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खास रपटः डॉन की उल्टी गिनती

गैंगस्टर-नेता मुख्तार अंसारी को पंजाब से यूपी की जेल भेजा जाना योगी सरकार की जीत के तौर पर देखा जा रहा है. इस पर आगे की राजनीति के पत्ते कैसे खुलेंगे?

बचने की जगह नहीं मोहाली जिला अदालत में 31 मार्च को मुख्तार अंसारी को ले जाते पंजाब पुलिस के जवान
बचने की जगह नहीं मोहाली जिला अदालत में 31 मार्च को मुख्तार अंसारी को ले जाते पंजाब पुलिस के जवान
अपडेटेड 15 अप्रैल , 2021

उत्तर प्रदेश के बांदा में पुलिस लाइन रोड स्थित बांदा जिला जेल पिछले कुछ दिनों से ढेरों गतिविधियों से रू-ब-रू है. यहां तक कि प्रयागराज रेंज के डीआइजी (जेल) पी.एन. पांडेय ने जेल की सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करने के लिए वहां डेरा डाल रखा था. ये सारी तैयारियां माफिया डॉन से नेता बने 63 वर्षीय मुख्तार अंसारी के लिए थीं जो 150 पुलिसकर्मियों की अभिरक्षा में पंजाब की रोपड़ जेल से 900 किलोमीटर की यात्रा तय करने के बाद 7 अप्रैल के शुरुआती घंटों में बांदा जेल लाया गया. यह कार्रवाई 26 मार्च को सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश के बाद हुई जिसमें अदालत ने उसे राज्य में वापस लाने की उत्तर प्रदेश सरकार की दलील को ठीक माना था. मुख्तार इस स्थान से परिचित है क्योंकि 21 महीने पहले मोहाली की एक अदालत से जारी वारंट पर जनवरी 2019 में रोपड़ जेल में स्थानांतरित होने से पहले 21 महीने तक वह बांदा जेल में ही था.

उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि मुख्तार के खिलाफ यूपी में गंभीर आपराधिक मामले लंबित हैं और उनकी सुनवाई में उसके अनुपस्थित रहने का हवाला दिया था. मुख्तार के वकील ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश की जेलों में मुख्तार की जान को खतरा है (अतीत में इसी वजह से उसे लखनऊ जेल से बांदा भेजा गया था).

मुख्तार का नया आवास पहले की ही तरह बांदा जेल का बैरक नंबर 15 होगा. नई सुरक्षा व्यवस्था के रूप में तन्हाई सेल 15 के लिए नया प्रवेश द्वार होगा जहां आधा प्लाटून पीएसी (प्रांतीय सशत्र बल) की तैनाती होगी और नई सुरक्षा व्यवस्था के हिस्से के रूप में बैरक नंबर 15 तथा 16 में 10 नए सीसीटीवी कैमरे होंगे.

इस बीच, बांदा से लगभग 400 किमी दूर गाजीपुर जिले के यूसुफपुर क्षेत्र के दर्जी टोला इलाके में मुख्तार के पैतृक निवास पर उदासी पसरी हुई है. मुख्तार भले ही मशहूर गैंगस्टर है, लेकिन उसके परिवार का एक शानदार इतिहास है. उसके दादा डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी स्वतंत्रता सेनानी थे जो 1926-27 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष होने के अलावा और जामिया मिल्लिया इस्लामिया के संस्थापक सदस्यों में शामिल थे. मुख्तार के पिता सुभानुल्ला अंसारी कम्युनिस्ट नेता थे. पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी भी उनके रिश्तेदार हैं.

तीन भाइयों में मुख्तार सबसे छोटा है और उसकी शुरुआती स्कूली शिक्षा यूसुफपुर में हुई थी और 1973 में उसने गाजीपुर गवर्नमेंट पीजी कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की थी. इसी कॉलेज के छात्र रहे वकील अजीजुल हलीम कहते हैं, ''मुख्तार गुलेल बहुत बढ़िया चलाता था. वह क्रिकेट टीम में भी था और उसने कॉलेज की ओर से कई टूर्नामेंटों में हिस्सा लिया था.''

