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गोवाः नए दल नए गठजोड़

गोवा चुनाव की बड़ी खबर टीएमसी की एंट्री है, लेकिन राज्य की राजनीति में जोड़-तोड़ बदस्तूर जारी है, जबकि भाजपा सत्ता-विरोधी भावनाओं को रोकने में जुटी

यहां भी दस्तक! टीएमसी नेता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी दो बार गोवा का दौरा कर चुकी हैं
यहां भी दस्तक! टीएमसी नेता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी दो बार गोवा का दौरा कर चुकी हैं
अपडेटेड 23 जनवरी , 2022

जनवरी की 7 तारीख को तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की गोवा चुनाव प्रभारी महुआ मोइत्रा ने राज्य के आगामी विधानसभा चुनाव के लिए सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों के महागठबंधन की पेशकश की. उन्होंने कहा कि यह गठबंधन टीएमसी और उसकी सहयोगी महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (एमजीपी), कांग्रेस और उसकी सहयोगी गोवा फॉरवर्ड पार्टी (जीएफपी) और आम आदमी पार्टी (आप) को साथ लेकर बनाया जाना चाहिए. मोइत्रा के विचार ने थोड़ी सुगबुगाहट जरूर पैदा की, लेकिन यह इन पार्टियों के गले नहीं उतरा.

टीएमसी ने गोवा की राजनीति में कदम रखा और देखते-देखते यहां का सियासी परिदृश्य बदल दिया. पहले भाजपा और कांग्रेस में सीधा मुकाबला माना जा रहा था, अब लड़ाई चतुष्कोणीय हो गई है. नए गठबंधन का बनना और पुराने रिश्तों का टूटना इस चुनाव का प्रमुख घटनाक्रम है. टीएमसी ने पिछले साल अक्तूबर में राज्य कांग्रेस के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री लुइजिन्हो फलेरो को अपने पाले में लाकर सबको हैरान कर दिया और अपनी मौजूदगी दर्ज कराई थी. उसके बाद लेखक और पर्यावरण कार्यकर्ता सहित कई प्रमुख लोग पार्टी में आए. टीएमसी की नेता तथा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी दो बार राज्य का दौरा कर चुकी हैं. पार्टी ने मडगांव इलाके में दबदबा रखने वाली जीएफपी की तरफ भी दोस्ती का हाथ बढ़ाया. चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर जीएफपी के टीएमसी में विलय और उसके प्रमुख विजय सरदेसाई को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने के पक्ष में थे. सरदेसाई ने यह पेशकश ठुकरा दी और कांग्रेस के साथ जाना चुना.

टीएमसी की सबसे बड़ी उपलब्धि 1970 के दशक में यहां हुकूमत कर चुकी एमजीपी के साथ गठबंधन है. 1990 के दशक के आखिरी वर्षों में भाजपा का प्रभाव बढऩे के साथ एमजीपी का प्रभाव घटने लगा. अब राज्य के 40 में से महज सात विधानसभा क्षेत्रों में एमजीपी की अच्छी मौजूदगी है. ममता की पार्टी और हिंदुत्ववादी एमजीपी के बीच गठबंधन गोवा के चुनाव का बड़ा विरोधाभास है. एमजीपी के नेता सुदीन धवलीकर सनातन संस्था के संरक्षक हैं. यह संस्था 2009 के मडगांव बम धमाके और तर्क मिमांसावादी नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पनसारे और एम.एम. कलबुर्गी की हत्याओं (2013 से 2016 के बीच) में मुख्य अभियुक्त है.

दोनों पार्टियों ने अपने गठजोड़ को जायज ठहराया. मोइत्रा ने बीते 7 दिसंबर को कहा, ''यह गठबंधन तृणमूल के लड़ाकू जज्बे और गोवा में एमजीपी के लंबे इतिहास का अद्भुत मेल है. हम मानते हैं कि यह एकता गोवा को आगे ले जाएगी.'' एमजीपी प्रमुख दीपक धवलीकर कहते हैं कि यह गठबंधन भाजपा को रोकने में अहम भूमिका अदा करेगा. भाजपा के साथ धवलीकर का अनुभव कड़वा रहा है. 2019 में उसने एमजीपी में फूट डालकर उसके तीन में से दो विधायक अपनी पार्टी में मिला लिए और बाद में सुदीन धवलीकर को प्रमोद सावंत के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार से बर्खास्त कर दिया.

कांग्रेस की ढलान

कांग्रेस ने गोवा में बीते पांच साल में सबसे ज्यादा नुक्सान उठाया है. 2017 में पार्टी 17 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के तौर उभरी. सामूहिक दलबदल और इस्तीफों से सिकुड़ते-सिकुड़ते राज्य विधानसभा में पार्टी के पास केवल दो विधायक बचे हैं. बदतर यह कि राज्य अध्यक्ष फलेरो और कार्यकारी अध्यक्ष एलेक्सियो रेजिनाल्डो लॉरेंसो दोनों टीएमसी में चले गए.

