
जिस कोसी नदी को 'बिहार का शोक' कहा जाता है, वही कोसी क्षेत्र JDU-BJP की राजनीति के लिए बड़ी राहत बनता है. कोसी क्षेत्र में 8 जिलों की 12 विधानसभा सीटें ऐसी है, जहां अति पिछड़ा वर्ग यानी EBC की आबादी अच्छी खासी है.
इन सीटों पर पिछले तीन विधानसभा चुनावों में JDU की सफलता दर 66 फीसद से ज्यादा रही है. कोसी क्षेत्र की इन 12 सीटों में से कम-से-कम 8 पर हर बार JDU ने जीत हासिल की है. खास बात यह है कि JDU जिस भी दल के साथ रही हो, उस गठबंधन को कोसी क्षेत्र की इन सीटों पर बढ़त मिली.
अब जानते हैं कि कोसी क्षेत्र में कुल कितनी सीटें आती हैं, इनमें EBC बहुल कौन-कौन सी 12 विधानसभा सीटें हैं और JDU इन सीटों पर इतनी मजबूत क्यों है?
कोसी क्षेत्र में कुल कितनी सीटें आती हैं?
कोसी नदी से प्रभावित क्षेत्र में कुल विधानसभा सीटों की संख्या लगभग 18 से 24 है. इस क्षेत्र में मुख्य रूप से कोसी प्रमंडल के तीन जिले—सुपौल, मधेपुरा और सहरसा शामिल हैं. इन तीन जिलों में कुल 12 विधानसभा सीटें हैं.
इसके अतिरिक्त, मधेपुरा, भागलपुर, पूर्णिया और कटिहार जिलों की लगभग 8 से 10 विधानसभा सीटें भी कोसी प्रभावित क्षेत्र में आती हैं.
हालांकि, इनमें से 12 सीटों पर EBC समुदाय की आबादी अच्छी-खासी है. ये सीटें JDU और NDA के लिए गेमचेंजर साबित होती रही हैं. पहले इन विधानसभा सीटों के बारे में जानते हैं :

कैसे कोसी क्षेत्र की ये सीटें JDU के लिए गेमचेंजर साबित हुई?
2020 विधानसभा चुनाव की बात करें तो मगध क्षेत्र की 26 सीटों पर पहले चरण में महागठबंधन के पक्ष में भारी मतदान हुआ था. इस क्षेत्र की 11 सीटों पर JDU तो वहीं 10 सीटों पर BJP के उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे थे.
नीतीश के नेतृत्व वाली JDU को यहां एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हुई, जबकि BJP को सिर्फ तीन सीटों पर जीत मिली. इस चुनाव में सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए स्थिति कठिन होती दिख रही थी, लेकिन फिर उसने उत्तर बिहार के कोसी और मिथिलांचल क्षेत्रों में विपक्ष पर भारी बढ़त हासिल की. इन्हीं क्षेत्रों में बढ़त हासिल करने की वजह से NDA की सत्ता में वापसी संभव हुई.
मिथिलांचल की 86 सीटों में से NDA ने 55 जबकि महागठबंधन ने 27 सीटें जीतीं. चार अन्य सीटें AIMIM और लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) जैसी अन्य पार्टियों ने जीतीं.
अब अगर कोसी क्षेत्र की बात करें तो NDA ने यहां की EBC बहुल 12 में से 11 सीटें जीतीं, जिनमें से 10 मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी JDU के खाते में गईं. इस क्षेत्र में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) केवल सिमरी बख्तियारपुर ही जीत पाई और सात सीटों पर दूसरे स्थान पर रही, जबकि कांग्रेस तीन सीटों पर दूसरे स्थान पर रही.
तब एक JDU नेता ने कहा था, "2020 में एक वक्त तो ऐसा लगने लगा था कि महागठबंधन सरकार बनाएगा. लेकिन, उत्तर बिहार ने NDA को बचा लिया, जिसने कोसी और मिथिलांचल क्षेत्रों में सबसे ज्यादा सीटें जीतीं."
2015 में जब JDU ने RJD के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था, तो कोसी क्षेत्र में महागठबंधन ने भारी जीत हासिल की थी, जिसमें नीतीश की पार्टी JDU ने आठ और RJD ने चार सीटें जीती थीं. BJP आठ सीटों पर दूसरे स्थान पर रही थी.
2010 में JDU-BJP गठबंधन ने इन 12 सीटों में से 11 सीटें जीती थीं, जिसमें JDU को आठ, BJP को तीन और राजद (महिषी) को एक सीट मिली थी.
