“हर कार्यकर्ता को अच्छी तरह समझना चाहिए कि एनडीए के एजेंडे के अलावा बीजेपी का अपना कोई एजेंडा नहीं है. हमें यह सुनिश्चित करना है कि इस साझा एजेंडे से पार्टी नहीं डिगेगी.”
(बीजेपी के 27-29 दिसंबर, 1999 को चेन्नै के राष्ट्रीय अधिवेशन के घोषणापत्र का अंश)
“राष्ट्रवाद की विचारधारा बीजेपी के लिए मूलभूत विश्वास का सिद्धांत है. आज देश के अंदर एक बहुत छोटा समुदाय जिस प्रकार की वाचालता का प्रदर्शन कर रहा है, वह संविधान की मूल भावना के खिलाफ है. हम अभिव्यक्ति की आजादी का पूर्ण समर्थन करते हैं, लेकिन यह आजादी संविधान की सीमाओं तक ही सीमित है. इस आजादी के नाम पर भारत की बर्बादी की बात को हम कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे.”
(19-20 मार्च, 2016 को दिल्ली में हुई बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी के प्रस्ताव का एक अंश)
भले बीजेपी के इन दोनों विचारों के बीच का फासला करीब डेढ़ दशक का है, लेकिन इसमें समानता यह है कि दोनों वक्त बीजेपी सत्तारूढ़ रही. पहली बार सत्ता में आने के बाद बीजेपी ने चेन्नै घोषणापत्र को स्वीकार किया तो तत्कालीन गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने दो-टूक कहा था कि यही घोषणापत्र अब बीजेपी की आगे की सोच है. अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली बीजेपी की सरकार भी उसी राष्ट्रवाद और विकास की सोच को अपना मूलमंत्र बता रही है जो अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के समय अपनाई गई थी. इसमें बीजेपी के कोर एजेंडे अयोध्या में राम मंदिर, अनुच्छेद 370 और समान नागरिक संहिता बेहद चतुराई के साथ किनारे छोड़ दिए गए थे. ये मुद्दे बीजेपी के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के उस एजेंडे का अहम हिस्सा माने जाते रहे हैं जो संघ और जनसंघ का मूल आधार रहा है. विपक्ष में रहते हुए ये मुद्दे बीजेपी को प्रिय होते हैं, लेकिन सत्ता में आने के बाद इस पर मौन साध लेती है.जेएनयू से मिली नई पटकथा
लेकिन अब बीजेपी इन विवादास्पद मुद्दों को सीधे तौर पर नहीं छूना चाहती, इसलिए जब जेएनयू में “देशविरोधी” नारे लगे तो पार्टी ने तेजी के साथ राष्ट्रवाद के नाम पर मुद्दे को हथिया लिया. बीजेपी कार्यकारिणी की बैठक के बाद पार्टी के एक वरिष्ठ नेता पार्टी के इस एजेंडे के बारे में कहते हैं, “जेएनयू विवाद के बाद राष्ट्रवाद बनाम राष्ट्रविरोध का ऐसा माहौल बन गया है कि मुस्लिम समाज ने खुद को इस विवाद से दूर कर लिया है. यहां तक कि मुसलमानों के मुद्दे पर बढ़-चढ़कर बोलने वाले उत्तर प्रदेश सरकार के वरिष्ठ मंत्री आजम खान ने भी जेएनयू विवाद पर कुछ नहीं कहा.” पार्टी के एक अन्य नेता की दलील है, “हमारे सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से जुड़े मुद्दों को हमेशा सांप्रदायिकता के रंग में सराबोर माना जाता है, लेकिन जेएनयू से निकला मुद्दा राष्ट्रवाद की श्रेणी में आता है, जिस पर सांप्रदायिकता फैलाने का कोई आरोप नहीं लगाया जा सकता.”
हाल के चुनावी अनुभव से सबक लेते हुए पार्टी राष्ट्रवाद के जरिए नरम हिंदुत्व के एजेंडे पर ही आगे बढऩा चाहती है. खुद शाह मोदी सरकार के एक साल पूरा होने के मौके पर कोर एजेंडे को पूरा न कर पाने की मजबूरी जता चुके हैं. इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कार्यकारिणी में कहा, “राष्ट्रवाद हमारी ताकत है और हमें उस पर आगे बढऩा चाहिए.” इसलिए जैसे ही कांग्रेस नेता शशि थरूर ने जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार की तुलना शहीद भगत सिंह से की, बीजेपी ने अपना पुरजोर विरोध जताते हुए कार्यकर्ताओं को 23 मार्च को भगत सिंह का शहीदी दिवस मनाने और अगले दिन होली के मौके पर “मेरा रंग दे बसंती चोला” गाने के साथ देश भर में होली मनाने का निर्देश दे दिया. कार्यकारिणी में संचालन का जिम्मा संभालने वाली पार्टी की एकमात्र महिला महासचिव सरोज पांडे ने तो राष्ट्रवाद, भारत माता की जय के साथ असहिष्णुता की बहस का भी मुद्दा उठाया. उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि अवार्ड वापसी करने वालों की आत्मा उस दिन कहां चली गई थी जब निर्भया कांड के समय युवा सड़कों पर था.
