
हटा चीनी मिल के पास बने एक देवी मंदिर में दो दर्जन से ज्यादा महिलाएं बैठी हैं और वे अपने-अपने जीविका समूह की बैठक कर रही हैं. उन्हीं के पास आधा दर्जन ऐसी महिलाएं भी आई हैं, जो जीविका से जुड़ना और किसी समूह का सदस्य बनना चाहती हैं. उन्हीं में से एक उषा देवी हैं, जो गिलट के पायल बेचने का काम करती हैं. वे कहती हैं, ''पता चला है कि जीविका से जुड़ने से रोजगार करने के लिए लोन मिलने वाला है, इसलिए हम यहां जुड़ने आए हैं, अब तक पिराइवेट (प्राइवेट) बैंक से लोन लेकर धंधा करते हैं, उसमें बहुत सूद लगता है.’’
उन्हीं के साथ बैठीं सुनीता देवी कहती हैं, ''रोजगार के लिए दस हजार मिलेगा तो साग-सब्जी का दोकान खोल लेंगे.’’ वहां ललिता देवी और सोनी कुमारी जैसी महिलाएं भी हैं, जिन्हें घर वालों ने भेज दिया है कि जीविका समूह से जुड़ जाना है, तो वे आ गई हैं. वे कौन-सा रोजगार करना चाहती हैं, कैसे करेंगी, जीविका समूह से जुड़कर क्या होगा? यह सब उन्हें कुछ नहीं मालूम. उन्हें बस यह बताया गया है कि समूह से जुड़ने पर रोजगार के लिए दस हजार रुपए मिलेंगे.
रोजगार में अनुभवी उषा देवी से लेकर सोनी देवी जैसी विशुद्ध गृहिणी तक, पूरे बिहार में ऐसी लाखों महिलाएं हैं, जो बिहार सरकार के महिला स्वयं सहायता समूह जीविका से जुड़ने की कोशिश में हैं. इसकी वजह यह है कि बिहार सरकार ने राज्य के हर परिवार से एक महिला सदस्य को अपना रोजगार शुरू करने के लिए दस हजार रुपए की शुरुआती सहायता देने का ऐलान किया है.
जब आप यह खबर पढ़ रहे होंगे, मुमकिन है तब तक पहले चरण में 75 लाख महिलाओं के खाते में यह रकम जा चुकी होगी.
बिहार में महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में अब तक किए गए कार्यों में इसे सबसे महत्वाकांक्षी माना जा रहा है. 29 अगस्त, 2025 को इस योजना का ऐलान करते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने सोशल मीडिया पर लिखा, ''इस योजना का मकसद राज्य के सभी परिवारों की एक-एक महिला को रोजगार शुरू करने के लिए आर्थिक सहायता देना है. सितंबर महीने में महिलाओं के खाते में इस राशि का हस्तांतरण शुरू कर दिया जाएगा.’’
बाद में सरकार ने साफ किया कि इस योजना का लाभ सिर्फ जीविका से जुड़ी महिलाओं को मिलेगा और जो महिलाएं जीविका से नहीं जुड़ी हैं, उन्हें इससे जुड़ने का मौका दिया जाएगा. बिहटा समेत बिहार के अलग-अलग इलाकों में इसी वजह से जीविका से जुडऩे के लिए भीड़ लग रही है.
इस माहौल को और साफ करती हुईं बिहटा में महिला ग्राम संगठन की अध्यक्ष रानी देवी कहती हैं, ''हम अकेले आठ-नौ नए समूह बना चुके हैं और जिन समूहों में पहले 10-12 महिलाएं हुआ करती थीं, उनकी संख्या भी हम लोगों ने 15-16 कर दी है. बिहटा में पहले 9,000 महिलाएं जीविका से जुड़ी थीं.
अभी जैसी मांग हमारे पास आ रही है, उससे लगता है अगले महीने तक हम लोगों की संख्या 17,000-18,000 हो जाएगी.’’ रानी देवी की बातों में तब कोई अतिशयोक्ति नहीं नजर आती जब जीविका के सीईओ हिमांशु शर्मा कहते हैं कि ''अभी हमारे संगठन से 1.40 करोड़ महिलाएं जुड़ी हैं. उम्मीद है कि इस महीने के आखिर तक 40 से 50 लाख महिलाएं और जुड़ जाएंगी.’’
