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बिल पास कराना मेरा काम नहीं है: कपिल सिब्बल

अगर इस देश में कोई इंटरनेट पर भड़काऊ बात करे जिससे माहौल बिगड़ सकता है, तो क्या एक जिम्मेदार नागरिक के नाते आपको नहीं बोलना चाहिए.

कपिल सिब्बल
कपिल सिब्बल
अपडेटेड 17 जुलाई , 2012

इंटरनेट पर नजर रखनी हो या आइआइटी एंट्रेंस का तरीका बदलना, या फिर स्पेक्ट्रम विवाद को सुलझाने की कोशिश, केंद्रीय मानव संसाधन विकास और संचार मंत्री कपिल सिब्बल के ज्यादातर कदम विवादों में ही रहे. सरकार के संकटमोचन की भूमिका निभाई तो मौके-बेमौके सरकार का संकट बढ़ा. लेकिन आलोचनाओं से अविचलित सिब्बल सिर्फ जिम्मेदारी निभाने में भरोसा करते हैं. इंडिया टुडे के प्रमुख संवाददाता संतोष कुमार ने उनसे विस्तृत बातचीत कीः

इंजीनियरिंग के लिए एकल प्रवेश परीक्षा के मामले में फैसले के बाद ऐसा क्यों हुआ कि सरकार और आइआइटी में सीधे टकराव की नौबत आ गई?
कोई टकराव की बात नहीं है. देखिए, इस मुद्दे पर चर्चा फरवरी 2010 में शुरू हुई. आइआइटी काउंसिल में चर्चा हुई कि हिंदुस्तान में कोई 100 इम्तिहान होते हैं और सबके लिए अलग-अलग फॉर्म भरने होते हैं. अब सौ में तो कोई बच्चा बैठ नहीं सकता, लेकिन 15-20 में बैठता है. हरेक मां-बाप चाहते हैं कि उनका बच्चा आइआइटी जाए. लेकिन उसका 12वीं जमात के रिजल्ट से कोई लेना-देना नहीं होता. छात्र 12वीं बोर्ड को अहमियत नहीं देते और 8वीं-10वीं से ही आइआइटी के लिए कोचिंग शुरू कर देते हैं. यह स्कूल, बच्चों की शिक्षा और देश तीनों के लिए हानिकारक है.

अमेरिका, इंग्लैंड, चीन या विश्व में आप कहीं भी देख लो, एक या दो टेस्ट से ज्यादा नहीं होता है और उसमें 12वीं बोर्ड हमेशा शामिल रहता है. विश्व में कहीं भी ऐसा सिस्टम नहीं है, जैसा हमारे देश में है. मल्टीपलीसिटी ऑफ  टेस्ट से माता-पिता और बच्चों के ऊपर आर्थिक-मानसिक बोझ पड़ता है. फिर भी अगर बच्चा आइआइटी में पास नहीं हुआ और 12वीं का भी उसने ख्याल नहीं रखा तो वह कहीं का नहीं रहता, न तो उसे कॉलेज में दाखिला मिलता है न वह आइआइटी में आता है, तो बच्चा जाएगा कहां. अगर इसमें ऑल इंडिया प्राइवेट सेक्टर भी आ जाए तो कैपिटेशन फीस का मामला भी खत्म हो जाएगा. ये चार लक्ष्य थे, जिस पर चर्चा हुई. ये आइआइटी काउंसिल ने सोचा, इसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं थी. मैं तो काउंसिल से ही बात कर सकता हूं. कई कमेटी बैठी उसमें आचार्य कमेटी, रामासामी कमेटी, इस बीच में काकोडकर कमेटी. फिर रामासामी कमेटी और आइआइटी काउंसिल ग्रुप बनाकर हिंदुस्तान के हर जगह गई और चर्चा की. फिर हम इस नतीजे पर पहुंचे कि एक टेस्ट होना चाहिए और उसमें स्कूल को वेटेज देना चाहिए. 50 फीसदी स्कूल और 50 फीसदी. निर्णय सर्वसम्मति से हुआ, कोई डिसेंट नहीं था.

