भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) अपने वैचारिक आंदोलन के उफान पर थी. उसके रथी लालकृष्ण आडवाणी की राम रथयात्रा बिहार में लोकतंत्र की जन्मभूमि कहे जाने वाले हाजीपुर पहुंचने वाली थी, जिसे रोकने पर आमादा बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने ऐलान कर दिया था कि रथ को गांधी सेतु पार नहीं करने देंगे. उसी वक्त संघ की पृष्ठभूमि से बीजेपी में एक युवा चेहरा उभर रहा था. उसने लालू की सत्ता को चुनौती दी और ऐलान किया कि राम रथ यात्रा को हाजीपुर में नहीं रोकने दिया जाएगा. तब महज 23 वर्ष के नित्यानंद राय ने महा-पंचायत बुलाकर ऐसा जनसमर्थन जुटाया कि सरकार आडवाणी का रथ हाजीपुर में रोकने का साहस नहीं जुटा पाई. राय ने हाजीपुर में आडवाणी की जनसभा भी कराई. लेकिन सरकार से लोहा लेने का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा. हाजीपुर औद्योगिक क्षेत्र में स्थित बिहार की प्लास्टिक हाउसहोल्ड निर्माण की पहली प्राइवेट लिमिडेट कंपनी की फैक्ट्री, जो प्लास्टिक की बाल्टियां बनाने में अग्रणी थी, सरकारी चाबुक का शिकार हुई. उसे बंद करने पर मजबूर कर दिया गया.
इस प्रकरण की वजह से नित्यानंद राय की पहचान राजनीति की शुरुआत में ही दबंग और निर्भीक कार्यकर्ता की बन गई. लेकिन, अब 49 वर्ष के हो चुके राय के करियर में तब अहम मोड़ आया जब 30 नवंबर, 2016 को तड़के बीजेपी के राष्ट्रीय संगठन महासचिव रामलाल का फोन आया, ''आपको प्रदेश में पार्टी के अध्यक्ष पद का निर्वहन करना है.'' राय इंडिया टुडे से कहते हैं, ''अचानक बड़ी जिम्मेदारी का एहसास हुआ. मन में संकल्प आया कि मुझे नेतृत्व करना होगा. राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने जो जिम्मेदारी सौंपी है, उसके लिए जी-जान लगा दूंगा.''
करीब साल भर के मंथन के बाद शाह ने जिस तरह नित्यानंद राय को बिहार बीजेपी की कमान सौंपी है, वह राजनैतिक लिहाज से उनका सबसे बड़ा दांव है तो इसके पीछे एक दर्द भी छिपा है. चाणक्य की धरती कहे जाने वाले बिहार के विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार बीजेपी के चाणक्य कहे जाने वाले शाह के अध्यक्षीय कार्यकाल का ऐसा दाग है जिसे धोने के लिए राय को दीर्घकालिक रणनीति का चेहरा माना जा रहा है.
2015 के विधानसभा चुनाव में सामाजिक समीकरण के मामले में पिटी बीजेपी ने किसी सवर्ण की जगह पार्टी की कमान ओबीसी (यादव) नेता को सौंपकर भविष्य की रणनीति की ओर इशारा कर दिया है. इससे एक झटके में प्रदेश संगठन में पीढ़ीगत बदलाव भी हो गया है. सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी की रणनीति सामाजिक समीकरणों का नया गुलदस्ता बनाकर संगठन को किसी एक नेता के वर्चस्व से बाहर निकालकर पटरी पर लाना है. इसके पीछे पार्टी की रणनीति लालू के बाद यादव वोट बैंक को तेजस्वी यादव के साथ जाने से रोकने के साथ-साथ अगड़ों, पिछड़ों-अति पिछड़ों और दलितों को मिलाकर नया सामाजिक समीकरण तैयार करना है.
उसूलों और पक्के इरादे के साथ राजनीति का सफर तय कर रहे राय की अलग पहचान ने राष्ट्रीय नेतृत्व को ही नहीं, बल्कि गुटों में बंटी बिहार बीजेपी को भी आम सहमति के मंच पर ला खड़ा कर दिया. अध्यक्ष पद के लिए विधायकों से लेकर सांसदों तक कई नामों की चर्चा हुई, लेकिन अमित शाह के मापदंडों पर सिर्फ राय ही खरे उतर पाए. एक वरिष्ठ नेता बताते हैं, ''पार्टी को एक युवा चेहरा चाहिए था जो संगठन में मजबूत पकड़ वाली छवि रखता हो, साथ ही संगठन को एक मजबूत नेता विशेष की लॉबी और अन्य जाति वाले गुटों के नेताओं की गिरफ्त से बाहर निकालने में सक्षम हो.'' लेकिन इतनी देरी के बाद राय ही क्यों? इस सवाल पर बिहार बीजेपी के प्रभारी महासचिव भूपेंद्र यादव कहते हैं, ''आने वाले समय में बिहार में हमें वैचारिक रूप से प्रतिबद्ध संगठन खड़ा करना है, यही सोच-समझकर निर्णय लिया गया है. राय जमीनी कार्यकर्ता हैं, नौजवान हैं, उनके नाम पर सबकी सहमति है और वैचारिक आंदोलन से जुड़े व्यक्ति हैं. संगठन में सबको साथ लेकर चलने में सक्षम हैं.'' राय वैसे तो किसी गुटबाजी से इनकार करते हैं, लेकिन उन्हें करीब से जानने वाले कहते हैं कि लोगों को आदर-सम्मान देकर संबंधों में मधुरता और मिठास लाना उन्हें बखूबी आता है.
