scorecardresearch

बम धमाके, ट्रेन हादसा, खंजर से हमला... गांधी को मारने की कितनी कोशिशें हुई थीं? 

30 जनवरी 1948 को शाम 5:17 बजे नाथूराम गोडसे गांधी के पास गया, एक पिस्तौल निकाली और प्वाइंट ब्लैंक से छाती में तीन गोलियां दाग दीं, लेकिन यह गांधी की हत्या करने की गोडसे की पहली कोशिश नहीं थी

महात्मा गांधी
महात्मा गांधी
अपडेटेड 30 जनवरी , 2024

9 सितंबर 1947 को कलकत्ता से लौटने के बाद महात्मा गांधी अल्बुकर्क रोड (अब 30 जनवरी मार्ग) स्थित बिड़ला हाउस में रह रहे थे. शुक्रवार, 30 जनवरी 1948 को एक आम दिन की तरह बिड़ला हाउस में सब लोग सुबह 3.30 बजे उठे. गांधी ने अपनी पोती आभा को उठाने की कोशिश की लेकिन वो नहीं उठी.

गांधी शौचालय से आने के बाद ध्यान में बैठ गए, सुबह की प्रार्थना भी हो गई, लेकिन आभा अभी तक नहीं उठी थी. दूसरी भतीजी मनु नाश्ता लेकर आई तो गांधी ने उससे कहा, "यदि आभा प्रार्थना में भाग लेने की इच्छुक नहीं है तो उसे मुझसे विदा ले लेनी चाहिए. ये हम दोनों की भलाई में होगा!" सुबह 6 बजे आरके नेहरू उनसे मिलने आईं. उन्हें दोपहर में अमेरिका निकलना था.

गांधी ने अपने हस्ताक्षर वाली एक तस्वीर उन्हें भेंट की और कहा, "एक गरीब राष्ट्र के प्रतिनिधि के रूप में, आपको वहां सरल और कम खर्च वाला जीवन जीना चाहिए" सर्दी के दिनों में, गांधी खुले लॉन में चारपाई पर बैठकर धूप सेंकना पसंद करते थे और जब किसी अन्य काम में व्यस्त नहीं रहते थे तो गुजराती, हिंदी और अंग्रेजी में पत्र लिखा करते थे. दोपहर 2 बजे लाइफ पत्रिका की फोटोग्राफर मार्गरेट बॉर्के व्हाइट ने एक इंटरव्यू में गांधी से पूछा कि आपने कहा है कि आप 125 साल की उम्र तक जीना चाहते हैं, तो इसपर गांधी उन्होंने जवाब दिया- दुनिया में हो रही भयानक घटनाओं के कारण अब ये कामना मैंने छोड़ दी है, मैं अंधकार में नहीं रहना चाहता.

इस बीच सरदार पटेल गांधी से मिलने आए थे. दोनों की बातचीत लंबी चली. शाम 5 बजे से प्रार्थना शुरू होनी थी. लगभग 250 लोग उनका इंतजार कर रहे थे और हर किसी की निगाहें उनके कमरे पर टिकी थीं. गांधी इस प्रार्थना में 15 मिनट लेट हो गए. वे आए और हाथ जोड़कर वहां खड़े लोगों का अभिवादन करते हुए मंच की तरफ जाने लगे. बमुश्किल पांच-छह कदम ही चले थे कि नाथूराम गोडसे ने उनकी छाती पर तड़ातड़ गोलियां बरसा दीं. गांधी वहीं गिर गए और अफरा-तफरी की स्थिति हो गई. आनन-फानन में उन्हें कमरे के भीतर ले जाया गया. जैसै ही लोगों को गांधी के निधन की खबर मिली तो लोग निशानी के तौर पर उनसे जुड़ी कोई भी चीज अपने पास रख लेना चाहते थे. कुछ लोगों ने उस जगह से मिट्टी उठानी शुरू कर दी जहां गांधी गिरे थे. कुछ ही घंटों में वहां एक बड़ा गड्ढा हो गया.

महात्मा गांधी के साथ सरदार पटेल

30 जनवरी 1948 की ये पूरी घटना महात्मा गांधी के निजी सचिव कल्याणम ने अपने लेख में विस्तार से लिखी है. लेकिन महात्मा गांधी की हत्या के प्रयास इससे पहले भी कम से कम 5 बार किए गए थे.

पहली कोशिश, 25 जून 1934, पूना

गांधी अछूतों की मुक्ति, समानता और सम्मान के लिए अपनी ऐतिहासिक हरिजन यात्रा के दौरान पूना से गुजर रहे थे. उन्हें निगम सभागार में भाषण देना था और नगर परिषद से प्रशस्ति पत्र प्राप्त करना था. अपनी किताब 'महात्मा, माई बापू' में श्रीपद जोशी बताते हैं, "पूना ने महाराष्ट्र में राष्ट्रीय भावना और सुधारवादी आंदोलनों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, लेकिन इनके साथ-साथ, प्रगतिशील विचारों के विरोध में प्रतिक्रियावादी विचारों की एक धारा चल पड़ी."  

