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कौशल विकास: हुनर जो कि था ही नहीं

कौशल विकास की प्रक्रिया में तमाम नाकामियों के बाद सरकार ने 2022 तक 40.2 करोड़ लोगों को प्रशिक्षित करने का अपना लक्ष्य पूरा करने के लिए कदम उठाया

अपडेटेड 19 अक्टूबर , 2015

वर्ष 2009 में यूपीए सरकार ने पहली बार राष्ट्रीय कौशल विकास नीति बनाई और फिर एक वर्ष बाद राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन की रूपरेखा तैयार की. हालांकि यह कुछ देर से उठाया गया कदम था, फिर भी इसका स्वागत किया गया. भारत की जनसंख्या के आंकड़े बड़ी संक्चया में युवा आबादी की ओर इशारा कर रहे थे. लाखों की संक्चया में मौजूद अकुशल कामगारों और बेरोजगार युवाओं को प्रशिक्षित किया जाना था. नरेंद्र मोदी के उनके महत्वाकांक्षी 'कुशल भारत' अभियान के रूप में इसकी नई शुरुआत से पहले इस योजना के तहत तकरीबन 35 लाख युवाओं को प्रशिक्षित किया गया. 'कुशल भारत' अभियान मोदी के उतने ही महत्वाकांक्षी अभियान 'मेक इन इंडिया' का महत्वपूर्ण अंग था. इसे देखते हुए मोदी ने अलग से एक कौशल विकास मंत्रालय ही बना डाला.  

लेकिन इस महीने की शुरुआत में इस मिशन की गाड़ी पटरी से उतर गई, जब राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (एनएसडीसी) के सीईओ दिलीप चेनॉय और मुख्य कार्यकारी अधिकारी अतुल भटनागर ने इस्तीफा दे दिया. लेकिन अब इससे भी ज्यादा बुरी खबर है.

एनएसडीसी पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट आ चुकी है, जिसकी एक प्रति इंडिया टुडे के पास है. 2008 से लेकर 2014 तक एनएसडीसी की कार्यप्रणाली पर सीएजी की यह रिपोर्ट बहुत सारी अनियमितताओं की ओर इशारा करती है. इन अनियमितताओं के कारण ही भारत को कौशलपूर्ण बनाने की रफ्तार इतनी सुस्त रही है.

रिपोर्ट अभी संसद में पेश की जानी है. इसमें कहा गया है कि एनएसडीसी निजी क्षेत्र से 1 रु. भी नहीं वसूल पाया, फिर भी इसमें सरकार का शेयर 37.04 से लेकर 42.37 फीसदी के बीच था जबकि कैबिनेट के एक निर्णय के मुताबिक एनएसडीसी में सरकारी शेयर 49 फीसदी से कम नहीं होना चाहिए था. एनएसडीसी को वित्तीय सहयोग देने के लिए बनाए गए राष्ट्रीय कौशल विकास कोष (एनएसडीएफ) को 2008 से 2014 के बीच सरकार से 2,811.98 करोड़ रु. मिले. इसमें निजी क्षेत्र का हिस्सा नहीं था. लेखा परीक्षक को इस संदर्भ में कोई दस्तावेज भी नहीं मुहैया कराया गया कि इस दौरान एनएसडीसी ने निजी क्षेत्र का सहयोग लेने को क्या कदम उठाए.

रिपोर्ट में कहा गया है, ''एनएसडीएफ के लिए अन्य वैकल्पिक स्रोतों से सहयोग जुटाने के लिए उठाया गया कोई जरूरी कदम सिरे से नदारद है.'' एनएसडीसी को मिले 1,677.94 करोड़ रु. (जिसमें से 10 करोड़ रु. इक्विटी और 1,667.94 करोड़ रु. अनुदान था) एनएसडीसी के कुल कोष का 99.69 फीसदी हिस्सा था. 99.69 फीसदी सरकारी सहयोग के साथ यूं तो यह एक सरकारी प्रोजेक्ट था, लेकिन फिर भी इसका नियंत्रण निजी हाथों में ही था.

