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ऑनलाइन कन्फेशंस: तुम सबसे कुछ कहना है, पर यह क्यों बताऊं कि मैं कौन?

मन की गहराइयों में छिपी बातें हों या कैंपस की ताजा खबर. भारतीय युवा इंटरनेट के परदे के पीछे खुद को छिपा अपने मन का हर वह राज बयां कर रहे हैं, जो वे अपने परिवार या दोस्तों से साझा नहीं कर सकते.

अपडेटेड 25 नवंबर , 2013

आइ-पैड हाथ में लिए श्वेता सिंह (बदला हुआ नाम) केमेस्ट्री लैब से तेजी से निकली और नजदीक की कॉफी शॉप में चली गई. क्लासेज खत्म हो चुकी थीं, अब बारी फेसबुक की थी. एक ऐसी दुनिया में कुछ मिनट अपने दिल का गुबार निकाल लेना जहां पहचान अनजानी रहती है-कोई नाम नहीं, कोई तस्वीर नहीं. बस मन के कपाटों और राज को एक विशाल नेटवर्क पर खोलकर रख देना. उनका यकीन सिर्फ अपने आइ-पैड स्क्रीन और उस पर नुमायां होते सोशल मीडिया पर है.

उनके पोस्ट प्त 504 और 506 को पढ़ें तो उसमें लिखा है, ‘‘मैंने आज हैश पी.’’ ‘‘मैं आज एक लड़की संग हमबिस्तर हुई और मुझे लगता है, उसके लिए मेरे दिल में कुछ है.’’ धड़ाधड़ प्रतिक्रियाएं आने लगीं; कोई उसे डांट रहा था तो कोई तसल्ली और कोई सुझाव दे रहा था. दो साल पहले मुंबई महानगर में कदम रखने वाली, कॉलेज में सेकंड इयर की छात्रा कहती है, ‘‘मैं नहीं चाहती कि कोई मेरी शख्सियत का स्याह पहलू देखे. अगर मेरे मम्मी-पापा ने यह देख लिया तो वे मुझे वापस घर बुला लेंगे.’’

यूनिवर्सिटी, कॉलेजों और इंस्टीट्यूट का युवा वर्ग फेसबुक पर मन की सारी गांठें खोल रहा है. वह ऐसे राज खोल रहा है, जिसे वह रिश्तेदारों या दोस्तों के साथ नहीं बांट सकता. अपने दिल के गुबार को हल्का करने से लेकर कैंपस के ताजा गॉसिप और अपने किसी प्रिय के बिछडऩे की खबर तक-सोशल मीडिया नई पीढ़ी का राजदार, थेरेपिस्ट, काउंसिलर, सब कुछ बन गया है. मैथमेटिक्स के एग्जाम में नकल की? सीनियर पर दिल आ गया है लेकिन कहने में शर्म आती है? कन्फेशन साइट्स अपने दिल का हाल बताने का बेहतरीन जरिया हैं. दिल पर चोट लगी हो, प्रोफेसर के साथ कोई शरारत की हो या कैंटीन के किस्से हों, इन साइट्स, ब्लॉग्स और पेजेज पर सारे राज उड़ेल दिए जाते हैं.

दिल्ली के क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. रिपन सिप्पी का कहना है, ‘‘कुछ लोगों के लिए ऑनलाइन कन्फेशन (अपराध स्वीकार करना) बेहद वास्तविक होता है. इंटरनेट उनके सामने एक ऐसी दुनिया पेश कर रहा है, जहां उन पर फैसले नहीं थोपे जाते. वहीं, उनकी बातों पर व्यक्तिगत रूप से गौर करने वाले लोग भी मौजूद होते हैं. असल जिंदगी में हो सकता है कि आप जो कह रहे हैं उस पर किसी का ध्यान न जाए, इंटरनेट पर बातें अमर हो जाती हैं.’’

