
हम लोगों ने कभी सोचा नहीं था कि पटना से फोर व्हीलर से चलेंगे और आधा-पौन घंटे में राघोपुर पहुंच जाएंगे. लेकिन कल रात तीन बजे हम इसी तरह घर आए हैं. बचपन में हम लोग बैलगाड़ी से घाट तक जाते थे और वहां नाव या पीपा पुल से कच्ची दरगाह और फिर वहां से किसी और सवारी से पटना.
पटना जाना या राघोपुर से निकलना ही भारी काम माना जाता था. मगर दिक्कत यह भी थी कि हर काम के लिए पटना जाना पड़ता था. फोटो कॉपी करवाने के लिए भी वहीं जाते थे.’’ वैशाली जिले के राघोपुर प्रखंड के गांव चांदपुर में अपने दरवाजे पर बैठे पंकज कुमार इन शब्दों में पिछले तीन दशक में हुए राघोपुर के विकास की कहानी बताते हैं.
गंगा और गंडक नदी के बीच बसा या सच कहें तो फंसा यह दियारा का इलाका राजधानी पटना के पिछवाड़े होने के बावजूद अठारहवीं सदी के गांव के नमूना जैसा लगता रहा है.
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दो-ढाई दशक पहले तक यहां न सड़कें थीं, न ठीक से बिजली. हर साल बाढ़ आती थी और जब इलाके में पानी भर जाता तो लोग नाव से अपनी गृहस्थी लेकर पटना आ जाते. न ढंग के स्कूल थे और न ही अस्पताल. मगर तब भी राघोपुर बिहार का सबसे हाइ-प्रोफाइल विधानसभा क्षेत्र माना जाता था, क्योंकि इस इलाके को बिहार के दो मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी को चुनकर विधानसभा भेजने का गौरव हासिल था.
इस चुनाव में भी यह राज्य के सबसे चर्चित विधानसभा क्षेत्रों में से एक है. वजह यह है कि यहां से दो बार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव मैदान में हैं, जिन्हें महागठबंधन ने अपना मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित किया है. अगर वे यहां से चुनाव जीत जाते हैं और मुख्यमंत्री बन जाते हैं तो राघोपुर को तीन मुख्यमंत्रियों को चुनने का गौरव मिलेगा. मगर क्या यह सिर्फ गौरव की बात है, या फिर यहां से दो मुख्यमंत्री और एक उपमुख्यमंत्री को चुनने की वजह से राघोपुर को कुछ हासिल भी हुआ है?

यही सवाल जब हम पंकज से पूछते हैं तो वे कहते हैं, ''यहां जो भी बदलाव आप देख रहे हैं वह लालू परिवार की वजह से ही है. 1993 में यहां बिजली आई. 1996 में यहां पीपा पुल बना. रघुवंश प्रसाद सिंह जब केंद्र में मंत्री थे तो उन्होंने 2005 में यहां हर जगह सड़कें बनवा दीं. अब सिक्स लेन पुल बन गया है, जो कच्ची दरगाह से बिदुपुर तक बनना है, अभी राघोपुर तक बन गया है.’’
दरअसल, कच्ची दरगाह से बिदुपुर के लिए बनने वाला यह पुल जो अभी लोगों को राघोपुर तक उतार दे रहा है, वह इस इलाके के लोगों के लिए युगांतकारी बदलाव है. जून 2025 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसका उद्घाटन किया. इस पुल के चालू हो जाने से राघोपुर के लोगों के लिए पटना बहुत पास हो गया है.
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इसलिए इस चुनाव में यह एक बड़ा राजनैतिक मुद्दा है. जहां सत्ता पक्ष कहता है कि इस पुल के शिलान्यास से लेकर उद्घाटन तक सब एनडीए के शासनकाल में हुआ है, वहीं राजद समर्थक कहते हैं, इसका कार्यारंभ तेजस्वी यादव के डिप्टी सीएम रहते हुए हुआ है, इसलिए इस पुल के बनने का क्रेडिट उन्हें जाता है.
