scorecardresearch

मोदी के आधार में भी उलझन हजार

आधार कार्ड परियोजना को बीजेपी की सरकार ने आगे बढ़ाने का फैसला कर लिया है, लेकिन वह अभी तय नहीं कर पा रही कि उसे कानूनी जामा कब पहनाया जाए.

अपडेटेड 25 नवंबर , 2014
ना ना करते प्यार तुम्हीं से कर बैठे, करना था इनकार. मगर इकरार तुम्हीं से कर बैठे...’’ 1965 में बनी फिल्म जब-जब फूल खिले के इस गीत का मुखड़ा 2014 में देशभर में बीजेपी का कमल खिलाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार पर सटीक बैठता है. सत्ता में आने के ठीक 70 दिन बाद जब 6 सितंबर को मोदी ने आधार कार्ड परियोजना से जुड़े अधिकारियों के साथ बैठक की तो उनका स्पष्ट निर्देश था, ‘‘जून 2015 तक देश की पूरी आबादी का बायोमीट्रिक पहचान पत्र (आधार) पंजीकरण हो जाना चाहिए.’’

प्रधानमंत्री मोदी का यह निर्देश आधार कार्ड बनाने वाली  संस्था भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधाकिरण (यूआइडीएआइ) को एक नया जीवनदान है. जबकि इस परियोजना का लोकसभा चुनाव के समय मोदी ने खजाने की लूट करार देते हुए यूपीए सरकार की बिना विजन वाली राजनैतिक नौटंकी कहकर मखौल उड़ाया था.

लेकिन वही आधार कार्ड परियोजना अब मोदी की एनडीए सरकार की सभी योजनाओं का केंद्र बनती जा रही है. पिछले पांच महीनों में सरकार सात बड़ी योजनाओं को आधार से जोड़ चुकी है या जोडऩे का फैसला कर चुकी है. इसमें सरकारी कर्मचारियों की हाजिरी, कैदियों को आधार जारी करने का फैसला, पासपोर्ट, सिम कार्ड, प्रोवीडेंट फंड, जीवित रहने का प्रमाण, एलपीजी सब्सिडी के लिए बैंक खातों में सीधे नकद हस्तांतरण (डीबीटीएल), प्रधानमंत्री जन-धन योजना के तहत खुले बैंक खातों को आधार से जोडऩा और डिजिटल इंडिया प्रोजेक्ट शामिल है.

कैसे बदला मोदी का मन
दरअसल, आधार परियोजना प्रारंभ से ही विवादों में रही है. विपक्ष में रहते हुए बीजेपी आधार परियोजना और खास तौर से बायोमैट्रिक डाटा को सुरक्षा के लिए खतरा बताकर शुरू से ही विरोध जताने लगी थी. संसद की वित्तीय मामलों की स्थाई समिति ने भी इस बिल को खारिज कर दिया था. बीजेपी नेता और मौजूदा मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने इस पर पिछले साल कड़ी टिप्पणी की थी, ‘‘द ऑथरिटी ऑफ इंडिया बिल- 2010 जो आधार कार्ड को मान्यता देती, उसे स्थाई समिति ने खारिज कर दिया है.

यह योजना संविधान के तहत मिली निजता के अधिकार का उल्लंघन करती है. इस योजना में अवैध घुसपैठियों को भी नागरिकता मिल जाएगी जो देश की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा है.’’ खुद मोदी ने लोकसभा चुनाव प्रचार में 8 अप्रैल, 2014 को खास तौर से बंगलुरू दक्षिण लोकसभा सीट पर प्रचार के दौरान इस योजना पर गंभीर सवाल उठाए थे. बीजेपी की प्रवक्ता मीनाक्षी लेखी ने तो सत्ता में आने पर आधार को निराधार बनाने के संकेत दिए थे और सीबीआइ जांच तक की मांग कर दी थी.

