमैन वी.जी. सिद्धार्थ ने कनाडा के अरबपति प्रेम वत्स के साथ डिनर करने बंगलुरू से मुंबई की फ्लाइट पकड़ी.
उस मुलाकात के दौरान वत्स के एक पूर्वानुमान ने पहले से ही चल रही सर्द हवा में और ठंडक घोल दी: वत्स ने कहा कि अमेरिकी सब-प्राइम मॉर्टगेज मार्केट (बुरे कर्ज को गिरवी रखने) में बुलबुला उठ रहा है और जल्द फूट जाएगा. अगले ही साल प्रेम की बात सच साबित हो गई.
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक भारत में जन्मे और फेयरफैक्स फाइनेंशियल होल्डिंग के सीईओ प्रेम ने 2008 की मंदी के दस्तक देने से पहले ही स्टॉक मार्केट से अपनी कंपनी के 16 अरब डॉलर निकाल लिए और उन्हें नगदी तथा सुरक्षित समझे जाने वाले ट्रेजरी बॉन्ड्स के रूप में संभालकर रख लिया.
सिद्धार्थ बताते हैं कि प्रेम ने आत्मविश्वास भरे लहजे में कहा, ''कुछ गड़बड़ चल रही है.” प्रेम के 15 साल पुराने दोस्त सिद्धार्थ ने उनकी तारीफ करते हुए कहा, ''2008 में फेयरफैक्स कनाडा में सबसे ज्यादा मुनाफा कमाने वाली कंपनी थी क्योंकि प्रेम पुख्ता ढंग से बाजार की नब्ज को पकड़ते हैं.”
प्रेम पांच साल पहले भी सबकी नजरों में चढ़ सकते थे लेकिन आज की तारीख में सब लोगों की आंखों में एक ही सवाल तैर रहा है कि क्या चौतरफा समस्याओं से जूझ रही स्मार्टफोन निर्माता कंपनी ब्लैकबेरी लिमिटेड को 4.7 अरब डॉलर में खरीदने का उनका कदम समझदारी भरा है? उद्योग जगत के जानकारों का मानना है कि यह जोखिम भरा हो सकता है.
कनाडा के वॉरेन बफेट कहे जाने वाले प्रेम बहुत सोच-समझकर ही इन्वेस्ट करते हैं. जानकारों के इस संदेह की वजह वाजिब है क्योंकि ब्लैकबेरी को इतना आकर्षक प्रस्ताव कभी नहीं मिला था. पिछले दिनों फेयरफैक्स ने ब्लैकबेरी की 10 फीसदी हिस्सेदारी के लिए 17 डॉलर प्रति शेयर के हिसाब से रकम चुका भी दी जबकि उसके शेयर का बाजार भाव 9 डॉलर से भी कम चल रहा था.
63 वर्षीय प्रेम इससे बेपरवाह हैं. उन्होंने न्यूज एजेंसी रॉयटर से कहा, ''इस हाइ-प्रोफाइल सौदे को लेकर मुझे भरोसा नहीं होता तो मैं इसमें हाथ नहीं डालता.”
प्रेम को खुद पर भरोसा है और इसकी वजह है उनका मजबूत ट्रैक रिकॉर्ड. 1971 में आइआइटी मद्रास से पढ़ाई करने वाले प्रेम आइआइएम अहमदाबाद में प्रवेश नहीं पा सके. लेकिन उन्हें खुद पर यकीन था. इसी दम पर उन्होंने हैदराबाद की कुछ कंपनियों में नौकरी करने के साथ-साथ अगले साल इसी प्रतिष्ठित मैनेजमेंट कॉलेज की प्रवेश परीक्षा पास कर ली.

एक महीने के बाद वे मैनेजमेंट की पढ़ाई करने यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ओन्टारियो चले गए. उन्होंने अपने करियर की शुरुआत टोरंटो में कन्फेडरेशन लाइफ इंश्योरेंस कंपनी से की और 1984 में हैम्बलिन वत्स इन्वेस्टमेंट काउंसिल के सह-संस्थापक बने. यह कंपनी अब फेयरफैक्स का हिस्सा है.