विकास के साथ राष्ट्रवाद
बीजेपी की रणनीति मोदी सरकार की विकासपरक नीतियों के साथ विचारधारा को जोडऩे की है. इसलिए पार्टी ने परंपरा से हटकर आर्थिक प्रस्ताव की बजाए इस बार कार्यकारिणी में ग्राम उदय से भारत उदय का प्रस्ताव पेश किया. इसमें गरीबी उन्मूलन के लिए आम बजट में किए गए प्रयासों, किसानों के लिए शुरू की गई योजनाएं, देश के हर गांव में बिजली पहुंचाने का लक्ष्य, गांवों में रोजगार सृजन का विस्तार से बखान किया गया है. राजनैतिक प्रस्ताव में भी गरीबी उन्मूलन के प्रति संकल्प के साथ आदर्श ग्राम योजना, स्मार्ट सिटी, प्रधानमंत्री आवास योजना, जन धन योजना, आधार नंबर, प्रधानमंत्री उज्ज्वल योजना, मनरेगा का नवीनीकरण और विस्तार जैसी योजनाओं का जिक्र करते हुए कहा गया है, “सभी योजनाएं आम जन केंद्रित और विकास के मॉडल पर आधारित हैं, जो हमारे एकात्म मानववाद के सिद्धांत से मेल खाता है और यही बीजेपी का राजनैतिक दर्शन भी है.” बैठक में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने राष्ट्रवाद के मुद्दे पर ज्यादा जोर दिया तो प्रधानमंत्री मोदी ने सरकार की उपलब्धियों पर फोकस रखा. मोदी ने कहा, “हमें एक ही मूल मंत्र को लेकर आगे चलना है&विकास, विकास और विकास, यही हमारी सारी समस्याओं का समाधान है.”सामाजिक विस्तार पर जोर
कार्यकारिणी बैठक में संगठन विस्तार की शाह नीति की जमकर तारीफ की गई. मोदी ने कहा कि बीता वर्ष संगठन विस्तार का रहा, लेकिन अब जमीनी विस्तार के बाद जरूरत है कार्यकर्ताओं को सक्षम बनाने की ताकि वे राष्ट्रनिर्माण में अग्रणी भूमिका निभा सकें. शाह ने भी पार्टी के 11 करोड़ कार्यकर्ताओं को सक्रिय सदस्य बनाने की अपील की. उन्होंने बैठक में बताया कि किस तरह पार्टी ने 7.76 लाख कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित किया है. शाह ने कहा कि देशभर में बीजेपी का पदचिन्ह दिखना चाहिए. लेकिन सदस्यता और प्रशिक्षण के बीच के महासंपर्क अभियान का उन्होंने कोई जिक्र नहीं किया. पार्टी का यह अभियान बुरी तरह से नाकाम हो चुका है, इसलिए पार्टी अब इस अभियान का जिक्र तक नहीं करना चाहती. लेकिन दूसरी तरफ सामाजिक आधार बढ़ाने के वास्ते उसने डॉ. भीमराव आंबेडकर की विरासत पर अपना दावा ठोकने के लिए दर्जन भर कामों का बुकलेट तैयार कर लिया है.
कोई उत्साह ही नहीं
बीजेपी संविधान के मुताबिक, हर तीन महीने पर कार्यकारिणी की बैठक होनी चाहिए, पर यह बैठक साल भर बाद हुई. फिर भी सदस्यों और पार्टी में इसको लेकर जैसे कोई उत्साह ही न था. विचारधारा वाली पार्टी में व्यक्तिनिष्ठ होने की होड़ लग गई. संसदीय कार्यमंत्री वेंकैया नायडू ने मोदी को देश के लिए भगवान का वरदान कहा तो संगठन महामंत्री रामलाल ने राजनाथ सिंह और शाह दोनों के कार्यकाल पर संगठनात्मक रिपोर्ट रखते हुए मोदी-शाह की तारीफों के पुल बांध दिए. सूत्रों के मुताबिक, नायडू को रोकने के लिए शाह को दखल देना पड़ा. शाह ने उनसे प्रस्ताव पर बोलने को कहा. एक सदस्य बताते हैं, “बैठक में सिर्फ महिमामंडन होता रहा.” बैठक को लेकर उत्साह का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि एक दिन पहले जब महासचिवों की बैठक में प्रस्तावों पर चर्चा होनी थी तो उसका हिंदी अनुवाद ही मौजूद नहीं था, जिससे चर्चा नहीं हो पाई. बैठक स्थल पर व्यवस्था को लेकर भी पदाधिकारियों के बीच मतभेद की स्थिति पैदा हो गई. मीडिया विभाग आयोजन स्थल से मीडिया को दूर रखना चाह रहा था, ताकि नकारात्मक खबरों को रोका जा सके. लेकिन शाह ने सीधी दखल देकर आयोजन स्थल पर मीडिया के लिए भी अलग व्यवस्था कराई, हालांकि वहां व्यवस्था दुरुस्त न होने की वजह से मीडिया का इंतजाम पार्टी मुख्यालय में शिफ्ट करना पड़ा.
बीजेपी सांस्कृतिक एजेंडे को पीछे छोड़ राष्ट्रवाद के सफर पर निकली तो है, पर कहीं यह पायलट प्रोजेक्ट भर न रह जाए.
बीजेपी की रणनीति में अब तो बस राष्ट्रवाद
अपने बूते बहुमत से केंद्र की सत्ता पर काबिज बीजेपी की दूसरी पीढ़ी ने जेएनयू विवाद के बाद अब कोर सांस्कृतिक एजेंडे पर चुप्पी साध राष्ट्रवाद के जरिए नरम हिंदुत्व पर आगे बढऩे की बनाई रणनीति.

अपडेटेड 30 मार्च , 2016
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