
नवंबर 2005 में जब नीतीश कुमार दूसरी बार मुख्यमंत्री बने, तब बिहार पर कुल कर्ज साढ़े 42 हजार करोड़ रुपए था. अब 20 साल बाद बिहार पर कुल कर्ज 3.19 लाख करोड़ से ज्यादा है.
इसका मतलब हुआ कि नीतीश राज में बिहार पर 8 गुना ज्यादा कर्ज बढ़ा है. इसके बावजूद चुनावी साल में नीतीश सरकार लोकलुभावन योजनाओं पर खजाने को खाली करने को उतारू है.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार फ्री बिजली, बेरोजगार ग्रेजुएट्स के लिए भत्ता, सामाजिक पेंशन योजना में वृद्धि और 75 लाख महिलाओं के खाते में 10 हजार ट्रांसफर करने जैसे बड़ी फ्रीबीज योजनाओं का ऐलान कर चुके हैं.
इन चुनावी घोषणाओं से राज्य के खजाने पर सालाना 10 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का अतिरिक्त बोझ पड़ने की संभावना है. ऐसे में सवाल है कि इन योजनाओं के लिए पैसा कहां से आएगा?
जानकार मानते हैं कि सरकार के पास इन योजनाओं को चलाने के लिए तीन ही विकल्प हैं-
1. केंद्र सरकार के खजाने से बिहार को अतिरिक्त पैसा मिले.
2. बिहार सरकार इन योजनाओं के लिए कर्ज ले.
3. विकास की योजनाओं में कटौती करे.
फ्रीबीज स्कीम सत्ता हासिल करने में भले ही मददगार साबित हों, लेकिन नई सरकार की वित्तीय स्थिति व आम आदमी की आर्थिक सेहत पर क्या असर होगा? नई सरकार के सामने क्या चुनौतियां होंगी? ऐसे सभी सवालों के जवाब जानने की कोशिश करते हैं-
‘फ्रीबीज’ स्कीम: नीतीश सरकार की 5 बड़ी चुनावी घोषणाएं
1. मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना: 75 लाख महिलाओं के खाते में 10 हजार रुपए भेजे जाएंगे
21 सितंबर को बिहार सरकार ने ऐलान किया कि मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत राज्य की 75 लाख महिलाओं के खाते में 10-10 हजार रुपए भेजे जाएंगे.
इसका लाभ उन महिलाओं को दिया जा रहा है, जो जीविका की स्वयं सहायता समूह से जुड़ी हैं. इसके बाद रोजगार के लिए महिलाओं की तैयारी का आकलन कर हर एक को 2 लाख रुपए तक की अतिरिक्त आर्थिक सहायता दी जाएगी.
26 सितंबर को यह पैसा महिलाओं के खाते में भेजा जाना है. मतलब साफ है कि सरकार सीधे-सीधे 750 करोड़ रुपए इस योजना के तहत पहली किस्त में खर्च कर रही है.
2. बिहार के लोगों को 125 यूनिट फ्री बिजली देने की घोषणा
17 जुलाई 2025 को सीएम नीतीश कुमार ने सोशल मीडिया पर लिखा, “एक अगस्त, 2025 से यानी जुलाई माह के बिजली बिल से ही राज्य के सभी घरेलू उपभोक्ताओं को 125 यूनिट तक बिजली का कोई पैसा नहीं देना पड़ेगा. इससे राज्य के कुल 1 करोड़ 67 लाख परिवारों को लाभ होगा.”
बाद में राज्य के डिप्टी सीएम और वित्त मंत्री सम्राट चौधरी ने कहा कि फ्री बिजली योजना पर चालू वित्त वर्ष में 3375 करोड़ रुपए अतिरिक्त खर्च होने की संभावना है.
3. सामाजिक सुरक्षा पेंशन : 400 रुपए प्रतिमाह से बढ़ाकर 1100 रुपए प्रतिमाह चाहिए
बिहार सरकार ने जुलाई 2025 से सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना के तहत वृद्धजनों, दिव्यांगजनों एवं विधवा महिलाओं की पेंशन 400 से बढ़ाकर 1100 रुपए प्रतिमाह देने का ऐलान किया.