रानी देवी कहती हैं, ''पहले हम लोग घर-घर जाकर महिलाओं की खुशामद करते थे कि हमारे साथ जुड़ जाइए. अब महिलाएं तो महिलाएं, उनके पति भी आकर कहते हैं, 'हमारी पत्नी को जीविका का मेंबर बना लीजिए.’ कल तो एक भैया आकर पूछने लगे कि क्या पुरुषों का ऐसा कोई समूह नहीं बनता है?’’
एक खास बात यह भी है कि अब तक जिन परिवारों में जीविका समूहों को हेय दृष्टि से देखा जाता था और महिलाओं को पर्दे में रखने की प्रवृत्ति थी, लोग नहीं चाहते थे कि उनके घरों की औरतें अलग-अलग धर्म और जाति की महिलाओं के साथ उठे-बैठें, वे भी अब इस कोशिश में हैं कि उनके घरों की औरतों का नाम जीविका में जुड़वा दें.
इसी तरह भोजपुर जिले की चंदा पंचायत में आकर चार-पांच महिलाओं ने इंडिया टुडे से शिकायत की कि उन्हें जीविका से जोड़ा नहीं जा रहा, वे कई बार अपने इलाके की जीविका मित्र दीदी को कह चुकी हैं. उधर, पंचायत की जीविका मित्र वैजयंती देवी कहती हैं, ''हमारे गांव की 162 महिलाएं पहले से जीविका से जुड़ी हैं, हमने उन सबका रोजगार योजना के लिए आवेदन कर दिया है.

अब 15 से ज्यादा महिलाओं ने मेरे पास जीविका से जुड़ने का आवेदन किया है, और भी कई औरतें हैं, जो जुड़ना चाहती हैं.’’
ऐसे कई उदाहरण बता रहे हैं कि इस योजना को लेकर शहर से लेकर गांव तक काफी क्रेज है. मगर इसके साथ-साथ कुछ सवाल भी उठ रहे हैं.
पहला तो यही कि सिर्फ 10,000 रुपए से क्या कोई रोजगार हो सकता है? दूसरा, यह योजना अभी क्यों लागू की जा रही है? कहीं इसका मकसद चुनाव में महिला वोटरों को अपने पाले में करना तो नहीं? इंडिया टुडे ने इन दोनों सवालों को लेकर गांव की महिलाओं से लेकर जीविका के सीईओ तक से बातचीत की.
चंदा पंचायत में लोग मुख्य रूप से खेती-किसानी से जुड़े हैं. वहां की महिलाओं ने इस योजना के तहत अमूमन पशुपालन को चुना है. वहां कई महिलाओं ने बताया कि वे गाय-भैंस पालन करना चाहती हैं. जब उनसे पूछा गया कि सिर्फ दस हजार रुपए में क्या होगा, तो वे कोई ढंग का जवाब नहीं दे पाईं. बहुत पूछने पर सुनीता देवी कहती हैं, ''कुछ नहीं होगा तो चारा काटने वाला ही खरीद लेंगे.’’ वहीं अंजलि कहती हैं, ''नीतीश जी ने रोजगार के लिए पैसे दिए भी तो सिर्फ 10,000. इतने में क्या होगा? कम से कम 50,000 रु. तो देना चाहिए.’’
हालांकि इसके बावजूद कोई भी महिला इस रोजगार योजना को छोड़ना नहीं चाहती. मोटे तौर पर उनका यही कहना होता है, ''कुछ पैसे मिल तो रहे हैं. जो काम चल रहा है, उसी में सहयोग हो जाएगा.’’ इस योजना के तहत सरकार ने 17 तरह के रोजगारों की सूची तैयार की है इसके अलावा एक विकल्प दिया गया है कि अगर कोई अलग व्यवसाय करना चाहती हों तो बता सकती हैं. चूंकि मदद की शुरुआती राशि सिर्फ 10,000 रुपए है, तो ज्यादातर महिलाएं अपने पुराने रोजगार-धंधे में ही उस पैसे को लगाने की बात करती हैं. नया रोजगार शुरू करने की बात कम ही करती हैं.
