
फरवरी की 8 तारीख को दिल्ली विधानसभा की 70 में से 48 सीटों पर बीजेपी उम्मीदवारों को जीत मिली है. 2020 में 62 सीटों पर जीतने वाली आम आदमी पार्टी 22 सीटों पर सिमट गई. इसके साथ ही अब 27 साल बाद दिल्ली में बीजेपी की सरकार बनेगी.
बीजेपी की ओर से मुख्यमंत्री का नाम तय होना बाकी है, लेकिन ये तय है कि प्रदेश सरकार पर बढ़ रहे कर्ज के बीच अगले सीएम के सामने मुफ्त-बिजली पानी जारी रखने के अलावा और भी कई बड़ी चुनौतियां होगी. अब एक-एक कर ऐसी ही बड़ी चुनौतियों के बारे में जानते हैं…


दिल्ली सरकार पर 40 हजार करोड़ से ज्यादा कर्ज
देश के ज्यादातर प्रदेश कर्ज में हैं. दिल्ली के लिए एक अच्छी बात ये है कि राष्ट्रीय राजधानी देश के सबसे कम कर्ज लेने वाले प्रदेशों में शामिल है.
CAG रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2015-16 में कर्ज 32,497.91 करोड़ रुपए था. जो कि 2019-20 के आखिर में 34,766.84 करोड़ रुपए हो गया. मतलब इसमें 2,268.93 करोड़ रुपए यानी करीब 6.98% का इजाफा हुआ.
2022-23 में दिल्ली सरकार पर कर्ज बढ़कर 40 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा हो गया. 2024-25 में इसके और ज्यादा बढ़ने की संभावना है. हालांकि, ये भी सच है कि इन्हीं सालों में दिल्ली सरकार की आमदनी भी तेजी से बढ़ी है. यही वजह है कि दिल्ली की GDP के की तुलना में यहां सरकार पर कर्ज बाकी राज्यों से कम है.
CAG ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि वित्त वर्ष 2019-20 में दिल्ली सरकार का रेवेन्यू सरप्लस 7,499 करोड़ रुपये रहा था.

इतनी सारी फ्रीबीज योजनाओं के बावजूद दिल्ली का रेवेन्यू सरप्लस क्यों रहता है?
अक्टूबर 2024 में दिल्ली सरकार के वित्त विभाग ने सीएम को एक पत्र लिखा था. इस पत्र में वित्त विभाग ने मुख्यमंत्री सचिवालय को बताया कि पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से दिल्ली देश के रेवेन्यू सरप्लस वाले राज्यों में रहा है, लेकिन वित्त वर्ष 2024-25 के अंत तक पहली बार घाटे में आ सकता है.
दिल्ली का खर्च इसकी आमदनी से ज्यादा हो सकती है. अधिकारियों के मुताबिक वित्त वर्ष 2024-2025 में सरकार की आमदनी अनुमानित तौर पर 64,142 करोड़ रुपए से घटकर 62,415 करोड़ रुपए हो सकता है. जबकि राजस्व व्यय 60,911 करोड़ रुपए से बढ़कर 63,911 करोड़ रुपए होने की संभावना है.
दिल्ली में आमदनी ज्यादा रही तो फिर सरकार को क्यों कर्ज लेना पड़ा?
दिल्ली सरकार के पास रेवेन्यू सरप्लस होने की बड़ी वजह यह भी है कि उसके ज्यादातर कर्मचारियों की पेंशन का जिम्मा केंद्र सरकार द्वारा उठाया जाता है. इसके साथ-साथ दिल्ली पुलिस का खर्च भी गृह मंत्रालय उठाता है.
अब आप सोच रहे होंगे कि दिल्ली में खर्च से ज्यादा आमदनी रही है तो फिर दिल्ली सरकार कर्ज क्यों लेती है? दरअसल, वित्त वर्ष 2024-25 में दिल्ली सरकार को विभिन्न पूंजीगत परियोजनाओं को पूरा करने के लिए 7,000 करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी, जिनका बजट में जिक्र नहीं किया जाता है.
इन्हीं योजनाओं को पूरा करने के लिए सरकार को कर्ज लेना होता है. ये कर्ज सरकार अपनी आमदनी से उतारती है. पूंजीगत परियोजना वो परियोजनाएं होती है, जिसपर सरकार का भविष्य में कमाई के लिए इंवेस्टमेंट करती है. इससे तुरंत सरकार को आमदनी नहीं होती है.
चुनाव से ठीक पहले दिल्ली सरकार ने केंद्र से 10 हजार करोड़ कर्ज क्यों मांगे?
दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले राज्य सरकार ने चालू वित्त वर्ष 2024-25 के लिए अपने खर्च को पूरा करने के लिए राष्ट्रीय लघु बचत कोष (NSSF) से 10,000 करोड़ रुपए उधार मांगे थे.
केंद्रीय वित्त मंत्रालय को भेजे गए इस प्रस्ताव पर मुख्यमंत्री आतिशी ने हस्ताक्षर किए, जबकि दिल्ली सरकार के वित्त विभाग ने इस पर आपत्ति जताई थी. वित्त विभाग को दिल्ली में लगने जा रही आचार संहिता (एमसीसी) के कारण खर्च में कमी की उम्मीद है, ऐसे में दिल्ली सरकार का वित्त विभाग नहीं चाहता कि केंद्र सरकार से ऋण लिया जाए.