दरअसल राय के पक्ष में अपनी उम्र से बड़ा अनुभव और हर स्तर पर काम करके संगठन की बारीकियों को समझने की क्षमता प्रभावी साबित हुई. राय के राजनैतिक सफर की शुरुआत 1981 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता के रूप में हुई. हाजीपुर के ही राजनारायण कॉलेज में इंटर की पढ़ाई के दौरान वे नियमित संघ की शाखाओं में जाते थे. उनकी नेतृत्व क्षमता की वजह से संघ ने उन्हें जल्द ही 1986 में हाजीपुर का तहसील कार्यवाह बना दिया. उसके बाद तो वे संगठन की हर सीढ़ी चढ़ते चले गए.1990 की शुरुआत तक संघ से पदमुक्त होकर वे सीधे बीजेपी युवा मोर्चा के प्रदेश सचिव बनाए गए. 1995-96 में युवा मोर्चा के महासचिव और 1999 में युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष बने. पहली बार में ही 2000 के विधानसभा चुनाव में सोशलिस्टों की राजधानी और लोकतंत्र की जन्मभूमि माने जाने वाले हाजीपुर से जीत हासिल की. वे वहां से लगातार चार विधानसभा चुनाव जीते और दो बार उसी सीट से मंडल स्तर के ऐसे कार्यकर्ता को चुनाव जितवाया, जो जाति समीकरण में कहीं भी फिट नहीं बैठता था. 2015 के विपरीत माहौल में भी पार्टी ने यह सीट जीती. राय 2014 के लोकसभा चुनाव में उजियारपुर लोकसभा सीट से सांसद बने.
चुनावी जीत के बाद उनके पिता ने भी राजनीति में नैतिक मूल्यों को तरजीह दी. वे पहली बार विधायक चुने गए तो राय के पिता दिवंगत गंगा विष्णु राय, जो लगातार कर्णपुरा ग्राम पंचायत के मुखिया थे, हफ्ते भर के भीतर ही मुखिया पद की जिम्मेदारी उप-मुखिया को सौंप कर किनारे हो गए थे. बीजेपी के ही एक नेता बताते हैं कि राजनीति में ऐसे नेता गिने-चुने ही मिलेंगे जो परिवार के अन्य सदस्यों को विधायक का टिकट का ऑफर ठुकरा दें.
दरअसल बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय विधानसभा चुनाव में वैशाली जिले का प्रभार संभाल रहे थे. उन्हें लगा कि राघोपुर सीट से लालू के बेटे तेजस्वी के खिलाफ नित्यानंद के परिवार से कोई लड़े तो सीट जीती जा सकती है. उन्होंने राय से कहा कि आप अपनी पत्नी को चुनाव लड़वाएं. लेकिन राय ने कहा, ''परिवारवाद मेरे विचार के बिल्कुल विपरीत है. आपसे विनती है कि इस बारे में किसी भी तरह की चर्चा आगे न बढ़ाएं.'' हालांकि उनकी पत्नी अमिता राय सामाजिक गतिविधियों से जुड़ी हुई हैं. नौ वर्ष की बेटी नंदिका पटना में पढ़ रही है. राय का आरोप है कि लालू ने समुदाय के नाम पर सिर्फ परिवार का भला किया है, ऐसे में यादव समाज के लिए भी अब निर्णय की घड़ी है कि उसे नेता (नित्यानंद) चाहिए या बेटा (लालू यादव के बेटे और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव).
किसान पृष्ठभूमि और इतिहास में स्नातक राय आज भी 20 एकड़ में अमरूद, केला और सब्जियों की खेती करते हैं. मौका मिलने पर वे खुद हल और ट्रैक्टर से जुताई भी कर लेते हैं. अपने घर के लिए वे पूरी तरह से ऑर्गेनिक खेती करते हैं. आम तौर पर पैंट-शर्ट, कुर्ता-पाजामा पहनने वाले राय गांव में धोती पहनना पसंद करते हैं. समर्थकों में नित्या भैया के नाम से मशहूर वे लालू के मुकाबले बीजेपी के दबंग चेहरा माने जाते हैं तो नीतीश कुमार के मुकाबले सौम्य और रणनीति बनाने में तीक्ष्ण.
उन्हें पारंपरिक भोजन सरसों का साग, मक्के की रोटी और दूध-दही बेहद पसंद है. फिटनेस के लिए योग और व्यायाम के बाद वे छाछ से अपने दिन की शुरुआत करते हैं. साधारण-सा की-पैड वाला मोबाइल इस्तेमाल करने वाले राय साप्ताहिक रूटीन बनाकर काम करते हैं. खेलकूद में फुटबॉल के शौकीन राय को मालूम है कि कहां से किक लगाने पर बॉल सीधे गोल पोस्ट में जाएगी.
लेकिन लंबी माथापच्ची के बाद शाह ने बिहार में ऐसा नेतृत्व दिया है जो गांव-देहात की राजनीति करते हुए किसानों को समझ सके. बीजेपी को पटना महानगर जैसे शहरी क्षेत्र से बाहर निकालकर ग्रामीण क्षेत्र में ले जाने के लिए संघर्षशील पृष्ठभूमि वाले गंगा पार के युवा नेता राय को बीजेपी ने कमान तो सौंप दी है, लेकिन क्या वे संगठन की उठापटक खत्म कर विरोधी महागठबंधन को परास्त कर पाएंगे?
नित्यानंद राय को चुन बिहार में शाह ने बदल दी पीढ़ी
शाह ने बिहार में वैचारिक रूप से प्रतिबद्ध ओबीसी नेता को कमान सौंपकर पीढ़ीगत बदलाव का बड़ा दांव खेला.

अपडेटेड 21 दिसंबर , 2016
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