यह सवाल पूछने पर जीविका के सीईओ हिमांशु शर्मा कहते हैं, ''ग्रामीण क्षेत्रों में कई ऐसे रोजगार हैं, जो 10,000 रुपए में शुरू हो सकते हैं. सतत जीविकोपार्जन योजना चलाते वक्त हमने महसूस किया कि गांव की महिलाएं 10,000 रुपए में भी बहुत कुछ करने का माद्दा रखती हैं. सतत जीविकापार्जन में भी मॉडल लगभग ऐसा ही था. उसकी सफलता को देखते हुए ही यह योजना शुरू की गई. इसको लेकर ग्रामीण महिलाओं में उत्साह भी है. अक्तूबर के पहले हफ्ते से हम ट्रेनिंग और कैपिसिटी बिल्डिंग का कार्यक्रम शुरू करेंगे. सुनिश्चित करेंगे कि रोजगार मिले और उद्यम स्थापित हो.’’
सवाल पैसों का तो है ही, टाइमिंग का भी है. यह योजना चुनाव के वक्त क्यों? इस बात को लेकर जमीनी स्तर पर जीविका के लिए काम करने वाली महिलाएं अलर्ट हैं.
बिहटा की रानी देवी कहती हैं, ''हमने सभी दीदियों से कह दिया है, 'दीदी ये वोट का घूस नहीं है. मुख्यमंत्री जी ने यह पैसा हम महिलाओं को अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए दिया है. रोजगार में जुटिएगा तो आगे दो लाख रुपए का फायदा होगा, नहीं तो नहीं. हम सभी विलेज ऑर्गेनाइजेशन की लीडर दीदियों का काम इन महिलाओं की निगरानी करना भी है. हम इन दीदी लोगों को डराए हुए हैं कि रोजगार नहीं कीजिएगा तो सरकार पैसा वापस ले लेगी.’’
वे यह भी बताती हैं, ''हमारे साथ जितनी नई महिलाएं जुड़ रही हैं, उनको भी हमने कह दिया है: सिर्फ रोजगार योजना के लिए मत जुडि़ए, आप जीविका समूह में आएंगी तो नियमित बचत भी करनी पड़ेगी. जैसे पुरानी दीदियां दस-दस रुपए जमा करती हैं, वैसे करना पड़ेगा.’’ सरकार की योजना जिस मकसद से भी शुरू हुई हो मगर वे इस खतरे को समझती हैं कि थोड़ी-सी लापरवाही से यह पूरा पैसा डूब सकता है.
बहरहाल, जीविका के सीईओ हिमांशु शर्मा इस बात को लेकर निश्चित हैं कि कोई पैसा नहीं डूबेगा. उनकी राय में, ''महिलाएं बचत की उस्ताद होती हैं. हम अपने घरों में भी सारा पैसा इसलिए महिलाओं को दे देते हैं कि वे बहुत सोच-समझकर खर्च करती हैं. बेवजह के काम में उड़ाती नहीं हैं. इसलिए ये औरतें भी इनका सदुपयोग ही करेंगी, मुझे ऐसा भरोसा है. इसके अलावा पूरी टीम इस योजना को ठीक से लागू कराने में जुटी रहेगी.’’
टाइमिंग के सवाल पर वे कहते हैं, ''चूंकि सिर्फ दो महीने पर जे-पाल और केपीएमजी जैसी संस्थाओं ने सतत जीविकोपार्जन की स्टडी करके हमें रिपोर्ट सौंपी है और उनके नतीजे काफी उत्साहित करने वाले हैं. बस इसलिए हम इसे पूरे राज्य में लागू करा रहे हैं. और कोई वजह नहीं है.’’
सवाल महज 10,000 रुपए देने का तो है ही, इसे दिए जाने की टाइमिंग का भी है. इसे लेकर जीविका से जुड़ी महिलाएं काफी अलर्ट हैं.