हर साल उत्तर बिहार बाढ़ की चपेट में आता है, और लाखों लोग कुछ समय तक हवाई मार्ग से दी गई राहत सामग्री पर निर्भर होते हैं. बाढ़ का पानी उतरने पर वे मलबा समेटकर अपना जीवन फिर से संवारते हैं, लेकिन अगले साल कोसी नदी उसी कहानी को दोहराती है.
इन सबके बावजूद स्थानीय जदयू नेता यहां यह बात सफलतापूर्वक फैलाने में कामयाब रहे हैं कि बाढ़ राज्य सरकार के नियंत्रण में नहीं है. इसके पीछे दलील दी जाती है कि कोसी नदी का कहर नेपाल के छोड़े गए पानी के कारण होता है.
यह दावा करते हुए कि नीतीश बाढ़ प्रभावित लोगों को लेकर संवेदनशील और चिंतित हैं, जेडी(यू) प्रवक्ता अंजुम आरा कहते हैं, "नीतीशजी ने घोषणा की है कि प्राकृतिक आपदा से प्रभावित लोगों का राज्य के बजट पर पहला अधिकार है. नीतीश जी बाढ़ प्रभावितों की मदद करते हैं जबकि पूर्व सीएम लालू प्रसाद उन्हें बाढ़ के दौरान मछली खाकर गुजारा करने के लिए कहा करते थे."
पूर्व राजद विधायक यदुवंश कुमार ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए स्वीकार किया कि कोसी क्षेत्र की सामाजिक संरचना JDU के पक्ष में है. इस क्षेत्र के लोग राज्य सरकार की योजनाओं और पुनर्वास का लाभ मिलने के कारण सत्तारूढ़ पार्टी के साथ बने रहते हैं. हालांकि, उन्होंने दावा किया है कि आगामी चुनाव पिछली बार से अलग होंगे. यदुवंश के मुताबिक, "ओबीसी के बीच नीतीश की लोकप्रियता घट रही है और इसका असर चुनाव नतीजों पर पड़ सकता है.”
EBC नीतीश का समर्थन क्यों करते हैं?
EBC दलितों और पिछड़े वर्गों के बीच की सब-कैटेगरी हैं. नीतीश कुमार ने सत्ता में आने के बाद इन समुदायों को सशक्त करने के लिए कई फैसले लिए हैं. नीतीश कुमार ने लालू यादव और RJD का मुकाबला करने के लिए EBC समुदाय पर मजबूत राजनीतिक पकड़ बनाई है. परिणाम ये हुआ कि इन जातियों ने नीतीश कुमार को अपना नेता माना और नीतीश पिछले दो दशक से बिहार की सत्ता पर काबिज हैं.
हालांकि, अति पिछड़ी जातियों को सशक्त करने के लिए इस समुदाय से आने वाले पहले मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने काफी प्रयास किए. लेकिन नीतीश कुमार ने मुंगेरी लाल आयोग के सूचीबद्ध जातियों से भी ज्यादा जातियों को अति पिछड़ी श्रेणी में शामिल करने का ऐतिहासिक फैसला लिया.
नीतीश के इस फैसले से बिहार में अब अतिपिछड़ा जातियों की संख्या 94 से बढ़कर करीब 112 हो गई है. 2006 में नीतीश के मंत्रिमंडल ने जिला परिषदों, पंचायत समितियों और ग्राम पंचायतों में अति पिछड़ी जातियों के लिए 20 फीसद आरक्षण को मंजूरी दी, जिससे उन्हें जमीनी स्तर पर सत्ता में हिस्सेदारी मिली. इसके अलावा, मुख्यमंत्री ने इन समूहों के लिए कल्याणकारी योजनाओं की भी घोषणा की है.
बिहार में इनमें से केवल चार जातियों - तेली, मल्लाह, कानू और धानुक की जनसंख्या 2 फीसदी से अधिक है. जुलाहा ही एकमात्र ऐसी जाति है, जिनकी कुल आबादी 3.5 फीसद है. अन्य सात जातियां - नोनिया, चंद्रवंशी, नाई, बरहाई, धुनिया (मुस्लिम), कुम्हार और कुंजरा (मुस्लिम) - प्रत्येक की जनसंख्या 2 फीसद से कम है. शेष 100 अति पिछड़ी जातियों में से किसी की भी कुल जनसंख्या में 1 फीसद भी हिस्सेदारी नहीं है.
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