अभिमन्यु भल्ला अब शाम को कहीं बाहर जाने के लिए भोपाल की ट्रेन नहीं पकड़ते. इसकी जगह आइआइटी-इंदौर का यह 19 वर्षीय छात्र क्लास के बाद कुछ मजा करने के लिए इंदौर में ही स्थित टी फैक्टरी का रुख करता है. यहां वे और उनके दोस्त मसालेदार रूसी टोस्ट और बिना कैफीन वाले सेंचा ऑर्गेनिक चाय के प्यालों के साथ क्लास में मिले असाइनमेंट की चर्चा, चुटकुलों, सेल्फी खींचने और कैफे के फेसबुक पेज देखते हुए घंटों बिता देते हैं.
भल्ला बताते हैं, ''दो साल पहले केवल कैफे कॉफी डे और बरिस्ता ही इस तरह की जगह हुआ करती थी. आपको डेट पर जाना हो, देर तक पार्टी करनी हो या कुछ अच्छे खाने-पीने के साथ पढ़ाई करने की ही इच्छा हो तो शहर में ऐसी कोई जगह उपलब्ध नहीं थी. लेकिन अब यहां टी बार, छात्रों के लिए कैफे, लग्जरी क्लब और अनूठा खाना परोसने वाले रेस्तरां हैं. ''
ऐसा नहीं कि सिर्फ इंदौर में ही युवा छात्रों की मांग पूरा करने के लिए जागरूकता बढ़ रही हो. कॉलेजों और विश्वविद्यालयों वाले छोटे शहरों एवं कस्बों में छात्रों के अनुकूल कई तरह के बदलाव हो रहे हैं. भुवनेश्वर में खास खट्टी (मिलने-जुलने वाले) क्षेत्र से लेकर पटना के शीशा बार तक कैफे और रेस्तरां अब पूरे भारत के टीयर-2 और टीयर-3 शहरों में तेजी से फैल रहे हैं ताकि आकर्षक छात्र बाजार की जरूरत को पूरा किया जा सके.
टी फैक्टरी के सह-मालिक शशांक शर्मा कहते हैं, ''बड़ी संख्या में छात्रों के महानगरों से छोटे शहरों में जाने की वजह से आयातित खानपान और क्रिएटिव साज-सज्जा की जरूरत बढ़ गई है. मसलन, इंदौर में नए खुले आइआइटी में देशभर से छात्र आते हैं और अचानक हमारे मेन्यू का सबसे लोकप्रिय आइटम आयातित बेरीज से बना क्रैनबेरी टी हो गया है. '' छात्र-छात्राओं की भीड़ को आकर्षित करने के लिए यह कैफे वॉल पोस्ट और बोर्डगेम का सहारा लेता है.

(इकोल होटेलियर, लवासा के स्टुडेंट्स फुर्सत के दौरान)
लखनऊ के परंपरागत रेस्तरां छात्रों को ध्यान में रखकर बनाए गए कैफे और लाउंज से कड़े मुकाबले का सामना कर रहे हैं. कॉफी और रॉयल स्काई, शीशा, कैपुचिनो ब्लास्ट और मिंट जैसे फ्लेवर्ड हुक्का पेश करने वाले बार नए किशारों की पसंदीदा जगहें हैं. लखनऊ यूनिवर्सिटी के कॉमर्स के 21 वर्षीय छात्र देव गर्ग कहते हैं, ''हुक्का नए युवकों का टाइम पास है. हम सब शाम को हजरतगंज के मिंट लाउंज में शीशा के लिए जुटते हैं. लखनऊ में तो युवाओं के लिए बहुत-सी अच्छी जगहें हैं. ''
पुणे से करीब एक घंटे की ड्राइविंग पर स्थित पॉश टाउनशिप लवासा भी अब छात्रों के केंद्र में बदल रहा है क्योंकि यहां इकोल होटेलियर इंस्टीट्यूट और क्राइस्ट यूनिवर्सिटी ने अपने कैंपस खोले हैं और कई दूसरे प्रतिष्ठित स्कूल भी आने वाले हैं. यहां वाटरफ्रंट शॉ ऐसे छात्रों के जमावड़े की लोकप्रिय जगह है जो अकसर कैफे में जाते हैं. यहां अमेरिकी थीम वाला जेनजॉन्स लवासा ब्रूबेरीज कैफे है, जहां बड़े बर्गर और फुटपाथ पर बिकने वाले गोलों का जायका लिया जा सकता है.
