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स्‍टेट ऑफ स्‍टेट्स: बदलाव को रफ्तार देने वाले

भ्रष्टाचार, शासन और राज्‍यों को पैसा मुहैया कराने के मसलों पर इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में मुख्यमंत्रियों और केंद्रीय मंत्रियों के बीच चर्चा के दौरान बातचीत और सौहार्द का समां बंधा.

स्‍टेट ऑफ स्‍टेट्स
स्‍टेट ऑफ स्‍टेट्स
अपडेटेड 12 नवंबर , 2011

चार नवंबर को सरकार ने जब पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि की घोषणा की तो उसके बाद एस. जयपाल रेड्डी का पहला पड़ाव था दिल्ली में इंडिया टुडे स्टेट ऑफ द स्टेट्स कॉन्क्लेव. पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री एक पैनल चर्चा में भाग लेने आए थे, जिसका विषय था, ''क्या भ्रष्टाचार का इलाज किया जा सकता है?'' जब उनसे पूछा गया कि क्या वे तेलंगाना के मसले पर भी कुछ कहना चाहेंगे, तो रेड्डी ने उसे यह कहते हुए हंसी में टाल दिया कि ''मेरा ख्याल है, मैं इस तपते तवे से ही चिपका रहूंगा.''

कॉन्क्लेव में मुख्यमंत्रियों ने भ्रष्टाचार, केंद्र के राज्‍यों को पैसा देने, निजी-सरकारी भागीदारी और यहां तक कि तेलंगाना जैसे कई विषयों पर चर्चा करते हुए देश के मिजाज की झलक दी. वहां मौजूद छह मुख्यमंत्रियों में से अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री नबम तुकी भी थे, जिन्होंने महज तीन दिन पहले ही पद की शपथ ली थी. तुकी ने चहकते हुए कहा, ''मैंने तीन दिन काम करके तीन पुरस्कार जीत लिए. यह तो अच्छी शुरुआत है.''

मणिपुर से आए उनके सहयोगी इस कदर भाग्यशाली नहीं निकले. राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 53 पर गड़बड़ी की वजह से मुख्यमंत्री ओ. इबोबी सिंह को विमान रवाना होने के महज 15 मिनट पहले अपनी दिल्ली यात्रा रद्द करनी पड़ी.

मुख्यमंत्री ने अपने राज्‍यमंत्री मुहम्मद अलाउद्दीन खान को इस आयोजन में शामिल होने के लिए कहा. दिल्ली में गले के कैंसर का उपचार करा रहे खान मास्क पहनकर तुरतफुरत आयोजन स्थल पर पहुंचे. पुरस्कार लेते समय उनके होंठों पर टांके लगे थे और हाथों में पट्टियां बंधी हुई थीं. नवंबर माह की उस शाम को मणिपुरी भावना का इजहार हो रहा था.

अपने स्वागत भाषण में इंडिया टुडे समूह के अध्यक्ष और प्रधान संपादक अरुण पुरी ने क्षेत्रीय दलों के बढ़ते महत्व-और इस वजह से केंद्रीय राजनीति में मुख्यमंत्रियों के बढ़ते महत्व-का विस्तार से उल्लेख किया. उन्होंने संकेत किया कि ''क्षेत्रीय दलों और गठबंधन की राजनीति के उदय के साथ ही खुद केंद्र का स्वरूप भी बदल गया है...वह कमजोर हुआ है और कम-से-कम कुछ शक्ति राज्‍यों की राजधानियों के बीच बंट गई है.

इस वजह से इस देश का भविष्य, खासकर उसके नागरिकों के कल्याण और बेहतरी के लिहाज से, इस बात पर निर्भर करता है कि हमारे 30 राज्‍यों की राजधानियों में क्या होता है.'' सार रूप में, उन्होंने कॉन्क्लेव आयोजित करने के पीछे छिपे मुख्य सिद्धांत को रेखांकित किया. वह है सामयिक विषयों पर चर्चा के लिए मुख्यमंत्रियों को एक मंच उपलब्ध कराना. केंद्र में उनकी बढ़ती महत्ता को मान्यता देते हुए इंडिया टुडे ने 2003 में पहली बार स्टेट ऑफ द स्टेट्स पुरस्कारों की स्थापना की थी.

मुख्य वक्ता के तौर पर अपने अभिभाषण में  वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा कि, ''इन पुरस्कारों ने सरकार संचालन के क्षेत्र में उपलब्धियां और नतीजे पाने की अहमियत के प्रति बढ़ती हुई जागरूकता में योगदान दिया है.'' हमारी अर्थव्यवस्था के सामने मौजूद चुनौतियों के बारे में उन्होंने कहा, ''वैश्वीकृत संसार में हमारे सामने आने वाली हरेक परिस्थिति अपने से पिछली परिस्थिति के मुकाबले ज्‍यादा जटिल होती है, चाहे वह मुद्रास्फीति हो, या अर्थव्यवस्था में निवेश का निराशाजनक माहौल अथवा वैश्विक घटनाक्रमों की अनिश्चितताएं हों. और नीतिगत चुनौती इसी में छिपी होती है.''

