
बिहार में चुनाव की तारीखों का ऐलान होना अभी बाकी है, लेकिन सत्ताधारी NDA और विपक्षी महागठबंधन ने चुनावी बिगुल फूंक दिया है. 22 अगस्त को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी दोनों बिहार में थे.
एक ओर जहां कांग्रेस राहुल गांधी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ के जरिए खोई जमीन तलाशने की कोशिश कर रही है. वहीं, BJP पीएम मोदी के सहारे राज्य में अपने दम पर सत्ता में आने की कोशिश में है.
देश में 14 महीने पहले ही लोकसभा चुनाव हुए हैं, अगर बिहार में लोकसभा जैसा ही रुझान रहा तो महागठबंधन को मिथिलांचल, तिरहुत और कोसी क्षेत्र में भारी नुकसान हो सकता है. हालांकि, लोकसभा और विधानसभा चुनाव में मुद्दे और नेतृत्व अलग होते हैं. लोकसभा में स्थानीय मुद्दों के बजाय लोग राष्ट्र के स्तर पर सोच कर वोट डालते हैं.
इसके बावजूद 2024 में लोगों ने राष्ट्रीय चुनाव में स्थानीय पार्टी JDU को BJP जितनी 12 लोकसभा सीटें देकर नीतीश कुमार को किंगमेकर बना दिया था. ऐसे में 2024 के नतीजों को पूरी तरह से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
हमने बिहार में लोकसभा चुनाव-2024 के नतीजों के ट्रेंड को समझने के लिए विधानसभावार डेटा का एनालिसिस किया तो कई हैरान करने वाले निष्कर्ष सामने आए. उदाहरण के लिए 2024 में JDU को सबसे ज्यादा 72 विधानसभा सीटों पर बढ़त मिली. जबकि BJP को 68 सीटों पर ही बढ़त मिली. इस तरह नीतीश कुमार ने साफ कर दिया कि बिहार की राजनीति में बड़े भाई की भूमिका में अब भी उनकी पार्टी JDU ही है.
भले ही कांग्रेस और RJD को 2024 चुनाव में 2014 की तुलना में 8 ज्यादा लोकसभा सीटें मिली हों, लेकिन महागठबंधन के लिए मुश्किलें कम नहीं हैं. इसकी वजह यह है कि 2024 में विधानसभावार रिजल्ट में RJD ने महज 35 जबकि कांग्रेस ने 13 सीटों पर बढ़त हासिल की.
बिहार को 7 हिस्सों में बांट कर समझते हैं कि 2024 लोकसभा चुनाव के विधानसभावार ट्रेंड्स क्या कह रहे हैं?
2020 विधानसभा चुनाव और मौजूदा समीकरण क्या है?


लोकसभा चुनाव 2024 में विधानसभावार नतीजों में किस गठबंधन की क्या स्थिति रही-



लोकसभा चुनाव 2024 के रिजल्ट के आधार पर 4 अहम निष्कर्ष निकलता है-
1. सीमांचल, शाहबाद में महागठबंधन को बढ़त, तिरहुत और मिथिलांचल में नुकसान
2024 लोकसभा ट्रेंड्स को देखें तो एक बात तो साफ है कि महागठबंधन को सबसे ज्यादा नुकसान तिरहुत और मिथिला के क्षेत्र में हुआ है.
2020 में महागठबंधन ने इन दोनों क्षेत्रों के कुल 110 सीटों में से 43 सीटों पर जीत हासिल की थी. जबकि 2024 लोकसभा चुनाव में सिर्फ 8 सीटों पर महागठबंधन को बढ़त मिली. इसका मतलब ये हुआ कि 2020 चुनाव की तुलना में महागठबंधन को यहां 2024 में 35 विधानसभा सीटों का नुकसान हुआ.
वहीं, NDA की बात करें तो 2020 चुनाव में मिथिला और तिरहुत में 66 सीटों पर जीती थीं, लेकिन 2024 में NDA को यहां 100 विधानसभा सीटों पर बढ़त मिली. मतलब तिरहुत, मिथिला में NDA को सीधे-सीधे 44 ज्यादा सीटों पर फायदा हुआ.
