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140 अक्षरों के भीतर राजनीति

सोशल मीडिया वह प्लेटफॉर्म है, जहां पर विचार की आजादी की लड़ाई लड़ी जाएगी.

अपडेटेड 20 जनवरी , 2013

2012 की क्रिसमस की शाम 4.58 पर दिल्ली की छात्रा शाम्भवी सक्सेना ने ट्वीट किया, ‘‘पार्लियामेंट स्ट्रीट थाने में हम सभी महिलाओं पर अभी-अभी पुलिस ने बेरहमी से हमला किया.’’ दस मिनट बाद उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘महिला सिपाही ने मुझे मारा, मेरे बाल खींचे और मुझे एक दीवार से टकरा दिया.’’ तीन दिन बाद सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल एच.एस. पनाग ने अपना मोबाइल नंबर ट्विटर पर डालकर एक आंदोलन की शुरुआत कर दी, जिसमें सैकड़ों लोग इस संकल्प के साथ अपने नंबर दर्ज कर रहे हैं कि वे हर काम छोड़कर किसी मुसीबतजदा स्त्री की मदद करेंगे. सोशल मीडिया अब ‘अपनी ही एक दुनिया’ भर नहीं रह गया है. यह दुनिया है, एक-दूसरे से गुंथे मैसेज और नतीजों की खलबली का एक चक्रव्यूह. 2013 में क्या ट्रेंड रहने वाला है?

मदद की पुकार की पहली जगह
17 और 18 नवंबर को बाल ठाकरे की मृत्यु के बाद बंद के दौरान घर लौटने के रास्तों के बारे में जानने के लिए मुंबईकरों ने ट्विटर का सहारा लिया. दिल्ली में अक्तूबर के डेंगू प्रकोप के समय लोगों ने ट्विटर पर प्लेटलेट्स की मांग की. 2013 में ट्विटर वास्तविक सहायता से लेकर सलाह/सावधानी तक हर तरह की मदद की पुकार के लिए पहला अड्डा बन जाएगा.twitter

अपने जोखिम पर पोस्ट करें
अक्तूबर 2012 में केंद्रीय वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के पुत्र कार्ति ने कुछ ट्वीट्स के लिए एक कारोबारी रवि श्रीनिवासन के खिलाफ पुड्डुचेरी पुलिस में शिकायत दर्ज कराई. 30 अक्तूबर को उसे सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66ए के तहत गिरफ्तार कर लिया गया और अगले दिन जमानत पर रिहा कर दिया. लेकिन उसके खिलाफ मामला न तो बंद किया गया है और न ही वापस लिया गया है. अब सुप्रीम कोर्ट धारा 66ए के कठोर कानून की संवैधानिक वैधता का परीक्षण कर रहा है. इस कानून में संशोधन के लिए सरकार पर पहले से काफी दबाव है. 2013 में ट्विटर या फेसबुक पर लोगों की कही गई बातों से निंदात्मक लेख और मानहानि के काफी कानूनी झगड़े पैदा होंगे.

कनफेशन कॉर्नर
29 दिसंबर को मीडियाकर्मी सोनिका भसीन के ट्विटर पर यह घोषणा करने के बाद लोगों का समर्थन टूट पड़ा कि वे अपनी दोस्त के पिता, सेवानिवृत्त फौजी अधिकारी का पर्दाफाश करने वाली हैं, जिसने उनके साथ तब दुर्व्यवहार किया था, जब वे 13 साल की थीं. ट्विटर पर ऐसा राजफाश करने वाली वे पहली नहीं थीं. 2013 में तो यह और भी प्रचलित हो जाएगा.

सरकार का हस्तक्षेप
खुफिया एजेंसियां सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर निगरानी रखने में व्यस्त रही हैं. 2012 खत्म होते-होते एक व्यापक सोशल मीडिया नीति की चर्चा भी होने लगी, जिसके बारे में केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी ने यह बताने में देरी नहीं की कि वह कंट्रोल करने के लिए नहीं, स्वयं को अनुशासित करने के लिए होगी. इस साल ट्विटर और फेसबुक पर और अधिक निगरानी की उम्मीद कीजिए.

नेताओं का आगमन
24 जनवरी, 2012 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ट्विटर पर प्रकट हुए. 14 अगस्त को 89 वर्षीय डीएमके प्रमुख एम. करुणानिधि ने भी ऐसा ही किया. जैसे-जैसे देश चुनावी मूड में आता जाएगा, हमारे नेताओं की तरफ से सोशल मीडिया को लेकर दंभ भी कम होता जाएगा.

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