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पश्चिम बंगाल: भीड़ तंत्र का राज बरकरार

मुख्यमंत्री पुलिस थाने गईं, उन्होंने कानून अपने हाथ में लिया और पुलिस अधिकारियों को डांटकर उपद्रवी युवाओं को रिहा करा दिया.

ममता बनर्जी
ममता बनर्जी
अपडेटेड 12 नवंबर , 2011

ममता बनर्जी कानून का राज स्थापित करने जैसे चुनावी वादों के साथ सत्ता में आई थीं. लेकिन सत्ता में आने के छह महीने बाद ही पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री 6 नवंबर को अपने घर से भवानीपुर पुलिस थाने गईं और पुलिसवालों को दो हुड़दंगी युवकों को रिहा करने के लिए मजबूर कर दिया.

तपस साहा और शंभु साउ एक स्थानीय क्लब के 300 युवकों के उस समूह का हिस्सा थे जो चितरंजन नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट के सामने जगद्धात्री पूजा समारोह में शामिल थे. अस्पताल के पास पटाखे की आवाज और हंगामा बंद करने के लिए भवानीपुर पुलिस ने दखल दिया. युवकों ने भीड़भाड़ वाली एस.पी. मुखर्जी रोड पर ट्रैफिक रोक रखा था. पुलिस ने पटाखे न दागने और रास्ता खाली करने के लिए कहा. सार्वजनिक हित की यह बात उन्हें नागवार गुजरी और युवक उत्तेजित हो गए और उन्होंने पुलिस पर पथराव शुरू कर दिया. पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा. इसके बाद दोनों एक-दूसरे पर टूट पड़े. हुड़दंगियों ने कई वाहनों को नुक्सान पहुंचाया और पुलिस थाने पर धावा बोलकर उसे तहस-नहस कर दिया.

कालीघाट स्थित क्लब सेवक संघ, जिसके सदस्यों की पुलिस के साथ झ्ड़प हुई, दूसरे लोगों के अलावा ममता के भाई बबन चलाते हैं. मुख्यमंत्री भवानीपुर थाने पहुंचीं और 'ड़दंगियों की भीड़ को नियंत्रित करने में नाकाम होने का इल्जाम लगाते हुए पुलिस आयुक्त रणजीत पचनंदा, उपायुक्त (दक्षिण) डी. पी. सिंह और थानेदार इंद्रजीत घोष दस्तीदार सहित वरिष्ठ पुलिसकर्मियों पर बरस पड़ीं. साह और साउ को फौरन रिहा कर दिया गया.

प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि ममता भीड़ के बीच गईं और वहां पुलिस के खिलाफ  कार्रवाई करने का वादा किया. उन्होंने एक सहायक पुलिस आयुक्त (एसीपी) को निर्देश दिया कि वे ''पुलिस की ज्‍यादती'' की जांच करें. एसीपी की रिपोर्ट में भवानीपुर के पुलिसवालों को हुड़दंगियों से निपटने के अयोग्य ठहराया जा सकता है. घोष दस्तीदार ने इंडिया टुडे को बताया, ''मैं इस बारे में कोई टिप्पणी नहीं कर सकता. कृपया घटनाक्रम के बारे में मैडम से ही बात कीजिए.''

ममता और उनकी तृणमूल कांग्रेस जब विपक्ष में थी, तब हमेशा टकराव की स्थिति में रहती थी. अक्तूबर 2008 में उन्होंने लाल बाजार में 20,000 लोगों की एक जबरदस्त रैली कोलकाता पुलिस मुख्यालय का घेराव करने के लिए आयोजित की. वह रैली एक स्थानीय विधायक के भाई की रिहाई के लिए आयोजित की गई थी जिसने पुलिस पर हमला किया था. इससे अगले महीने ममता की विश्वासपात्र सहायक सोनाली गुहा ने, जो अब विधानसभा की उपाध्यक्ष हैं, दक्षिणी 24 परगना जिले के नोदखली पुलिस थाने के एक इंस्पेक्टर के साथ मारपीट की.

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति के सदस्य मुहम्मद सलीम का कहना है  ''आजाद भारत के इतिहास में यह पहला मौका है जब किसी मुख्यमंत्री ने हुड़दंगियों को रिहा कराने के लिए पुलिस थाने पर धावा बोला.'' उन्होंने आरोप लगाया, ''ममता ने हमेशा कानून तोड़ने वालों का साथ दिया है. उनके लिए यह स्वाभाविक ही है कि वे  अपने भाई और उसके गुंडे साथियों को बचाने के लिए जाएं.'' भाजपा की राज्‍य इकाई ने राज्‍यपाल एम.के. नारायणन को इस मामले में दखल देने के लिए एक ज्ञापन दिया है.

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