बंगलुरू दक्षिण सीट से बीजेपी उम्मीदवार अनंत कुमार की टिप्पणी तो इससे दो कदम आगे थी, ‘‘अगर हमारी पार्टी सत्ता में आती है तो हम न सिर्फ यूआइडीएआइ को खत्म करेंगे बल्कि इस योजना को शुरू करने वालों के खिलाफ आपराधिक मुकदमे भी चलाएंगे क्योंकि इसमें जनता के पैसे का बेजा इस्तेमाल हुआ है.’’

इस सीट पर कांग्रेस ने यूआइडीएआइ के पूर्व चेयरमैन नंदन नीलेकणि को मैदान में उतारा था, इसलिए रणनीति के तहत मोदी ने इस आइटी नगरी में योजना पर सवाल उठाए. चुनावी समर में भले नीलेकणि बीजेपी के अनंत कुमार से हार गए, लेकिन सूत्रों के मुताबिक इस योजना को जारी रखने के लिए मोदी का मन बदलने वालों में सबसे अहम शख्स वही हैं. सूत्रों के मुताबिक जुलाई में मोदी और नीलेकणि की मुलाकात के बाद ही मोदी ने इस योजना को आगे बढ़ाने का मन बना लिया था.

लेकिन सबसे बड़ा बदलाव यह है कि मोदी सरकार एलपीजी सब्सिडी को सीधे बैंक खाते में हस्तांतरण करने की दिशा में कदम बढ़ा चुकी है और 15 नवंबर से  इसे उन्हीं 54 जिलों में फिर से लागू कर दिया गया है जिसकी शुरुआत यूपीए शासन में हुई थी. वैसे मोदी सरकार की योजना 1 जनवरी, 2015 से इसे देश भर में लागू करने की है. लेकिन कैश ट्रांसफर स्कीम के लिए आधार की अनिवार्यता फिलहाल खत्म कर दी गई है.

इस बारे में पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान इंडिया टुडे से खास बातचीत में जो खुलासा करते हैं वह बीजेपी की नीति में बड़े बदलाव की ओर इशारा है. वे कहते हैं, ‘‘नागरिकता और पहचान अलग-अलग विषय है. विश्व के कई देशों ने इन दोनों चीजों को अलग रखा हुआ है. यह सारा विवाद तब शुरू हुआ जब आधार को विकास के हिताधिकारियों के साथ पिछली सरकार ने अनिवार्य कर दिया. लेकिन हमने कोई पूर्व शर्त नहीं रखी है. हमने पहचान और नागरिकता को अलग रखा है.’’

नकद हस्तांतरण के बारे में यू-टर्न पर उनकी दलील है कि जब राजस्थान में 2003 में वसुंधरा राजे की सरकार बनी थी तब भी नकद हस्तांतरण की योजना शुरू हुई थी. इस तरह की व्यवस्था गुजरात में भी कई योजनाओं में पहले से है. वे कहते हैं, ‘‘बीजेपी डायरेक्ट कैश ट्रांसफर के पक्ष में है. लेकिन पिछली बार आधार को लेकर कांग्रेस ने जल्दबाजी की थी. आधी-अधूरी तैयारी थी, जिस कारण कोर्ट से भी फटकार सुननी पड़ी और उसी के कार्यकाल में फरवरी, 2014 में उसे बंद करना पड़ा था.

