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तेलंगाना के खिलाफ एकजुट

कांग्रेस आंध्र प्रदेश के विभाजन पर आमादा है, लेकिन उसे अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री के विरोध का सामना करना पड़ रहा है. लेकिन उनके इस राह में तीन प्रतिद्वंदी आ खड़े हुए हैं.

अपडेटेड 23 अक्टूबर , 2013
उनका राज्य फिलहाल ठहर-सा गया है लेकिन आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. किरण कुमार रेड्डी अपने पसंदीदा खेल क्रिकेट का उदाहरण देकर तर्क दे सकते हैं कि आखिरी गेंद फेंके जाने तक खेल खत्म नहीं मानना चाहिए. वे भाषायी आधार पर गठित देश के पहले राज्य के बंटवारे की प्रक्रिया की अध्यक्षता करने वाले मुख्यमंत्री के रूप में पहचान बनाने की बजाए संयुक्त आंध्र प्रदेश के अग्रणी पैरोकार के रूप में पहचान बनाना चाहते हैं.

लेकिन इस राह में तीन प्रतिद्वंद्वी आ खड़े हुए हैं. इनमें से एक तो उनकी अपनी ही पार्टी और आंध्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी (एपीसीसी) अध्यक्ष बी. सत्यनारायण हैं तो दूसरे, विपक्षी पार्टियों के—वाइएसआर कांग्रेस अध्यक्ष वाइ.एस. जगनमोहन रेड्डी और टीडीपी अध्यक्ष चंद्र बाबू नायडु. रेड्डी-नायडु ने राज्य के विभाजन के खिलाफ भूख हड़ताल का खेल शुरू कर दिया है.

इसकी शुरुआत जगनमोहन ने हैदराबाद में 5 अक्तूबर को पार्टी कार्यालय लोटस पॉन्ड्स में अस्थायी मंच बनाकर की. पार्टी कार्यकर्ता और समर्थक उनकी एक झलक पाने को आ जुटे तो रेड्डी ने भी 'एक्सक्लूसिव’ इंटरव्यू देकर मौके का फायदा उठाने से परहेज नहीं किया.

लेकिन पांचवें दिन जब उनका शुगर लेवल कम होने लगा तो उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा. संयुक्त आंध्र प्रदेश की मुहिम में नायडु भी मैदान में कूद पड़े, लेकिन आंध्र की बजाए उन्होंने दिल्ली स्थित आंध्र भवन को चुना और इसके लॉन में उन्होंने 7 अक्तूबर को अनशन शुरू कर दिया.

सत्यनारायण खुद को किरण रेड्डी की भूमिका में देखना चाहते हैं. वे राज्य में रेड्डी समुदाय के वर्चस्व की काट के लिए ओबीसी कार्ड खेल रहे हैं, जबकि दूसरी तरफ किरण रेड्डी ने हड़ताल पर गए सरकारी कर्मचारियों और बिजली आपूर्ति विभाग के नेताओं के साथ बातचीत के रास्ते खुले रखे हैं.

उन्होंने काम पर लौटने के लिए कोई धमकी नहीं दी. तटीय इलाके में तूफान की आशंका की वजह से हड़ताल खत्म भी हो गई. स्कूल-कॉलेजों को दशहरे की लंबी छुट्टी मिल गई. सीमांध्र इलाके में जन-जीवन ठप-सा है. सड़कों पर नाममात्र की गाडिय़ां हैं. दफ्तरों में कर्मचारी नहीं हैं और बाजारों में रौनक नहीं है.

विपक्ष को भरोसा है कि 13 जिलों—जिसे सीमांध्र के नाम से जाना जाता है—के मतदाता उन्हें वोट देंगे. सीमांध्र के लोग 3 अक्तूबर को राज्य के 10 जिलों को अलग कर तेलंगाना के रूप में देश का 29वां राज्य बनाने के फैसले का विरोध कर रहे हैं. इन दलों को लगता है कि अगर तेलंगाना राज्य अस्तित्व में आया तो वहां के वोट तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) और कांग्रेस की ओर चले जाएंगे.

ऐसे में 2014 के आम चुनाव में सीमांध्र प्रदेश में उन्हें एक दूसरे के ही खिलाफ लडऩा पड़ेगा. जगन कहते हैं, ''यह राहुल गांधी को अगला प्रधानमंत्री बनाने का हथकंडा है. आंध्र प्रदेश विधानसभा से प्रस्ताव पारित किए बिना केंद्र सरकार इस आशय का फैसला कैसे कर सकती है?” नायडु कहते हैं, ''कांग्रेस सत्ता के लिए तेलुगू लोगों के साथ भद्दी राजनीति खेल रही है.”

सत्तारूढ़ कांग्रेस सीमांध्र में कमजोर पिच पर है. प्रदेश विभाजन की संभावना ने पार्टी में कइयों को भड़का दिया है. बढ़ते विरोध को देखते किरण रेड्डी को कहना पड़ा कि मुख्यमंत्री का पद स्थायी नहीं होता और तेलंगाना राज्य बनाए जाने का वे विरोध करेंगे. वे कहते हैं, ''मैं हार मानने वाला नहीं हूं.