इसी किताब में वे एक प्रत्यक्षदर्शी का बयान लिखते हैं, "गांधी के स्वागत के लिए खड़े बैंड में मैं बांसुरी बजाने वाला था. म्यूनिसिपल हॉल खचाखच भरा हुआ था और भीड़ बाहर सड़कों पर उमड़ पड़ी थी. हमने सोचा कि गांधी जी गाड़ी से उतरेंगे और हम सब उन्हें देख सकेंगे. अचानक, एक जोर का धमाका सुनाई दिया. इससे चिंतित होकर हम एक-दूसरे की ओर देखने लगे. हम अनुमान नहीं लगा सके कि यह क्या था लेकिन ऐसा लग रहा था कि कुछ बुरा हुआ है... गांधी जी तब तक नहीं आए थे. वे बाद में आए. उनके जाने के बाद CID ने पूरी तरह के घेर लिया और हमारी जांच होने लगी, लेकिन शायद असली दोषी भाग चुके थे.

गांधीजी की जीवनी में इस घटना का जिक्र करते हुए, आचार्य शंकर दत्तात्रेय जावड़ेकर लिखते हैं, "जब गांधीजी भाषण के लिए जा रहे थे, तो अछूतों के प्रति उनकी भावना से गुस्सा होकर किसी कट्टर हिंदू ने उन पर बम फेंक दिया. सौभाग्य से, इसमें गांधी को कोई नुकसान नहीं पहुंचा." 

दूसरी कोशिश, 25 जून 1934, पंचगनी 

आगा खान पैलेस जेल में कैद के दौरान गांधी को मलेरिया हो गया था. मई 1944 में उनकी रिहाई पर डॉक्टर ने उन्हें आराम करने की सलाह दी. वे पूना के पास पंचगनी में एक पहाड़ी रिसॉर्ट में आराम करने लगे. अठारह-बीस लोगों का एक समूह पूना से एक चार्टर्ड बस में पंचगनी पहुंचा और उनके खिलाफ एक हफ्ते तक विरोध प्रदर्शन किया. जब गांधी को इसके बारे में बताया गया तो उन्होंने उनके नेता नारायण आप्टे को बातचीत के लिए बुलाया. आप्टे ने निमंत्रण स्वीकार करने से मना कर दिया और प्रदर्शन जारी रखा. 

गांधी रिसर्च फाउंडेशन की वेबसाईट 'एमके गांधी डॉट ओआरजी' के अनुसार, एक शाम प्रार्थना सभा के दौरान नाथूराम गोडसे गांधी को मारने दौड़ पड़ा. वो हाथ में खंजर लिए और गांधी विरोधी नारे लगाते हुए आगे बढ़ रहा था. पूना के सुरती लॉज के मालिक मणिशंकर पुरोहित और सतारा के डी. भिलारे गुरुजी (जो बाद में महाबलेश्वर से राज्य विधानमंडल के कांग्रेस सदस्य बने) ने गोडसे को रोका और हथियार छीना. गोडसे के साथ आये बाकी लोग तब भाग गये. हमले की कोशिश से प्रार्थना सभा में थोड़ी भगदड़ मच गई, लेकिन गांधी शांत रहे. उन्होंने गोडसे से अपने साथ आठ दिन बिताने को कहा ताकि वे एक-दूसरे को समझ सकें. गोडसे ने इस निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया. इसके बाद गांधी ने भी कुछ नहीं किया और उन्हें जाने दिया. 

पूना हेराल्ड के तत्कालीन संपादक ए. डेविड ने कपूर आयोग के सामने गवाही देते हुए कहा था कि गोडसे ने ही गांधी पर हमला करने की कोशिश की थी. मणिशंकर पुरोहित और डी. भिलारे गुरुजी ने भी कपूर आयोग की जांच में इस हमले की गवाही दी थी. उन्होंने जोर देकर कहा कि उस दिन पंचगनी में नाथूराम गोडसे को पकड़कर उसके हाथ से हथियार छीने और गांधी जी की जान बचाई. 

तीसरी कोशिश, सितम्बर 1944, सेवाग्राम

गांधी जिन्ना को पाकिस्तान की मांग से पीछे हटाने के लिए उनसे बातचीत करने की तैयारी कर रहे थे. हिंदू महासभा और RSS जिन्ना या उनकी मुस्लिम लीग के साथ किसी भी बातचीत के विरोध में थे. गोडसे और एल.जी. थट्टे ने सार्वजनिक रूप से धमकी दी थी कि गांधी को जिन्ना से मिलने से रोकने के लिए जो भी जरूरी होगा वो करेंगे.