तय हुआ कि 12वीं का जो रिजल्ट होगा और एआईईईई का रिजल्ट होगा उसको मिलाकर जो टॉप 50,000 बच्चे हैं, उनका ही एडवांस में मेरिट देखा जाएगा और जो मेरिट में आएंगे, उसका एडवांस टेस्ट आइआइटी ही लेगा. इसमें भी विरोध हो गया. सबका नहीं हुआ, पहले आइआइटी कानपुर, फिर दिल्ली का. जब ये विरोध हुआ तो मैंने ज्वाइंट एडमिशन बोर्ड को कहा कि आप खुद तय करिए इसमें सरकार की कोई दखलंदाजी नहीं है. फिर बोर्ड की मीटिंग हुई और फिर ये फैसला किया. जब फैसला किया तो मैं जान-बूझ्कर मीटिंग में नहीं गया क्योंकि बात हो रही थी सिब्बल बनाम आइआइटी की. इसमें सिब्बल का कोई रोल नहीं था और न दखलंदाजी. उन्होंने खुद फैसला किया और हमने अपना लिया.

आपने आकाश टेबलेट का वादा किया था और लांच भी हुआ, लेकिन अभी तक जमीन पर नहीं आ पाया?
बिल्कुल, अभी मैंने 8-10 दिन पहले आकाश-2 लांच किया है. आज ही (3 जुलाई) मैं एमपी-टेल में उसका डेमेन्स्ट्रेशन करके आया हूं. वो अब 800 मेगाहहार्टज प्रोसेसर हो गया है, तीन घंटे बैटरी होगी और कैपैसिटिव स्क्रीन. ट्रायल रन के लिए संस्थाओं को दिया गया है. आइआइटी बॉम्बे के प्रो. पाठक इसके टीम लीडर हैं और उन्होंने कहा है कि जुलाई के आखिर और अगस्त की शुरुआत तक इसकी प्रोडक्शन शुरू हो जाएगी.

देखिए, आप कोई भी ऐसा काम करने लगो जहां हम ऐसा लक्ष्य चाहते हैं, जिसकी विश्व में कभी हमने पहल की हो, तो वो काम चंद दिनों में हो जाएगा, ये संभव नहीं है. एक बच्चे का सपना तब तक साकार नहीं होगा, जब तक वो बड़ा न हो जाए. यहां तो लगता है कि देश में एक बार निर्णय हो गया, कल उस पर अमल हो जाना चाहिए.

पाठ्यपुस्तकों में कार्टून पर संसद में काफी बवाल मचा था, तो..(बीच में रोकते हैं)
कार्टून विवाद के बारे में भी हमने एक एकेडमिक कमेटी बिठा दी, हमने उसमें कोई सरकारी आदमी नहीं बैठाया. सुखदेव थोराट उसके चेयरमैन हैं. थोराट की रिपोर्ट एनसीईआरटी के पास चली गई और एनसीईआरटी जो फैसला करेगी, हमें मंजूर है. इसमें भी सरकार की कोई दखलंदाजी नहीं है. लेकिन  मैं इस बात से सहमत हूं कि बिना किसी अपवाद के हर सांसद ने ये बात उठाई कि जिस तरह के कार्टून किताबों में 2006 में डाले गए थे, वो अपमानजनक हैं. ये बातें मैंने कमेटी के सामने रखी और एकेडमिक कमेटी ने जो तय किया वो हमें मंजूर है.

आपने 2009 में जब मंत्रालय का चार्ज लिया, तब 100 दिनी कार्यक्रम बनाया था, लेकिन कई बिल संसद में अटक गए?
मेरा हंड्रेड डेज प्रोग्राम था कि मैं बिल तैयार कर दूंगा. मेरा हंड्रेड डेज प्रोग्राम नहीं था कि मैं बिल पास करवा.. बिल पास करवाना मेरा काम नहीं है, (हंसते हुए..)बिल पास करवाना संसद  का  काम है. मैंने अपना वादा पूरा किया. मैंने हंड्रेड डेज में बिल तैयार कर पेश कर दिया.

