उन लोगों की कहानियां जो अपनी मेहनत के दम पर ज़ीरो से बने हीरो

सामान्य या गरीब परिवारों में जन्मे पहली पीढ़ी के उद्यमियों ने जीवन के शुरू में इस कहावत को मानो अपना आदर्श बना लिया: अगर आप अपना सपना साकार करना चाहते हैं तो सोइए मत

Zero Se Hero
जीरो से हीरो

उद्यमी शब्द का अर्थ है कार्य संपन्न होने तक उसमें जुटे रहना. और ऐसा तभी होता है जब व्यक्ति सफलता हासिल करने के लिए हद दर्जे तक प्रेरित हो. प्रेरणा कई बार अपने हालात को बदलने की उत्कट इच्छा से मिलती है. उधर, गरीबी, बेकसी, मजबूरी और लाचारी. हर इंसान इनसे बचने की पूरी कोशिश करता है. लेकिन कुछ लोग अपने प्रयासों से हालात बदल देते हैं. इंडिया टुडे की 37वीं वर्षगांठ के अवसर पर हमने ऐसे ही 20 लोगों का चयन किया है, जिन्होंने अपनी लगन के बूते संपदा का सृजन किया और जो अपने साथ दूसरे लोगों की जिंदगी को भी आसान बना रहे हैं.

अर्थव्यवस्था के फैलने और अमीरों की संख्या बढ़ने के बावजूद देश में वंचित लोगों की संख्या पर खास असर नहीं हुआ है. पिछले साल आई ऑक्सफैम की रिपोर्ट सर्वाइवल ऑफ द रिचेस्ट: द इंडिया स्टोरी के मुताबिक, 2021 में देश के एक फीसद अमीरों के पास 40.5 फीसद से ज्यादा संपत्ति थी, जबकि देश के गरीबों के पास जिंदा रहने के लिए बुनियादी सामान तक नहीं हैं. इस रिपोर्ट के मुतबिक, 2012 से 2021 के दौरान सृजित संपत्ति का 40 फीसद हिस्सा 1 फीसद लोगों के पास गया और मात्र 3 फीसद नीचे के 50 फीसद लोगों के पास.

सबसे अमीर 10 फीसद के पास 72 फीसद और पांच फीसद लोगों के पास 62 फीसद है, जो कोविड पूर्व के वर्षों के मुकाबले ज्यादा है. ऊपर के एक फीसद लोगों के पास नीचे की आधी आबादी के मुकाबले 13 गुना ज्यादा संपत्ति है. यही नहीं, 64 फीसद माल एवं सेवा कर नीचे की 50 फीसद आबादी से जमा किया गया और ऊपर के 10 फीसद से मात्र 4 फीसद. 2022 की क्रेडिट स्विस रिपोर्ट के मुताबिक, 2021 तक देश में 7.96 लाख करोड़पति थे, जिनकी तादाद 2026 तक 16.32 लाख हो जाएगी. फोर्ब्स की लिस्ट के मुताबिक, अमेरिका और चीन के बाद भारत में सबसे ज्यादा 169 अरबपति हैं.

इन सबके बावजूद आय में जबरदस्त विषमता है. यह बहुत लोगों के लिए प्रगति की राह में पहाड़ है. इन चुनौतियों से सिर्फ हौसले और जज्बे से ही निबटा जा सकता है. देश के इंडस्ट्रियल क्लस्टर्स में ऐसे उद्यमी मिल जाएंगे जिन्होंने अपनी सूझ-बूझ और लगन से अपनी तकदीर बदल दी. मिसाल के तौर पर 61 वर्षीय फकीर चंद मोघा को लें. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक दलित परिवार के घर में आंख खोलने वाले मोघा की गुरबत का आलम यह था कि उनके दो भाइयों ने कुपोषण की वजह से बचपन में ही दम तोड़ दिया.

वे भी कुपोषण के शिकार थे, लिहाजा माता-पिता उन्हें एक फकीर के पास ले गए, जिसकी वजह से उनका नाम फकीर चंद रख दिया गया. उन्होंने बड़े होने पर पिता के साथ मजदूरी की और फिर दूध बेचा. बाद में राजमिस्तरी का काम शुरू किया और अपनी कंस्ट्रक्शन कंपनी शुरू की. लेकिन कंपनी के लिए बैंक से लोन नहीं ले सके, दलित होना और फिर किसी गारंटर का न मिल पाना आड़े आ गया. लेकिन उन्होंने अपने सपने को मरने नहीं दिया. अपने बूते कंस्ट्रक्शन के ठेके लेते रहे और अंतत: वह दिन भी आया जब उन्होंने पाइप बनाने की अपनी फैक्ट्री शुरू की. इस कामयाबी की राह में ढेरों अड़चनें आईं लेकिन आज उनकी कंपनी 1,000 करोड़ रु. के कारोबारी लक्ष्य की ओर बढ़ रही है.मोघा जैसे उद्यमी सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग (एमएसएमई) की श्रेणी में आते है जिसमें 12 करोड़ लोग काम कर रहे हैं. परोक्ष रूप से जुड़े लोगों की संख्या इससे भी ज्यादा है. यह क्षेत्र देश के लोगों में आय में असमानता को कम करता है. बाजार की मांग के अनुरूप निरंतर बदलने वाला यह क्षेत्र माल एवं सेवा मुहैया कराता है. इसके लिए इसे टेक्नोलॉजी में बदलाव के अनुरूप ढलना होता है ताकि नई-पुरानी समस्याओं का समाधान हो सके. यही नहीं, वे बड़े उपक्रमों के सहायक के रूप में काम करते हैं और अपने नेटवर्क के जरिए उन्हें जरूरी फीडबैक भी देते हैं. ये देश के सतत विकास के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं. 

उद्यमशीलता के ये चमकते सितारे हिंदीभाषी क्षेत्र से चुने गए हैं, जो स्टील, चाय और जूते जैसे पारंपरिक उद्योगों के साथ ही बेकरी, वीगन मीट, इथिकल हैकिंग, ज्योतिषियों के लिए प्लेटफॉर्म जैसे टेक्नोलॉजी आधारित उपक्रमों का प्रतिनिधित्व करते हैं. पहली पीढ़ी के इन उद्यमियों ने बचपन में पैसे की किल्लत झेली लेकिन अमीर बनने के सपने के बाद उन्होंने चैन की सांस नहीं ली. पेश हैं ये प्रेरक कहानियां : 

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