अभिषेक बनर्जी, 34 वर्ष
लोकसभा सांसद और राष्ट्रीय महासचिव, ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस
उनके पास अपनी आक्रामक बुआ सरीखी कोई सियासी तड़क-भड़क नहीं है. अभिषेक हर वक्त स्थिर नजर आते हैं. उन्हें कुछ भी परेशान नहीं कर पाता—न बुआ-भतीजे के तंज, न वंशवादी शासन के आरोप, और न ही ईडी की ओर से उन्हें और उनकी पत्नी रुजिरा को कोयला तस्करी की जांच में शामिल होने के लिए भेजा समन.
इसके बजाय वह 2021 में भाजपा की उस शक्तिशाली चुनावी मशीन का मुकाबला करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे थे जिसकी अगुआई देश के प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और अन्य भगवा दिग्गज के हाथों में थी. प्रशांत किशोर के साथ मिलकर उन्होंने एक पटकथा लिखी और ममता बनर्जी के साथ चट्टान की तरह खड़े होकर उन्होंने ममता को भाजपा के शक्तिशाली अभियान के खिलाफ पूरी ताकत से लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया.
आलोचनाओं और पार्टी के लोगों के पलायन के बावजूद अभिषेक ने कमतर प्रदर्शन करने वाले, अलोकप्रिय, भ्रष्ट और विश्वासघाती विधायकों को टिकट से वंचित रखने की किशोर की सिफारिश लागू की. टीएमसी के इतिहास में पहली बार मौजूदा विधायकों में से एक तिहाई का टिकट कटा.
उन्होंने चुनावी रणनीतिकार किशोर को खुली छूट दी और भाजपा की आक्रामकता का मुकाबला करने के लिए उन्होंने पेशेवरों की सहायता से एक सोशल मीडिया अभियान शुरू किया. इसका नतीजा टीएमसी की भारी जीत के रूप में निकला.
अब वह दीदी के उस अभियान के कप्तान हैं जिसका मकसद बंगाल से आगे बढ़कर अन्य जगहों में भी टीएमसी के पैर पसारना है. वे धीरे-धीरे टीएमसी का चेहरा बनकर पार्टी के संगठन को अनुशासित और कॉडर आधारित बनाने की शुरूआत कर रहे हैं.
उन्होंने चंद हाथों में सत्ता का केंद्रीकरण रोकने के लिए एक व्यक्ति, एक पद की नीति लागू की है. उन्होंने दबदबे या राजनीतिक रसूख के आधार पर नहीं, बल्कि प्रदर्शन के आधार पर टिकटों और विभागों का निष्पक्ष और पारदर्शी वितरण की नीति लागू की है. वे युवा नेताओं की एक पीढ़ी तैयार करते हुए उन्हें पद और जिम्मेदारियां दे रहे हैं ताकि समय आने पर वे युवा कमान संभाल सकें.
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''अभिषेक जो कुछ भी करते है उसमें वास्तुकार जैसा कौशल होता है. वे राज्य में नए सिरे से निवेश पर ध्यान देना चाहते हैं ’’
-सुखेंदु शेखर रे, राज्यसभा सदस्य, टीएमसी