गांधी ने बातचीत के लिए सेवाग्राम से बंबई तक की यात्रा की. गोडसे और थट्टे गांधी को रोकने के लिए सेवाग्राम पहुंच गए. इसमें बंगाल से भी एक ग्रुप शामिल हो गया. गांधी को बंबई जाने से रोकने के लिए इन लोगों ने सेवाग्राम आश्रम के गेट पर धरना दिया और गांधी के खिलाफ नारे लगाए.

डॉ. सुशीला नैयर ने कपूर आयोग के सामने गवाही दी कि नाथूराम गोडसे यहां भी खंजर लेकर गांधी की हत्या के लिए दौड़ने लगा था. आश्रम के लोगों ने उसे रोका. बाद में लोगों ने उसे पकड़कर पुलिस को सौंप दिया. गांधी रिसर्च फाउंडेशन के अनुसार, मारपीट पर पुलिस रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है. रिपोर्ट में कहा गया है, 'ये निश्चित नहीं था कि गोडसे का इरादा गांधी को नुकसान पहुंचाना था या नहीं, लेकिन वो हथियारों से लैस था और किसी भी कीमत पर गांधी को जिन्ना से मिलने से रोकना चाहता था.'

प्यारेलाल ने तेज बहादुर सप्रू को एक पत्र में लिखा था, "सेवाग्राम में प्रदर्शनकारियों का नेता और एक कट्टरपंथी, गांधी को जिन्ना से मिलने से रोकने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार था."

चौथा प्रयास, 29 जून 1946, पूना के रास्ते में

पूना के रास्ते में गांधी जिस ट्रेन में यात्रा कर रहे थे वो 29 जून की रात नेरुल और कर्जत स्टेशन के बीच दुर्घटनाग्रस्त हो गई. इंजन ड्राइवर परेरा ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि उसने ट्रेन को पटरी से उतारने के इरादे से पटरी पर पत्थर रखे हुए देखे थे. इंजन पत्थरों से टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो गया, लेकिन एक त्रासदी टल गई, क्योंकि ड्राइवर सतर्क था और उसने समय पर इमरजेंसी ब्रेक लगा दिए. टक्कर से पहले ट्रेन की गति काफी धीमी हो गई थी. हालांकि, इंजन के पहिए और एक्सल बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए. दूसरा इंजन भेजा गया और इस ट्रेन को पूना ले जाया गया. गांधीजी पूरे घटनाक्रम के दौरान सोते रहे.

पूना पुलिस ने दावा किया कि मालगाड़ियों को रोकने के लिए लुटेरों ने पत्थर रखे थे, लेकिन रेलवे रिकॉर्ड से पता चला कि गांधी की ट्रेन से पहले या बाद में उस रास्ते पर कोई भी मालगाड़ी नहीं गुजरने वाली थी. 30 जून को पूना में एक सार्वजनिक प्रार्थना सभा में बोलते हुए गांधी ने कहा, "भगवान की कृपा से, मैं सात बार मौत के मुंह से बच चुका हूं. मैंने किसी को चोट नहीं पहुंचाई है और न ही मैं किसी को अपना दुश्मन मानता हूं, मुझे समझ नहीं आता कि मेरी जान लेने की इतनी कोशिशें क्यों हो रही हैं. मेरे ऊपर कल का हमला विफल रहा. मैं अभी नहीं मरूंगा, मेरा लक्ष्य 125 साल की उम्र तक जीने का है."

पांचवीं कोशिश, 20 जनवरी 1948, नई दिल्ली

बिड़ला हाउस में शाम की प्रार्थना सभा के दौरान गांधी जहां बैठे थे. उससे कुछ मीटर पीछे एक बम विस्फोट हुआ था. विस्फोट के तुरंत बाद मदनलाल पाहवा को घटना स्थल से ही गिरफ्तार कर लिया गया. उनके कबूलनामे के अनुसार, बम विस्फोट गांधी की हत्या के प्रयास का हिस्सा था.

इन प्रयासों के अलावा अन्य घटनाओं के बारे में भी कई जानकारी पब्लिक डोमेन में हैं. गांधी रिसर्च फाउंडेशन के अनुसार, उद्धव ठाकरे के दादा, प्रबोधनकर ठाकरे, ने सनातनी हिंदुओं को चेतावनी दी थी कि वे गांधी पर बार-बार हमला करने से बाज आएं. उन्होंने लिखा था कि कैसे उनकी चेतावनी ने विदर्भ में अकोला के दौरे के समय गांधी पर हमला होने से रोका था.

आखिरी असफल प्रयास के दस दिन बाद, 30 जनवरी 1948 को शाम 5:17 बजे, नाथूराम गोडसे गांधी के पास गया, एक पिस्तौल निकाली और प्वाइंट ब्लैंक से छाती में तीन गोलियां दाग दीं. अंततः गोडसे महात्मा गांधी की हत्या करने में सफल हो गया.

Advertisement
Advertisement