चंदापुर से थोड़ी ही दूर एक स्कूल के परिसर में राजद के कार्यकर्ताओं की सभा हो रही है. उसमें इस चुनाव क्षेत्र के हर पंचायत से कार्यकर्ता जुटे हैं. वहां हमें इस विधानसभा में लालू परिवार के सबसे विश्वस्त कार्यकर्ता राजद के प्रखंड अध्यक्ष विजय रंजन प्रसाद यादव मिलते हैं, जो 1994 से लालू के साथ हैं. इस क्षेत्र से लालू यादव 1995 के विधानसभा चुनाव में पहली बार खड़े हुए थे.
उसके बाद 2000 से 2010 तक राबड़ी देवी ने इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. 2010 में जद (यू) नेता सतीश कुमार ने राबड़ी देवी को हराया और 2015 में सतीश कुमार को हराकर तेजस्वी यादव ने इस पारिवारिक सीट पर कब्जा जमा लिया जो आज भी कायम है. इस बीच 1995 से 2025 तक सतीश कुमार के अलावा एक और राजद नेता राजगीर चौधरी ने इस सीट से जीत हासिल की. 1998 में जब लालू यादव ने मधेपुरा से लोकसभा चुनाव जीता तो खाली हुई सीट से राजगीर चौधरी लड़े और जीते थे.
विजय रंजन यादव कहते हैं, ''यहां के वोटर लालू परिवार के प्रति समर्पित हैं. बस एक बार 2010 में जब हमारे कार्यकर्ता थोड़े शिथिल हो गए तो सतीश जीत गए. इस बार भी तेजस्वी जी की जीत तय है. तेजस्वी तो राघोपुर के अपने हैं, उन्होंने सिक्स लेन पुल के पास हेमंतपुर में अपना घर भी बनवाना शुरू कर दिया है.’’ वे भी राघोपुर के विकास का पूरा क्रेडिट लालू परिवार को देते हैं और कहते हैं, ''इस बार तो तेजस्वी जी ने राघोपुर के लिए रिंग रोड का भी सर्वे करवाया था, पैसा भी अलॉट हो गया था. मगर बीच में सरकार बदल गई तो काम ठप हो गया.’’
उनके साथ बैठे राजद मजदूर संघ के प्रदेश अध्यक्ष चंदन कुमार चौधरी कहते हैं, ''तेजस्वी जी ने यहां कटाव निरोधक कार्य के लिए भी पैसा स्वीकृत करवाया था. उनकी वजह से राघोपुर में 17 महीने में 22 किमी रोड बने.’’ इस क्षेत्र से जन सुराज नेता प्रशांत किशोर के चुनाव लडऩे की भी चर्चा थी. कुछ दिनों के लिए तेजस्वी के बड़े भाई तेज प्रताप यादव जिन्हें लालू यादव ने पार्टी और परिवार से बेदखल कर दिया था, वे भी यहां सक्रिय हुए.

चंदन कहते हैं, ''प्रशांत किशोर यहां से लड़ते तो जीरो पर आउट हो जाते. तेज प्रताप यहां कोई फैक्टर नहीं है. सिर्फ तेजस्वी जी और लालू जी. जनता इन्हें ही जानती है.’’ चंदन की बात कुछ हद तक सही लगती है. बिदुपुर जमींदारी घाट जाने के रास्ते में मिले अखिलेश यादव कहने लगते हैं, ''यहां तेजस्वी का ही सब भोट है. 99 परसेंट यादव उसी को भोट करता है. दूसरा कोई नहीं.’’
मोहनपुर बाजार में रेफरल अस्पताल के पास चूड़ी बेचने वाले मोहम्मद अलाउद्दीन मिलते हैं. वे कहते हैं, ''बारह आना उन्हीं का वोट है. अच्छा काम भी कर रहे हैं. उनकी योजनाओं की मुख्यमंत्री नकल कर रहे हैं.’’ मगर उसी बाजार में चाय की दुकान करने वाली महिला राघोपुर के चुनावी मिजाज के सवाल पर मौन हो जाती है. कहती है, ''हमसे मत पूछिए. बत्तीस दांत के बीच रहते हैं.’’