दरअसल, चुनाव प्रचार शुरू होने से पहले ही आप ने कहा था कि उनकी सरकार बिजली, पानी, महिलाओं को फ्री बस, बुजुर्ग तीर्थ यात्रा जैसी मुफ्त सेवाएं जारी रखेगी. इसके अलावा महिलाओं को 2100 रुपए भी आर्थिक सहायता दी जाएगी. इन रेवड़ी योजनाओं के लिए दिल्ली सरकार के खजाने में पैसे की कमी न हो, इसी वजह से दिल्ली सरकार ने केंद्र से कर्ज की मांग की थी.
बढ़ते कर्ज के बीच दिल्ली की नई सरकार के सामने कौन-कौन सी बड़ी चुनौतियां होंगी?
उप-राज्यपाल दफ्तर और कानूनी पेचीदगी को सुलझाना: केंद्र और दिल्ली में अलग-अलग सरकार होने की वजह से आमतौर पर यहां ज्यादातर योजनाएं कानूनी पेचीदगी में फंस जाती है.
उप-राज्यपाल दफ्तर और सीएम कार्यालय में बेहतर कोऑर्डिनेशन नहीं होने की वजह से फाइलें लंबे समय तक लटकी रहती है. आरोप-प्रत्यारोप चलता रहता है. अब बीजेपी के नेतृत्व में नई सरकार के सामने उप-राज्यपाल और सीएम कार्यालय के बीच लंबे समय से चल रही कानूनी खींचतान को सुलझाना होगा.
मई 2023 में केंद्र सरकार ने दिल्ली से जुड़े जीएनसीटीडी अधिनियम में एक संशोधन किया था, जिसमें दिल्ली में तैनात नौकरशाहों को ट्रांसफर करने और नियुक्ति करने का अधिकार एलजी को दिया गया था. इसके खिलाफ दिल्ली सरकार ने कोर्ट में याचिका दायर की है. लंबे समय से यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.
अब बीजेपी नेतृत्व वाली सरकार के सामने ये चुनौती होगी कि वो इस याचिका को वापस ले. केंद्र सरकार और दिल्ली दोनों जगहों पर बीजेपी की सरकार है. ऐसे में कहीं से भी ऐसा नहीं लगता कि अपनी ही सरकार के खिलाफ दिल्ली की बीजेपी सरकार मुकदमा जारी रखेगी.
स्वच्छ हवा-पानी और यमुना की सफाई: बीजेपी ने शहर में स्वच्छ हवा और पानी देने के साथ ही यमुना को साफ करने का भी वादा किया है. यमुना नदी का दूषित पानी लंबे समय से एक ऐसा मुद्दा रहा है, जिसे दिल्ली की कई सरकारें हल करने में असमर्थ रही हैं.
यहां तक कि केजरीवाल ने भी चुनावों से पहले कुछ साक्षात्कारों में स्वीकार किया था कि यह एक ऐसा वादा था जिसे उनकी पार्टी पिछले दो दिल्ली विधानसभा चुनावों में लगातार जीत के बावजूद पूरा करने में विफल रही. यमुना से लगे अलग रिवर फ्रंट बनाने के वादे को बीजेपी पूरा कर पाती है या नहीं ये देखने वाली बात होगी.
महिलाओं को 2500 हर महीने देने का वादा: महिलाओं को 2500 रुपए प्रतिमाह देने का वादा को पूरा करने के लिए करीब 11 हजार करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान लगाया गया है. आम आदमी पार्टी की गणना को ही मान लें तो 38 लाख महिलाएं इसकी पात्र हैं.
चुनाव आयोग की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में करीब साढ़े 24 लाख ऐसे बुजुर्ग हैं जिनकी उम्र 60 साल से अधिक है. इन्हें ढाई से तीन हजार रुपए मासिक पेंशन का वादा किया गया है. इनकी मासिक पेंशन पर भी 4,100 करोड़ रुपए के खर्च का अनुमान है. सरकार के सामने पहले से जारी मुफ्त योजनाओं को जारी रखने के अलावा एक और ‘रेवड़ी’ योजना शुरू करने की चुनौती है.
फ्री शिक्षा देने का वादा: आम आदमी पार्टी ने अपने कार्यकाल के दौरान शिक्षा को लेकर सबसे ज्यादा काम करने का दावा किया. खुद मनीष सिसोदिया और आतिशी ने शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी संभाली थी. बजट में भी इसकी झलक देखने को मिलती थी.
बीजेपी ने अपने चुनावी दावे में कहा है केजी से पीजी तक फ्री शिक्षा दी जाएगी. ऐसे में इस योजना पर बीजेपी कैसे सबको लाभ पहुंचाती है. यह देखना दिलचस्प होगा.
बीजेपी ने 2026 तक तीन नए कॉलेज और प्रतियोगी परीक्षा में भाग लेने वाले छात्रों को 15 हजार रुपए की सहायता देने का भी वादा किया है. इसके साथ ही अनुसूचित जाति और जनजाति के तकनीकी शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों को 1,000 प्रतिमाह देने का वादा किया है.
वरिष्ठ पत्रकार शरद गुप्ता ने एक इंटरव्यू में शिक्षा खर्च को लेकर कहते हैं, ''आम आदमी पार्टी ने निजी स्कूलों की फीस नहीं बढ़ने दी. यह दिल्ली में बड़ी बात है. वहीं सरकारी स्कूलों को निजी स्कूलों के स्तर पर ला दिया. ऐसे में बीजेपी शिक्षा व्यवस्था में क्या परिवर्तन लाएगी, यह देखना होगा.'
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