दिचलस्प यह है कि ऐसे कई नए अड्डे छात्रों ने ही शुरू किए हैं. कोयंबतूर में मणि हायर सेकंडरी स्कूल के चार सहपाठियों ने मिलकर जनवरी में काइट्स कैफे की शुरुआत की. लाइव रॉक म्युजिक, बिना यूनिफॉर्म वाले वेटर और हर दिन किसी नए एक्सपेरिमेंट वाले डिश से यह सुनिश्चित किया जाता है कि यह कैफे विभिन्न बहुराष्ट्रीय कैफे के बीच अपना वजूद बनाए रख सके. ऐसे ही एक कैफे के संस्थापकों में से एक सुंदर एस. ने कहा, ''युवा लोग अब वही घिसा-पिटा कैपुचिनो और सोफा पसंद नहीं करते.
हमारे कैफे में चीजों को अनौपचारिक और मजेदार रखने की सोच है. हम कई अनूठे फूड परोसते हैं जैसे मेयोनेज के साथ डीप फ्राइड मैंगो. हम कविता पाठ के सत्र आयोजित करते हैं, कई विशेष समारोहों का आयोजन किया जाता है जैसे हमारे फेसबुक पेज लाइक करने वाले लोगों का मिलना-जुलना. '' उन्होंने कहा, ''ऑनलाइन और ऑफलाइन दुनिया में संतुलन बनाना महत्वपूर्ण है. छात्र जहां सोशल मीडिया के जरिए संवाद कायम करना पसंद करते हैं, वहीं उन्हें असली जीवन में नए दोस्त बनाने के लिए कुछ जगहों की तलाश होती है. ''
हालांकि, ऐसी ज्यादातर नई जगहों का प्राथमिक उद्देश्य छात्रों को मजा और सुकून मुहैया कराना है, तो कई को सामाजिक जागरूकता फैलाने के मंच के रूप में भी इस्तेमाल किया जा रहा है. काइट्स कैफे में महिलाओं के मताधिकार को दर्शाने वाली रैलियों से लेकर पटियाला के लकीज में एनिमल अडॉप्शन फेयर और मैसूर के जूअल जॉइंट में सफाई अभियान तक, ऐसा लगता है कि छात्रों को सिर्फ खाने-पीने और मजे के अलावा कुछ और भी चाहिए.
जूअल जॉइंट के मैनेजर आर. कार्तिकेय कहते हैं, ''अनौपचारिकता महत्वपूर्ण है. युवा सुकून वाली जगह पर बैठना चाहते हैं. वे ऐसे कैफे में नहीं जाना चाहते जहां उनके ऊपर नियम और नैतिकता थोपी जाए. ''
इस बीच ऐसी जगहों के विकास ने लिस्टिंग वेबसाइट्स को भी प्रेरित किया है. फूड लिस्टिंग वाले दिग्गज जैसे जोमैटो और बर्प ने छोटे शहरों के प्रतिष्ठानों को नजरअंदाज किया है, इसलिए छात्रों के अनुकूल जगहों के बारे में बताने के लिए कई स्टार्ट-अप और डिजिटल मैग्जीन शुरू हुई हैं. पिछले साल एमबीए के छात्रों—प्रिंस मुहम्मद खान और एस.आर. भारत ने कोयंबतूर हैंगआउट्स की शुरुआत की, जिसमें छात्रों से मिली जानकारी के आधार पर शहर के शीर्ष कैफे और रेस्तरांओं की सूची दी जाती है.
भुवनेश्वर में यदि किसी छात्र को अपने आसपास के वेजेटेरियन ढाबे की तलाश करनी होती है तो वह बस हैप्पीकाउ डॉट नेट पर लॉग ऑन हो जाता है. मंगलूर की 21 वर्षीय छात्रा जाक्कवी दुदुरै कहती हैं, ''आपकी जो भी पसंद है, ठीक उसी तरह का खान-पान तलाशना आज बहुत आसान हो गया है. ''
अब छोटे शहरों और कस्बों में ज्यादा से ज्यादा कॉलेजों के कैंपस खुल रहे हैं जिसकी वजह से वहां के छात्रों को आकर्षित करने के लिए अनूठे थीम और आयातित फूड स्टफ वाले कैफे और बार खुलते जा रहे हैं.