अगले ही साल उन्होंने मर्केल फाइनेंशियल होल्डिंग्स पर नियंत्रण कर लिया और 1987 में इसका नाम बदलकर फेयरफैक्स (फेयर और फ्रेंड्ली अधिग्रहण का शॉर्ट) रख दिया. सिद्धार्थ आंखों में चमक के साथ कहते हैं, ''वे गैर-मामूली हिन्दुस्तानी हैं.
जब वे कनाडा गए थे तो उनकी जेब में महज आठ डॉलर थे. उनकी इन्वेस्टमेंट ही इस बात का इशारा करती है कि उनका दिमाग गुणा-भाग में माहिर है और उनके पास अपनी कंपनी के लिए खास नजरिया भी है.”
आने वाले वर्षों में प्रेम समझदार इन्वेस्टर के रूप में उभरे. उन्होंने कुछ अजीबोगरीब लेकिन ठोस कारोबारी फैसलों से फेयरफैक्स को वैश्विक बीमा और इन्वेस्टमेंट कंपनी में तब्दील कर दिया. प्रेम ने जब बतौर ऑन्ट्रप्रेन्यर 1985 में करियर शुरू किया तो उनके इंश्योरेंस कारोबार की कीमत 1.7 करोड़ डॉलर थी जो 2012 में 7.2 अरब डॉलर तक पहुंच गई.
पिछले साल फेयरफैक्स की बीमा और अन्य इन्वेस्टमेंट से आय 8 अरब डॉलर और फायदा 54 करोड़ डॉलर पर पहुंच गया. फेयरफैक्स ने जिन कंपनियों में इन्वेस्ट किया उनमें से एक कनाडा की 66 साल पुरानी अंतिम संस्कार संबंधी सेवाएं मुहैया कराने वाली कंपनी भी है. यह कंपनी 41 कब्रिस्तान और 92 अंतिम संस्कार पार्लर चलाती है.
वत्स ने एक बार अपने शेयरधारकों से मजाक में कहा, ''कुछ भी हो जाए लेकिन यह कामकाज कभी मंदा नहीं पड़ सकता.” भारतीय कारोबारी समूह उन्हें अग्रणी इन्वेस्टर मानते हैं. आरपीजी समूह के चीफ फाइनेंशियल ऑफिसर सुब्बा राव अमृतालुरु कहते हैं, ''इन्वेस्टर कम्युनिटी में वे किसी ऐसे भारतीय शख्स को नहीं जानते जिसका कद प्रेम से ऊंचा हो.”
प्रेम के ग्रुप ने पिछले साल भारत में दो बड़ी इन्वेस्टमेंट की. उन्होंने पहले तो थॉमस कुक (इंडिया) का 75 फीसदी और इसके सहारे बंगलुरू की एचआर प्रबंधन का काम करने वाली फर्म आइकेवाइए ह्यूमन कैपिटल सॉल्यूशन का हिस्सा खरीदा. उनके ग्रुप ने आइसीआइसीआइ लोम्बार्ड जनरल इंश्योरेंस में भी 26 फीसदी हिस्सेदारी खरीद ली.

प्रेम ने 1985 में अपनी पहली सालाना रिपोर्ट में कहा था, ''हमारी इन्वेस्टमेंट की नीति उन मूल्यों पर आधारित है जिन्हें बेन ग्राहम ने बनाया है और जिस पर उनके काबिल शिष्य वॉरेन बफेट चल रहे हैं. इसका आशय यह हुआ कि हम वित्तीय रूप से मजबूत कंपनियों के शेयर उस दाम पर खरीदेंगे जो अपनी लंबी अवधि में मिलने वाली कीमतों से कम पर है.
हमें आनन-फानन में दो-चार महीनों में नहीं बल्कि लंबे समय के बाद ही मुनाफा कमाने की उम्मीद रखनी चाहिए.” प्रेम भले ही कनाडा में हों लेकिन उनकी नजरें भारत पर भी हैं. उद्योग जगत के विशेषज्ञों का मानना है कि वे थॉमस कुक कंपनी को वॉरेन बफेट की इन्वेस्टमेंट व्हीकल फर्म बर्कशायर हैथवे की तर्ज पर विकसित करेंगे.