कांग्रेस के ही लोगों ने आपके बिल का विरोध किया था?
यह भी एक गलत बात है, कौन से अपने लोगों ने विरोध किया. हम रोज कहते हैं कि एजुकेशन ट्रिब्यूनल का बिल पास करो. एक हमारी पार्टी से कोई सवाल उठा दे तो मीडिया में चर्चा हो जाती है कि विरोध हो रहा है.

उस विरोध ने बिल रुकवा दिया था?
बिल रुक गया था ना, उसके बाद लाया नहीं गया, क्यों नहीं लाया गया. हम तो रोज कहते हैं बिल लेकर आओ. अगर स्टैंडिग कमेटी में बिल पास और पारित हो जाता है तो संसद में विरोध करने का क्या मकसद हुआ.

नहीं, उसमें दलील यह दी गई  कि आपने स्टैंडिग कमेटी की सिफारिशें नहीं मानीं?
एजुकेशन ट्रिब्यूनल में नहीं मानीं, बाकी सारी में तो मानीं. तो बाकी क्यों पास नहीं हो रहा. सारे जो बाकी बिल हैं, हमने स्टैंडिंग कमेटी की सिफारिशें मानीं और ट्रिब्यूनल में हमने आश्वासन दिया कि जो आप कह रहे हैं वो हम लेकर आएंगे.

आप मेडिकल और कानूनी शिक्षा को एनसीएचईआर  के दायरे में लाना चाहते थे. लेकिन सहयोगी मंत्रियों का विरोध हो गया?
वो अभी स्टैंडिंग कमेटी में है. गुलाम नबी आजाद हमारे साथ हैं. फैसला हो चुका तभी कैबिनेट में पारित हुआ. स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसका समर्थन किया है.

क्या अपने हंड्रेड डेज प्रोग्राम को आप पूरी तरह सफल मानते हैं?
मैंने अपनी तरफ से...सरकार तो सिर्फ कानून बना सकती है. उसके ऊपर फिर संसद की चर्चा है. लेकिन मुझ पर जहां ये आरोप लगता है कि हम सांसदों को भरोसे में नहीं लेते, ये भी गलत है. मैं सभी से बात करता हूं, मैंने इन छुट्टियों में विपक्ष के नेताओं से मिलने का समय मांगा है. इससे ज्यादा तो मैं कुछ नहीं कर सकता हूं.

टू-जी मामले में आपने जीरो लॉस का प्रजेंटेशन दिया था. उस पर आप कायम हैं?
जीरो लॉस का क्या मतलब है, मैं 50 बार सफाई दे चुका हूं. जब सरकार की नीति थी कि हमें नीलामी की प्रक्रिया नहीं करनी. यही नीति थी ना. जब नीलामी की नीति ही नहीं थी, तो फिर नीलामी के आधार पर आप नुकसान कैसे कह रहे हो,  यह तो अपने आप में काल्पनिक नुकसान है. मैंने तो इतना ही कहा था कि उस वक्त ऐसी नीति नहीं थी, तो फिर लॉस का क्या मतलब हुआ.

जब भी आपने कोई बोल्ड कदम उठाया, चाहे शिक्षा हो या इंटरनेट रेगुलेट करने का मामला आया था. (बीच में रोकते हैं.)
ये गलत है. मैंने कब रेगुलेट किया, आप मुझे एक भी उदाहरण दे दो 2010 से लेकर आज तक जिसमें मैंने एक भी ऐसा कोई निर्णय लिया हो. मैं आपसे पूछता हूं कि अगर इस देश में कोई इंटरनेट पर भड़काऊ बात करे जिससे माहौल बिगड़ सकता है, तो क्या एक जिम्मेदार नागरिक के नाते आपको नहीं बोलना चाहिए. कुछ लोग अपने हित के लिए देश में सनसनी फैलाना चाहते हैं.

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