एनएसडीएफ का काम एनएसडीसी के कामों की निगरानी करना था, लेकिन रिपोर्ट कहती है कि ''एनएसडीसी के चेयरमैन को एनएसडीएफ के बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज में शामिल करने से यह मकसद ही पूरा नहीं हो सका.'' रिपोर्ट बताती है कि कैसे सुनियोजित तरीके से कुछ लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए नियम और प्रक्रिया की अनदेखी की गई. एनएसडीसी ने अनौपचारिक रूप से प्रशिक्षण सहयोगी चुनने का फैसला लिया. रिपोर्ट के मुताबिक, इसका अर्थ था—''प्रस्ताव में खर्च की किसी पूर्व रूपरेखा के बगैर ही उन पर विचार करना.''

किसी प्रोजेक्ट की स्वीकृति की प्रक्रिया कई चरणों से होकर गुजरती है. सबसे पहले एक मूल्यांकन कमेटी प्रोजेक्ट का मूल्यांकन करती है और फिर प्रोजेक्ट अप्रूवल कमेटी उसे स्वीकृत करती है. इस कमेटी के सदस्यों में उद्योग से जुड़े लोग और एक सरकारी व्यक्ति होता है लेकिन आर्थिक मामलों के विभाग (डीईए) ने सरकारी सदस्य की भागीदारी खत्म करने का फैसला किया.

शुरू में कौशल योजना वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग के अंतर्गत आती थी, जिसके प्रमुख वित्त मंत्री पी. चिदंबरम थे. बाद में इसे युवा एवं खेल मंत्रालय और फिर कौशल विकास मंत्रालय के अधीन कर दिया गया. जांच रिपोर्ट के मुताबिक एनएसडीएफ से एनएसडीसी को मिलने वाले धन के हस्तांतरण और उसके उपयोग की निगरानी के लिए मार्च, 2009 में एनएसडीएफ और एनएसडीसी ने एक निवेश प्रबंधन अनुबंध किया, लेकिन इस अनुबंध में एनएसडीसी के कामों पर निगरानी रखने की एनएसडीएफ की किसी भूमिका का कोई जिक्र नहीं किया गया था. इससे भी बढ़कर यह हुआ कि कैबिनेट के फैसले को भंग करते हुए आर्थिक मामलों के विभाग के लिए गए फैसले ने जून, 2011 में एनएसडीसी को एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में बदल दिया. इसका मतलब था कि अब प्रबंधन से जुड़े लोगों के खर्च के लिए किसी सरकारी स्वीकृति की जरूरत नहीं और न ही किसी जांच कमेटी की कोई जरूरत थी.

सीएजी ने पाया कि एनएसडीसी ने कुछ विशेष कंपनियों/प्रशिक्षण सहयोगियों के साथ अनुबंध किए, जिन्होंने अन्य बोली लगाने वालों के मुकाबले 3,000 गुना ज्यादा पैसे लिए. पुनर्भुगतान की अवधि बढ़ा दी गई. उद्योग जगत से जुड़े स्रोत बताते हैं कि एनएसडीसी से लिए गए धन का दुरुपयोग हुआ और कई बार तो उन्हीं चुनिंदा लोगों को कई बार प्रशिक्षण दे दिया गया.

हालांकि भारत में शायद यह पहली बार हुआ है कि प्रधानमंत्री खुद कौशल विकास के इस मिशन का नेतृत्व कर रहे हैं, लेकिन फिर सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक प्रगति की रफ्तार बहुत धीमी और धुंधली है. इन खुलासों के बावजूद नीति विशेषज्ञों का मानना है कि कौशल विकास राष्ट्रीय नीति को पुनरू निर्धारित किए जाने के पीछे नेक इरादे हैं और महत्वाकांक्षी लक्ष्य है. लेकिन इस समय सबसे बड़ा संकट इस बात का है कि उसे अमल में कैसे लाया जाए. एक नीति विशेषज्ञ कहते हैं, ''जब तक ऐसी कोई प्रक्रिया न हो, जो जिम्मेदारी और एक निश्चित समय सीमा के भीतर काम को पूरा किया जाना सुनिश्चित करे, तब तक निजी क्षेत्र में भी किसी योजना को अमल में लाना बहुत मुश्किल है.''