इंडिया टुडे के संपादकीय निदेशक एम.जे. अकबर ने यह टिप्पणी करके मंच पर चर्चा को तुरंत हवा दे दी कि ''भ्रष्टाचार सुशासन के सामने सबसे बड़ी चुनौती के रूप में उभर रहा है.'' इस पर अच्छी बहस पसंद करने वाले रेड्डी ने, भले ही वे हारते हुए पक्ष में हों, जल्दी लाए जा रहे भ्रष्टाचार निरोधी विधेयकों की सूची गिना दी. उन्होंने कहा, ''हमारी सरकार ने भ्रष्टाचार से निबटने के लिए पांच सूत्री संस्थागत रणनीति अपनाई है. मजबूत लोकपाल बनाना निश्चित तौर पर उनमें से एक है.'' लेकिन उत्तराखंड की  मिसाल के सामने सरकार की सदाशयता फीकी पड़ गई. मुख्यमंत्री भुवनचंद्र खंडूड़ी 1 नवंबर को जन लोकपाल विधेयक का अण्णा हजारे संस्करण पारित करा चुके हैं.

झक सफेद कुर्ता पहने हरियाणा के मंत्री रणदीप सिंह सुरजेवाला पैनल के युवा और उत्साही वक्ता थे. उन्होंने कहा, ''निर्णय प्रक्रिया में शामिल रहने की वजह से मैं कभी गलत भी हो सकता हूं. अगर मुझे ठीक रहना है, तो बेईमान बने बिना आपको मुझे गलत होने का विशेषाधिकार देना होगा.'' दर्शकों में से सवाल दागा गया कि क्या सरकार में निकम्मापन घर कर गया है, तो सरकार के प्रवक्ता बन गए रेड्डी ने इसका खंडन किया, लेकिन खंडूड़ी ने कहा, ''हमारी व्यवस्था बीमार हो चुकी है. ऐसा विश्लेषण है, जो निकम्मेपन का संकेत देता है.''

अगली चर्चा में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण और असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई में इस बात को लेकर बहस हो गई कि क्या राज्‍यों को केंद्र से उचित वित्तीय सहायता मिलती है. केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री सी.पी. जोशी कर रहे थे. चव्हाण ने कहा कि योजना आयोग को राज्‍यों के लिए अपने कार्यक्रमों की फिर से समीक्षा करनी चाहिए, क्योंकि ''सभी के लिए एक जैसी योजनाएं तो राज्‍यों के भीतर भी कारगर नहीं हो पातीं.'' अपने राज्‍य के लिए पैसा जुटाने की कोशिशें गिनाते हुए उन्होंने नवी मुंबई हवाई अड्डे सरीखी विशाल अधोसंरचना परियोजनाओं के पांच उदाहरण दिए, जिनमें 50,000-50,000 करोड़ रु. से अधिक की जरूरत होगी.

अपनी लड़कपन वाली मुस्कराहट के साथ चव्हाण ने कहा, ''ये सिर्फ मुंबई की नहीं, राष्ट्रीय परियोजनाएं हैं.'' मटमैले रंग का बंद गले का सूट पहने उतने ही चतुर-चालाक गोगोई ने भी अपने राज्‍य की वकालत करते हुए यह दावा किया कि पूर्वोत्तर को उसी पैमाने से नहीं नापा जा सकता है, जिससे बाकी भारत को नापा जा सकता है. उन्होंने उस इलाके की भौगोलिक स्थिति, आतंकवाद और कामकाज की संक्षिप्त अवधि (लंबे मानसून के कारण वहां छह महीने ही काम हो पाता है) जैसी समस्याएं गिना डालीं.

इस पर महज तर्क के लिए तर्क देने के अंदाज में जोशी उतरे. उन्होंने कहा कि केंद्र पहले ही 90:10 के फॉर्मूले के आधार पर पूर्वोत्तर को पैसा दे रहा है. गोगोई ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि स्थानीय समस्याओं में सरकार की भूमिका अभी भी कम ही है. उनका कहना था कि आपदा राहत के लिए मिल रहा पैसा जमीन के कटाव की उस समस्या में काम नहीं आता, जो असम में बड़े पैमाने पर जारी है.

नैनो परियोजना को  गुजरात के हाथों गंवा देने के बारे में पूछे जाने पर चव्हाण ने कहा कि गुजरात सरकार ने परियोजना को 300 फीसदी ब्याज मुक्त कर्ज देने की पेशकश की थी, जिसका जोखिम दूसरे राज्‍य नहीं ले सकते. गोगोई ने कहा, ''मैं ब्याज मुक्त कर्ज देकर बड़े उद्योगपतियों को लुभाना नहीं चाहता. ब्याज मुक्त कर्जों की जरूरत मेरे राज्‍य के किसानों को ज्‍यादा है.''

मंच पर और मंच से इतर भी मामला कांग्रेस विरुद्ध भाजपा और केंद्र विरुद्ध राज्‍यों का था. कॉन्क्लेव से निकलते ही खंडूड़ी अण्णा हजारे से मिलने के लिए चले गए, जबकि आंध्र प्रदेश के  कांग्रेस सांसद मधु गौड़ यक्षी ने कार्यक्रम स्थल पर ही रेड्डी को बातों में उलझ लिया. दोनों में बातचीत का अंदाजा कोई भी लगा सकता है.

चव्हाण और गोगोई ने केंद्रीय मंत्री के रूप में अपने जमाने को याद किया और कोलकाता की उड़ान भरने के लिए रवाना हो चुके प्रणबदा के बारे में पुरानी बातें याद कीं. वहां ममता बनर्जी फिर धौंसपट्टी जमाने में लगी थीं. देश की हालत उन्हें पुकार रही थी.

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