अपराध की दुनिया में मुख्तार का प्रवेश 1970 के दशक में हुआ था जब पूर्वांचल क्षेत्र में कुछ विकास योजनाएं शुरू हुई थीं. सार्वजनिक ठेकों पर काबिज होने के लिए विभिन्न गिरोह उभरे, लेकिन पूर्वी उत्तर प्रदेश में मुख्य रूप से मकनू सिंह गिरोह और साहिब सिंह गिरोह उभरे. मुख्तार मकनू सिंह गिरोह का मुख्य गुर्गा था, जबकि वाराणसी निवासी बृजेश सिंह की यही हैसियत साहिब सिंह गिरोह में थी. बाद में, मुख्तार और बृजेश ने अपने गिरोह बना लिए और पूर्वी उत्तर प्रदेश में रेलवे और बिजली विभाग के ठेके हथियाने की लड़ाई शुरू कर दी. 1980 के दशक में मऊ में तैनात रहे सब-इंस्पेक्टर प्रदीप सिंह याद करते हैं: ''1985 में, गाजीपुर जिले के सैदपुर क्षेत्र में एक भूखंड को लेकर दोनों गिरोह भिड़ गए. इससे पूर्वांचल में मुख्तार और बृजेश के बीच खुली लड़ाई शुरू हो गई.''

वर्ष 1988 में गाजीपुर में मुख्तार के खिलाफ पहला बड़ा आपराधिक मामला दर्ज हुआ था, जहां उसने कथित तौर पर मंडी परिषद के एक ठेके के लिए ठेकेदार सच्चिदानंद राय की हत्या कर दी थी. मामला अभी अदालत में लंबित है. प्रदीप सिंह कहते हैं, ''सच्चिदानंद राय की हत्या ने 'मुख्तार' को पूर्वी उत्तर प्रदेश में स्थापित कर दिया. जल्द ही उसके गुर्गे हर जिले में विभिन्न सरकारी विभागों के ठेके लेने लगे.'' 22 जनवरी, 1997 को पूर्वी उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े कोयला व्यापारी और विश्व हिंदू परिषद के कोषाध्यक्ष नंदकिशोर रुंगटा की वाराणसी के भेलूपुर इलाके में हत्या कर दी गई थी. आरोप लगा कि अपहरण-हत्या के पीछे मुख्तार का हाथ था.

इस मामले की सीबीआइ जांच हुई लेकिन मुख्तार को क्लीन चिट मिल गई. लखनऊ जेल के अधीक्षक आर.के. तिवारी की फरवरी 1999 में लखनऊ में राजभवन के सामने गोली मारकर हत्या कर दी गई. यहां भी मुख्तार के खिलाफ कोई निर्णायक सबूत नहीं मिला. बाद में 29 नवंबर, 2005 को गाजीपुर में भाजपा विधायक कृष्णानंद राय और सात अन्य लोगों की घात लगाकर गोलीबारी में हत्या कर दी गई थी. उस समय मुख्तार फतेहगढ़ जेल में बंद था. इस मामले में उसका और उसके सहयोगियों मुन्ना बजरंगी, राकेश पांडे, संजीव जीवा और माहेश्वरी को नामजद किया गया था. मामले की जांच सीबीआइ ने की लेकिन सभी गवाहों के पलट जाने की वजह से जुलाई 2019 में मुख्तार और अन्य आरोपियों को बरी कर दिया गया था.

पूर्व डीजीपी बृजलाल बताते हैं कि मुख्तार हर बार कैसे बच निकलता है, ''मुख्तार खूंखार हो सकता है, लेकिन वह बहुत चालाक भी है. वह कभी भी प्रत्यक्ष रूप से शामिल नहीं होता बल्कि अपने लोगों से हमले करवाता है और हमेशा गवाहों को खरीदने, डराने या मार डालने की व्यवस्था करता है जिससे उसे मुकदमे के दौरान फायदा होता है. कृष्णानंद राय और आर.के. तिवारी हत्याकांड इसके सटीक उदाहरण हैं. इन दोनों घटनाओं के दौरान मुख्तार जेल में था.'' दस साल पहले मुख्तार अंसारी के खिलाफ 46 मामले दर्ज थे, आज सिर्फ 10 हैं.

पूर्वी उत्तर प्रदेश में अवैध-कब्जों के खिलाफ अभियान का नेतृत्व कर रहे मऊ के सामाजिक कार्यकर्ता छोटेलाल गांधी बताते हैं, ''मुख्तार का राजनीतिक करियर 1995 में मऊ विधानसभा सीट से शुरू हुआ था. मऊ में 30 प्रतिशत से अधिक आबादी मुस्लिम है, और वे लोग मुख्तार के साथ खड़े रहे हैं.'' 1996 में मुख्तार ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के टिकट पर मऊ से विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. तब से उसने यहां से लगातार पांच चुनाव जीते हैं. छोटेलाल के अनुसार, मुख्तार की मऊ में 'रॉबिनहुड इमेज' है. उसने जो बड़े सरकारी ठेके हासिल किए उनके बूते उसे गरीबों के साथ जुड़ने में मदद मिली. उसके प्रति समर्थन बढ़ते रहने का यह भी एक कारण है. मुख्तार के एक करीबी दोस्त के मुताबिक उसे विलासितापूर्ण सामान पसंद होने के साथ सोने के फ्रेम वाले चश्मे, .375 मैग्नम राइफल और रिवाल्वर और आखिरी 786 नंबरों वाली काली रंग की एसयूवी का शौक है.

