
सिविल सर्विसेज में किसी का सेलेक्शन हो जाए तो मानिए, उसके सभी सपने सच हो गए. कौन भला ऐसा होगा जो आइआरएस (इंडियन रेवेन्यू सर्विसेज) छोड़कर एक ऐसे कारोबार में कदम रखे, जिसके बारे में देश में किसी ने सुना भी न हो.
अभिषेक सिन्हा ऐसे ही व्यक्ति हैं. सिविल सेवा की नौकरी छोड़कर उन्होंने मांसाहार का प्लांट्स और प्रोटीन आधारित शाकाहारी विकल्प तैयार करने के लिए गुड डॉट कंपनी बनाई. उनका लक्ष्य था पशु क्रूरता को कम करना. महज 7 साल में यह कंपनी देश और दुनिया का जाना-पहचाना नाम बन चुकी है.
2003 के आसपास वे पुणे से केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे. इस दौरान उन्होंने हॉलैंड में मांसाहार के विकल्प के लिए पशुओं के टिश्यू कल्चर से मीट बनाने वाली रिसर्च को देखा. और इस तरह अभिषेक को पहली बार इस क्षेत्र में काम करने का विचार आया.

सिन्हा बताते हैं, "मैंने उस वक्त ही यह सोच लिया था कि कोई ऐसा उत्पाद बनाना है जिसका स्वाद मीट या चिकन जैसा हो, लेकिन जिसे बनाने के लिए किसी जानवर की हत्या न करनी पड़े." 2008 में सिविल सर्विसेज में चयन होने के बाद भी उनके मन में यह ख्याल बना रहा. 2010 में जब उन्हें उदयपुर में इनकम टैक्स विभाग में डिप्टी कमिशनर का पद मिला तब उनका यह ख्याल और पक्का हो गया.
बिहार से ताल्लुक रखने वाले अभिषेक सिन्हा के लिए उदयपुर एक अनजान शहर था. इस शहर में पहुंचने के पहले ही दिन जब उन्होंने गाइड बुक को टटोलना शुरू किया तो उसमें सड़कों पर घायल पशुओं की देखभाल करने वाली 'एनिमल एड' नाम की संस्था के विज्ञापन पर उनकी नजर पड़ी.
नौकरी जॉइन करते ही सिन्हा 'एनिमल एड' पहुंचे और घायल पशुओं को देखकर उनका मन द्रवित हो उठा. उसी वक्त उन्होंने ठान लिया कि अब पशुओं की सेवा का काम करना है. आइआरएस में रहते हुए उन्होंने इस संस्था के काम में खूब सहयोग किया.
छह साल बाद उन्होंने आइआरएस की नौकरी छोड़कर पूरी तरह से जीव-जंतुओं की सेवा के क्षेत्र में कदम बढ़ाना तय किया. सिन्हा की पत्नी तरन्नुम भाटिया और अन्य परिजनों ने भी उनके इस जज्बे की कद्र की. आखिरकार 2016 में उन्होंने आइआरएस छोड़कर अपने सपने को साकार करने के लिए गुड डॉट कंपनी बनाने का फैसला किया.
इस काम में उनके सहयोगी बने जोधपुर के उनके मित्र दीपक परिहार जो गुड डॉट के को-फाउंडर भी हैं. दीपक और अभिषेक के साथ अमेरिका से प्रोटीन केमिस्ट्री में डॉक्टरेट उनके भाई अभिनव सिन्हा, पत्नी तरन्नुम भाटिया, मित्र हरीश जोशी और बहन श्रुति सोनाली ने मिलकर गुड डॉट कंपनी का काम शुरू किया.
बिहार के एक सामान्य घर से निकलकर गुड डॉट जैसा अंतरराष्ट्रीय ब्रांड खड़ा करने वाले अभिषेक के पिता अनिल कुमार सिन्हा केंद्र ईएसआइसी (कर्मचारी राज्य बीमा निगम) विभाग में अतिरिक्त निदेशक के पद पर कार्यरत थे. उनकी मां चित्रा सिन्हा गृहिणी हैं.
गुड डॉट बनाए जाने से पहले अभिषेक व उनके परिवार के किसी भी सदस्य को बिजनेस का अनुभव नहीं था. यही वजह है कि अभिषेक व उनके परिवार ने नौकरी से जो भी बचत की थी, वह शुरुआती दो-तीन साल में पूरी कंपनी को स्थापित करने में लग गई. इस दौरान कई बार ऐसा वक्त आया जब उन्हें और उनके परिवार को उधार के पैसों से घर चलाना पड़ा.
गुड डॉट टीम के सामने भी कई चुनौतियां आई. अभिषेक बताते हैं, ''हमारे सामने कोई भारतीय उदाहरण नहीं था. विदेशों में अरबों रुपए की रिसर्च के बाद ऐसे प्रोडक्ट तैयार हुए हैं. हमारे पास इतना पैसा भी नहीं था और न ही बिजनेस और फैक्ट्री चलाने का अनुभव था."
कंपनी के कर्मचारियों की अथक मेहनत से इन चुनौतियों को पार कर 2017 में प्रोडक्शन शुरू हुआ. मगर प्रोडक्शन शुरू होने तक पैसे खत्म हो गए और मार्केटिंग के लिए कुछ भी नहीं बचा. तब गुड डॉट ने एक मल्टीलेवल मार्केटिंग कंपनी का सहारा लिया. देखते ही देखते गुड डॉट ने 14 ऐसे उत्पाद बना दिए जिनका स्वाद तो मटन या चिकेन जैसा था लेकिन उन्हें बनाने में पौधों का उपयोग हुआ.
इसी दौरान एक दिन फैक्ट्री जाते हुए उन्हें सड़क किनारे बिक्री के लिए बंधा हुआ एक बकरा दिखा. अभिषेक ने बकरा खरीदकर पाल लिया. आज उनकी फैक्ट्री में इस तरह के कई बकरे पाले जा रहे हैं जिन्हें गुड्डू पुकारा जाता है. शहर में कई कोनो में गुड्डू के नाम पर गुड डॉट के आउटलेट खुले हैं. टोक्यो ओलंपिक में भाला फेंक में स्वर्ण पदक जीतने वाले नीरज चोपड़ा गुड्डू के ब्रांड एंबेसडर हैं.
आज गुड डॉट के अनमटन ढाबा करी, करी किट, एगलेस भुरजी किट, वेजिटेरियन बिरयानी, डीबीक्यू टिक्का जैसे उत्पाद मांसाहार का प्रमुख विकल्प बन चुके हैं. भारत के अलावा अमेरिका, कनाडा, दुबई और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में गुड डॉट के उत्पाद को निर्यात किया जा रहा है. उदयपुर स्थित दो फैक्ट्रियों, ऑफिस और शहर में बनाए गए 'गुड्डू’ आउटलेट्स पर करीब 500 लोग काम करते हैं जिनमें 95 फीसद लोग स्थानीय हैं.