इस फैसले से राज्य के 1 करोड़ 9 लाख 69 हजार 255 लाभार्थियों को सीधे-सीधे फायदा मिलेगा. इसके लिए बिहार सरकार पेंशन बजट में अतिरिक्त 3,594.42 करोड़ रुपए सालाना खर्च करेगी.
4. मुख्यमंत्री निश्चय स्वयं सहायता भत्ता: ग्रेजुएट बेरोजगारों को दो साल तक 1000 रुपए प्रतिमाह
18 सितंबर 2025 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बताया, "20-25 आयु वर्ग के वैसे स्नातक उत्तीर्ण युवक/युवतियां जो कहीं अध्ययनरत नहीं हैं तथा नौकरी/रोजगार हेतु प्रयास कर रहे हैं, उनका कोई स्वरोजगार नहीं है अथवा सरकारी, निजी, गैर सरकारी नियोजन प्राप्त नहीं है, को भी 1000 रुपए प्रतिमाह की दर से अधिकतम दो वर्षों तक मुख्यमंत्री निश्चय स्वयं सहायता भत्ता का भुगतान किया जाएगा.”
केंद्र सरकार के PLFS 2023-24 डेटा के आधार पर देखें तो संभावित रूप से 5-10 लाख ग्रेजुएट युवा इस योजना का लाभ उठा सकते हैं. अगर मान लें कि 8 लाख बेरोजगार ग्रेजुएट युवा ही इस योजना का लाभ उठाते हैं तो सरकारी खजाने पर सालाना अतिरिक्त 1000 करोड़ रुपए का बोझ पड़ सकता है.
5. पंचायत प्रतिनिधियों का वेतन बढ़ाकर डेढ़ गुना किया गया
चुनावी साल को देखते हुए 12 जून 2025 को बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने पंचायत प्रतिनिधियों का वेतन बढ़ाकर डेढ़ गुना करने का ऐलान किया.
इसके तहत मुखिया, उप मुखिया, वार्ड सदस्यों तथा सरपंच, उप सरपंच एवं पंचों का वेतन बढ़ाया गया. मुखिया जी को पहले 5000 रुपये मिलता और अब उन्हें 12500 रुपये प्रति माह मिलेंगे.
एक्सपर्ट्स की मानें तो इसपर बिहार सरकार का 1,500 करोड़ प्रति वर्ष खर्च हो सकते हैं. इससे पहले करीब 960 करोड़ प्रतिवर्ष खर्च हो रहे थे. यानी अब बिहार सरकार इस पर अतिरिक्त 550 करोड़ रुपए खर्च करेगी.
बिहार के हर आदमी पर 24 हजार रुपए से ज्यादा कर्जा
बिहार सरकार पर कुल कर्ज करीब 3 लाख 20 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा हो गया है. इस साल बिहार सरकार ने 3.16 लाख करोड़ रुपए का बजट पेश किया. जबकि केंद्रीय वित्त मंत्रालय के मुताबिक, मार्च 2024 में बिहार पर कुल कर्ज 3.19 लाख करोड़ रुपए था.
पिछले 17 महीने में इस कर्ज में और ज्यादा वृद्धि होने की आशंका है. अगर मार्च 2024 के आधार पर भी देखें तो इस साल के बिहार सरकार के बजट से करीब 3 हजार करोड़ ज्यादा राज्य पर कर्ज है.
बिहार जाति जनगणना 2023 के मुताबिक, राज्य की कुल आबादी अगर 13 करोड़ मान लें तो हर इंसान पर 24 हजार से ज्यादा कर्जा है. ध्यान रखने वाली बात यह है कि यह कर्जा पिछले साल का है. इस साल इसमें और ज्यादा बढ़ोतरी होने की आशंका है.