केंद्रीय कौशल विकास मंत्री राजीव प्रताप रूडी एनएसडीसी के इस संकट का सामना करने के लिए पुराने ढर्रे को पकड़ते हैं और इस बात पर जोर देते हैं कि ''कांग्रेस का बोझ ढोने'' का उनका कोई इरादा नहीं है. रूडी कहते हैं, ''एनएसडीसी दरअसल सीआइआइ और फिक्की (एफआइसीसीआइ) का ही विस्तार था. जब मैंने कार्यभार संभाला तो वे किसी चीज के लिए जिम्मेदार और उत्तरदायी ही नहीं थे. कागजों पर बहुत कुछ था, लेकिन असल जमीन पर चीजें नदारद थीं.'' वे कहते हैं, ''मैं इसलिए परेशान था क्योंकि सेक्टर स्किल काउंसिल के एक भी व्यक्ति ने हमें कोई सूचना नहीं दी, जिसका प्रमुख दायित्व ही प्रशिक्षण कार्यक्रमों को सुनिश्चित करना है. मैं आपको इस बात का वैधानिक अधिकार दे रहा हूं कि आप प्रमाणपत्र बांटें. अगर आप वह भी नहीं कर सकते तो आप मेरे लिए किसी काम के नहीं हैं.''

एनएसडीसी अब सीएजी के चश्मे के नीचे है और सीएजी ने चौंकाने वाली रिपोर्ट पेश की है. एनएसडीसी में बड़े बदलावों और उथल-पुथल की संभावना है, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में प्रशिक्षण कार्यक्रमों और जिम्मेदारी सुनिश्चित करने पर विशेष जोर दिया जाएगा. लेकिन जैसाकि जेनसार टेक्नोलॉजी के वाइस चेयरमैन और सीईओ गणेश नटराजन कहते हैं, ''उन्हें (सरकार को) पहले धन के गोरखधंधे को सुलझाने की जरूरत है.'' चेयरमैन एस. रामदुरै कहते हैं कि संक्षेप में एनएसडीसी के सामने सबसे प्रमुख चुनौतियां कुछ इस प्रकार हैं, ''हमने तकरीबन 10 देशों और 245 सहयोगियों के साथ अनुबंध किया है, जो 3,000-4,000 प्रशिक्षण केंद्र शुरू करने जा रहे हैं. धन इसका बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है और एक बेहतर व्यवस्था बनाने के लिए धन के अन्य स्रोतों पर भी विचार किया जा रहा है.'' कई बार कोशिशों के बावजूद इस पूरे मसले पर अपनी राय देने के लिए चेनॉय उपलब्ध नहीं हुए. रामदुरै कहते हैं कि चेनॉय ने अन्य संभावनाएं तलाशने के लिए यह पद छोड़ा है.

भारत को एक कौशलपूर्ण राष्ट्र बनाने की यह पहल ऐसी ही दूसरी कोशिशों के मुकाबले बहुत निराशाजनक साबित हुई. जैसेकि आधार योजना और हाल ही में शुरू हुई जन-धन योजना. दोनों में ही काफी तेज गति से प्रगति हुई है. 2022 तक 40.2 करोड़ लोगों को प्रशिक्षित करने का लक्ष्य हासिल करने के लिए भारत को हर हफ्ते तकरीबन दस लाख लोगों को प्रशिक्षित करने की जरूरत है. एक ऐसे देश के लिए, जिसकी आधी आबादी की आयु 25 वर्ष से कम हो, यह संख्या महत्वपूर्ण है और साथ ही बड़ी चुनौती भी. चेनॉय और उनकी टीम के पास संभवतः इफरात वक्त की सुविधा थी. लेकिन रूडी के पास वक्त की यह सुविधा नहीं है. वे कहते हैं, ''मुझे प्रधानमंत्री को जवाब देना है. हमें बहुत तेजी से काम करना है. यह हमारे लिए बहुत बड़ा धक्का था.''

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