थोड़ी दूर आगे एक लोहार की दुकान में बैठे मतदाता मुखर होने लगते हैं. लोहार नन्हक शर्मा कहते हैं, ''सतीश जी हमारे इलाके के हैं, हम उन्हीं को जानते हैं. यहां विकास तो हुआ है, मगर बहुत काम बाकी है.’’ उनकी दुकान के पास खड़ा ग्यारहवीं का छात्र शिवराज खुल कर अपनी बातें रखता है. वह कहता है, ''यहां के लोग तेजस्वी-तेजस्वी जपते हैं. लेकिन उससे क्या फायदा.
यहां हाइ स्कूल को प्लस टू स्कूल बना दिया है. क्लास कहां लगेगी उसका कमरा नहीं है. हमको कॉलेज चाहिए. एक कॉलेज बन रहा है तो दस साल से बनियै रहा है. पैसा बाला का बच्चा कोचिंग चला जाता है. गरीब का बच्चा कहां जाएगा? यहां सब लोग तेजस्वी के अंधभक्त हैं, इसलिए बिना काम के वह जीत जाता है.’’
भाजपा के टिकट पर राघोपुर से मैदान में उतरे सतीश कुमार भी स्वीकार करते हैं कि वे भावनात्मक वजहों से लालू परिवार से चुनाव हार जाते हैं. लेकिन साथ-साथ वे राजद पर वोट चोरी का आरोप भी लगाते हैं. वे कहते हैं, ''इस बार राघोपुर से 35,000 वोटरों का नाम एसआइआर में कटा है. सबका नाम दो जगह से था. इस बार उनका जीतना मुश्किल है. वैसे भी पिछली बार वे इसलिए जीत गए क्योंकि लोजपा के उम्मीदवार ने हमारा 25 हजार वोट डैमेज कर दिया था. इस बार तो लोजपा भी साथ है.’’

वे कहते हैं, ''लालू जी को राघोपुर लाने वाले हम ही लोग थे. हमें लगता था कि वे यहां से लड़ेंगे तो राघोपुर में भी विकास होगा. लेकिन उन्होंने कुछ किया नहीं. यहां के यादव उनके अंधभक्त हो गए और वे बैठे-बैठे चुनाव जीतने लगे. 2005 में हमको नीतीश से ऑफर मिला तो हम राजद छोड़कर जद (यू) में चले गए. 2010 में जीते भी. मगर 2015 में जब लालू और नीतीश साथ हो गए तो हमको जद (यू) छोड़कर भाजपा में आना पड़ा.’’
सतीश कुमार तेजस्वी समर्थकों के पुल बनवाने के दावे पर सवाल खड़े करते हैं. वे कहते हैं, ''अगर तेजस्वी यादव ने इस पुल को बनवाया है तो उन्हें खुद सामने आकर कहना चाहिए. सच यह है कि 2010 में जब मैं जद (यू) के टिकट पर चुनावी मैदान में था तभी एक चुनावी सभा में यहां के लोगों ने नीतीश कुमार से पुल की मांग की थी. तब नीतीश जी ने कहा था, 'आप हमें सतीश दीजिए, हम आपको पुल देंगे.’ उस चुनाव में मुझे जीत भी मिली.
इस पुल को स्वीकृति मई, 2015 में मिली और इसका शिलान्यास भी मेरे विधायक रहते अगस्त 2015 में हुआ. मेरे रहते ही यहां गली-गली सड़कें बनीं और घर-घर बिजली पहुंची. सच तो यह है कि राघोपुर में जो विकास आज आप देख रहे हैं, वह मेरे कार्यकाल में ही हुआ है. वे दो टर्म डिप्टी सीएम रहे, शिक्षा मंत्री उन्हीं की पार्टी का था, मगर राघोपुर में वे एक डिग्री कॉलेज तक नहीं खुलवा सके.’’