2025 विधानसभा चुनाव से पहले राहुल और तेजस्वी मिथिलांचल और तिरहुत की 20 से ज्यादा सीटों पर सीधे 'वोटर अधिकार यात्रा' के दौरान पहुंच रहे हैं. अब देखने वाली बात ये होगी कि उनकी यात्रा से महागठबंधन को यहां कितना फायदा होता है.
इसी तरह सीमांचल की बात करें तो यहां की 24 सीटों में से महागठबंधन ने 2020 में 7 सीटें जीती थीं. बाकी 5 पर AIMIM को जीत मिली थी. 2024 में महागठबंधन को यहां 8 विधानसभा सीटों पर बढ़त मिली. जबकि पप्पू यादव की वजह से 4 सीटों पर निर्दलीय और 2 पर AIMIM को बढ़त मिली.
राहुल गांधी की यात्रा के दौरान पूर्णिया में पप्पू यादव कांग्रेस का खुलकर समर्थन करते नजर आए. ऐसे में साफ है कि पप्पू यादव के समर्थन से इस क्षेत्र में महागठबंधन को और ज्यादा सीटों पर बढ़त मिल सकती है.
2. SIR से महागठबंधन को नुकसान होने की संभावना!
27 जुलाई 2025 को SIR फॉर्म जमा करने की अंतिम तिथि समाप्त होने के एक दिन बाद चुनाव आयोग ने घोषणा की कि बिहार में 65 लाख मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से हटाए जाएंगे. इनमें से उन लोगों के नाम शामिल हैं, जो मृत पाए गए, जो बिहार से बाहर रहने लगे या फिर जो किसी दूसरे जगह वोटिंग कर रहे हैं.
यह आंकड़ा कुल मतदाताओं का करीब 8.3 फीसद है. न्यूज वेबसाइट “स्क्रॉल” में छपी एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि बिहार के जिन 10 जिलों से सबसे ज्यादा वोटर लिस्ट से नाम हटाए गए हैं, उनमें से 6 ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले जिले हैं. इसमें सीमांचल क्षेत्र के सभी चार जिले - अररिया, किशनगंज, पूर्णिया और कटिहार भी शामिल हैं.
सीमांचल वही इलाका है, जहां 2014 से लेकर 2024 तक हर लोकसभा चुनाव में यहां की विधानसभावार सीटों को देखें तो महागठबंधन को बढ़त मिलता रहा है. ऐसे में अगर “स्क्रॉल” में छपी रिपोर्ट पर भरोसा करें तो सीमांचल में SIR महागठबंधन के लिए मुसीबत बन सकती है.
3. बिहार में नीतीश का जलवा अब भी कायम
सीएम नीतीश कुमार के स्वास्थ का हवाला देकर विपक्ष बार-बार सवाल उठा रहा है कि असल में सरकार BJP चला रही है. नीतीश सिर्फ मुखौटा हैं. लेकिन, 2024 लोकसभा चुनाव में सीटवार एनालिसिस करने पर हम देखते हैं कि नीतीश का जलवा अब भी कायम है. लोकसभा चुनाव में भी विधानसभावार रिजल्ट देखें तो JDU को BJP से 4 सीटों पर ज्यादा बढ़त मिली है. 72 सीटों पर बढ़त लेने वाली JDU एकलौती पार्टी है. 68 सीटों पर बढ़त लेकर BJP दूसरे स्थान पर है.
2020 विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान ने नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. उन्होंने 134 सीटों पर उम्मीदवार उतार दिए. माना जाता है कि चिराग पासवान ने सबसे ज्यादा वोट जदयू के ही काटे थे. चिराग की पार्टी को करीब 5.6 फीसद वोट मिले थे. 2020 चुनाव में नीतीश कुमार की JDU को 28 सीटों का नुकसान हुआ और सिर्फ 43 सीटों पर पार्टी को जीत हासिल हुई थी.
2024 चुनाव में एक बार फिर नीतीश कुमार ने कमाल दिखाया और BJP के बराबर 12 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की. खास बात यह है कि BJP 17 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ी थी, जबकि JDU 16 सीटों पर ही चुनाल लड़ी थी. अब अगर 2024 चुनाव के परिणाम को विधानसभा स्तर पर भी देखें तो सबसे ज्यादा 72 सीटों पर बढ़त बनाकर नीतीश कुमार ने साबित कर दिया कि अभी भी नीतीश का जलवा कायम है. 2024 के जैसा अगर 2025 में रुझान रहा तो साफ है कि इस बार भी बिहार में BJP अकेले दम पर सरकार नहीं बना पाएगी.
