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नेहरू के समय शुरू हुई ED कैसे बनी देश की सबसे ताकतवर जांच एजेंसी?

1957 में 'एन्फोर्समेंट यूनिट' का नाम बदलकर 'एन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट' हो गया और 1960 में ED का प्रशासनिक नियंत्रण राजस्व विभाग के पास चला गया

प्रवर्तन निदेशालय
प्रवर्तन निदेशालय
अपडेटेड 6 फ़रवरी , 2024

देश में कई जांच एजेंसियां हैं, लेकिन दो अक्सर विवादों में रहती हैं- CBI और ED. विपक्ष के नेताओं के खिलाफ हो रही ताबड़तोड़ कार्रवाईयों से ED यानी एन्फोर्समेंट डायरेक्टोरेट और हिंदी में कहें तों प्रवर्तन निदेशालय के ऊपर सरकार के इशारे पर काम करने के आरोप लग रहे हैं.

देश में विपक्ष के ज्यादातर बड़े नेता किसी न किसी केस को लेकर ईडी की जांच के घेरे में हैं. सीबीआई देश में जांच करने वाली सबसे बड़ी पुलिस एजेंसी के रूप में काम करती है, वहीं ईडी का मुख्य काम पैसों से जुड़े मामलों की जांच करना है.

हालांकि कुछ मामलों में ED और CBI एक साथ जांच करती हैं. जैसे पश्चिम बंगाल के स्कूल भर्ती घोटाला मामले में CBI आपराधिक एंगल, जबकि ED मनी लॉन्ड्रिंग (काले धन को वैध करना या अवैध तरीके से प्राप्त धन को छुपाना) की जांच कर रही है. लेकिन आए दिन खबरों में रहने वाली ED की कहानी क्या है? कैसे हुई थी इसकी शुरुआत? और कैसे इसका विकास हुआ?

देश में ईडी की कहानी आजादी के 10 साल बाद शुरू होती है. 1956 में केंद्र में पंडित जवाहरलाल नेहरू की सरकार थी. इसी समय विदेशों से पैसों का लेनदेन करने वालों की जांच करने की जरूरत महसूस हुई. कानून इसके लिए पहले से था. फॉरेन एक्सचेंज रेगुलेशन एक्ट, 1947 (FERA) के तहत ऐसे मामलों की जांच की जा सकती थी, बस एक सॉलिड सिस्टम की जरूरत थी. इस जरूरत को पूरा करने के लिए वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग ने एक 'एन्फोर्समेंट यूनिट' बना दी. पहले लीगल सर्विस के एक अधिकारी को इसका डायरेक्टर बनाया गया. RBI के एक अधिकारी इसके असिस्टेंट डायरेक्टर बने. मूल रूप से, इसका मुख्यालय दिल्ली में और दो शाखाएं बॉम्बे और कलकत्ता में थीं. 1957 में, मद्रास में एक और ब्रांच खोली गया. इसकी वेबसाइट के अनुसार, अब ED के ऑफिस 39 जोन में हैं.

1957 में ही 'एन्फोर्समेंट यूनिट' का नाम बदलकर 'एन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट' कर दिया गया. 1960 में, ED का प्रशासनिक नियंत्रण राजस्व विभाग के पास आ गया. 1973-77 के बीच, ईडी कार्मिक और प्रशासनिक सुधार विभाग के अधिकारक्षेत्र में रहा.

उदारीकरण की नीतियों के साथ ईडी की प्रकृति में भी बदलाव आया. पहले इसके कानून 'विनियमन' कानून थे, जबकि उदारीकरण के बाद, 'प्रबंधन' कानून बन गए. इसकी वेबसाइट के अनुसार, "आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया शुरू होने के बाद 'फॉरेन एक्सचेंज रेगुलेशन एक्ट, 1947(FERA) को 1999 में बदलकर विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 (FEMA) कर दिया गया. ये कानून एक सिविल लॉ था और 1 जून 2000 से लागू हुआ."

अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 2002 में संसद में प्रीवेन्शन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) पेश किया. हालांकि ये कानून UPA के शासनकाल में 2005 से प्रभावी हुआ. उस दौरान पी. चिदंबरम देश के वित्त मंत्री थे. बाद में विदेशों में शरण लेने वाले आर्थिक मामलों के अपराधियों की संख्या बढ़ने लगी तो 2018 में सरकार ने उनपर नियंत्रण करने के लिए ‘भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम’ (FEOA) पास कर दिया. इस कानून के बाद ईडी और ताकतवर हो चुकी थी. वर्तमान में ED चार तरह के कानूनों के तहत काम करती है- 

  1. मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम, 2002 (PMLA): यह मनी लॉन्ड्रिंग को रोकने और उसमें शामिल संपत्ति को जब्त करने के उद्देश्य से बनाया गया एक आपराधिक कानून है. इस कानून के तहत ED संपत्ति को अस्थायी रूप से जब्त कर सकती है, स्पेशल कोर्ट में अपराधियों के खिलाफ मुकदमा चला सकती है.
  2. विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 (FEMA): यह भारत में विदेशी मुद्रा बाजार से संबंधित एक नागरिक कानून है. इसकी वेबसाइट के अनुसार, "ईडी को विदेशी मुद्रा कानूनों और विनियमों के संदिग्ध उल्लंघनों की जांच करने, कानून का उल्लंघन करने वालों पर जुर्माना लगाने की जिम्मेदारी दी गई है."
  3. भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम, 2018 (FEOA): इस कानून के तहत वे लोग आते हैं जो भारत में पैसों की धोखाधड़ी करके विदेश भाग गए हो. ED इस कानून के तहत भारत में भगौड़ों की संपत्ति जब्त कर सकती है. 
  4. COFEPOSA:  विदेशी मुद्रा संरक्षण और तस्करी गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम (COFEPOSA) इस कानून के घेरे में भारतीयों के अलावा वे विदेशी लोग भी आते हैं जो सोना, नशीले पदार्थों या अन्य प्रतिबंधित वस्तुओं सहित सामानों की तस्करी में शामिल हों. या जो लोग विदेशी मुद्रा उल्लंघन में शामिल हों.

ईडी इतनी ताकतवर कैसे है?

प्रवर्तन निदेशालय (ED) के पास कुछ ऐसी शक्तियां हैं जो सीबीआई या राज्य पुलिस बलों के पास भी नहीं हैं. PMLA के तहत, ED के एक जांच अधिकारी के सामने दिया गया बयान अदालत में सबूत के तौर पर स्वीकार्य है. पुलिस को दिए गए बयान अदालत में स्वीकार्य नहीं होते, केवल मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज किए गए बयान ही स्वीकार्य होते हैं, लेकिन ED इस मामले में ज्यादा ताकतवर है. इसके अलावा PMLA के तहत दर्ज होने वाले सभी अपराध गैर-जमानती होते हैं. ईडी के पास खुद के लॉक-अप नहीं हैं, इसलिए ईडी की हिरासत में लोग नजदीकी पुलिस स्टेशन की हवालात में जाते हैं, चाहे वो कोई वीआईपी ही क्यों न हो. ईडी द्वारा  जब्त की गई संपत्ति को वापस पाने का रास्ता भी काफी मुश्किल है. इसके ट्रायल के लिए PMLA के अपने कोर्ट हैं. इस कोर्ट के जज द्वारा दिए गए फैसले को हाईकोर्ट में ही चुनौती दी जा सकती है. 

ED का अपना रिकॉर्ड काफी खराब

ईडी का अपना ट्रैक रिकॉर्ड काफी खराब रहा है. द प्रिंट के अनुसार, एजेंसी ने 2002 से 2017 के बीत केवल तीन लोगों को ही दोषी ठहराया. मजबूत कानूनों के बावजूद ED लोगों को दोषी साबित कर पाने में बड़े पैमाने पर नाकाम रही है. सितंबर 2019 में इंडियन एक्सप्रेस द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, ED के पास 2005-19 के बीच लगभग 2,400 PMLA के केस आए लेकिन इसमें केवल 8 लोग ही दोषी साबित हुए और 898 मामलों में जांच लंबित थी.

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