
लखनऊ विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन करने के बाद हजरतगंज में रहने वाली तनुश्री गुप्ता का विवाह शहर के डंडहिया इलाके में रहने वाले रामू गुप्ता से हो गया था. हलवाई परिवार से ताल्लुक रखने वाले रामू उस वक्त नमकीन बनाकर 'श्याम नमकीन' के नाम से उसे लखनऊ और आसपास के जिलों में सप्लाइ करते थे. तनुश्री की बिजनेस में रुचि थी लेकिन ससुराल में ज्यादा पैसा नहीं था.
शादी के शुरुआती दिनों में तनुश्री पति रामू के साथ देश में कई जगह घूमीं और कई होटलों में ठहरीं. यहां उन्होंने पाया कि विदेशों से आने वाले लोग बेक (अवन में सिंके हुए) किए हुए स्नैक्स की मांग करते थे. यहीं तनुश्री को एहसास हुआ कि आने वाला समय बेकरी का है. उनके दिमाग में बेकरी और चॉकलेट की बातें घूमने लगीं. विदेशों में बेकरी की तकनीक और उनसे बनने वाली मिठाइयों की जहां से भी जानकारी मिली, तनुश्री ने उसे इकट्ठा करने में जरा भी देर नहीं लगाई.

पत्नी की लगन को देखते हुए रामू ने अपने दोस्तों से उधार लेकर 2002 में अलीगंज के सेक्टर पी में 12 लाख रुपए से चार हजार वर्ग फुट जमीन खरीदी. चार साल बाद 8 दिसंबर, 2006 को तनुश्री के सपने ने हकीकत का रूप लिया जब यहां पर 'मिस्टर ब्राउन’ बेकरी की स्थापना हुई.
तनुश्री बताती हैं, "मैंने पढ़ाई के दौरान कुकिंग का कोर्स किया था. इसमें थोड़ी बहुत जानकारी बेकरी की भी मिली थी लेकिन शादी के बाद देश के कई हिस्सों में जाकर बेकरी के काम को नजदीक से देखा और उससे सीखा." हालांकि 47 वर्षीया तनुश्री के प्रेरणास्रोत उनके ससुर प्यारे लाल गुप्ता थे जो काफी कठिनाइयों के बीच हलवाई का काम करके अपने परिवार का पेट भरते थे.
बेकरी का नाम 'मिस्टर ब्राउन' पति-पत्नी की आपसी समझ और स्नेह का परिणाम था. रामू गुप्ता बताते हैं, "मेरी आंखों के ब्राउन (भूरी) होने की वजह से तनु ने मेरा नाम बिजी मिस्टर ब्राउन रख दिया था. इसी नाम से बेकरी का नाम पड़ा." तनुश्री बताती हैं कि बेकरी में सिंकी हुई चीज 'गोल्डन' या 'ब्राउन' रंग की ही होती है इसलिए 'मिस्टर ब्राउन' से बेकरी को 'कनेक्ट' करने में आसानी हुई."
तीन अवन से बेकरी शुरू हुई. तनुश्री ने चिया सीड्स, सनफ्लावर सीड्स का उपयोग करते हुए 12 तरह की ब्रेड तैयार कीं. इसके लिए शरबती गेहूं मध्य प्रदेश से लाया गया. ऑर्गेनिक मैदे से बनी ब्रेड भी बेकरी में बनी. ये सभी हाथ से बनी यानी हैंडमेड ब्रेड थीं, इनमें कोई भी यीस्ट नहीं होता था. तनुश्री बताती हैं, "मैंने बिना नमक वाला मक्खन उपयोग किया.
ऐसी चीजें उपयोग में लाई गईं जो शरीर के लिए जरा भी नुक्सानदेह न हों." बिना फैट वाले बटर (मक्खन) के बिस्किट बनाने शुरू किए. तनुश्री बेकरी में ब्रेड और अन्य चीजें तैयार करतीं और रामू गुप्ता उसे स्कूटर पर लादकर लखनऊ की अलग-अलग जगहों पर पहुंचाते. इस दौरान कई चुनौतियां पेश आईं. बेकरी के लिए कच्चा माल महंगा था. आसानी से उपलब्ध नहीं था. मिस्टर ब्राउन के कर्मचारियों को तनख्वाह देने के लिए पैसे नहीं थे तो रामू गुप्ता की नमकीन फैक्ट्री के वेंडर्स ने आर्थिक मदद की. शुरुआत के दो साल तो बेकरी पूरी तरह घाटे में ही चली.
लेकिन तनुश्री पूरी लगन से प्रयोग करती रहीं. वे बताती हैं, "होली में घरों में बनने वाली गुझिया को कई लोग इसलिए नहीं खाते थे कि वह घी या तेल में तलकर बनी होती हैं. हमने सोचा कि क्यों न अवन में सिंकी हुई गुझिया बनाई जाए." कई प्रयोग करने के बाद अंतत: 2007 में तनुश्री पहली रोस्टेड गुझिया तैयार करने में सफल हुईं जो मिस्टर ब्राउन के लिए गेमचेंजर साबित हुई.