जब प्रेम ने पिछले साल आइकेवाइए में 74 फीसदी हिस्से को 260 करोड़ रु. में खरीदा तो इस काम के लिए उन्होंने थॉमस कुक का इस्तेमाल किया न कि मॉरिशस स्थित रजिस्टर्ड निवेश कंपनी फेयरब्रिज कैपिटल का. उनके एक दोस्त के मुताबिक ''प्रेम सीधे-सपाट नहीं, बल्कि तिरछी नजर से भी चीजों को देखते हैं.”
फेयरफैक्स के अधिकारियों के मुताबिक प्रेम की निगाहें ऐसी कंपनियों पर रहती हैं जिनकी बुनियाद बहुत मजबूत हैं और उनमें लंबी पारी खेलने का दमखम होता है. आइकेवाइए के मामले में इसे सहज ही देखा जा सकता है. यह कंपनी अपने प्रतिद्वंद्वियों से कहीं ज्यादा मुनाफा कमा रही है और तीन साल में इसका मुनाफा एक अरब डॉलर को पार कर जाएगा.
पिछले साल इस अधिग्रहण से पहले प्रेम से मुलाकात करने वाले इस कंपनी के सह-संस्थापक और सीईओ अजित इसाक ने कहा, ''पहले 30 सेकंड में ही आपको पता चला जाएगा कि आप किसी ऐसे आदमी से बात कर रहे हैं जो बदलाव लाने में सक्षम है; उनकी साफगोई सीधे दिल को छूती है.”
फेयरफैक्स के एक सीनियर अधिकारी के अनुसार प्रेम पॉजिटिव सोच वाले शख्स हैं. वे चीजों का अंदाजा बहुत जल्द लगा लेते हैं. उन्हें यह पता होता है कि किसी सौदे में क्या जोखिम है और क्या गलत हो सकता है. 2007 की शुरुआत में प्रेम ने आइसीआइसीआइ बैंक के युवा निदेशक और उस समय रिटेल बैंकिग संभाल रहे वी. वैद्यनाथन को रिचर्ड बुकस्टेबर की वित्तीय संकटों की वजहों पर लिखी किताब अ डेमन ऑफ आवर ओन डिजाइन पढऩे के लिए भेजी.
आइसीआइसीआइ बैंक के बोर्ड में उस समय शामिल प्रेम खुद भी रिटेल बैंकिंग के विचार के बहुत बड़े समर्थक हैं. इन दिनों कैपिटल फर्स्ट लि. के प्रमुख वैद्यनाथन कहते हैं, ''प्रेम टिकाऊ तरीके से कारोबारी ढांचों पर यकीन रखते हैं. वे कहते हैं कि अगर आप दीर्घकालिक व्यापार खड़ा करने में सक्षम हैं तो आप बुरे वक्त से पार पा ही लेंगे.”
प्रेम की ताकत किसी संभावित सौदे की भटका देने वाली जानकारियों के बीच से अपने काम की सूचनाएं बगैर चूके निकाल लेना है. प्रेम अपने शेयरधारकों से खत के जरिये अनौपचारिक ढंग से बात करते हैं. मार्च में लिखे एक ऐसे ही पत्र में प्रेम ने सिटी ग्रुप इंक के पूर्व सीईओ चक प्रिंस के उस बयान को निशाने पर लिया.
जिसमें प्रिंस ने इस बैंक के जरूरत से ज्यादा प्राइवेट इक्विटी खरीदने संबंधी सवाल पर एक पत्रकार से कहा था, ''जब तक म्युजिक बज रहा है, तब तक आपको डांस करना चाहिए.” अगले ही साल बैंक को 45 अरब डॉलर के बेलआउट की जरूरत आ पड़ी. इस पर प्रेम ने चुटकी लेते हुए अपने पत्र में कहा, ''यह डांस बहुत महंगा पड़ा. हमें म्युजिक रुकने का इंतजार करना चाहिए. बिजनेस में अजनबी की दया पर निर्भर नहीं रहना चाहिए.”