मुख्तार के भाई अफजाल अंसारी 2002 के विधानसभा चुनाव में मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट पर कृष्णानंद राय से हार गए थे जो पूर्वांचल में भाजपा के तत्कालीन प्रमुख नेताओं में से थे. इस चुनावी जीत में राय को बृजेश सिंह का समर्थन प्राप्त था. इस चुनाव के बाद ही गाजीपुर और मऊ में हिंदू और मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण होना शुरू हुआ. 2005 में मऊ में दंगे हुए और इसमें उसकी भूमिका के कारण उसी साल अक्तूबर में मुख्तार को जेल में डाल दिया गया. तब से वह जेल के अंदर-बाहर होता रहा है. 2008 में मुख्तार फिर से बसपा में शामिल हो गया. तब मुख्यमंत्री मायावती ने मुख्तार को 'गरीबों का मसीहा' बताते हुए उसका बचाव किया था, लेकिन बाद में (2010 में) उसे पार्टी से निकालने के लिए उसके खिलाफ आपराधिक मामलों का मुद्दा उछाला गया.

मुख्तार ने तब अपने भाइयों के साथ मिलकर कौमी एकता दल नाम की एक नई पार्टी बनाई. 2012 में उसने एक बार फिर मऊ विधानसभा सीट जीती. 2014 में मुख्तार ने घोषणा की थी कि वह नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ेगा, लेकिन बाद में उसने अपना फैसला वापस ले लिया. 2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले उसके बड़े भाई अफजाल ने कौमी एकता दल को फिर से बसपा में मिला लिया. 2019 के लोकसभा चुनाव में अफजाल गाजीपुर से बसपा के टिकट पर सांसद बने.

इस बीच, 2017 में उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली भाजपा सरकार बनने के बाद मुख्तार को अपनी जिंदगी का डर सताने लगा था. पुलिस में एक 'एनकाउंटर' संस्कृति की वापसी और बागपत जेल में जुलाई 2018 में उसके करीबी सहयोगी मुन्ना बजरंगी की हत्या की वजह से वह डरा हुआ था. माना जाता है कि बजरंगी की हत्या के पीछे मुख्तार के जेल में बंद दुश्मन बृजेश सिंह का हाथ है. बृजेश फिलहाल वाराणसी जेल में रखा गया है. इस बीच मुख्तार खुद को पंजाब की जेल में स्थानांतरित कराने में कामयाब रहा और तब से उत्तर प्रदेश सरकार उसके प्रत्यर्पण के लिए लड़ रही है (चिकित्सीय आधार पर वह प्रयागराज की विशेष अदालत की ओर से अपने खिलाफ जारी किए गए 26 वारंटों का अमल रुकवाने में कामयाब रहा था). हालांकि उसके भाई अफजाल ने इंडिया टुडे से कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार ''राजनीतिक प्रतिशोध'' की कार्रवाई कर रही है.

बीते 31 मार्च को मुख्तार की पत्नी अफ्शां अंसारी ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को एक पत्र में लिखा कि ''राज्य सरकार गाजीपुर लोकसभा सीट पर भाजपा की हार का बदला ले रही है. ऐसी स्थिति में बहुत संभावित है कि मुख्तार की हत्या हो जाए.'' अफ्शां ने कहा कि मुख्तार ''उत्तर प्रदेश में एक मामले के प्रत्यक्षदर्शी गवाह हैं जिसमें विधान परिषद सदस्य और माफिया डॉन बृजेश सिंह और उसका साथी त्रिभुवन सिंह आरोपी हैं. बृजेश और त्रिभुवन की राज्य सरकार से निकटता को देखते हुए मुझे डर है कि मेरे पति को बांदा लाए जाने के दौरान फर्जी मुठभेड़ में मार दिया जाएगा.''

मुख्तार के खिलाफ कानूनी जंग
मुख्तार के खिलाफ कानूनी जंग

इस बीच, राज्य सरकार उसके 'अवैध' व्यवसायों को बंद कराने की कोशिश में भी लगी है. अधिकारियों ने बताया कि वाराणसी जोन के एडीजीपी बृजभूषण शर्मा की देखरेख में चल रहे एक अभियान में उसके कथित अवैध निर्माणों को ध्वस्त कर दिया गया और 192 करोड़ रुपये की सरकारी जमीन को मुक्त करा लिया गया है. शर्मा कहते हैं, ''पूर्वी उत्तर प्रदेश में मुख्तार के संरक्षण में फल-फूल रहा मछली का अवैध कारोबार मऊ, वाराणसी, भदोही, जौनपुर और चंदौली में पूरी तरह से बंद कर दिया गया है. मुख्तार गिरोह इससे लगभग 33 करोड़ रुपए सालाना कमाता था. साथ ही मुख्तार के परिवार को दिए गए 94 शस्त्र लाइसेंस रद्द कर दिए गए हैं और उसके गिरोह से जुड़े 125 लोगों को गैंगस्टर एक्ट के तहत जेल भेज दिया गया है.''