यह फौरी चलन है या हमेशा रहेगा?
इस रुझान को फॉलो करने वाले छात्र-छात्राएं कैंपस में ‘कन्फेशन  पेजेज’ पेश कर रहे हैं. मसलन सेंट जेवियर्स कॉलेज गोवा कन्फेशंस (244 लाइक्स) और आइआइएम कन्फेशंस (8,000 लाइक्स) कॉलेज की गॉसिप मैग्जीन की तरह पढ़े जाते हैं. कोलकाता की जादवपुर यूनिवर्सिटी के छात्रों के लिए बनाए गए पेज जेयू कन्फेशंस के एडमिनिस्ट्रेटर अंशुमान घोष कहते हैं, ‘‘यह चलन हमेशा नहीं रहने वाला; कुछ महीने पहले ‘‘टिप्स’’ नाम से पेज रखे गए थे. यह अमेरिका के आइवी लीग कॉलेजों में से एक में शुरू हुआ और यहां तक आ पहुंचा.’’ हालांकि कॉलेज के अधिकारी इस चलन से खुश नहीं हैं. दिल्ली की लेडी श्रीराम कॉलेज की प्रिंसिपल मीनाक्षी गोपीनाथ कहती हैं, ‘‘ये ऐसे पेजेज हैं जिन्हें छात्रों ने शुरू किया है और वे ही इन्हें चलाते हैं. इनके लिए कोई आधिकारिक मंजूरी नहीं होती. इनमें दी गई सामग्री के लिए कॉलेज जवाबदेह नहीं है.’’

किसी की मौत पर अफसोस जाहिर करना या बीमार पडऩे पर चिंता जताना फेसबुक पर ताजा चलन है. पिछले साल 22 वर्षीय ऋत्विक घोष (नाम बदला हुआ) की सड़क हादसे में मौत होने पर उनकी फेसबुक प्रोफाइल पर पहले आने वाले पोस्ट में से एक था, ‘‘मुझे तुम्हारी याद आ रही है. तुम मुझे छोड़कर कैसे चले गए?’’ कभी-कभार यह हास्यास्पद हो जाता है. मुंबई के 25 वर्षीय छात्र चंद्रेश मान कहते हैं, ‘‘मेरे लिए अफसोस जताना बेहद निजी बात है. मैं नहीं चाहता पूरी दुनिया इसे जाने. पिछले महीने मेरी गर्लफ्रेंड का हाथ टूट गया और वह मुझसे खफा थी कि उसके फेसबुक वॉल पर मैंने क्यों नहीं पोस्ट किया कि मुझे उसकी कितनी याद आ रही है?’’

मजा, रोमांच और मरहम
सभी पेजेज पर अपने गंभीर किस्म के राज खोले गए हों, जरूरी नहीं. कॉलेज के कन्फेशन पेज पर जाकर अपने मन की सारी बातें खोलकर रखना आज का नया कैंपस मंत्र है. अपने कॉलेज के कन्फेशन पेज को लाइक करने वाली बंगलुरू के सोफिया कॉलेज की पूर्व छात्रा रोशनी सिंह कहती हैं, ‘‘यह मैसेज जल्द-से-जल्द फैलाने वाली बात है क्योंकि लोग अकसर ऑनलाइन रहते हैं. दूसरा जब आपको यह पक्का नहीं होता कि सामने वाला इस खबर पर कैसी प्रतिक्रिया करेगा, ऐसे में ऑनलाइन मैसेज भेजने से आप तुरंत होने वाली प्रतिक्रिया को झेलने से बच जाते हैं.’’ तमिलनाडु में सोशल मीडिया कन्फेशन पेज के चलन की शुरुआत करने वाले आइआइटी-चेन्नै के 4,000 ‘‘लाइक्स’’ हैं, जिनमें ज्यादातर पोस्ट्स में टीचर की शिकायत या बेवफाई का दुखड़ा भरा होता है.

