“पिछले 15 दिनों से हम लोग लगे थे, गांव-गांव जाकर मीटिंग करते थे और दीदियों को समझाते थे कि दीदी वोट कीजियेगा, मतदान जरूरी है. जीविका की तरफ से हम लोगों को ऐसा करने कहा गया था. वोटिंग के दिन तो सुबह छह बजे से शाम पांच बजे तक एक घर से दूसरे घर दौड़ते रहे और अपने इलाके की ज्यादातर औरतों से वोट डलवा लिया.” बिहार की राजधानी पटना से सटे बिहटा कस्बे की रानी देवी ने हमें जब यह बताया, तो इसके पीछे बिहार विधानसभा चुनाव में महिलाओं की अभूतपूर्व वोटिंग की कहानी छिपी नजर आई.
बिहार राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन जिसे संक्षेप में जीविका (Jeevika) भी कहा जाता है, जिसकी इस चुनाव के दौरान और नतीजे के बाद काफी चर्चा हो रही है, रानी देवी इसी जीविका मिशन की संकुल स्तरीय फेडरेशन, बिहटा की अध्यक्ष हैं. उनके इस संगठन में 60 ग्राम स्तरीय संगठन हैं, जिनमें 60 सीएम (कम्युनिटी मोबिलाइज़र) दीदियां काम करती हैं. उन्होंने बताया कि ऐसा सिर्फ उन्होंने नहीं किया उनके साथ जुड़ी सभी सीएम दीदियों को जीविका की तरफ से ऐसा करने का निर्देश था.
लगभग ऐसी ही कहानी इस संवाददाता को अरवल जिले के अवगीला गांव की सीएम दीदी सुनीता देवी ने भी सुनाई. उन्होंने बताया, “हमलोगों को भोटर (वोटर) लिस्ट मिला था. एक-एक महिला को बूथ पर ले जाकर भोट डलवाने की ड्यूटी थी. हम लोग भी एक-एक लेडिज से भोट डलवा दिये. अब वही बच गई जो गांव में नहीं रहती थीं.” इसी पंचायत की एक और सीएम दीदी मीनता कुमारी ने कहा, “जीविका की डीपीएम मैडम ने बोला था कि यह काम करना है. भोटिंग के दिन सीसी दीदी (कम्युनिटी कोआर्डिनेटर) और एससी दीदी(एरिया कोआर्डिनेटर) फोन करके बार-बार पूछती कि कितना हुआ, कितना रह गया. हम लोगों को महिलाओं को बूथ पर ले जाने के लिए टोटो (ई-रिक्शा) भी मिला था.”
जीविका मिशन से जुड़ी इन सीएम दीदियों की कहानी से यह जाहिर होता है कि बिहार विधानसभा चुनाव में महिलाओं के ऐतिहासिक वोटर टर्नआउट के जो आंकड़े सामने आये हैं, वे अनायास नहीं हैं. इसके पीछे इन महिलाओं की कड़ी मेहनत रही है. चुनाव आयोग ने भी अपनी प्रेस विज्ञप्ति में खास तौर पर इन महिलाओं का उल्लेख किया है और लिखा है कि 1.80 लाख जीविका दीदियों से मतदान प्रक्रिया में भागीदारी की. हालांकि उस रिलीज में यह साफ नहीं किया गया कि उनकी भूमिका किस रूप में थी.
जब हमने इस संबंध में मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी, बिहार के दफ्तर से संपर्क किया तो बताया गया कि इन महिलाओं की भूमिका मुख्यतः स्वीप एक्टिविटी के तहत मतदान जागरूकता में ही रही. बाकी कुछ महिलाओं ने मतदाताओं के मोबाइल रखने और पर्दानशी महिलाओं की पहचान करने के काम में भी हमारा सहयोग किया. हालांकि कई बार संपर्क करने पर भी मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी ने इस संबंध में कोई आधिकारिक जवाब नहीं दिया.
दरअसल इस चुनाव में महिला वोटरों के टर्नआउट, उनके एनडीए के पक्ष में मतदान और इस पूरे मसले में जीविका दीदियों की अलग तरह की भूमिका की काफी चर्चा है. विपक्षी दल लगातार सवाल उठा रहे हैं कि चुनाव के ऐन पहले जीविका मिशन के जरिये मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना की शुरुआत करना और आदर्श आचार संहिता के दौरान भी इस योजना के तहत 1.5 करोड़ से अधिक ऐसी महिलाओं के खाते में दस-दस हजार रुपये भेजना एक तरह से वोट खरीदना था.
चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक इस चुनाव में 62.8 फीसदी पुरुषों के मुकाबले 71.6 फीसदी महिलाओं ने मतदान किया. यह अंतर लगभग 8.8 फीसदी का रहा. वहीं सी-वोटर के संस्थापक यशवंत देशमुख ने एक इंटरव्यू में बताया, “हमारी संस्था ने चुनाव के बाद आंकड़ों का जो विश्लेषण किया उसके मुताबिक दोनों गठबंधन के बीच पुरुष मतदाताओं का फर्क तो बमुश्किल दो या तीन फीसदी का था लेकिन महिलाओं ने महागठबंधन के मुकाबले एनडीए को लगभग 16 फीसदी अधिक वोट डाले और इस मामले में राजद का एमवाई समीकरण भी टूट गया.” राजद का कोर समर्थक माने जाने वाले समूह यादव और मुस्लिम समाज की महिलाओं ने भी एनडीए को वोट किया.