—साथ में आनंद अधिकारी
उस मुलाकात के दौरान वत्स के एक पूर्वानुमान ने पहले से ही चल रही सर्द हवा में और ठंडक घोल दी: वत्स ने कहा कि अमेरिकी सब-प्राइम मॉर्टगेज मार्केट (बुरे कर्ज को गिरवी रखने) में बुलबुला उठ रहा है और जल्द फूट जाएगा. अगले ही साल प्रेम की बात सच साबित हो गई.
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक भारत में जन्मे और फेयरफैक्स फाइनेंशियल होल्डिंग के सीईओ प्रेम ने 2008 की मंदी के दस्तक देने से पहले ही स्टॉक मार्केट से अपनी कंपनी के 16 अरब डॉलर निकाल लिए और उन्हें नगदी तथा सुरक्षित समझे जाने वाले ट्रेजरी बॉन्ड्स के रूप में संभालकर रख लिया.
सिद्धार्थ बताते हैं कि प्रेम ने आत्मविश्वास भरे लहजे में कहा, ''कुछ गड़बड़ चल रही है.” प्रेम के 15 साल पुराने दोस्त सिद्धार्थ ने उनकी तारीफ करते हुए कहा, ''2008 में फेयरफैक्स कनाडा में सबसे ज्यादा मुनाफा कमाने वाली कंपनी थी क्योंकि प्रेम पुख्ता ढंग से बाजार की नब्ज को पकड़ते हैं.”
प्रेम पांच साल पहले भी सबकी नजरों में चढ़ सकते थे लेकिन आज की तारीख में सब लोगों की आंखों में एक ही सवाल तैर रहा है कि क्या चौतरफा समस्याओं से जूझ रही स्मार्टफोन निर्माता कंपनी ब्लैकबेरी लिमिटेड को 4.7 अरब डॉलर में खरीदने का उनका कदम समझदारी भरा है? उद्योग जगत के जानकारों का मानना है कि यह जोखिम भरा हो सकता है.
कनाडा के वॉरेन बफेट कहे जाने वाले प्रेम बहुत सोच-समझकर ही इन्वेस्ट करते हैं. जानकारों के इस संदेह की वजह वाजिब है क्योंकि ब्लैकबेरी को इतना आकर्षक प्रस्ताव कभी नहीं मिला था. पिछले दिनों फेयरफैक्स ने ब्लैकबेरी की 10 फीसदी हिस्सेदारी के लिए 17 डॉलर प्रति शेयर के हिसाब से रकम चुका भी दी जबकि उसके शेयर का बाजार भाव 9 डॉलर से भी कम चल रहा था.
63 वर्षीय प्रेम इससे बेपरवाह हैं. उन्होंने न्यूज एजेंसी रॉयटर से कहा, ''इस हाइ-प्रोफाइल सौदे को लेकर मुझे भरोसा नहीं होता तो मैं इसमें हाथ नहीं डालता.”
प्रेम को खुद पर भरोसा है और इसकी वजह है उनका मजबूत ट्रैक रिकॉर्ड. 1971 में आइआइटी मद्रास से पढ़ाई करने वाले प्रेम आइआइएम अहमदाबाद में प्रवेश नहीं पा सके. लेकिन उन्हें खुद पर यकीन था. इसी दम पर उन्होंने हैदराबाद की कुछ कंपनियों में नौकरी करने के साथ-साथ अगले साल इसी प्रतिष्ठित मैनेजमेंट कॉलेज की प्रवेश परीक्षा पास कर ली.

एक महीने के बाद वे मैनेजमेंट की पढ़ाई करने यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ओन्टारियो चले गए. उन्होंने अपने करियर की शुरुआत टोरंटो में कन्फेडरेशन लाइफ इंश्योरेंस कंपनी से की और 1984 में हैम्बलिन वत्स इन्वेस्टमेंट काउंसिल के सह-संस्थापक बने. यह कंपनी अब फेयरफैक्स का हिस्सा है.
