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भारत में अब पेनिसिलीन का उत्पादन फिर शुरू होगा, लेकिन 30 साल पहले यह बंद क्यों हो गया था?

‘पेनिसिलिन जी’ एक तरह का एपीआई है यानी एक्टिव फार्मास्यूटिकल इनग्रेडिएंट है, जिसका इस्तेमाल एंटीबायोटिक दवाइयों के उत्पादन में होता है

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने भारत में फिर से पेनिसिलिन जी के उत्पादन शुरू होने की घोषणा की है
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने भारत में फिर से पेनिसिलिन जी के उत्पादन शुरू होने की घोषणा की है
अपडेटेड 8 मार्च , 2024

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने 2 मार्च, 2024 को घोषणा की थी कि भारत में फिर से पेनिसिलिन जी का उत्पादन शुरू होगा. उन्होंने बताया कि इसी साल जून से पेनिसिलिन जी भारत में बनने लगेगा. 90 के दशक में अहमदाबाद में टोरेंट फार्मा नाम की कंपनी ने आखिरी बार इसका उत्पादन किया था.

इस दौरान चीन के सस्ते पेनिसिलिन जी ने भारतीय कंपनियों का मार्केट ख़राब कर दिया था और एक-एक कर सारे मैन्युफैक्चरिंग प्लांट्स बंद होते चले गए. अब लगभग 30 साल बाद ऐसा होगा कि भारत में पेनिसिलिन जी उत्पादन फिर से होगा.

पेनिसिलिन जी दरअसल एक तरह का एपीआई है यानी एक्टिव फार्मास्यूटिकल इनग्रेडिएंट. इसका इस्तेमाल एंटीबायोटिक दवाइयों के उत्पादन में होता है. एंटीबायोटिक दवाइयों में जहां यह पेनिसिलिन जी एक अहम इनग्रेडिएंट है तो वहीं पेरासिटामोल जैसी दवाइयों में भी इसका इस्तेमाल होता है. अमेरिका के नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के अनुसार, पेनिसिलिन जी एक ऐसा ड्रग है जिसका निमोनिया और मेनिनजाइटिस जैसे गंभीर बैक्टीरियल इन्फेक्शन्स के इलाज में इस्तेमाल होता है.

भारत में उदारीकरण के दौर से पहले सरकार के हाथों में सारी इंडस्ट्रीज और मैन्युफैक्चरिंग का कंट्रोल रहता था. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से कर्ज लेने के लिए जब भारत ने 90 के दशक में अपनी अर्थव्यवस्था खोली और उदारीकरण किया, तब कई विदेशी कंपनियां देसी मार्केट में आते ही छा गईं. ठीक यही पेनिसिलिन जी बनाने वाली भारतीय कंपनियों के साथ हुआ जो उस वक्त 800 प्रति किलो के मूल्य पर पेनिसिलिन मार्केट में सप्लाई करती थीं. उदारीकरण के बाद आई चीन की कंपनियों ने ठीक इसके आधे मूल्य पर यानी 400 रुपए में पेनिसिलिन बेचना शुरू कर दिया था.

ड्रग मैन्युफैक्चरिंग (दवाइयां बनाने वाली) कंपनियों ने भी अपना फायदा देखा और हाथों-हाथ इन चाइनीज कंपनियों की पेनिसिलिन खरीदना शुरू कर दिया. इस बदलाव का भारतीय कंपनियों पर इतना गंभीर असर पड़ा कि एक-एक कर सभी पेनिसिलिन बनाने वाली कंपनियों में ताला लग गया.

ड्रग एक्सपर्ट सीएम गुलाटी इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहते हैं, "90 के दशक की शुरुआत में भारत में लगभग 2,000 एपीआई निर्माता थे. लेकिन लगभग 10,000 इकाइयां थीं जो फॉर्मूलेशन (एपीआई का इस्तेमाल कर दवाइयां) बनाती थीं और उनके लिए सस्ते चीनी उत्पाद अधिक मायने रखते थे. ड्रग प्राइस कंट्रोल्ड आर्डर, जिसने आवश्यक दवाओं की कीमतों पर अंकुश लगाया, उसने यह भी सुनिश्चित किया कि अधिक कंपनियां सस्ते इम्पोर्टेड प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करें. आज की तारीख में देश में केवल कुछ सौ एपीआई निर्माता हैं और उनमें से ज्यादातर लोग इसका उत्पादन अपने प्रोडक्ट के लिए करते हैं, बिक्री के लिए नहीं."

भारत में आज भी सिर्फ एंटीबायोटिक दवाओं के लिए 90% एपीआई और कुल मिलाकर सभी तरह के इस्तेमाल के लिए एपीआई का लगभग 70% आयात किया जाता है. इसमें भी सबसे ज्यादा आयात चीन से होता है, जिसने 90 के दशक के बाद से ही अपने पेनिसिलिन उत्पादन को कई गुना बढ़ा लिया है.

चूंकि पेनिसिलिन के उत्पादन के लिए बहुत पूंजी चाहिए इसलिए ज्यादातर फार्मास्यूटिकल कंपनियां इसकी इकाइयों में निवेश नहीं करतीं. लेकिन केंद्र सरकार की पीएलआई यानी प्रोडक्ट लिंक्ड इंटेंसिव स्कीम की वजह से अब दोबारा इसका उत्पादन भारत में शुरू हो रहा है. इस बारे में स्वास्थ्य मंत्री ने जानकारी दी है कि हैदराबाद स्थित अरबिंदो फार्मा जून 2024 से फिर से पेनिसिलिन का उत्पादन शुरू करेगी.

पीएलआई स्कीम की बात करें तो इसके तहत फरमेंटशन-बेस्ड बल्क (थोक) ड्रग्स जैसे एंटीबायोटिक्स, एंजाइम और इंसुलिन जैसे हार्मोन की उचित बिक्री पर पहले चार वर्षों के लिए 20%, पांचवें वर्ष के लिए 15% और छठे वर्ष के लिए 5% की सरकारी वित्तीय मदद की बात कही गई है.  इंडियन ड्रग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ विरंची शाह के मुताबिक, पीएलआई योजना के लॉन्च के बाद से एपीआई के आयात में गिरावट आई है. पेरासिटामोल की ही बात करें तो कोरोना से पहले,  भारत इसके लिए भी एपीआई का दो-तिहाई आयात कर रहा थे. अब यह मात्रा आधी रह गई है.

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