डबल डेकर टू इलेक्ट्रिक, कैसा रहा दिल्ली में DTC बसों का अपना सफर, देखें तस्वीरें

मेट्रो को आज दिल्ली की लाइफ लाइन कहा जाता है, लेकिन असल में दिल्ली के विकास को समझना है तो सार्वजनिक परिवहन के लिए प्रयोग की जाने वाली बसों से अच्छा साधन कुछ नहीं सकता. जैसै-जैसे दिल्ली बदलती गई वैसे-वैसे दिल्ली में बसों की सूरत भी बदलती गई. एक समय में दिल्ली की सड़कों पर डबल डेकर बसें चला करती थीं और एक अब 100% इलेक्ट्रिक बसें फर्राटा भर रही हैं.

दिल्ली में लोकल बस सेवा की शुरुआत मई 1948 में हुई थी. सड़क परिवहन निगम अधिनियम, 1950 के तहत इसे फिर से दिल्ली परिवहन प्राधिकरण के रूप में पुनर्गठित किया गया. 1958 में यह दिल्ली नगर निगम का एक उपक्रम बन गया. भारत सरकार ने 1971 में दिल्ली सड़क परिवहन कानून (संशोधन) अधिनियम पारित करके इसका प्रबंधन अपने हाथ में ले लिया. इस तरह 1971 में दिल्ली परिवहन निगम (DTC) की स्थापना हुई. 1996 में निगम भारत सरकार से दिल्ली सरकार के हाथ में आ गया.
1990 के शुरुआती दशक में दिल्ली की सड़कों पर डबल डेकर की बसें देखने को मिलती थीं. ये डीजल बसें थीं और दिल्ली में प्रदूषण बढ़ाने का काम कर रही थीं.

हालांकि 2002 से दिल्ली में CNG बसों की शुरुआत हो गई. तेजी से CNG वाली बसें डीजल बसों की जगह लेने लगीं. सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण और स्वास्थ्य के खतरों को देखते हुए सरकार से डीजल बसों को CNG बसों में बदलने के निर्देश दिए थे.

नई दिल्ली के शिवाजी स्टेडियम में उच्च क्षमता वाली बस (HCB) की एक तस्वीर. ये बस 2005 के करीब आई थी. हालांकि लंबे समय तक नहीं रह पाई. इसकी कीमत लगभग 37 लाख रुपये थी. एक HCB में 35 सीटें हैं और इसमें लगभग 80 यात्रियों के बैठने की व्यवस्था थी.

दिल्ली में धीरे-धीरे CNG बसों के भी नए-नए मॉडल आने लगे. 2010 के करीब दिल्ली में सड़कों पर लाल और हरें रंग की बसें आने लगीं. ये बसें ज्यादातर अशोक लीलैंड और टाटा कंपनियों की थीं.

अब परिवहन व्यवस्था का और विकास हुआ और दिल्ली की सड़कों पर 100% इलेक्ट्रिक बसें नजर आ रही हैं. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने हाल ही में 500 नई इलेक्ट्रिक बसों को हरी झंडी दिखाई है. दिल्ली फिलहाल देश में सबसे ज्यादा इलेक्ट्रिक बसें संचालित करने वाला राज्य बन गया है और सरकार का लक्ष्य है कि 2025 तक 8000 इलेक्ट्रिक बसें दिल्ली की सड़कों पर हों.
