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मोदी को संघ का साथ

संघ ने आर्थिक, शैक्षिक और सुरक्षा नीतियों पर अपना खाका सरकार के सामने रखा. सरकार ने भी विवादास्पद मुद्दों पर रार नहीं ठानने का भरोसा हासिल कर परिवार में समन्वय की नई स्क्रिप्ट लिखी.

अपडेटेड 14 सितंबर , 2015

सरकार से जनता को उम्मीदें बहुत ज्यादा हैं, उसी गति से हमें काम भी करना होगा. लेकिन कई बार संगठनों (विचार परिवार) की ओर से ही ऐसी बयानबाजी हो जाती है जिससे आपसी समझ प्रभावित हो जाती है.”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संघ परिवार की तीन दिवसीय समन्वय बैठक के समापन सत्र में करीब पौन घंटे के भाषण में जब कुछ इस अंदाज में अपने भाव प्रकट किए तो उनका इशारा साफ तौर से भूमि अधिग्रहण अध्यादेश, श्रम सुधार, खुदरा क्षेत्र में एफडीआइ, जीएम क्रॉप जैसे मुद्दों पर संघ के आनुषंगिक संगठनों के शुरुआती विरोध की तरफ था. इसे विपक्षी दलों ने राजनैतिक हथियार बनाया और भूमि अध्यादेश पर सरकार के खिलाफ बनी नकारात्मक छवि की वजह से उसे कदम वापस खींचने को मजबूर होना पड़ा. लेकिन 15 महीने बाद ही सही, प्रधानमंत्री मोदी की मौजूदगी में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने उनकी भावना से अपनी भी सहमति जता दी.

बीजेपी-आरएसएसतीन दिन तक सभी के विचार सुनने के बाद भागवत ने सबसे आखिर में महज 30 मिनट में समन्वय का निचोड़ कुछ इस तरह से थमाया, “संघ के जितने भी संगठन हैं, हम सब मिलकर एक विचार परिवार हैं और सभी के विचारों का इसी प्रकार से आदान-प्रदान होते रहना चाहिए. इससे सरकार और संगठन में बैठे दोनों तरफ के लोगों को फायदा मिलता है. हमें मिल-जुलकर इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाना चाहिए.”

संघ परिवार अब वैसी भूल नहीं दोहराना चाहता जो अटल बिहारी वाजपेयी के  शासनकाल में हुई थी. समन्वय के अभाव का नतीजा सड़कों पर दिखने लगा था. लेकिन इस बार संघ ने केंद्र में बीजेपी की सरकार बनने से पहले ही परिवार की बैठक कर छह विषयों पर एक ड्राफ्ट नीति तैयार कर ली थी, जिसे परिवार का अपना चिंतन कहा गया. लेकिन पहले साल में समन्वय नहीं होने से कई ऐसे मौके आए जब संघ के आनुषंगिक संगठनों ने सार्वजनिक तौर से विचारधारा से जुड़े मुद्दों पर सरकार पर हमला करने में गुरेज नहीं किया. इससे सरकार की साख पर पहले साल में ही सवाल उठने लगे. लिहाजा संघ ने अनौपचारिक तौर से आनुषंगिक संगठनों को संयम बरतने की सलाह दी थी. बीजेपी ने भी संगठन के स्तर पर भारतीय मजदूर संघ, भारतीय किसान संघ, स्वदेशी जागरण मंच जैसे परिवार के संगठनों से विचार-विमर्श की प्रक्रिया शुरू कर दी थी और सरकार की ओर से भी मंत्रियों को विषय के मुताबिक इन संगठनों से बातचीत के लिए जोड़ा गया था.

बीजेपी-आरएसएसलेकिन इन प्रयासों के बावजूद संघ अपनी भूमिका महज मूकदर्शक की नहीं रखना चाहता था, इसलिए रूटीन में होने वाली समन्वय बैठक को विस्तारित रूप दिया गया. संघ प्रमुख की मौजूदगी में सभी संगठन इकट्ठे हुए तो सरकार के कामकाज पर चिंता जताने के साथ-साथ सुझाव भी दिए गए. बैठक के बाद संघ के सहसरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने इसे सरकार की समीक्षा बैठक मानने से भले इनकार किया, पर हर सत्र में सरकार की ओर से संबंधित मंत्री जवाब देने के लिए बुलाए गए थे. दरअसल संघ चाहता है कि मोदी सरकार एक दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ आगे बढ़े, क्योंकि अब इंतजार करना मुनासिब नहीं होगा. सूत्रों के मुताबिक, भागवत ने इस बात का खास तौर से जिक्र किया कि विचारधारा को लेकर संघ अपनी तीन पीढ़ी खपा चुका है. संघ अपनी विचारधारा के लिए समन्वय चाहता है, लेकिन वह फिलहाल सरकार से पूरी तरह संतुष्ट नहीं है. होसबाले ने खुद कहा, “सरकार के अभी 14 महीने ही हुए हैं. अभी समय है जिसमें उसे बहुत सारे काम करने हैं. दिशा ठीक है, उपलब्धि अच्छी है. लेकिन मोदी सरकार देश के लोगों के मन के एजेंडा को लेकर काम करे, यही हमारी कामना है.” हालांकि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने भैय्याजी जोशी के उद्घाटन संबोधन के फौरन बाद एक घंटे तक सरकार-संगठन की उपलब्धियों का बखान किया. उन्होंने लोकसभा चुनाव की जीत में संघ परिवार के योगदान का खास जिक्र किया. शाह ने कहा, “आज हम जहां (शासन में) हैं उसमें मोदी जी की छवि, कांग्रेस की गलत नीतियां तो हैं ही, लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि पूरा परिवार हमारे पीछे खड़ा था, इसलिए बीजेपी को इतनी अद्भुत विजय मिली.”

हालांकि संघ की सोच पर आगे बढऩे के एवज में मोदी ने भी बेहद चतुराई के साथ स्वयंसेवकों को अपनी महत्वाकांक्षी योजनाओं के साथ जोडऩे की कोशिश की. सूत्रों के मुताबिक, मोदी ने कहा, “संघ चरित्र निर्माण और राष्ट्र निर्माण की सीख देता है. स्वच्छता मिशन, नमामि गंगे जैसी योजनाओं में स्वयंसेवक आगे बढ़कर भूमिका निभाएं तो जरूर सफलता मिलेगी.” मोदी सरकार की ओर से समन्वय बैठक में संघ को यह भी इशारा कर दिया गया कि राम मंदिर जैसे मुद्दे अभी सरकार की प्राथमिकता में नहीं होंगे. लेकिन अन्य हिंदू तीर्थ स्थानों को भव्यता दिलाने का विशेष अभियान चलाने पर सहमति बनी है. अल्पाहार के दौरान “मुक्त चिंतन” में भी संघ के वरिष्ठ नेताओं और मोदी के बीच गहन चर्चा हुई.

अतीत से सबक लेते हुए संघ ने अभिभावक की भूमिका निभाई है. बहुमत से बनी विचारधारा वाली सरकार और आनुषंगिक संगठनों के बीच समन्वय का सूत्रपात हो गया है. लेकिन समन्वय की डोर बेहद पतली है.

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