मालेगांव की मुख्य व्यावसायिक सड़क मोहम्मद अली रोड 14 जुलाई को दुकानदारों से भरी थी. नजारा मार्च में लगाए गए राष्ट्रीय लॉकडाउन से पहले की तरह सामान्य था और महाराष्ट्र के अन्य हिस्सों में डर की वजह से सार्वजनिक जगहों पर व्याप्त सन्नाटे से एकदम उलट था. दुकानें खुली थीं, कटलरी से इलेक्ट्रोनिक्स तक, हर सामान बिक रहा था और रेस्तरां एवं ठेले पर खाने-पीने का सामान बेचने वाले ग्राहकों की भीड़ की सेवा में लगे थे. महिला बाजार में बुर्का पहनी हुई महिलाओं की भीड़ थी. महाराष्ट्र जहां महामारी को रोकने के लिए संघर्ष कर रहा है, वहीं मालेगांव में जीवन एक बार फिर से सामान्य लग रहा है. 15 जुलाई तक राज्य में कोविड के 1,07,963 सक्रिय मामले थे जबकि 10,695 मौतें हुईं.
मालेगांव में सामान्य स्थिति की वापसी वाकई उल्लेखनीय है, क्योंकि हाल तक यह शहर मुंबई, पुणे, नागपुर और औरंगाबाद के साथ राज्य के पांच कोविड हाटस्पॉट में से एक था. मई तक शहर में कोविड-19 के कारण प्रति दिन औसतन पांच लोगों की मौत हो रही थी और उस महीने के शुरू में शहर में संक्रमण के 200 ताजा मामले सामने आए थे. आज शहर में मात्र 60 सक्रिय मामले हैं, जिनमें से अधिकतर मालेगांव के निवासी नहीं हैं. 25 मई के बाद कोरोना वायरस से संबंधित एक भी मौत नहीं हुई है.
मामले के दोगुना होने की अवधि जो अप्रैल में 2.2 दिन थी, वह 15 जुलाई को बढ़कर 112 दिन हो गई, जो महाराष्ट्र में सबसे बेहतर है. स्वस्थ होने वालों की दर भी मालेगांव में 82 फीसद है जो राज्य के औसत (54 फीसद) से बेहतर है. यह बदलाव इतना उल्लेखनीय है कि जुलाई के पहले सप्ताह में, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) ने राज्य सरकार को एक गोपनीय पत्र भेजकर 'मालेगांव मॉडल' का अध्ययन करने की अनुमति मांगी थी.
मालेगांव मुस्लिम बहुल (80 फीसद निवासी अल्पसंख्यक समुदाय से हैं) शहर है, जहां की आबादी साढ़े सात लाख है. महामारी को नियंत्रित करने में शहर के प्रशासन की सफलता विशेष रूप से प्रशंसनीय है, क्योंकि यहां का जनसंख्या घनत्व औसतन 19,000 प्रति वर्ग किमी है, जो राज्य में सबसे ज्यादा है. कमानीपुरा जैसे इलाकों में जनसंख्या घनत्व 72,000 प्रति वर्ग किलोमीटर तक है जो इस मामले में मुंबई के धारावी के बाद दूसरे स्थान पर है, जहां 8,00,000 लोग 2.1 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में रहते हैं. ऐसे में शारीरिक दूरी को बनाए रखना, लगभग असंभव है. मालेगांव नगर निगम (एमएमसी) भी बहुत सीमाओं के साथ काम कर रहा था—जहां अब तक एक भी वेंटिलेटर नहीं है.
नगर निगम के आयुक्त दीपक कासार का कहना है कि एमएमसी दो मोर्चों पर संघर्ष कर रही थी. सबसे पहले, तो इसे कर्मचारियों की कमी से निपटना पड़ा क्योंकि कई श्रमिकों ने संक्रमित होने के डर से काम करने से मना कर दिया. इसके चलते एमएमसी आपदाओं पर ध्यान केंद्रित करने वाले एनजीओ भारतीय जैन संगठन से उपलब्ध कराए गए एंबुलेंस का उपयोग भी नहीं कर पाई. कासार का कहना है कि दूसरी समस्या यह थी कि स्क्रीनिंग, परीक्षण और क्वारंटीन के लिए लोगों को समझाना बहुत कठिन कार्य था, खासकर जब महामारी के शुरुआती दिनों में सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील माहौल बनाया गया.
एमएमसी का काम सोशल मीडिया पर चल रही अफवाहों से काफी जटिल हो गया था, जिनमें से एक अफवाह यह थी कि कोरोनो वायरस स्क्रीनिंग के प्रयास मुसलमानों के खिलाफ साजिश थी. इसके कारण लोगों ने परीक्षण कराने से इनकार कर दिया और यहां तक कि स्क्रीनिंग करने वाले एमएमसी स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं पर हमले भी हुए. अप्रैल के अंतिम सप्ताह और मई के पहले सप्ताह में, छह आशा (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) कार्यकर्ताओं पर गर्म पानी फेंककर हमला किया गया. कई निवासियों ने अपने असली नाम और लक्षण के बारे में स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को जानकारी देने से इनकार कर दिया.