योगी सरकार ने मुख्तार के आर्थि‍क तंत्र पर चोट की है. यूपी गृह विभाग के एक अधि‍कारी बताते हैं, ''पुलिस ने माफिया मुख्तार अंसारी के संरक्षण में मछली के अवैध कारोबार में लिप्त उसके 26 गुर्गों—मऊ जिले में आठ, वाराणसी में सात, भदोही में आठ, जौनपुर में एक और चंदौली में दो—को गिरफ्तार कर जेल भेजा है. उनके कब्जे से पुलिस ने करीब 90 लाख की प्रतिबंधित मछली, चार ट्रक, एक इनोवा कार, तीन पिकप जीप और छह अन्य वाहन बरामद किए हैं. इसके अलावा पुलिस ने गाजीपुर में मगई नदी पर मछली पालन के लिए करीब 16 लाख से बने पुल को ध्वस्त कर कब्जे में ली गई 30 लाख रु. कीमत की भूमि को मुक्त कराया है जिससे आरोपी को 70 लाख रु. वार्षिक आय का नुकसान हुआ है.'' मुख्तार के सहयोगी पारस सोनकर को पुलिस ने जेल भेजा और 8.17 करोड़ रु. की संपत्ति जब्त की जबकि पुलिस ने अभियुक्तों के खिलाफ गैगस्टर एक्ट में 33 करोड़ रु. की वार्षिक अवैध आय को बंद कराया है.

पुलिस ने अवैध कोयला कारोबार में लिप्त माफिया मुख्तार गैंग के त्रिदेव ग्रुप के मालिक उमेश सिंह की 6.5 करोड रु. की संपत्ति मऊ में जब्त की है. इसके अलावा मुख्तार के सहयोगी भीम सिंह समेत चार अन्य से एयरपोर्ट के लिए आवंटित 27.5 करोड़ रु. की 50 बीघे जमीन से कब्जा हटवाते हुए तीन हॉट मिक्स प्लांट ध्वस्त कर करीब नौ करोड़ रुपए की मशीनें सीज कीं, जिससे माफिया को करीब 72 लाख वार्षिक आय का नुक्सान हुआ है. मुख्तार को पूरी तरह कमजोर करने के लिए उसके गुर्गों की धड़पकड़ की जा रही है. पुलिस ने माफिया मुख्तार के सहयोगी एक लाख के ईनामी शूटर हरिकेश यादव को मुठभेड़ में मार गिराया और 25,000-25,000रु. के तीन ईनामी अपराधियों को गिरफ्तार किया है.

इस गैंग के 24 अपराधियों को गिरफ्तार किया और 23 के खिलाफ गैंगस्टर की कार्रवाई की. मुख्तार के एक अन्य शूटर अनुज कनौजिया की संपत्ति कुर्क की गई और अंकुर राय के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ है.  किफायतुल्लाह की 60.70 लाख रु. की संपत्ति जब्त की गई. सहयोगी उमेश सिंह का 35.23 लाख रु. का भूखंड और रजनीश कुमार की 39.21 लाख रु. की संपत्ति जब्त की गई.

अफजाल अंसारी का कहना है कि ये कार्रवाइयां योगी सरकार की ओर से राज्य में भ्रष्टाचार और बढ़ते अपराधों की ओर से लोगों का ध्यान हटाने के लिए की गई हैं. अफजाल कहते हैं कि ''मुख्तार को निशाना बनाने की आड़ में सरकार हमारे पूरे परिवार, रिश्तेदारों और करीबी लोगों पर अत्याचार कर रही है.'' मुख्तार की स्थिति पर निगाह रखने वाले राजनीतिक विश्लेषकों का इस मुद्दे पर एक अलग सोचना है. लखनऊ के जय नारायण पीजी कॉलेज में राजनीति विज्ञान विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर बृजेश कुमार मिश्र कहते हैं, ''मुख्तार पर कार्रवाई के साथ योगी सरकार एक तीर से दो शिकार करने की कोशिश कर रही है. पहला शिकार यह कि इससे यह धारणा मजबूत की जा रही है कि राज्य अपराधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर रहा है. दूसरे यह कि डॉन के खिलाफ कार्रवाई 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले पूर्वी उत्तर प्रदेश के हिंदू मतदाताओं को लुभाने की कोशिश है. यह दोगुना महत्वपूर्ण बात है क्योंकि आदित्यनाथ पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले से हैं.''

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