इन सबके बावजूद बिहार सरकार ने जिन 5 चुनावी योजनाओं की घोषणा की है, उन योजनाओं पर सालाना अतिरिक्त 10 हजार करोड़ रुपए का बोझ पड़ेगा.


बिहार ऑडिट एडवाइजरी बोर्ड के सदस्य अरुण कुमार पांडेय और एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट की अर्थशास्त्री अस्मिता गुप्ता के जरिए चुनावी घोषणाओं से राज्य की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले असर को समझते हैं-
क्या बिहार जैसे राज्य के लिए फ्रीबीज योजनाएं सही हैं?
बिहार ऑडिट एडवाइजरी बोर्ड के सदस्य अरुण कुमार पांडेय का कहना है कि कर्ज तभी सही होता है, जब हम उसका सदुपयोग कर सही जगह इंवेस्ट कर प्रॉफिट जेनरेट करते हैं. रेवड़ी योजनाओं पर खर्च करने या पेंशन देने के लिए कर्ज लेना बिल्कुल सही नहीं है.
बिहार की अर्थव्यवस्था अभी इस लायक नहीं हो पाई है कि प्रॉफिट जेनरेट करे. फिलहाल बिहार केंद्रीय सहायता से या फिर कर्ज के पैसे से इन योजनाओं को चला रहा है, जो सही नहीं है.
अर्थशास्त्री अस्मिता गुप्ता ने इंडिया टुडे से बात करते हुए कहा है कि देश में असमान विकास हो रहा है. 90 फीसदी इनकम एक फीसदी लोगों के हाथों में है. अगर बिहार की बात करें तो जातिगत जनगणना 2023 के मुताबिक, बिहार में 34.13 फीसद परिवार गरीब थे, जो प्रति माह 6,000 रुपए या उससे कम कमाते हैं. ऐसे में गरीबों के लिए सामाजिक सुरक्षा जरूरी है.
बिहार में इसी सामाजिक सुरक्षा के तहत सरकार जनकल्याणकारी योजनाओं की घोषणा करती है, जिसे आप फ्रीबीज कह रहे हैं. मैं मानती हूं कि गरीबों के लिए इस तरह की योजनाओं की जरूरत है. इसलिए भी क्योंकि बिहार में प्राइवेट कंपनियां कम हैं तो लोगों की सरकार पर निर्भरता ज्यादा है.
हालांकि, मेरा यह भी मानना है कि सरकार को बिजनेसमैन और पैसे वाले लोगों से वेल्थ टैक्स वसूलना चाहिए और उन पैसों का इस्तेमाल इन जनकल्याणकारी योजनाओं पर करना चाहिए. पर अफसोस कि भारत में ऐसा नहीं हो पा रहा है, जिससे सरकार पर कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है.
बिहार सरकार इतना कर्ज लेकर पैसा कहां खर्च कर रही है?
किसी दूसरे राज्यों की तरह बिहार सरकार भी कर्ज का पैसा डेवलपमेंट, इन्फ्रास्ट्रक्चर या फिर पब्लिक से जुड़ी योजनाओं पर खर्च करती है.
अर्थशास्त्री अस्मिता गुप्ता ने इंडिया टुडे को बताया कि बिहार सरकार इन पैसों को सिर्फ फ्रीबीज पर खर्च करती है, यह कहना सही नहीं है. पिछले एक दशक में बिहार में काफी डेवलपमेंट हुआ है. बिहार सरकार ने स्वास्थ्य, शिक्षा, महिला सशक्तिकरण और सड़क निर्माण पर काफी इन्वेस्ट किया है.
इसके अलावा इसरो ने हाल में बताया कि पिछले 10 साल में ‘नाइट लाइट इल्यूमिनेशन’ ग्रोथ पूरे देश में 47 फीसद है, जबकि बिहार में 400 फीसद है. ये विकास को नापने का एक पैमाना है, जिसमें रात के समय सैटेलाइट के जरिए देखा जाता है कि रात के समय कहां ज्यादा लाइट है और उसमें कहां ज्यादा ग्रोथ हुई है. मतलब सरकार ने पैसा इंफ्रास्ट्रक्चर पर भी खर्च किया है.