धार्मिक मान्यताएं भी एक जटिल मुद्दा थीं—उदाहरण के लिए, कई मुसलमान मानते हैं कि अगर मृतक की आंखें खुली हों, तो वह जन्नत नहीं पहुंचता है, इसके चलते लोग संक्रमित व्यक्तियों की लाशों को छूते थे, जिसके कारण संक्रमण का खतरा बढ़ गया. एक दूसरी परंपरा यह है कि जिन घरों में मौत हुई है, वहां की महिलाएं खुद को चार महीने आठ दिन खुद को अलग-थलग रखती हैं—इससे संपर्क का पता लगाना और भी जटिल हो गया.
ऐसी समस्याओं को दूर करने के लिए कासर ने समुदाय के नेताओं से मदद की अपील की, विशेष रूप से प्रभावशाली मुफ्ती और स्थानीय विधायक मोहम्मद इस्माइल से. इस्माइल जैसे नेताओं ने लोगों से घर पर रहने और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का सहयोग करने के लिए मस्जिदों से अपील की. नतीजतन, लोग तेजी से यह देखने लगे कि प्रशासन के प्रयास वास्तविक थे, जिससे परीक्षण के लिए अधिक से अधिक लोग आगे आए. घर पर रहने की अपील की सफलता ईद-उल-फित्र (25 मई) के दिन स्पष्ट दिखी. मालेगांव के ईदगाह मैदान में सन्नाटा था—आम तौर पर वहां ईद के दिन तीन लाख लोग नमाज पढऩे के लिए जमा होते थे.
वायरस के बारे में जानकारी फैलाने के लिए समुदाय के सदस्यों को आगे लाने की एक और पहल की गई. कासर ने इस काम में आयुर्वेदिक और यूनानी चिकित्सा के छात्रों को लगाया, क्योंकि समुदायों में उनकी साख थी. स्थानीय मोहम्मदिया तिब्बिया कॉलेज द्वारा यूनानी इम्यूनिटी-बूस्टिंग ड्रिंक तैयार किया गया, जिसे मनसूरा काढ़ा के रूप में जाना जाता है. कॉलेज का संचालन करने वाले ट्रस्ट को अब तक ढाई लाख पैकेट के लिए आग्रह प्राप्त हो चुके हैं. जागरूकता बढ़ाने के लिए एमएमसी ने छोटे सूचनात्मक वीडियो भी बनाए और उन्हें यूट्यूब पर अपलोड किया, जिसका उद्देश्य मालेगांव के युवाओं, विशेषकर महिलाओं के बीच कोरोना वायरस के बारे में जानकारी बढ़ाना है. घर में आइसोलेशन में रहने वाले कमजोर परिवारों को जरूरत की वस्तुएं देना भी एमएमसी का महत्वपूर्ण प्रयास था. कासार कहते हैं, ''हमने ऑक्सीजन सिलिंडर उपलब्ध कराया, जबकि पुलिस विभाग इस कदम के खिलाफ था.''
मालेगांव में जमीयत उलेमा-ए-हिंद के सचिव मौलाना इम्तियाज अहमद इकबाल अहमद कहते हैं, ''डर से ज्यादा मोहल्ला क्लिनिक गेमचेंजर बने.'' कासर ने यह भी बताया कि सफलता मुख्यत: पैसे के बल पर नहीं मिली. उन्होंने कहा, ''हमने किसी भी मरीज को निजी अस्पतालों में नहीं भेजा, इसलिए इलाज का बिल शून्य रहा. हमने पिछले दो महीने में क्वारंटीन और उपचार की व्यवस्था पर 20 लाख रुपए से कम खर्च किए.'' यह राज्य के अन्य नगर निगमों के प्रयासों के विपरीत है; कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में लगभग 40 लाख की आबादी के लिए पुणे ने 294 करोड़ रुपए का बजट रखा है. कासार का कहना है कि मालेगांव ने केवल कोविड-19 के मामलों में ही नहीं, बल्कि हृदय, फेफड़े और गुर्दे को प्रभावित करने वाले अन्य रोगों में भी कमी दिखाई है. एक बार जब आइसीएमआर का अध्ययन पूरा हो जाएगा, तो उसकी रिपोर्ट प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली समिति को सौंपा जाएगा.
एमएमसी के प्रयासों ने न केवल मालेगांव के नागरिकों के स्वास्थ्य में सुधार किया है, बल्कि इसने शहर की प्रतिष्ठा को भी बढ़ाया है. एक स्थानीय फिल्म इंडस्ट्री और लगभग 1,25,000 पावरलूम के साथ टेक्सटाइल उद्योग के केंद्र मालेगांव ने सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील होने के कारण मीडिया में थोड़ी कुख्याति भी बटोर चुका है—2001 में दंगा और 2006 तथा 2008 में बम धमाकों ने शहर को हिला दिया था. लेकिन तब से यह आगे बढ़ा है और 'मालेगांव मॉडल' की सफलता के साथ यह एक मिसाल बनकर उभरा है.