अगले ही साल उन्होंने मर्केल फाइनेंशियल होल्डिंग्स पर नियंत्रण कर लिया और 1987 में इसका नाम बदलकर फेयरफैक्स (फेयर और फ्रेंड्ली अधिग्रहण का शॉर्ट) रख दिया. सिद्धार्थ आंखों में चमक के साथ कहते हैं, ''वे गैर-मामूली हिन्दुस्तानी हैं.
जब वे कनाडा गए थे तो उनकी जेब में महज आठ डॉलर थे. उनकी इन्वेस्टमेंट ही इस बात का इशारा करती है कि उनका दिमाग गुणा-भाग में माहिर है और उनके पास अपनी कंपनी के लिए खास नजरिया भी है.”
आने वाले वर्षों में प्रेम समझदार इन्वेस्टर के रूप में उभरे. उन्होंने कुछ अजीबोगरीब लेकिन ठोस कारोबारी फैसलों से फेयरफैक्स को वैश्विक बीमा और इन्वेस्टमेंट कंपनी में तब्दील कर दिया. प्रेम ने जब बतौर ऑन्ट्रप्रेन्यर 1985 में करियर शुरू किया तो उनके इंश्योरेंस कारोबार की कीमत 1.7 करोड़ डॉलर थी जो 2012 में 7.2 अरब डॉलर तक पहुंच गई.
पिछले साल फेयरफैक्स की बीमा और अन्य इन्वेस्टमेंट से आय 8 अरब डॉलर और फायदा 54 करोड़ डॉलर पर पहुंच गया. फेयरफैक्स ने जिन कंपनियों में इन्वेस्ट किया उनमें से एक कनाडा की 66 साल पुरानी अंतिम संस्कार संबंधी सेवाएं मुहैया कराने वाली कंपनी भी है. यह कंपनी 41 कब्रिस्तान और 92 अंतिम संस्कार पार्लर चलाती है.
वत्स ने एक बार अपने शेयरधारकों से मजाक में कहा, ''कुछ भी हो जाए लेकिन यह कामकाज कभी मंदा नहीं पड़ सकता.” भारतीय कारोबारी समूह उन्हें अग्रणी इन्वेस्टर मानते हैं. आरपीजी समूह के चीफ फाइनेंशियल ऑफिसर सुब्बा राव अमृतालुरु कहते हैं, ''इन्वेस्टर कम्युनिटी में वे किसी ऐसे भारतीय शख्स को नहीं जानते जिसका कद प्रेम से ऊंचा हो.”
प्रेम के ग्रुप ने पिछले साल भारत में दो बड़ी इन्वेस्टमेंट की. उन्होंने पहले तो थॉमस कुक (इंडिया) का 75 फीसदी और इसके सहारे बंगलुरू की एचआर प्रबंधन का काम करने वाली फर्म आइकेवाइए ह्यूमन कैपिटल सॉल्यूशन का हिस्सा खरीदा. उनके ग्रुप ने आइसीआइसीआइ लोम्बार्ड जनरल इंश्योरेंस में भी 26 फीसदी हिस्सेदारी खरीद ली.

प्रेम ने 1985 में अपनी पहली सालाना रिपोर्ट में कहा था, ''हमारी इन्वेस्टमेंट की नीति उन मूल्यों पर आधारित है जिन्हें बेन ग्राहम ने बनाया है और जिस पर उनके काबिल शिष्य वॉरेन बफेट चल रहे हैं. इसका आशय यह हुआ कि हम वित्तीय रूप से मजबूत कंपनियों के शेयर उस दाम पर खरीदेंगे जो अपनी लंबी अवधि में मिलने वाली कीमतों से कम पर है.
हमें आनन-फानन में दो-चार महीनों में नहीं बल्कि लंबे समय के बाद ही मुनाफा कमाने की उम्मीद रखनी चाहिए.” प्रेम भले ही कनाडा में हों लेकिन उनकी नजरें भारत पर भी हैं. उद्योग जगत के विशेषज्ञों का मानना है कि वे थॉमस कुक कंपनी को वॉरेन बफेट की इन्वेस्टमेंट व्हीकल फर्म बर्कशायर हैथवे की तर्ज पर विकसित करेंगे.