कॉलेजों के बीच की दुश्मनी के किस्सों से लेकर सबसे चर्चित जोड़े की गुटरगूं तक, सब खोल कर रख दिया जाता है क्योंकि पहचाने जाने का कोई डर जो नहीं. मुंबई यूनिवर्सिटी कन्फेशन प्त 2  में बताया गया है, ‘‘एचआर और जय हिंद के बीच कुछ सीरियस इश्यूज हैं...वे हमेशा लड़ते क्यों रहते हैं?’’ गुलाब या कार्ड देना पुरानी बात है, जेवियर्स कन्फेशंस के फेसबुक पेज पर छात्र ने अपने प्यार का इजहार कुछ यूं किया, ‘‘जब हम पहली बार मिले तो तुम्हारे फ्रैंक और फ्रेंडली अंदाज से मैं तुम्हारी ओर खिंचा चला आया.’’

कई वजहें हैं मन की गांठें खोलने की हजारों लोगों के सामने मन की बातें कहने के पीछे कई वजहें हैं. एलएसआर कॉलेज की दिशा गुप्ता (बदला हुआ नाम) कहती हैं, ‘‘आपकी समस्या पर आपको कई सुझव मिल जाएंगे, जो गिने-चुने दोस्तों से नहीं मिल सकते.’’ यह बता देने के बाद कि उसका ब्वॉयफ्रेंड है और वह सिगरेट पीती है, उसका मन काफी शांत है. ‘‘यह बात जबलपुर में रहने वाले मम्मी-पापा नहीं समझ सकते.’’

जेवियर्स कन्फेशंस पर एक पोस्ट में लिखा है, ‘‘मैं तो शर्म से गड़ जाऊं अगर मेरे कॉलेज सीनियर को मालूम हो जाए कि मैं उसे चाहती हूं. लेकिन मैंने अपनी पहचान जाहिर किए बगैर अब यह बात कह दी है तो हल्का महसूस कर रही हूं.’’ कुछ लोगों के लिए यह भीड़ में सुकून तलाशने जैसा है. बंगाल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी कन्फेशंस पेज के एडमिनिस्ट्रेटर कहते हैं, ‘‘कभी-कभी इसके जरिए ऐसे सीनियर लोगों से मिलने में मदद मिलती है, जो ऐसे हालात से गुजर चुके होते हैं.’’

बंगलुरू में माइंड-बॉडी क्लीनिक के संस्थापक और साइकिएट्रिस्ट श्याम भट कहते हैं, ‘‘इंटरनेट ढाल की तरह काम करता है. इसमें अंतरंगता ऐसे आवरण में लिपटी होती है, जो आपके लिए उलझनें नहीं पैदा करती. नजदीकी रिश्तों में अकसर इस तरह की मुश्किलें आती हैं.’’ आइआइटी न निकाल पाने पर पिता के बुरे बर्ताव का शिकार हुए इंजीनियरिंग ग्रेजुएट दीपक घोष (बदला हुआ नाम) का कन्फेशन  देखिए, ‘‘अगर मेरी तरह का लूजर यह कर सकता है तो तुम क्यों नहीं कर सकते?’’ इसे जेवियर्स कन्फेशंस पेज पर 2,00,000 लाइक्स मिले.

कुछ के लिए ऑनलाइन कन्फेशंस अपनी बात कहने का जरिया है, तो कुछ इसका दुरुपयोग कर रहे हैं. 31 मार्च को मुंबई पुलिस के साइबर सेल ने सिटी कॉलेज के पांच अनधिकृत कन्फेशंस पेज पर कड़ी कार्रवाई की, जिसमें टीचर और छात्राओं के बारे में अश्लील चीजें डाली गई थीं. पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘‘इसमें पहचान छिपी रहने के कारण कुछ लोग नाजायज फायदा उठाने लगे हैं जो दंडनीय अपराध है.’’ सोशल मीडिया पर लोगों के राज, अफसोस और चटखारेदार खबरों की बाढ़ आ गई है. कन्फेशंस पेज नेट की दुनिया में कैंटीन जैसा माहौल पेश कर रहे हैं. इसके चटपटे व्यंजनों का जायका लेने के लिए आप भी जुड़ जाएं.

-साथ में आयशा अलीम और मालिनी बनर्जी

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