लोजपा भले ही इस बार राघोपुर से मैदान में न हो, मगर सतीश कुमार को परेशानी में डालने के लिए जन सुराज से चंचल सिंह को उतारा है. माना जा रहा है कि बिदुपुर के रहने वाले चंचल सिंह इस बार राजपूत मतदाताओं को एनडीए से दूर कर सकते हैं. चुनावी व्यस्तताओं के कारण चंचल सिंह से मुलाकात नहीं हो पाई. उन्होंने ज्यादा फोकस अपने क्षेत्र बिदुपुर पर रखा है. बिदुपुर के 24 पंचायत भी राघोपुर विधानसभा में शामिल हैं. एक तरह से देखें तो राघोपुर विधानसभा में राघोपुर से अधिक मतदाता बिदुपुर के हैं.
मगर राघोपुर से बिदुपुर जाना आज भी आसान नहीं है. मोहनपुर बाजार से तकरीबन छह किमी की दूरी पर एक जमींदारी घाट है, जहां से आज भी बिदुपुर के लिए मोटर वाली नावें चलती हैं. हालांकि वहां गंडक नदी में पानी कम होने पर पीपापुल भी जोड़ा जाता है और कुछ महीने के लिए नाव की निर्भरता कम हो जाती है.
दरअसल, पटना से राघोपुर आने के लिए भले सिक्स लेन पुल बन गया है, मगर राघोपुर के लोगों के लिए नाव पर से निर्भरता कम नहीं हो रही. चंदापुर में मिले पंकज कहते हैं, ''आज भी राघोपुर के दसो घाट से नावें खुलती हैं. गंगा किनारे आठ घाट हैं तो गंडक किनारे दो. चार जगह पीपापुल लगते हैं. हालांकि पीपापुल छह से सात महीने ही काम करते हैं. पानी बढ़ने पर इन्हें खोलना पड़ता है.’’
वे कहते हैं, ''शिवनगर, जुड़ावनपुर जैसे दूरदराज के गांवों से अगर कोई यहां आकर सिक्स लेन पुल पर चढ़ेगा तो उसके लिए दूरी काफी अधिक हो जाएगी. यहां के लोगों को नाव का अभ्यास है, इसलिए वे झट से नाव से ही नदी पार कर जाते हैं. बिदुपुर जाने के लिए तो नाव ही सहारा है.’’
जमींदारी घाट के पास मोटर वाली नाव खड़ी मिलती है, जिसमें सवारियां और मोटरसाइकिलें लादी जा रही होती हैं. नाव में न लोड लाइन बना है और न किसी सवारी के पास लाइफ जैकेट है जबकि पिछले ही साल पटना से राघोपुर आ रही एक नाव से गिरकर एक शिक्षक की डूबने से मौत हो गई थी. नाव पर अपनी बाइक के साथ सफर कर रहे सरकारी स्कूल के शिक्षक मनीष कुमार कहते हैं, ''नाव से आने जाने में काफी परेशानी होती है, हमेशा तनाव बना रहता है कि अटेंडेंसे समय पर कैसे बनेगा. नाव कभी समय से खुलती है तो कभी देर से.’’
वे कहते हैं, ''यहां जातिवाद काफी है, लोग विकास के नाम पर वोट नहीं करते हैं. यहां परिवर्तन होगा, तभी विकास होगा.’’
उनके साथ खड़े पुरोहित का काम करने वाले संजय पांडेय कहते हैं, ''विकास तो नीतीश जी किए हैं, लेकिन वे राघोपुर वालों की किस्मत से नाव को हटा नहीं पाए.’’ नाव पर ही बैठे गौरीशंकर कहते हैं, ''नाव पर तो चढ़ना ही है जीवन भर. राघोपुर का विकास तो और नीचे जा रहा है.’’
मगर इस बीच गौरीशंकर एक अच्छी सूचना देते हैं. वे कहते हैं, ''इस घाट की सबसे अच्छी बात यह है कि यहां से चलने वाली नाव पर लेडीज को किराया नहीं देना पड़ता है.’’ यह बात सुनकर नाव के एक किनारे में बैठी दर्जनों औरतें मुस्कुराने लगती हैं. ठ्ठ
राज्य के सबसे चर्चित विधानसभा क्षेत्र राघोपुर के कायापलट के दावों के बीच अब भी नावों से आते-जाते हैं लोग. इस चुनाव में उनके लिए मुद्दा विकास है या लालू परिवार के प्रति दशकों से चलता आ रहा समर्पण?