अब हमने तय किया है कि जिसके पास आधार नंबर है उसे तो सब्सिडी मिलेगी ही, जिसके पास नहीं है उन्हें भी अपना कोई भी बैंक खाता चिन्हित कर ऐजेंसी को बताना होगा. हाल ही में हमने प्रधानमंत्री जन-धन योजना में 6 करोड़ खाते खोले हैं. जिनके पास दोनों में से कुछ भी नहीं है तो हम खाता खुलवाएंगे, आधार बनवाएंगे. तीन महीने तक उसके बिना भी सुविधा मिलती रहेगी. ’’
8 अप्रैल को बंगलुरू की इसी चुनावी सभा में मोदी ने आधार कार्ड का विरोध किया था
(8 अप्रैल को बंगलुरू की इसी चुनावी सभा में मोदी ने आधार कार्ड का विरोध किया था)
पर सवाल हैं बहुतेरे
लोकसभा चुनाव-2014 के महाभारत में कांग्रेस जिस महत्वाकांक्षी आधार कार्ड परियोजना को यूपीए सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धियों में शुमार कर रही थी, चुनाव से ठीक पहले देश की सर्वोच्च अदालत ने उस श्आधार्य की जमीन खिसका दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को आधार कार्ड को किसी भी सरकारी कामकाज के लिए अनिवार्य किए जाने के आदेश को तत्काल वापस लेने का आदेश दिया. कोर्ट ने निर्देश दिया कि आधार कार्ड धारकों के बायोमीट्रिक आंकड़े किसी भी जांच ऐजेंसी या सरकारी विभाग को नहीं दिए जाएं.

अदालत का यह आदेश बंबई हाइकोर्ट की गोवा पीठ के उस आदेश पर रोक लगाते हुए आया था जिसमें बलात्कार के एक मामले को सुलझाने के लिए नागरिकों को आधार कार्ड देते समय एकत्र किए गए आंकड़े सीबीआइ से साझ करने का निर्देश दिया था. सर्वोच्च अदालत ने साफ तौर पर कहा है कि अभियुक्त की लिखित सहमति के बगैर दूसरी ऐजेंसियों को रिकॉर्ड साझा नहीं किया जाना चाहिए. इस फैसले के बाद ही कैश सब्सिडी देने की योजना अधर में लटक गई.

लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर देखा जाए तो मौजूदा सरकार ने भी एलपीजी सब्सिडी के लिए बैंक में खाता खोलने को अनिवार्य शर्त के तौर पर रखा है. इस बारे में यूआइडीएआइ ने मंत्रालय के सामने सवाल उठाया तो दलील दी गई कि अगर इस मामले में कोई अदालत में जाता है तो उस वक्त ही मामले को देखा जाएगा. मौजूदा सरकार भी पिछली सरकार की तरह कानूनी अड़चन दूर किए बिना ही इस योजना में जल्दबाजी दिखा रही है.

यूआइडीएआइ का वैधानिक दर्जा नहीं होने की वजह से ही सुप्रीम कोर्ट ने डीबीटीएल योजना को रोकने के लिए सरकार को मजबूर कर दिया था. लेकिन एनडीए सरकार भी उस पहलू को नजरअंदाज कर आगे कदम बढ़ा रही है. यूपीए सरकार ने इस बाबत बिल राज्यसभा में पेश किया था, लेकिन विपक्ष के ऐतराज के बाद स्थायी समिति को भेज दिया गया. लेकिन अब नई सरकार क्या यूआइडीएआइ को वैधानिक दर्जा देने के लिए बिल लाएगी? इस सवाल पर सरकार में असमंजस है. हालांकि आधार की पैरवी करते हुए पेट्रोलियम मंत्री प्रधान का कहना है, ‘‘अभी तो हम एग्जीक्यूटिव ऑर्डर पर ही क्रियान्वयन कर रहे हैं.

आधार और एनपीआर को लेकर नई सरकार ने समीक्षा की है और यह तय किया है कि भारत की सारी आबादी की हम पहले डिजिटल मैपिंग कर लें और फिर उसका क्या इस्तेमाल होगा उसको देखते हुए अगर संवैधानिक मान्यता देने की जरूरत है तो उसे भी देखेंगे.’’ लेकिन सवाल है कि इसका डाटा किसके पास रहेगा. अभी की ताजा स्थिति में योजना आयोग के तहत काम करने वाली यूआइडीएआइ के पास पूरा डाटा है. लेकिन योजना आयोग का अस्तित्व खत्म हो चुका है

इस डाटा के आधार पर ही एनपीआर को भी जोडऩे की चर्चा थी, लेकिन संसद के पिछले सत्र में योजना मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने साफ कर दिया, ‘‘इस तरह का कोई प्रस्ताव फिलहाल सरकार के पास विचाराधीन नहीं है.’’ हालांकि उन्होंने कहा कि अभी 22 राज्यों में आधार पंजीकरण का काम जारी है.