छोटे शहरों के मॉडर्न कैफे कैसे मौके दे रहे हैं :
छोटे शहरों के मॉडर्न कैफे वहां के छात्रों को आमने-सामने मिलने और फुर्सत के लम्हे बिताने का मौका दे रहे हैं
-काइट्स कैफे, कोयंबतूर: उन लोगों की मुलाकात का बंदोबस्त करता है जो फेसबुक पर एक-दूसरे को लाइक कर चुके हैं.
-टी फैक्टरी, इंदौर ने एक वॉल मुहैया किया है जहां कुछ पोस्ट किया जा सकता है ताकि अन्य ग्राहक इसे पढ़ें.
-जूअल जॉइंट, मैसूर ने शहर के सार्वजनिक स्थानों की सफाई के लिए अभियान चलाने की व्यवस्था की है.
-लकीज, पटियाला हर महीने एनिमल अडॉप्शन फेयर आयोजित करता है.
-गार्डेनिया, कोझिकोड ने छात्रों के लिए एक सेल्फी बूथ की व्यवस्था की है.
कहां जाते हैं छात्र
छोटे शहरों के आधुनिक कैफे किस तरह से छात्रों के बीच ऑफलाइन संपर्क को बढ़ा रहे हैं
-आइआइटी-इंदौर: ब्लूबेरी कोला और मेज प्लैटर्स के लिए टीज एन मोर
-आइआइएम-कोझिकोड: किताबों और न्यूटेला सैंडविच के लिए हाइ ऑक्टेन कैफे
-केआइआइटी, भुवनेश्वर: छोले-भटूरे के लिए टेस्टबड्स
-मणिपाल यूनिवर्सिटी, मणिपाल: फ्राइड चिकन के लिए हॉट चिक्स
-वीआइटी, वेल्लूर: वोडका पास्ता और चॉकलेट चीजकेक के लिए टॉम्स डाइनर
-आइआइएम-लखनऊ और एमिटी यूनिवर्सिटी, लखनऊ: बैलिज्मो लाउंज, कैपुचिनो ब्लास्ट, रॉयल स्काई, परकशन और मिंट शीशा
भल्ला बताते हैं, ''दो साल पहले केवल कैफे कॉफी डे और बरिस्ता ही इस तरह की जगह हुआ करती थी. आपको डेट पर जाना हो, देर तक पार्टी करनी हो या कुछ अच्छे खाने-पीने के साथ पढ़ाई करने की ही इच्छा हो तो शहर में ऐसी कोई जगह उपलब्ध नहीं थी. लेकिन अब यहां टी बार, छात्रों के लिए कैफे, लग्जरी क्लब और अनूठा खाना परोसने वाले रेस्तरां हैं. ''
ऐसा नहीं कि सिर्फ इंदौर में ही युवा छात्रों की मांग पूरा करने के लिए जागरूकता बढ़ रही हो. कॉलेजों और विश्वविद्यालयों वाले छोटे शहरों एवं कस्बों में छात्रों के अनुकूल कई तरह के बदलाव हो रहे हैं. भुवनेश्वर में खास खट्टी (मिलने-जुलने वाले) क्षेत्र से लेकर पटना के शीशा बार तक कैफे और रेस्तरां अब पूरे भारत के टीयर-2 और टीयर-3 शहरों में तेजी से फैल रहे हैं ताकि आकर्षक छात्र बाजार की जरूरत को पूरा किया जा सके.
टी फैक्टरी के सह-मालिक शशांक शर्मा कहते हैं, ''बड़ी संख्या में छात्रों के महानगरों से छोटे शहरों में जाने की वजह से आयातित खानपान और क्रिएटिव साज-सज्जा की जरूरत बढ़ गई है. मसलन, इंदौर में नए खुले आइआइटी में देशभर से छात्र आते हैं और अचानक हमारे मेन्यू का सबसे लोकप्रिय आइटम आयातित बेरीज से बना क्रैनबेरी टी हो गया है. '' छात्र-छात्राओं की भीड़ को आकर्षित करने के लिए यह कैफे वॉल पोस्ट और बोर्डगेम का सहारा लेता है.