वैसे दो असरदार नेताओं के आने से कांग्रेस का हौसला कुछ बढ़ा है. पूर्व मंत्री माइकल लोबो 11 जनवरी को भाजपा छोड़कर कांग्रेस में लौट आए. दो दिन पहले सांगुएम से निर्दलीय विधायक प्रसाद गांवकर भी पार्टी में शामिल हुए. लोबो का कालांगुट, सिओलिम, मापुसा और सालिगाओ की सीटों पर दबदबा है. कालांगुट के विधायक लोबो भाजपा में रहते हुए सिओलिम से अपनी पत्नी के लिए टिकट मांग रहे थे और उन्होंने बरदेज तालुका की छह सीटों पर कांग्रेस को समर्थन देने की धमकी दी थी. कांग्रेस लोबो की मदद से कम से कम चार सीटों पर भाजपा को नुक्सान पहुंचाने की उम्मीद कर रही है.

कांग्रेस ने 15 सीटों पर अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है और सहयोगी जीएफपी को दो सीटों—फतोर्दा और मायेम—से संतोष करने को मना लिया है. जीएफपी प्रमुख सरदेसाई के लोबो के साथ अच्छे समीकरण हैं और कांग्रेस को उम्मीद है कि उनकी सामूहिक ताकत से वह भाजपा को उसके गढ़ उत्तर गोवा में घेर पाएगी. गोवा में कई लोग कांग्रेस-जीएफपी के गठबंधन को बेमेल मानते हैं, क्योंकि सरदेसाई की पार्टी 'गोवावासियों के लिए गोवा' की विचारधारा पर चलती है. वैसे, उनका साझा मकसद भाजपा से लड़ना है. राज्य कांग्रेस अध्यक्ष गिरीश चोडनकर कहते हैं, ''हमारा एकमात्र मकसद भाजपा के शिकंजे से गोवा को बचाना है.''

कांग्रेस का कहना है कि टीएमसी को महागठबंधन की बात देर से सूझी. कांग्रेस के गोवा सह-प्रभारी दिनेश गुंडू राव कहते हैं, ''टीएमसी को हमारे पास बहुत पहले आना चाहिए था. अभी कुछ दिन पहले ही उन्होंने कहा कि यूपीए मर चुका है.''

बगावत से जूझती भाजपा

सत्ता में 10 साल रहने के बाद भाजपा की सबसे बड़ी दुश्मन सत्ता-विरोधी भावना है. उसे अपने दिग्गज नेता दिवंगत मनोहर पर्रीकर की कमी बेइंतहा खल रही है. पर्रीकर मार्च 2019 में अपनी मृत्य तक एमजीपी और जीएफपी को पार्टी के पाले में रखने में कामयाब रहे थे. अभी मुख्यमंत्री सावंत के लिए हरेक की सियासी महत्वाकांक्षाओं को पूरा कर पाना मुश्किल हो रहा है. लोबो के जाने के बाद भाजपा की सबसे बड़ी चुनौती उत्तर गोवा में पार्टी को एकजुट रखने की होगी. पर्रीकर के बेटे उत्पल ने चेतावनी दी है कि अगर पार्टी उन्हें पणजी से टिकट नहीं देगी तो वे निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे. उनके पिता ने पणजी निर्वाचन क्षेत्र को 30 से ज्यादा साल पाला-पोसा था. भाजपा एक बार फिर अतानासियो मॉन्सेरेट को पणजी से चुनाव लड़वाना चाहती है.

चतुराई से पत्ते खेलते हुए भाजपा लोबो के असर की काट के लिए दो असरदार युवा विधायकों जयेश सालगांवकर (सालगांव) और रोहन खाउंटे (पोरवोरिम) को अपने पाले में ले आई. उत्तर और दक्षिण गोवा में वोट जुटाने के लिए भाजपा तीन पूर्व कांग्रेसी नेताओं विश्वजीत राणे, चंद्रकांत कावलेकर और रवि नाईक के भरोसे है. सावंत कहते हैं कि उनका लक्ष्य भाजपा को कम से कम 22 सीटें जिताना है, जो स्पष्ट बहुमत से थोड़ा अधिक है. वे कहते हैं, ''2022 के लिए हमारा लक्ष्य 22 था, पर अब मुझे लगता है कि हम इससे ज्यादा सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आएंगे.'' उन्हें लगता है विपक्ष में बिखराव से भाजपा को मदद मिलेगी. उन्होंने कहा, ''महागठबंधन बनाने की बात करना उनकी घबराहट का संकेत है. मुझे गोवा के लोगों पर पूरा भरोसा है.''

आप और नई गोवा सु-राज पार्टी मुकाबले में अन्य वोटकटवा पार्टियां हैं. संभावना यही है कि वे कांग्रेस और भाजपा के वोट काटेंगी. आप ने 2017 में भी चुनाव लड़ा था और खाता तक नहीं खोल सकी थी. इस बार भी पार्टी के पास शीर्ष पर कोई भरोसेमंद चेहरा नहीं है. उसके राज्य संयोजक राहुल म्हाम्ब्रे मापुसा से मैदान में उतर रहे हैं. गोवा सु-राज पार्टी की अगुआई आप के पूर्व नेता मनोज परब कर रहे हैं और खासकर स्थानीय नौकरियों में गोवावासियों के लिए गोवा के नारे पर चुनाव लड़ रहे हैं. वे कुछ हलकों में जन नेता के तौर पर उभरे हैं, जिससे भाजपा की पेशानी पर बल पड़ गए हैं. अगर परब अपनी जन अपील को वोटों में बदल पाते हैं, तो यह भाजपा के लिए नुक्सानदायक हो सकता है.

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