अस्मिता कहती हैं कि इसमें कोई दो राय नहीं कि बिहार पिछड़ा राज्य है, इसलिए काफी पैसा यहां इन योजनाओं पर खर्च होता है. बिहार में 1990 के बाद उदारीकरण का भी ज्यादा लाभ नहीं पहुंचा है. ऐसे में सरकार की जिम्मेदारी है कि वह जनकल्याणकारी योजनाओं पर खर्च कर लोगों की जीवन को बेहतर बनाए.
लंबे समय में इसका फायदा भी बिहार को मिलेगा. लड़कियों को साइकिल देकर नीतीश सरकार ने उन्हें सक्षम बनाया. अगर आपके लोग ही शिक्षित, स्वस्थ्य और कुशल नहीं होंगे तो रोजगार कैसे जेनरेट होगा? इसलिए मानव संसाधन पर पैसा खर्च करना जरूरी है.
नीतीश कुमार की चुनावी घोषणाओं से क्या कर्ज में दबी सरकार की सेहत पर कोई असर होगा?
निश्चित तौर पर इस तरह की घोषणाएं होंगी तो रेकरिंग इफेक्ट (वो खर्चा जो बार-बार होता है) आएगा और सरकार का खर्च हर महीने बढ़ता जाएगा. सामान्य तौर पर होता यह है कि केंद्र हो या फिर राज्य सरकार सत्ता में आने के बाद शुरू के तीन साल बजट के माध्यम से पब्लिक पर बोझ डालती है. चौथे साल स्थिति को सामान्य करती है. पांचवें साल पब्लिक की मांगों को पूरा करती हैं.
बिहार सरकार ने कई योजनाएं ऐसी लागू की हैं, जिनका रिजल्ट सरकार के स्तर पर शून्य है. जैसे फ्री बिजली योजना, इससे पब्लिक को तो सीधे फायदा हो रहा है, लेकिन इससे देश या राज्य को कोई बेनिफिट नहीं है.
बिहार ऑडिट एडवाइजरी बोर्ड के सदस्य अरुण कुमार पांडेय के मुताबिक, बिहार सरकार ने डेढ़ दर्जन से ज्यादा फ्रीबीज योजनाओं की न सिर्फ घोषणा की बल्कि इसे लागू भी कर दिया है. अब चुनावी समय में सरकार अन्य योजनाओं की घोषणा कर रही है.
वे बात आगे बढ़ाते हैं, "ऑडिट कमेटी में होने की वजह से जहां तक मैं समझता हूं, बिहार सरकार इन योजनाओं पर सालाना 50 हजार करोड़ से ज्यादा खर्च कर रही है. अब जिन नई योजनाओं की घोषणा हुई, उन पर अलग से खर्च होगा.”
अरुण कुमार पांडेय ने कहा, “मेरा मानना है कि नीतीश सरकार ने सत्ता बचाने के लिए इन योजनाओं की घोषणा की है. इन फ्रीबीज योजनाओं पर पैसा खर्च करने से बिहार के विकास के लिए चल रही योजनाओं पर असर होगा.”
बिहार सरकार कर्ज कम करने के लिए क्या कर सकती है?
पटना यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्र विभाग की पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. राजलक्ष्मी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि कर्ज कम करने के लिए बिहार सरकार को अपनी आय बढ़ानी होगी. इसके लिए जरूरी है रेवेन्यू कलेक्शन को सुदृढ़ करना.
इसके अलावा, आय के दूसरे साधन जिसमें मुख्य रूप से होल्डिंग टैक्स, स्टांप रजिस्ट्रेशन ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन ड्यूटी की पूरी प्रक्रिया को सिंगल विंडो के तहत करने की जरूरत है, ताकि आसानी से लोग इन सेवाओं के लिए पैसा दे सकें. लाइसेंस राज को बढ़ावा देने के बजाय निजी क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देना चाहिए.
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