मगर महिला वोटरों का एनडीए के पक्ष में इस तरह आना क्या स्वाभाविक था या जिस तरह जीविका दीदियों की सक्रिय भूमिका की वजह से वोटर टर्नआउट बढ़ा, वैसे ही क्या जीविका दीदियों ने किसी पोलिटिकल पोलिंग एजेंट की तरह इस चुनाव में एनडीए के लिए मददगार की भूमिका निभाई? यह बड़ा सवाल है.
हालांकि यह सवाल पूछने पर ज्यादातर सीएम दीदियों ने कहा कि उन्होंने सिर्फ महिलाओं से वोट करने कहा, किसी से यह नहीं कहा कि वोट किसे देना है, किसे नहीं. बिहटा की रानी देवी ने कहा, “हम यही कहते थे, अपना मत का दान है, जिसको देना है दीजिये, मगर भोट जरूर दीजिये.” हालांकि रानी देवी को यह आभास था कि मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना एक तरह से वोट खरीदने की योजना है. 18 सितंबर, 2025 को जब इंडिया टुडे संवाददाता से उनकी मुलाकात हुई थी तो उन्होंने कहा था, “हमने सभी दीदियों से कह दिया है, दीदी ये वोट का घूस नहीं है.” (तब मैगजीन में प्रकाशित हुई रिपोर्ट )
वहीं अरवल की सुशीला देवी बोलीं, “हम लोग किसी से कुछ नहीं बोले कि किसको भोट देना है, किसको नहीं. लेकिन लेडिज लोग अपने बोलती थीं, जो दस हजार दिया है, उसको भोट कैसे नहीं देंगे.”
मगर नाम जाहिर न करने पर दक्षिण बिहार की एक जीविका दीदी ने हमें बताया, “महिलाओं का भोट उसी को पड़ा है, जिसको सीएम दीदी ने कहा. हमारी जानकारी में सीएम दीदियां महिलाओं से कहती थीं, जिसका खा रही हैं, उसको नहीं जिताइयेगा.” वे आगे बताती हैं, “सीएम दीदियां पार्टी (JDU) वालों के भी संपर्क में थीं, उनको कुछ फायदा भी पार्टी से मिला है. इसलिए इस चुनाव में जी-जान से काम की हैं.”
दरअसल बिहार में 70 हजार के करीब जीविका से जुड़ी महिलाओं के ग्राम स्तरीय संगठन हैं. इन संगठनों की बुक कीपिंग का काम देखने वाली सीएम दीदियां की भूमिका इन महिलाओं को प्रेरित करने में महत्वपूर्ण मानी जाती है. इस साल 29 अगस्त को जब नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत जीविका से जुड़ी हर महिला को स्वरोजगार के लिए दस-दस हजार रुपये दिये जाने की घोषणा की तो इन सीएम दीदियों की भूमिका अचानक काफी महत्वपूर्ण हो गई. क्योंकि एक तो इन्हें ही इस योजना का फॉर्म भरवाकर लेना था और दूसरा जो नई महिला इस योजना का लाभ उठाने के लिए जीविका मिशन से जुड़ना चाहती थीं, उन्हें भी सीएम दीदियों की ही मदद लेनी पड़ी.
देर-सवेर मुख्य विपक्षी दल राजद ने भी सीएम दीदियों का महत्व समझ लिया और तेजस्वी यादव ने 22 अक्टूबर, 2025 को घोषणा की कि जीविका में अब तक पार्ट टाइम सेवाएं देने वाली सीएम दीदियों को उनकी सरकार बनने के बाद स्थायी किया जायेगा और उन्हें 30 हजार रुपये प्रति माह का मानदेय दिया जायेगा. मगर इतनी देर से की गई इस घोषणा का कोई खास असर नहीं हुआ.
इस चुनाव में जीविका से जुड़ी सीएम दीदियों ने इतनी मेहनत क्यों की और जीविका मिशन ने उन्हें इस काम के लिए क्यों इस्तेमाल किया? यह जानने के लिए हमने जीविका मिशन के सीईओ हिमांशु शर्मा से बात करने के लिए कई बार उन्हें फोन किया, मगर वे उपलब्ध नहीं हुए. जीविका से जुड़े लोगों ने बताया कि पहले के चुनावों में भी जीविका से जुड़ी महिलाएं और स्कीम वर्करों का इस्तेमाल मतदाता जागरूकता अभियान में होता रहा है.
