बिहार चुनाव : फर्स्ट फेज के सभी 18 जिलों में पिछली बार से ज्यादा वोटिंग, आंकड़े किसकी बढ़त दिखा रहे?

बिहार विधानसभा के पहले फेज में रिकॉर्ड 64 फीसद वोटिंग हुई, जिसके बाद पक्ष और विपक्ष दोनों चुनाव परिणाम अपने पक्ष में होने का दावा कर रहे हैं

बिहार विधानसभा चुनाव 2025
बिहार विधानसभा चुनाव 2025

6 नवंबर को बिहार विधानसभा चुनाव के पहले फेज में ऐतिहासिक 64.66 फीसद मतदान हुआ. नीतीश कुमार के भरोसेमंद ललन सिंह और डिप्टी सीएम विजय सिन्हा के क्षेत्र (मुंगेर व लखीसराय) में सबसे ज्यादा वोटिंग हुई. 

1952 से अब तक बीते 73 सालों में सिर्फ 4 बार (1967, 1980, 1990, 2010) बिहार विधानसभा चुनाव में वोटर टर्नआउट 5 फीसद से ज्यादा बढ़ा, जिनमें से 3 बार सत्ता बदल गई है.

इस बार भी विधानसभा चुनाव में मतदान प्रतिशत बढ़ने का ट्रेंड साफ दिख रहा है. ऐसे में हमने पहले चरण की सभी 18 जिलों की 121 सीटों का एनालिसिस किया. डेटा एनालिसिस और एक्सपर्ट्स के जरिए वोटिंग टर्नआउट बढ़ने के मायने समझते हैं - 

बिहार चुनाव 2025

इस बार बिहार विधानसभा चुनाव के पहले फेज में 3.75 करोड़ मतदाताओं में से करीब 2.42 करोड़ ने वोट किया है. इस बार पहले फेज में जो सीटें हैं, उन 121 सीटों पर 2020 विधानसभा चुनाव में 3.71 करोड़ मतदाता थे. तब वोटिंग 55.81 फीसद हुई थी. यानी पिछले बार 2.07 करोड़ लोगों ने वोट किया था.  

अब तक के ट्रेंड को देखें तो ज्यादा वोटिंग को अक्सर सत्ता-विरोधी लहर का संकेत माना जाता रहा है. हालांकि, ऐसा मानना पूरी तरह से सही नहीं है. कई बार बढ़े हुए वोटिंग टर्नआउट ने सत्ताधारी दलों को ही और ज्यादा मजबूत किया है. 2010 का बिहार विधानसभा चुनाव इसका उदाहरण है.

2025 विधानसभा चुनाव में वोटर टर्नआउट बढ़ने की क्या वजह है?

पॉलिटिकल एक्सपर्ट अमिताभ तिवारी के मुताबिक, इस बार वोटर टर्नआउट बढ़ने के दो प्रमुख वजह हो सकते हैं-

1. राजनीतिक पार्टियों के बीच जोरदार कॉम्पटीशन: बिहार के सभी प्रमुख दल इस बार अपने पक्ष में परिणाम होने का दावा कर रहे हैं. RJD हो या JDU सभी दलों के कार्यकर्ता उत्साहित हैं. इस बार के चुनाव में करीबी मुकाबला है. यही वजह है कि हर पार्टी अपने-अपने पक्ष में जनता को आसानी से मोबिलाइज कर पा रहा है. इसी का परिणाम है कि वोटर टर्नआउट बढ़ा है.

2. महिलाएं हो सकती हैं बड़ी वजह : पहले फेज के चुनाव में कितनी महिलाओं ने वोट किया, इसका डेटा आना बाकी है. इस विधानसभा NDA और महागठबंधन दोनों की ओर से महिलाओं के लिए योजनाओं का वादा किया गया है. नीतीश सरकार ने तो चुनाव से पहले ही महिला रोजगार योजना के तहत करोड़ों महिलाओं के खाते में 10-10 हजार रुपए की पहली किस्त डाल दी है. संभव है महिलाएं इस वजह से पोलिंग बूथ तक गई, जिससे वोटर टर्नआउट बढ़ा.

इसके अलावा, कुछ एक्सपर्ट्स अलग-अलग मीडिया संस्थान को दिए इंटरव्यू में छठ, SIR और जनसुराज को प्रमुख वजह मान रहे हैं. हालांकि, अभिताभ तिवारी इन्हें वोटर टर्नआउट बढ़ने की छोटी वजह मानते हैं, उनके मुताबिक ये फैक्टर मजबूत वजह नहीं हैं.

क्या वोटर लिस्ट से कुछ लोगों के नाम हटने की वजह से वोटर टर्नआउट बढ़े हैं?

पॉलिटिकल एक्सपर्ट अमिताभ बिहार में वोटर टर्नआउट बढ़ने के इस दावे को खारिज करते हैं. अमिताभ के मुताबिक, 2020 में बिहार में कुल मतदाताओं की संख्या 7.06 करोड़ थी, जो 2025 में बढ़कर 7.43 करोड़ हो गई है. मतलब मतदाताओं की संख्या घटी नहीं बल्कि बढ़ी है. ऐसे में यह तर्क बिल्कुल सही नहीं है. 