(इकोल होटेलियर, लवासा के स्टुडेंट्स फुर्सत के दौरान)
लखनऊ के परंपरागत रेस्तरां छात्रों को ध्यान में रखकर बनाए गए कैफे और लाउंज से कड़े मुकाबले का सामना कर रहे हैं. कॉफी और रॉयल स्काई, शीशा, कैपुचिनो ब्लास्ट और मिंट जैसे फ्लेवर्ड हुक्का पेश करने वाले बार नए किशारों की पसंदीदा जगहें हैं. लखनऊ यूनिवर्सिटी के कॉमर्स के 21 वर्षीय छात्र देव गर्ग कहते हैं, ''हुक्का नए युवकों का टाइम पास है. हम सब शाम को हजरतगंज के मिंट लाउंज में शीशा के लिए जुटते हैं. लखनऊ में तो युवाओं के लिए बहुत-सी अच्छी जगहें हैं. ''
पुणे से करीब एक घंटे की ड्राइविंग पर स्थित पॉश टाउनशिप लवासा भी अब छात्रों के केंद्र में बदल रहा है क्योंकि यहां इकोल होटेलियर इंस्टीट्यूट और क्राइस्ट यूनिवर्सिटी ने अपने कैंपस खोले हैं और कई दूसरे प्रतिष्ठित स्कूल भी आने वाले हैं. यहां वाटरफ्रंट शॉ ऐसे छात्रों के जमावड़े की लोकप्रिय जगह है जो अकसर कैफे में जाते हैं. यहां अमेरिकी थीम वाला जेनजॉन्स लवासा ब्रूबेरीज कैफे है, जहां बड़े बर्गर और फुटपाथ पर बिकने वाले गोलों का जायका लिया जा सकता है.
दिचलस्प यह है कि ऐसे कई नए अड्डे छात्रों ने ही शुरू किए हैं. कोयंबतूर में मणि हायर सेकंडरी स्कूल के चार सहपाठियों ने मिलकर जनवरी में काइट्स कैफे की शुरुआत की. लाइव रॉक म्युजिक, बिना यूनिफॉर्म वाले वेटर और हर दिन किसी नए एक्सपेरिमेंट वाले डिश से यह सुनिश्चित किया जाता है कि यह कैफे विभिन्न बहुराष्ट्रीय कैफे के बीच अपना वजूद बनाए रख सके. ऐसे ही एक कैफे के संस्थापकों में से एक सुंदर एस. ने कहा, ''युवा लोग अब वही घिसा-पिटा कैपुचिनो और सोफा पसंद नहीं करते.
हमारे कैफे में चीजों को अनौपचारिक और मजेदार रखने की सोच है. हम कई अनूठे फूड परोसते हैं जैसे मेयोनेज के साथ डीप फ्राइड मैंगो. हम कविता पाठ के सत्र आयोजित करते हैं, कई विशेष समारोहों का आयोजन किया जाता है जैसे हमारे फेसबुक पेज लाइक करने वाले लोगों का मिलना-जुलना. '' उन्होंने कहा, ''ऑनलाइन और ऑफलाइन दुनिया में संतुलन बनाना महत्वपूर्ण है. छात्र जहां सोशल मीडिया के जरिए संवाद कायम करना पसंद करते हैं, वहीं उन्हें असली जीवन में नए दोस्त बनाने के लिए कुछ जगहों की तलाश होती है. ''
हालांकि, ऐसी ज्यादातर नई जगहों का प्राथमिक उद्देश्य छात्रों को मजा और सुकून मुहैया कराना है, तो कई को सामाजिक जागरूकता फैलाने के मंच के रूप में भी इस्तेमाल किया जा रहा है. काइट्स कैफे में महिलाओं के मताधिकार को दर्शाने वाली रैलियों से लेकर पटियाला के लकीज में एनिमल अडॉप्शन फेयर और मैसूर के जूअल जॉइंट में सफाई अभियान तक, ऐसा लगता है कि छात्रों को सिर्फ खाने-पीने और मजे के अलावा कुछ और भी चाहिए.