हालांकि जीविका से जुड़े कुछ लोगों ने हमें यह सूचना भी दी कि इस बार का अभियान थोड़ा अलग था. पहले कभी वोटर टर्नआउट बढ़ाने के लिए चुनाव के दिन इनकी ड्यूटी नहीं लगती थी. मगर इस बार उन्हें किसी पोलिंग एजेंट की तरह मतदाता सूची पकड़ाई गई. पूरी योजना के तहत थ्री नॉक सिस्टम बना. यानी हर महिला वोटर के दरवाजे पर दिन में तीन बार दस्तक देना था, जब तक वे वोट करने नहीं चली जाएं. पूरी प्रक्रिया की निगरानी की गई और यह सुनिश्चित किया गया कि जीविका से जुड़ी सभी महिलाएं मतदान करें. सीएम दीदियों को इसका टारगेट दिया गया. इसका बकायदा एमआईएस (Management Information System) बना यानी कि उन्हें ट्रैक किया जा सकता था. यह बिल्कुल नई बात थी.
इस चुनाव में यह भी देखा गया कि आचार संहिता लागू होने से पहले एनडीए की जितनी सभाएं हुईं उनमें जीविका दीदियों को लाने और ले जाने की व्यवस्था की गई. तो क्या इस चुनाव में सचमुच जीविका की सीएम दीदियों की भूमिका किसी पॉलिटिकल पार्टी की पोलिंग एजेंट जैसी रही? अगर सचमुच ऐसा रहा तो यह भी इस चुनाव का एक ऐतिहासिक तथ्य होगा कि किसी गठबंधन के पास महिला वोटरों को मोबिलाइज करने के लिए इतनी बड़ी संख्या में महिलाएं थीं, जिन्होंने इस चुनाव में न सिर्फ बड़ी संख्या में महिलाओं को बूथ तक पहुंचाया बल्कि उन्हें सरकार के पक्ष में वोट डालने के लिए प्रेरित किया. क्योंकि अमूमन हर पार्टी में बूथ लेवल एजेंट पुरुष ही होते हैं, महिलाएं नहीं.
इस मसले पर बिहार में महिलाओं के मुद्दे पर काम करने वाली द हंगर प्रोजेक्ट से जुड़ीं सामाजिक कार्यकर्ता शाहिना परवीन कहती हैं, “मुझे जीविका संगठन को मतदाता जागरूकता अभियान में शामिल किया जाना गलत नहीं लगता. मगर चुनाव के दिन बूथ पर लोगों को ले जाना पोलिंग एजेंट का काम है, इसे मतदाता जागरूकता की तरह नहीं देखा जा सकता. खास तौर पर इसमें जीविका की सीएम दीदियों को शामिल करना क्योंकि इनका जीविका दीदियों पर सबसे अधिक नियंत्रण रहता है. वही उन्हें लोन देती हैं और अभी महिला रोजगार योजना की राशि भी उनकी ही मदद से उन्हें मिली है. ऐसे में चुनाव के दिन इनकी सक्रियता मतदान को प्रभावित करने वाली हो सकती हैं.”
वहीं टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के पूर्व प्राध्यापक पुष्पेंद्र इस मसले पर थोड़ी अलग राय रखते हैं. वे कहते हैं, “मतदाता जागरूकता का काम स्वयंसेवा का काम है. मगर ऊपर से तो जीविका भले एक स्वयंसेवी संगठन की तरह लगे, लेकिन असल में ऐसा है नहीं. इस पर पूरी तरह सरकार का नियंत्रण रहता है, इन्हें सरकार से पैसे मिलते हैं, इनका रूटीन जीविका मिशन से जुड़े सरकारी अधिकारी तय करते हैं. जो जीविका दीदियों मतदाता जागरूकता के काम में लगी हैं, वे भी स्वेच्छा से नहीं बल्कि सरकारी आदेश और निर्देश पर इस काम में लगी हैं. ऐन चुनाव से पहले इन महिलाओं के लिए सरकार ने बड़ी महत्वाकांक्षी योजना लागू की है. इसके पैसे महिलाओं के खाते में गये हैं. ऐसे में अगर सरकारी सिस्टम इन्हें जरा-सा हिंट कर दे तो ये वोटिंग को प्रभावित कर सकती हैं. पहली बार बिहार की गरीब महिलाओं के खाते में दस हजार रुपये गये हैं, इन गरीब महिलाओं को इन पैसों के ऐवज में भावनात्मक रूप से सत्ता के पक्ष में इस्तेमाल करना काफी आसान है.”
देश के दूसरे राज्यों में भी आजीविका मिशन है और वहां भी महिलाएं इनसे जुड़ी हैं. मगर इन महिलाओं के चुनावी इस्तेमाल की खबरें सिर्फ बिहार से आती हैं. अब तक इनका सीमित चुनावी इस्तेमाल होता रहा है. इन बातों का हवाला देते हुए पुष्पेंद्र कहते हैं, “इस बार पहले इन्हें आर्थिक सहायता दी गई, फिर इन महिलाओं का वोटिंग बढ़ाने के नाम पर खुलकर इस्तेमाल हुआ, जिसके नतीजे भी दिख रहे हैं. इसलिए न सिर्फ यह अनैतिक है, बल्कि खतरा है कि आने वाले चुनावों में दूसरे राज्यों में भी सत्ता पक्ष इस पैटर्न को अपनाए.”