लखनऊ के साथ देश भर से इसकी डिमांड आने लगी. दो साल के भीतर अलीगंज, सप्रूमार्ग समेत लखनऊ के कई हिस्सों में मिस्टर ब्राउन बेकरी के आउटलेट खुल गए. इनकी चॉकलेट, ब्रेड, बिस्किट, केक ने धूम मचा दी. अब बेकरी, लॉजिस्टिक, एचआर समेत सभी विभागों को मिलाकर तनुश्री की टीम 32 लोगों की हो गई थी.
भारी व्यस्तता के बीच तनुश्री को जब भी समय मिलता, वे अपने पति के साथ अनोखे व्यंजनों की तलाश में देश-विदेश घूमने पहुंच जातीं. 2008 में इन्होंने तुर्की की मिठाई बकलावा चखी. इसे मैदे को चाश्नी में भिगोकर बनाया गया था. तनुश्री ने तुर्की में ही बकलावा बनाना सीखा. इसके बाद लखनऊ आकर उसमें कई सारे नए प्रयोग किए. जैसे, चाश्नी का प्रयोग न करके शहद को उपयोग में लाया गया.
इसके लिए बाराबंकी में खासतौर पर मधुमक्खी पालन किया. अलग-अलग फ्लेवर लाने के लिए सरसों, फरेंदा, लीची समेत कई फलों का शहद तैयार करवाया. खास तरह से कागज से भी पतली मैदे की शीट तैयार की. इसे शहद से चिपकाया. सूखे मेवे में शहद मिलाया. बहुत धीमी आंच में सेंका. सूखने के बाद फिर शहद लगाया. 2009 में मिस्टर ब्राउन के बैनर तले बकलावा को लांच करते ही यह सभी लोगों की जुबान पर चढ़ गया.
यह तनुश्री के जीवन का टर्निंग पॉइंट था. वे बताती हैं, "दीपावली में लोग केवल बकलावा के लिए ही मिस्टर ब्राउन के शोरूम पर आने लगे. यहीं से मिस्टर ब्राउन देश में बेकरी का एक बड़ा ब्रांड बनकर उभरा." तनुश्री ने इसके बाद बेल्जियम से 'कोवर्चर' चॉकलेट बनाना सीखा जो जीभ पर रखते ही गल जाती है. इसके अलावा तनुश्री ने मिस्टर ब्राउन के उत्पादों में प्रयोग के लिए फ्रांस में बनी नेचुरल क्रीम मंगानी शुरू की जो उनके मुताबिक हेल्दी होती है. लखनऊ में बेकरी की दुनिया में इस तरह के प्रयोग एकदम नए थे और लोग इन्हें खूब पसंद कर रहे थे.
मिस्टर ब्राउन ब्रांड को चुनौती नकली ब्रांड्स से मिली. उत्पादों को प्रसिद्धि मिलने के बाद 'मिस्टर ब्राउन' नाम से मिलते-जुलते डुप्लीकेट नाम बाजार में आ गए. उत्पाद से लेकर पैकेजिंग भी नकली बनने लगी. इससे बिजनेस में नुक्सान होता देख 2020 में तनुश्री ने "मिस्टर ब्राउन बेकरी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी" के आगे 'डैनब्रो' शब्द लगा दिया. लखनऊ में डंडहिया की अंग्रेजी स्पेलिंग से डैन शब्द लिया गया और ब्राउन से ब्रो शब्द लिया गया. यह नाम चल निकला. देश में लेकर यूरोप में भी यह नाम पंजीकृत हो गया.
आज उत्तर प्रदेश के लखनऊ, कानपुर और नोएडा समेत 22 जिलों में डैनब्रो मिस्टर ब्राउन के आउटलेट खुल चुके हैं. इसके अलावा दिल्ली में डैनब्रो एक्सप्रेस नाम से एक नया शोरूम खोला गया है जहां मिस्टर ब्राउन के सभी बेकरी उत्पाद एक साथ उपलब्ध हैं. इसके साथ ही अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, इटली, खाड़ी देशों समेत कई देशों में डैनब्रो मिस्टर ब्राउन के उत्पाद भेजे जाते हैं.
एक दिन में तीन हजार पीस से ज्यादा ब्रेड, 500 किलो से ज्यादा बिस्किट और 500 किलो से ज्यादा केक डैनब्रो मिस्टर ब्राउन के आउटलेट्स से बिकते हैं. इस पूरे तंत्र को सफलतापूर्वक संचालित करने के लिए प्रोडक्शन से लेकर सेल्स तक कुल 1,000 से अधिक कर्मचारी इस कंपनी में अपनी सेवाएं दे रहे हैं.
कोविड काल के दौरान घरों में होम बेकर्स तैयार करने के लिए 2021 में अलीगंज में एक स्किल डेवलेपमेंट सेंटर भी शुरू किया गया. यहां पर तनुश्री ने लोगों को बेकरी आइटम बनाने की बारीकियां सिखाना शुरू किया. समय की पाबंद तनुश्री ने रोज सुबह ठीक सात बजे अपनी बेकरी का शोरूम खोलना शुरू किया. इस तरह मिस्टर ब्राउन बेकरी सुबह सबसे पहले खुलने वाली बेकरी बन गई. तनुश्री कहती हैं, "सुबह अगर मिस्टर ब्राउन बेकरी के शोरूम का शटर खुला हुआ है तो समझिए सात बज चुके हैं."