क्या है सरकार की चुनौतियां
सरकार ने आधार कार्ड को अगले साल जून तक सबको जारी करने का आदेश यूआइडीएआइ को दिया है. लेकिन बीजेपी सरकार की सबसे बड़ी मुश्किल है कि कांग्रेस की जिस योजना का उसने संसद से सड़क तक विरोध किया, सत्ता में आने के बाद उसे कैसे अपनाए. यही वजह है कि बैठकों में अभी भी मोदी या सरकार के अन्य मंत्री आधार शब्द का इस्तेमाल से भी परहेज करते दिख रहे हैं. उसकी जगह बायोमीट्रिक कार्ड शब्द का इस्तेमाल किया जा रहा है.

ऐसे में सवाल यह है कि क्या सरकार सुप्रीम कोर्ट या आधार की राह में आने वाली अन्य चुनौतियों से निबटने के लिए संसद में बिल लाएगी? सरकार अभी इस बारे में मौन है. लेकिन यूआइडीएआइ और गृह मंत्रालय से जुड़े अधिकारियों की दलील है कि आज नहीं तो कल, सरकार को बिल लाना ही होगा क्योंकि आधार को अनिवार्य किए बिना यह अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सकता.

आधार कार्ड की वजह से सालाना करीब तीन लाख करोड़ रु. की सब्सिडी योजना में लीकेज को रोककर 20 फीसदी बचत की जा सकती है. सूत्रों का कहना है कि मोदी सरकार इसलिए एलपीजी सब्सिडी को जनवरी से देश में लागू कर रही है ताकि कानूनी अड़चन का सवाल उठे और बजट सत्र में इसका बिल लाकर कानूनी जामा पहना दिया जाए.

लेकिन नैतिकता के अलावा कई चुनौतियां सुरक्षा से भी जुड़ी हैं. सिम कार्ड को आधार से जोडऩे की बात कही गई है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि सिर्फ नए सिम कार्ड को इससे जोडऩा है या फिर मौजूदा चालू सिम कार्ड को भी. हालांकि आइबी ने इस मसले पर अपनी चिंता जाहिर की है. गृह मंत्रालय का असमंजस इस कदर है कि प्रधानमंत्री मोदी की ओर से कैदियों का आधार कार्ड जारी करने के निर्देश के दो महीने बाद भी इस बारे में राज्यों को आदेश जारी नहीं हुआ.

अब अक्तूबर के आखिर में गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों को चिट्ठी लिखकर कहा है कि आधार सार्वभौमिक पहचान प्रदान करेगा. यह कहीं भी, कभी भी और किसी भी तरह इसके लाभार्थियों की पहचान की प्रामाणिकता की पुष्टि का स्त्रोत प्रदान करेगा. हालांकि सरकार की बड़ी चुनौती है कि वह आधार को अनिवार्य करती है तो कानून आड़े आएगा और उसे वैकल्पिक रहने देती है तो यह जरूरी नहीं कि लोग पंजीकरण के लिए जाएंगे.

साफ है कि नरेंद्र मोदी सरकार आखिरकार आधार योजना को उसी मजबूती के साथ लागू करना चाह रही है जिस दिशा में यूपीए सरकार बढ़ रही थी. लेकिन चुनावी समर में राजनैतिक विरोध कर चुकी बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी की दुविधा यही है कि आखिर ‘‘आधार’’ को अपनाएं तो अपनाएं किस आधार पर.
Advertisement
Advertisement