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अब भाजपा-जद (यू) में तनातनी

राज्यसभा में उपसभापति के चुनाव को लेकर भाजपा और जद (यू) के बीच टकराव बढ़ गया है.

पीएम मोदी और नीतीश कुमार (फाइल फोटो)
पीएम मोदी और नीतीश कुमार (फाइल फोटो)
अपडेटेड 9 सितंबर , 2020

बिहार में जद (यू) और एलजेपी के बीच जारी तनातनी अभी थमा नहीं है. इसी बीच भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जद (यू) के बीच टकराव बढ़ गया है. ताजा मामला राज्यसभा में उपसभापति के चुनाव को लेकर सामने आया है. भाजपा ने इस बार उपसभापति का पद जद (यू) को देने के लिए अभी तक अपनी स्वीकृति नहीं दी है. जद (यू) से राज्यसभा के पूर्व सभापति रहे हरिवंश को दोबारा से इस पद पर लाने के लिए नीतीश कुमार ने भाजपा से आग्रह किया था. लेकिन भाजपा ने इसके लिए अपनी सहमति अभी तक नहीं दी है. उल्टा जब हरिवंश राज्यसभा के लिए जद (यू) के टिकट पर दोबारा चुनकर आए हैं तो भाजपा ने उन्हें संसद की स्थाई समिति में शामिल कर लिया. इसके जरिए भाजपा ने जद (यू) को यह संदेश देने की कोशिश की कि इस बार उपसभापति का पद उसके कोटे में नहीं जा रहा है. अमूमन जिस व्यक्ति को राज्यसभा में उपसभापति का पद दिया जाना होता है उसे संसद की स्थायी समिति में स्थान नहीं दिया जाता है. हालांकि एक विकल्प यह है कि यदि हरिवंश को सभापति बनाये जाने पर सहमति बनती है तो वह स्थायी समिति से अपना इस्तीफा दे सकते हैं.

भाजपा सूत्रों का कहना है कि इस बार उपसभापति कौन बनेगा इसका निर्णय कुछ दिनों के बाद लिया जाएगा. विदित हो कि राज्यसभा के उपसभापति का चुनाव 14 सितंबर को होना है. इसी दिन से संसद का मानसून सत्र शुरू होना है. चूंकि अभी तक एनडीए की तरफ से या यूपीए की तरफ से उपसभापति के पद के लिए किसी का नाम घोषित नहीं किया गया है, इसलिए इस बात की संभावना है कि अगले 3 दिन के अंदर अंतिम रूप से कोई फैसला हो सकेगा. भाजपा के एक महासचिव का कहना है कि एनडीए के कई दल इस पद के लिए अपनी दावेदारी कर रहे हैं. अगले साल तमिलनाडु, केरल, पुद्दुचेरी, पश्चिम बंगाल तथा असम में भी चुनाव होने हैं. इस लिहाज से उपसभापति का पद इन राज्यों के भाजपा के सहयोगी दलों को दिया जा सकता है. वैसे भी भाजपा की परंपरा रही है कि हर सहयोगी दल को सरकार और संवैधानिक पदों पर समायोजित किया जाता रहा है. इसलिए माना जाता है की उप सभापति के पद पर इस बार जद (यू) की जगह किसी और को दिया जा सकता है.

गौरतलब कि भाजपा और जद (यू) के बीच सहयोग तो है लेकिन विश्वास की कमी के कई उदाहरण भी हैं. बिहार में इस वक्त सीट बंटवारे को लेकर भाजपा-जद (यू) में असहमति है. दोनों पार्टियां ज्यादा सीट पर लड़ना चाहती हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में दोनों दल बिहार में 17-17 सीटों पर लड़ी थी. लेकिन मंत्रिमंडल में जद (यू) का कोई मंत्री नहीं बना. भाजपा ने जद (यू) के कोटे से सिर्फ एक मंत्री बनाने का प्रस्ताव दिया था, जिसे लेने से नीतीश कुमार ने यह कहते हुए मना कर दिया कि मंत्रिमंडल में आनुपातिक प्रतिनिधित्व होना चाहिए. अर्थात् जितने भाजपा के कोटे से मंत्री बनाए जा रहे हैं उतने ही या उससे एक कम जद (यू) के कोटे से भी मंत्री बनाया जाए. बिहार में भाजपा 17 सीटों पर लड़ी थी और सभी पर जीत हासिल की थी. जद (यू) भी 17 सीटों पर लड़ा और 16 सीटों पर जीत हासिल करने में सफल रहा. बहरहाल, दोनों दलों के बीच जारी खींचतान का असर बिहार विधानसभा चुनाव पर भी पड़ सकता है.

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