जूअल जॉइंट के मैनेजर आर. कार्तिकेय कहते हैं, ''अनौपचारिकता महत्वपूर्ण है. युवा सुकून वाली जगह पर बैठना चाहते हैं. वे ऐसे कैफे में नहीं जाना चाहते जहां उनके ऊपर नियम और नैतिकता थोपी जाए. ''
इस बीच ऐसी जगहों के विकास ने लिस्टिंग वेबसाइट्स को भी प्रेरित किया है. फूड लिस्टिंग वाले दिग्गज जैसे जोमैटो और बर्प ने छोटे शहरों के प्रतिष्ठानों को नजरअंदाज किया है, इसलिए छात्रों के अनुकूल जगहों के बारे में बताने के लिए कई स्टार्ट-अप और डिजिटल मैग्जीन शुरू हुई हैं. पिछले साल एमबीए के छात्रों—प्रिंस मुहम्मद खान और एस.आर. भारत ने कोयंबतूर हैंगआउट्स की शुरुआत की, जिसमें छात्रों से मिली जानकारी के आधार पर शहर के शीर्ष कैफे और रेस्तरांओं की सूची दी जाती है.
भुवनेश्वर में यदि किसी छात्र को अपने आसपास के वेजेटेरियन ढाबे की तलाश करनी होती है तो वह बस हैप्पीकाउ डॉट नेट पर लॉग ऑन हो जाता है. मंगलूर की 21 वर्षीय छात्रा जाक्कवी दुदुरै कहती हैं, ''आपकी जो भी पसंद है, ठीक उसी तरह का खान-पान तलाशना आज बहुत आसान हो गया है. ''
अब छोटे शहरों और कस्बों में ज्यादा से ज्यादा कॉलेजों के कैंपस खुल रहे हैं जिसकी वजह से वहां के छात्रों को आकर्षित करने के लिए अनूठे थीम और आयातित फूड स्टफ वाले कैफे और बार खुलते जा रहे हैं.
छोटे शहरों के मॉडर्न कैफे कैसे मौके दे रहे हैं :
छोटे शहरों के मॉडर्न कैफे वहां के छात्रों को आमने-सामने मिलने और फुर्सत के लम्हे बिताने का मौका दे रहे हैं
-काइट्स कैफे, कोयंबतूर: उन लोगों की मुलाकात का बंदोबस्त करता है जो फेसबुक पर एक-दूसरे को लाइक कर चुके हैं.
-टी फैक्टरी, इंदौर ने एक वॉल मुहैया किया है जहां कुछ पोस्ट किया जा सकता है ताकि अन्य ग्राहक इसे पढ़ें.
-जूअल जॉइंट, मैसूर ने शहर के सार्वजनिक स्थानों की सफाई के लिए अभियान चलाने की व्यवस्था की है.
-लकीज, पटियाला हर महीने एनिमल अडॉप्शन फेयर आयोजित करता है.
-गार्डेनिया, कोझिकोड ने छात्रों के लिए एक सेल्फी बूथ की व्यवस्था की है.
कहां जाते हैं छात्र
छोटे शहरों के आधुनिक कैफे किस तरह से छात्रों के बीच ऑफलाइन संपर्क को बढ़ा रहे हैं
-आइआइटी-इंदौर: ब्लूबेरी कोला और मेज प्लैटर्स के लिए टीज एन मोर
-आइआइएम-कोझिकोड: किताबों और न्यूटेला सैंडविच के लिए हाइ ऑक्टेन कैफे
-केआइआइटी, भुवनेश्वर: छोले-भटूरे के लिए टेस्टबड्स
-मणिपाल यूनिवर्सिटी, मणिपाल: फ्राइड चिकन के लिए हॉट चिक्स
-वीआइटी, वेल्लूर: वोडका पास्ता और चॉकलेट चीजकेक के लिए टॉम्स डाइनर
-आइआइएम-लखनऊ और एमिटी यूनिवर्सिटी, लखनऊ: बैलिज्मो लाउंज, कैपुचिनो ब्लास्ट, रॉयल स्काई, परकशन और मिंट शीशा