मेरी इच्छा है कि इस मुद्दे पर पहले विधानसभा में बहस की जाए ताकि जन प्रतिनिधि पहले फैसला कर सकें कि संयुक्त आंध्र प्रदेश उनके हित में है या राज्य का विभाजन बेहतर रहेगा. तभी मैं इस बारे में फैसला कर सकूंगा.” उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि सीमांध्र में कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ेगी. वे कांग्रेस से वैसे ही हस्तक्षेप की मांग करते हैं, जैसे राहुल ने दागी राजनेताओं को बचाने वाले अध्यादेश पर किया था.

कांग्रेस में अंदरूनी कलह थम नहीं पा रही है. तेलंगाना से कांग्रेस सांसद मुख्यमंत्री पर नायडु के साथ मिलीभगत का आरोप लगा रहे हैं. नायडु को दिल्ली के आंध्र प्रदेश भवन में भूख हड़ताल पर बैठने की इजाजत को कांग्रेस नेता अपने आरोपों की पुष्टि के तौर पर गिना रहे हैं.

तेलंगाना ह्नेत्र से चुने गए उप-मुख्यमंत्री दामोदर राजा नरसिम्हा सीमांध्र में व्यापक विरोध के लिए किरण रेड्डी को ही दोषी ठहरा रहे हैं, ''कमांडर ही षड्यंत्रकारी है.” लेकिन टीआरएस विधायक के.टी. रामाराव का कहना है कि किरण रेड्डी इतिहास में आंध्र प्रदेश के अंतिम मुख्यमंत्री के रूप में जाने जाने की बजाए सीमांध्र में आंदोलन का समर्थन करना अधिक पसंद करेंगे. तेलंगाना से कांग्रेस के राज्यसभा सांसद पी. गोवर्धन रेड्डी कहते हैं, ''मुख्यमंत्री को बर्खास्त कर प्रिवेंटिव डिटेंशन ऐक्ट के तहत गिरफ्तार किया जाना चाहिए क्योंकि इस आंदोलन के पीछे उनका ही हाथ है.”

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष पर तो आफत ही आन पड़ी है. आंदोलनकारियों ने विजयनगरम जैसे शांत शहर में सत्यनारायण की जायदाद में तोडफ़ोड़ मचाई. इन जायदाद में सत्या इंजीनियरिंग कॉलेज, सत्या केबल नेटवर्क का दफ्तर और जनप्रिय बार ऐंड रेस्तरां (इसमें उनकी हिस्सेदारी बताई जाती है) शामिल हैं. मजबूरन पुलिस को वहां कर्फ्यू लगाना पड़ा और 300 सुरक्षाकर्मी उनके घर की सुरक्षा के लिए तैनात करने पड़े. वे कहते हैं, ''सीमांध्र में कांग्रेस ने जनता का भरोसा खो दिया है. केंद्र को इस मामले में आगे बढऩे से पहले जनता की उम्मीदों का आदर करना चाहिए.”

सत्यनारायण की संपत्ति पर हमले की वजह राज्य विभाजन पर उनकी दोहरी नीति भी रही है. 12 जुलाई को उन्होंने कहा था कि तेलुगु भाषी लोगों के दो राज्य होने में कुछ गलत नहीं है. लेकिन 8 अक्तूबर को उनका सुर बदला और कहा कि वे संयुक्त आंध्र प्रदेश के पक्ष में हैं. विभाजन रोकने के सिलसिले में प्रधानमंत्री से मुलाकात करने वाले चार केंद्रीय मंत्रियों ने घोषणा की कि उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है और 8 अक्तूबर से सरकारी कामकाज बंद कर दिया है.

अंदरूनी कलह से परेशान कांग्रेस ने बचाव में टीडीपी और वाइएसआर कांग्रेस की ओर से तेलंगाना के समर्थन में दी गई चिट्ठी लीक कर दी. प्रदेश के प्रभारी कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने ट्वीटर पर लिखा, ''दोनों दलों ने लिखित में तेलंगाना को समर्थन दिया था. यह अवसरवादिता है.”

तेलंगाना के लिए मंत्रियों के समूह (जीओएम) के गठन के 72 घंटे बाद ही नए सिरे से गठन करना पड़ा और सदस्यों की संख्या 10 से घटाकर सात करनी पड़ी. इसके अध्यक्ष गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे हैं. इसके सदस्य रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी, वित्त मंत्री पी. चिदंबरम, स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद, पेट्रोलियम मंत्री वीरप्पा मोइली और ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश हैं. इसमें कार्मिक राज्यमंत्री वी. नारायणसामी को विशेष आमंत्रित सदस्य के तौर पर रखा गया है.

11 अक्तूबर को हुई इस जीओएम की बैठक में ताजा हालात पर चर्चा हुई. एंटनी इन दिनों बीमार हैं जबकि चिदंबरम अमेरिका जाने वाले हैं. ऐसे में इस बात की उम्मीद कम है कि जीओएम निर्धारित छह हफ्ते के भीतर अपनी रिपोर्ट दे देगा. हालांकि कांग्रेस ने राज्य में राष्ट्रपति शासन के विकल्प पर विचार शुरू कर दिया है. कांग्रेस का मानना है कि तेलंगाना बनना तय है, लेकिन हो सकता है कि ऐसा नहीं भी हो.
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