जब प्रेम ने पिछले साल आइकेवाइए में 74 फीसदी हिस्से को 260 करोड़ रु. में खरीदा तो इस काम के लिए उन्होंने थॉमस कुक का इस्तेमाल किया न कि मॉरिशस स्थित रजिस्टर्ड निवेश कंपनी फेयरब्रिज कैपिटल का. उनके एक दोस्त के मुताबिक ''प्रेम सीधे-सपाट नहीं, बल्कि तिरछी नजर से भी चीजों को देखते हैं.”
फेयरफैक्स के अधिकारियों के मुताबिक प्रेम की निगाहें ऐसी कंपनियों पर रहती हैं जिनकी बुनियाद बहुत मजबूत हैं और उनमें लंबी पारी खेलने का दमखम होता है. आइकेवाइए के मामले में इसे सहज ही देखा जा सकता है. यह कंपनी अपने प्रतिद्वंद्वियों से कहीं ज्यादा मुनाफा कमा रही है और तीन साल में इसका मुनाफा एक अरब डॉलर को पार कर जाएगा.
पिछले साल इस अधिग्रहण से पहले प्रेम से मुलाकात करने वाले इस कंपनी के सह-संस्थापक और सीईओ अजित इसाक ने कहा, ''पहले 30 सेकंड में ही आपको पता चला जाएगा कि आप किसी ऐसे आदमी से बात कर रहे हैं जो बदलाव लाने में सक्षम है; उनकी साफगोई सीधे दिल को छूती है.”
फेयरफैक्स के एक सीनियर अधिकारी के अनुसार प्रेम पॉजिटिव सोच वाले शख्स हैं. वे चीजों का अंदाजा बहुत जल्द लगा लेते हैं. उन्हें यह पता होता है कि किसी सौदे में क्या जोखिम है और क्या गलत हो सकता है. 2007 की शुरुआत में प्रेम ने आइसीआइसीआइ बैंक के युवा निदेशक और उस समय रिटेल बैंकिग संभाल रहे वी. वैद्यनाथन को रिचर्ड बुकस्टेबर की वित्तीय संकटों की वजहों पर लिखी किताब अ डेमन ऑफ आवर ओन डिजाइन पढऩे के लिए भेजी.
आइसीआइसीआइ बैंक के बोर्ड में उस समय शामिल प्रेम खुद भी रिटेल बैंकिंग के विचार के बहुत बड़े समर्थक हैं. इन दिनों कैपिटल फर्स्ट लि. के प्रमुख वैद्यनाथन कहते हैं, ''प्रेम टिकाऊ तरीके से कारोबारी ढांचों पर यकीन रखते हैं. वे कहते हैं कि अगर आप दीर्घकालिक व्यापार खड़ा करने में सक्षम हैं तो आप बुरे वक्त से पार पा ही लेंगे.”
प्रेम की ताकत किसी संभावित सौदे की भटका देने वाली जानकारियों के बीच से अपने काम की सूचनाएं बगैर चूके निकाल लेना है. प्रेम अपने शेयरधारकों से खत के जरिये अनौपचारिक ढंग से बात करते हैं. मार्च में लिखे एक ऐसे ही पत्र में प्रेम ने सिटी ग्रुप इंक के पूर्व सीईओ चक प्रिंस के उस बयान को निशाने पर लिया.
जिसमें प्रिंस ने इस बैंक के जरूरत से ज्यादा प्राइवेट इक्विटी खरीदने संबंधी सवाल पर एक पत्रकार से कहा था, ''जब तक म्युजिक बज रहा है, तब तक आपको डांस करना चाहिए.” अगले ही साल बैंक को 45 अरब डॉलर के बेलआउट की जरूरत आ पड़ी. इस पर प्रेम ने चुटकी लेते हुए अपने पत्र में कहा, ''यह डांस बहुत महंगा पड़ा. हमें म्युजिक रुकने का इंतजार करना चाहिए. बिजनेस में अजनबी की दया पर निर्भर नहीं रहना चाहिए.”
—साथ में आनंद अधिकारी