4. चिराग के NDA में आने से JDU और BJP को भी हुआ फायदा
चिराग पासवान की पार्टी ने 2020 विधानसभा चुनाव में सिर्फ एक सीट पर जीत हासिल की थी. लेकिन, 2024 लोकसभा चुनाव में NDA गठबंधन में होने की वजह से 29 विधानसभा सीटों पर चिराग पासवान की LJP (RV) को बढ़त मिली.
एक खास बात यह है कि चिराग पासवान की पार्टी के वोट फीसद में 2020 की तुलना में सिर्फ 1 फीसद का इजाफा हुआ था. इसके बावजूद उनकी पार्टी को 2020 विधानसभा से 28 ज्यादा सीटों पर बढ़त मिली. इसी तरह 2024 लोकसभा में 2020 की तुलना में BJP को करीब 1 फीसद जबकि JDU की करीब 3 फीसद ज्यादा वोट मिला. इस तरह साफ है कि चिराग के साथ होने से BJP और JDU को भी फायदा हुआ.
क्या इस बार प्रशांत किशोर फैक्टर भी विधानसभा में अहम भूमिका निभाएगा?
प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने घोषणा की है कि वह 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी. इसमें कम से कम 40 सीटों पर महिला उम्मीदवार और 40 अल्पसंख्यक उम्मीदवार शामिल होंगे.
वरिष्ठ पत्रकार नचिकेता नारायण बीबीसी को दिए इंटरव्यू में कहते हैं, "असदुद्दीन ओवेसी की पार्टी AIMIM को तो माना ही जाता है कि वो मुसलमानों का वोट काटती है. लेकिन बेलागंज सीट पर जन सुराज पार्टी के मोहम्मद अमजद ने उससे ज़्यादा वोट काटे हैं. ऐसे में मगध-शाहाबाद और सीमांचल क्षेत्र में जन सुराज के प्रदर्शन पर नजर रहेगी.”
CSDS के प्रोफेसर संजय कुमार के मुताबिक, "बिहार चुनाव में इस बार जनसुराज पार्टी भी एक फैक्टर है. यह कितना बड़ा है इसका पता चुनाव के बाद ही पता चलेगा. जब अक्तूबर में विधानसभा चुनाव होंगे तो लोग अपने नुमाइंदे नहीं सरकार चुनेंगे.
उस वक्त अगर ये लगने लगता है कि कोई पार्टी एकदम हाशिए पर है या फिर सरकार बनाने की स्थिति में नहीं तो ऐसे में उनकी तरफ रुझान कम हो जाता है.
मैं यह नहीं कह रहा हूं कि उनके प्रति लोगों का रुझान बिल्कुल नहीं होगा. प्रशांत किशोर कुछ न कुछ नुकसान जरूर करेंगे. वो जितना भी वोट लाएंगे, RJD और उनके सहयोगी दलों का ही नुकसान होगा.”
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बिहार: 50 सीटों के लिए 1300 KM चलेंगे राहुल! क्या है तेजस्वी का सपना पूरा करने वाला चुनावी गणित?

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले 17 अगस्त को राहुल गांधी ने ‘वोटर अधिकार यात्रा’ की शुरुआत कर दी है. इस यात्रा के दौरान कांग्रेस नेता 16 दिनों में 1300 किलोमीटर की यात्रा करेंगे, जिसके जरिए 23 जिलों की कम से कम 50 विधानसभा सीटों पर सीधे पहुंचेंगे. इनमें से 20 सीटों पर पिछली बार कांग्रेस चुनाव लड़ी थी, लेकिन सिर्फ आठ पर उसे जीत मिल पाई थी. क्या यही वजह है कि कांग्रेस इन 50 सीटों पर टारगेट कर रही है? यहां क्लिक कर पूरी स्टोरी पढ़िए.
ग्राफिक्स: नीलिमा सचान