वोटर टर्नआउट बढ़ने का नीतीश, तेजस्वी या प्रशांत किशोर को फायदा मिलेगा?

अमिताभ बताते हैं कि बिहार में NDA वर्सेस महागठबंधन की लड़ाई है. प्रशांत किशोर को अगर 5 फीसद से ज्यादा वोट मिले तो निश्चित तौर पर वे राज्य में तीसरी पसंद बनकर उभरेंगे. हालांकि, इस बार मुख्य लड़ाई NDA और महागठबंधन के बीच है. इस बार सिर्फ दो परिस्थितियों में से एक देखने को मिल सकती है :

पहला- अगर महिलाओं का वोटिंग बढ़ा: अगर ऐसा हुआ तो नीतीश कुमार एक बार फिर सत्ता में लौट आएंगे. संभव है कि NDA को पिछली बार से ज्यादा सीटें मिले. नीतीश कुमार की पार्टी की सीटों में भी इजाफा हो सकता है. 

बिहार में SIR के बाद महिला मतदाताओं की संख्या में कमी आई है , जो प्रति 1,000 पुरुषों पर 907 महिलाओं से घटकर मात्र 892 रह गई है. 2020 के पिछले विधानसभा चुनावों में 59.7 फीसद महिला मतदाताओं ने मतदान किया था, जो उनके पुरुष समकक्षों से कहीं अधिक था. पिछली बार पुरुषों ने 54.5 फीसद मतदान किया था. 

दूसरा- अगर पुरुषों का वोटिंग बढ़ा: इस बार पहले चरण में कुल 3.75 करोड़ मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करने के पात्र थे. जिनमें 1.98 करोड़ पुरुष और 1.76 करोड़ महिला मतदाता शामिल थे. 

इसके अलावा 85 वर्ष से अधिक आयु के लगभग 2 लाख मतदाताओं ने भी लोकतंत्र के इस महापर्व में भाग लिया. अगर पुरुषों का वोटर टर्नआउट बढ़ा तो इसका फायदा महागठबंधन को मिल सकता है. 

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बिहार चुनाव

जब बिहार में 16 फीसद कम वोटिंग होने से RJD का हो गया सूपड़ा साफ

बिहार का चुनावी इतिहास बताता है कि जब भी चुनाव में 5 फीसद से ज्यादा वोटिंग हुई, तो सरकार बदल गई. 1967 में पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में 7 फीसद ज्यादा 51.5 फीसद वोटिंग हुई. परिणाम ये हुआ कि पहली बार बिहार की सत्ता से कांग्रेस बाहर हो गई और गैर-कांग्रेसी दलों का गठबंधन सत्ता में आया.

इसी तरह 1980 में मतदान में करीब 7 फीसद (1977 में 50.5 फीसद से बढ़कर 57.3 फीसद) की वृद्धि हुई. इसके बाद जनता पार्टी सरकार गिर गई और कांग्रेस की वापसी हुई. 

1990 में एक बार फिर मतदान 56.3 फीसद से बढ़कर 62 फीसद हो गया. मतलब 5.8 फीसद की वृद्धि. एक बार फिर कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई और लालू प्रसाद यादव के जनता दल के लिए रास्ता साफ हो गया.

बिहार विधानसभा चुनाव 2005 ऐतिहासिक रहा. इस चुनाव में 16 फीसद कम वोटिंग हुई, लेकिन इस बार जो हुआ वह बिहार की राजनीति में इतिहास ही बन गया. दरअसल, इसी चुनाव में लालू यादव-राबड़ी देवी के नेतृत्व वाली सरकार का सूपड़ा साफ हो गया. नीतीश कुमार के नेतृत्व में NDA की सरकार बनी. दूसरी बार नीतीश कुमार ने सीएम पद की शपथ ली. तब से अब तक सिर्फ 9 महीने नीतीश कुमार सत्ता से बाहर रहे हैं. 

हालांकि, 2010 में एक मौका ऐसा भी आया जब पिछले विधानसभा की तुलना में 6.2 फीसद ज्यादा वोटिंग हुई, लेकिन JDU-BJP सत्ता में बनी रही. इस बार वोटिंग बढ़ने के बावजूद सत्ता में कोई बदलाव नहीं हुआ.

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नीतीश कुमार

नवंबर 2005 में जब नीतीश कुमार दूसरी बार मुख्यमंत्री बने, तब बिहार पर कुल कर्ज साढ़े 42 हजार करोड़ रुपए था. अब 20 साल बाद बिहार पर कुल कर्ज 3.19 लाख करोड़ से ज्यादा है. इसका मतलब हुआ कि नीतीश राज में बिहार पर 8 गुना ज्यादा कर्ज बढ़ा है. इसके बावजूद चुनावी साल में नीतीश सरकार लोकलुभावन योजनाओं पर खजाना खाली करने को उतारू है. इंडिया टुडे हिंदी पर यहां क्लिक कर पूरी स्टोरी पढ़िए.

 

 

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